एक समय खोजी पत्रकारिता का गढ़ रही आउटलुक में एक बड़ा बदलाव आया है. क्या पत्रिका की विरासत सामूहिक इस्तीफों और संपादकीय में हस्तक्षेप की वजह से खतरे में है?
“क्या उन्हें मुस्कुराना चाहिए?”
“राव विरोधी: मुसलमान कांग्रेस की कमान किसी नए नेता के हाथों में चाहते हैं.”
“क्या उन्होंने पैसे लिए? हां, एक ओपिनियन सर्वेक्षण में बहुमत यही कहता है.”
ये पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के इर्द-गिर्द आउटलुक पत्रिका के कवर पेज की सुर्खियां हैं. फरवरी, 1996 में अपनी लॉन्चिंग के छह महीने से भी कम समय में समसामयिक मुद्दों और समाचारों की इस साप्ताहिक पत्रिका ने देश के सबसे ताकतवर आदमी की आलोचना में कई कवर स्टोरी प्रकाशित की थीं. ये तीन उन्हीं में से हैं.
इसके उलट, पिछली बार जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी 2024 में आउटलुक के कवर पर आए थे, तब कवर पर मोदी के अलग-अलग अवतारों के पांच फोटो थे, और हेडलाइन थी “सर्वव्यापी, सर्वज्ञ”. बीते एक साल में मोदी के अलावा आउटलुक के कवर पर पं. जवाहरलाल नेहरू डॉ. बीआर अंबेडकर को छोड़कर कोई भी अन्य भारतीय राजनीतिक नेता अकेला केंद्र में नहीं रहा है.
इस साल आउटलुक अपने तीन दशक पूरे कर लेगा. जब यह पत्रिका शुरू हुई थी, तो इसका आगाज़ एक तूफान की तरह था. 18 साल तक पत्रिका के शीर्षक के ऊपर “साप्ताहिक समाचार पत्रिका” लिखा था, और यह काफी हद तक इस सीधे-सादे लेकिन इस बड़े दावे के अनुरूप था. (10 फरवरी, 2014 से, आउटलुक की टैगलाइन है: “पढ़ें. सोचें. समझें.”) अपनी शुरुआत के तीस साल बाद, पूर्व और वर्तमान रिपोर्टरों और संपादकों की गवाही से पता चलता है कि इस पत्रिका की गूंज अब वैसी नहीं सुनाई देती.
आउटलुक का पहला अंक अक्टूबर 1995 में “कश्मीर में पहला जनमत सर्वेक्षण” कवर स्टोरी के साथ न्यूज़स्टैंड पर आया. इसमें बताया गया था कि घाटी के लोग क्या चाहते हैं. लॉन्च वाले अंक की प्रतियां जला दी गई थीं, और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने संस्थापक प्रधान संपादक विनोद मेहता को फोन करके ऐसी कवर स्टोरी प्रकाशित करने के लिए फटकार लगाई, जिसमें कहा गया था कि “77 प्रतिशत लोग कहते हैं कि भारतीय संविधान के भीतर कोई समाधान नहीं है”.
पत्रिका के पिछले तीन अंकों में महिला दिवस के लिए एक विशेष संस्करण शामिल था - जिसमें पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में महिलाओं की प्रोफाइलिंग, देश में "धार्मिक पर्यटन" पर एक कवर स्टोरी और दुनिया की नई व्यवस्था पर एक अन्य कहानी थी.
इनसे पहले, 'द ग्रिड' शीर्षक वाले अंक ने "बाइनरी की अवधारणा" और "बाइनरी के प्रति प्रतिरोध था, जो हमें कम मानवीय और ज्यादा प्रोग्राम किए गए प्राणी बनाते हैं, जिन्हें कहीं का होने के लिए कहे मुताबिक काम करना चाहिए", को खंगाला. इससे पहले, आउटलुक ने "प्यार और अकेलेपन" पर एक वैलेंटाइन स्पेशल प्रकाशित किया था, और 2025 का पहला अंक "कोरियाई लहर हल्लू, भारत में दूर और नीचे तक फैल रहा है" था.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पत्रिका के "कायाकल्प" की कहानी को पिरोने के लिए आउटलुक से जुड़े 30 से अधिक पत्रकारों से बात की, जिनमें से कुछ इसकी संस्थापक टीम का हिस्सा थे और अन्य जो कुछ समय पहले तक पत्रिका के साथ काम करते थे.
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