चुनाव और अफगानिस्तान फेक न्यूज के अन्य प्रमुख ट्रेंड्स में शामिल हैं.
सांप्रदायिक और राजनैतिक झूठी ख़बरें
सिन्हा ने कहा 'कट्टर सांप्रदायिकता इस साल का सबसे बड़ा ट्रेंड था'. इस साल जिन झूठी ख़बरों का खंडन किया गया उनमें 'थूक जिहाद', लड़कियों को 'लव जिहाद' में फंसाने की चाल, मुस्लिमों द्वारा कथित तौर पर पुलिस की पिटाई, और बलात्कार से जुड़े झूठे दावे शामिल थे.
सिन्हा ने कहा, "भारत में जिस तरह से अल्पसंख्यकों को संभवतः सबसे संगठित तरीके से गलत सूचना का उपयोग करके निशाना बनाया जाता है वह अभूतपूर्व है." "मुझे नहीं लगता कि यह इस पैमाने पर अन्य देशों में होता है. यहां गलत सूचना और अभद्र भाषा नरसंहार की स्थिति को भी जन्म दे रही है. हम अभी नाज़ी जर्मनी नहीं हैं, लेकिन क्या हम तब तक इंतजार करेंगे?"
उन्होंने कहा कि 'इस स्तर पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाली गलत सूचना और अभद्र भाषा' केवल भारत में ही पाई जाती है.
बूम के अनुसार, सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील अधिकांश दुष्प्रचार और गलत सूचनाएं वीडियो और तस्वीरों के माध्यम से प्रसारित होती है.
उदाहरण के लिए, 2020 में एक वीडियो वायरल हुआ जो कथित तौर पर एक सीसीटीवी फुटेज था, जिसमें दिखाया गया कि एक प्रेमी युगल रेस्तरां में खाना खा रहा है और पुरुष ने महिला के ड्रिंक में कुछ गिरा दिया. इसे 'लव जिहाद' के विरुद्ध चेतावनी के रूप में प्रसारित किया गया. जबकि वास्तव में यह जागरूकता फैलाने के लिए बनाई गई एक लघु फिल्म थी.
जब राजनैतिक खातों द्वारा गलत सूचना साझा की जाती है, तो इसका खंडन करना और कठिन होता है. सरकारी अधिकारियों द्वारा दिए गए बयानों और दावों पर निगाह रखने वाली फैक्टचेकर डॉट इन की पत्रकार निधि जैकब ने कहा कि इस साल गलत ख़बरें मुख्य रूप से वैक्सीन से संबंधित थीं.
ऐसे फर्जी दावों में प्रमुख था भोपाल की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर का कथन कि गोमूत्र का सेवन कोविड से लड़ने में मदद करता है; मध्य प्रदेश की पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर की सलाह कि लोगों को तीसरी लहर को रोकने के लिए यज्ञ-अनुष्ठान करना चाहिए; और उत्तराखंड के एक पुलिस अधिकारी का दावा कि कुंभ मेला सुपरस्प्रेडर आयोजन नहीं था, जबकि आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे थे.
"लोग कुछ समाचार चैनलों या लोक अधिकारियों पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं," निधि ने कहा. "तो भ्रम फैलाने वाले स्रोत पहले से ही बेख़बर लोगों को और प्रभावित करते हैं. साथ ही, जब सूचनाओं की बाढ़ आ जाती है तो लोग नहीं समझ पाते कि किस पर विश्वास किया जाए और अंत में वह उसी को सही मानते हैं जो उनके पूर्वाग्रहों को पुष्ट करे. सरकार से सवाल करने की झिझक और उपलब्ध सूचना की समीक्षा या जांच करने की उनकी असमर्थता इसे और बिगाड़ देती है.”
बूम के मैनेजिंग एडिटर जेंसी जैकब ने कहा कि फर्जी ख़बरों और गलत सूचनाओं में भारत के संदिग्ध रिकॉर्ड का कारण है टेक्नोलॉजी का तेजी से फैलना, बहुत सारे फीचर्स वाले स्मार्टफोन और नागरिकों का ध्रुवीकरण करने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा इनका अपने लाभ के लिए उपयोग.
"मीडिया साक्षरता से संबंधित कार्यक्रमों को डिजाइन करने के लिए सरकार और संस्थाओं में इच्छाशक्ति की कमी है," उन्होंने कहा. “अगली पीढ़ी को जानकारी और दुष्प्रचार में अंतर करने के तरीकों के बारे में शिक्षित करने के लिए स्कूल और विश्वविद्यालय स्तर पर शायद ही कोई प्रयास किए जा रहे हैं. बुनियादी फैक्ट-चेकिंग पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए जिसमें हम सीखें कि अपने उपकरणों पर प्राप्त जानकारी को पहचानने और सत्यापित करने के लिए किन साधनों का उपयोग करें."
उन्होंने कहा, "हमने देखा है कि कुछ आयोजनों जैसे चुनाव, किसानों का विरोध-प्रदर्शन आदि के दौरान जानबूझकर गलत जानकारियां फैलाई जाती हैं. हालांकि, अचानक हुई घटनाओं- जैसे जनरल बिपिन रावत और अन्य अधिकारीयों की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु के दौरान फर्जी ख़बरों में तेजी आ सकती हैं और असंबंधित वीडियो और तस्वीरें वायरल हो सकती हैं."
इसका परिणाम यह भी होता है कि नकली समाचारों की भारी मात्रा के परिणामस्वरूप गलत सूचना न्यूज़ चक्र के भीतर रह जाती है.
जैकब ने कहा, "लव जिहाद शब्द लगातार चर्चा में बना रहा क्योंकि इसका इस्तेमाल कई दक्षिणपंथी खातों द्वारा सांप्रदायिक दावों को हवा देने के लिए किया जाता रहा है."
"इस प्रकार के सांप्रदायिक दावे वायरल हो जाते हैं और राजनैतिक या वैचारिक रूप से प्रेरित खातों द्वारा बढ़ा-चढ़ा कर बताए जाते हैं."
हर दिन फैक्ट-चेकिंग करने के अपने दुष्परिणाम होते हैं, जैकब ने कहा.
"हमेशा खतरा सर पर मंडराता नज़र आता है," उन्होंने कहा. "हम लगातार समाचारों पर नज़र बनाए रहते हैं और किसी आतंकवादी घटना, पड़ोसी देशों के साथ तनाव, और राज्य या केंद्रीय चुनावों के दौरान ऐसा करना विशेष रूप से कठिन हो जाता है."
सिन्हा ने भी कुछ ऐसे ही विचार रखते हुए कहा कि सरकार को बहुत बड़ी भूमिका निभानी है, लेकिन वह कुछ भी नहीं करती है. "सरकार को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से फायदा हो रहा है. उदाहरण के लिए यूपी और उत्तराखंड चुनाव से पहले हरिद्वार में हुआ 'हेट कॉन्क्लेव'. वह इसके बारे में कुछ भी नहीं करने जा रहे हैं, हालांकि उन्हें बहुत कुछ करना चाहिए क्योंकि इस तरह की बातें सुनियोजित और सामाजिक होती जा रही हैं."
मुकदमों से लेकर ट्विटर पर ट्रोलिंग तक, फ़ैक्ट-चेकिंग टीमों को अत्यधिक नफरत का भी सामना करना पड़ता है.
ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के बारे में सिन्हा ने कहा, "जुबैर के खिलाफ उत्तर प्रदेश में दो मामले हैं, एक रायपुर में और एक दिल्ली में भी है."
"सोशल मीडिया पर हमारे ऊपर लगातार हमले होते हैं और हमारे खिलाफ हैशटैग चलते हैं. और मुस्लिम होने के कारण ज़ुबैर विशेष रूप से इसका रोज़ाना ही सामना करते हैं."