स्कैनिया बस घोटाला: नितिन गडकरी, उनके दो बेटे और घूस वाली लग्ज़री बस का जटिल रिश्ता

स्वीडिश कंपनी की आंतरिक जांच में पता चला है कि इसके अधिकारी मंत्रीजी के बेटे के साथ करीबी संपर्क में थे और अलग-अलग कंपनियों के जाल के जरिए बस की डिलीवरी करवाई गई.

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पैसों के बहाव का अभाव

जैसे ही बस के कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत हुए पैसा आना शुरू होना था. पहला चरण सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से ट्रांसप्रो मोटर्स तक, और दूसरा ट्रांसप्रो मोटर्स से फॉक्सवैगन फाइनेंस तक.

जहां सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी को हर महीने 20,000 रुपए किराए के तौर पर ट्रांसप्रो मोटर्स को देने थे, वहीं ट्रांसप्रो मोटर्स की फॉक्सवैगन फाइनेंस को जाने वाली महीने की किश्त 3,71,828 रुपए थी. यह उन्हें सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से मिलने वाले किराए से 18 गुना ज्यादा रकम थी.

दो निजी पार्टियों के बीच हुआ यह करार वादे के पीछे के असली मकसद को छुपा सकता था, अगर तयशुदा रकम ट्रांसफर होता तब. लेकिन बस के कथित तौर पर नागपुर के हवाले होने के बाद ट्रांसफर मोटर्स के खाते रिक्त ही रहे.

बस लीज़ के करार पर दस्तखत होने के 11 दिन बाद, सारंग गडकरी को 30 लाख रुपए मांगते हुए एक मैसेज भेजा जाता है, कथित तौर पर बस की पहली किश्त थी. जीआइए के दस्तावेजों के अनुसार इस मैसेज को भेजने वाला अज्ञात है.

अगले दिन सारंग गडकरी उत्तर देते हैं कि काम अगले दिन हो जाएगा, लेकिन जब पैसे ट्रांसफर नहीं होते तो शिवाकुमार उनसे थोड़ी विनती करते हैं, "सर ट्रांसप्रो के क्रेडिट में पेमेंट नहीं आया है, वह काफी परेशान हैं क्योंकि उसकी भी फाइनेंसर को किश्त जानी है, कृपा करें."

सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से ट्रांसप्रो मोटर्स को पहली किश्त 23 नवंबर, 2016 को मिली. लेकिन 40 लाख के बजाय केवल 25 लाख ही भेजे गए थे. एक दिन बाद, एक अज्ञात नंबर से सारंग गडकरी को धन्यवाद और ट्रांसप्रो को पेमेंट मिलने की पुष्टि करता हुआ एक मैसेज भेजा जाता है.

अगले महीने तक, लक्ष्मीनारायण का 55 लाख (80-25) बस की सिक्योरिटी और 2 महीने का किराया 40,000 रुपए (20+20) बकाया हो जाता है. उसने महीने के आखिर तक सब्र से इंतजार किया, लेकिन उसके खाते की रकम 25 लाख रुपए पर ही स्थिर रही.

इस सौदे से उनकी झुंझलाहट ज़ाहिर होने लगी थी. उन्होंने पूरी प्रक्रिया का हिस्सा रहे और ट्रांसप्रो मोटर्स को साथ लाने वाले शिवाकुमार को एक गुस्से से भरी ईमेल लिखी.

30 दिसंबर, 2016 को लक्ष्मीनारायण, शिवकुमार को लिखते हैं, "अगर पांडे कल तक दूसरी किश्त देता है, मैं वह करार नोटिस देकर खत्म करना चाहता हूं, मैं वह बस वापस ले लूंगा, और खुद चला लूंगा, जो करार हुआ था यह उसका उल्लंघन है, किसी भी नतीजे को भुगतने के लिए तैयार रहें. कृपया उसे बता दें, वह तो मेरे फोन या मैसेज का जवाब देने की जरूरत भी नहीं समझता. मैं गंभीरता से कह रहा हूं. 4 जनवरी 2017 तक मैं इंतजार करूंगा. उसके बाद मैं कानून का सहारा लूंगा."

शिवाकुमार ने उन्हें सारंग गडकरी को एक ईमेल लिखने को कहा, जो वह साथ में उन्हें भी भेज दें. उन्होंने लक्ष्मीनारायण को दिलासा दिया कि वह दोनों गडकरी भाइयों के साथ इस मुद्दे पर बात करेंगे.

शिवकुमार लिखते हैं, "मैं सारंग को यह मेल भी फॉरवर्ड कर दूंगा जिससे कि उन्हें परिस्थिति का पता चल जाए. उन्हें आज सुबह अपने साथ कॉल पर लेते हैं."

इस ईमेल आदान-प्रदान के तुरंत बाद, शिवकुमार ने ट्रांसप्रो मोटर्स का भुगतान कराने के लिए गडकरी बंधुओं से इस विषय पर गंभीरता से बात की. जीआईए नोट करता है कि उनकी सारंग और निखिल गडकरी से चैट पर जल्दी-जल्दी काफी बातें हुई.

2 जनवरी, 2017 को शिवाकुमार ने सारंग गडकरी को एक एसएमएस भेजा- "डियर सर, लक्ष्मीनारायण फाइनेंसर के भुगतान की वजह से बहुत तनाव में हैं क्योंकि उसने फाइनेंसर के मार्जिन के पैसे के भुगतान में भी निवेश किया है. उसके खाते में भुगतान की रकम ट्रांसफर कराने के लिए आपकी मदद की गुजारिश है. कृपया मदद करें." सारंग गडकरी ने कोई जवाब नहीं दिया.

17 फरवरी, 2017 को ट्रांसप्रो मोटर्स को सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से 10 लाख रुपए और मिले. इस समय ट्रांसप्रो मोटर्स का कुल बकाया सिक्योरिटी का 85 लाख (1.20 - 35) और किराए का 80,000 रुपए (20 x 4) था.

मार्च में फिर से शिवकुमार ने, ट्रांसप्रो मोटर्स के भुगतानों को निपटाने का अनुरोध करते हुए निखिल गडकरी के एप्पल आईमैसेज पर कम से कम चार और सारंग गडकरी को एक मैसेज भेजा. उन्होंने साथ में अनुच्छेदों और नियमों की फोटो को भी संलग्न कर दिया.

20 मार्च 2017 को उन्होंने निखिल को लिखा, "सर आपको कॉल करने की कोशिश की, लक्ष्मीनारायण के बकाया भुगतान को आपके ध्यान में लाने का अनुरोध है. उसके ऊपर फाइनेंसर का जबरदस्त दबाव है जिसने वाहन के दोबारा कब्जे का नोटिस भेज दिया है. सर बकाया किश्त ट्रांसफर करने की कृपा करें."

24 मार्च, 2017 को उन्होंने निखिल को दोबारा लिखा, "सर आपकी मदद की जरूरत है, फाइनेंसर ने लक्ष्मीनारायण को नोटिस दे दिया है. कृपया कल तक भुगतान कर उसकी मदद करें."

28 मार्च, 2017 को उन्होंने निखिल और सारंग गडकरी दोनों को मैसेज किया, "डियर सर एक बहुत विनम्र विनती, फाइनेंसर ने लक्ष्मीनारायण को कानूनी नोटिस भेज दिया है, कृपया आज ट्रांसफर कर उसकी मदद करें सर वरना वह हमारी मदद करने के बावजूद मुसीबत में फंस जाएगा सर."

3 दिन बाद लक्ष्मी नारायण को सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी से 25 लाख और मिले. सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी पर अभी भी सिक्योरिटी के 60 लाख (1.2 - 60) और किराया बढ़कर 1 लाख (20x5) हो गया था. अभी तक किराया एक बार नहीं दिया गया था.

इस पूरे खेल का दोषी अब एक लोन डिफॉल्टर लक्ष्मीनारायण है. 10 अप्रैल, 2017 से एक महीने तक लक्ष्मीनारायण और शिवकुमार के बीच ट्रांसप्रो मोटर्स के लोन के पैसे को न चुका पाने पर ईमेल का आदान-प्रदान होता है.

लक्ष्मीनारायण बताते हैं, “अप्रैल 2017 तक उन्हें नागपुर से केवल 60 लाख रुपए ही मिले हैं जबकि उन्हें जनवरी 2016 तक 1.2 करोड़ रुपए मिल जाने चाहिए थे. उन्हें नागपुर के ग्राहक से बस के किराए के तौर पर 12 किश्तों में 7.2 लाख रुपए भी नहीं मिले हैं. उन्हें ऐसा लग रहा था कि उनको नजरअंदाज कर फायदा उठाया जा रहा है.” शिवकुमार ने उन्हें भरोसा दिलाया की वह मिलकर इस मामले पर बातचीत कर सकते हैं.

उसी दिन शिवकुमार ने निखिल गडकरी को मैसेज किया और 25 लाख रुपए भिजवाने के लिए उनसे हस्तक्षेप करने को कहा. उन्होंने मैसेज में लिखा, "सर आपसे दखल देने की विनती है, अमितजी के द्वारा इंगित किए गए पिछले महीने के 25 लाख रुपए अभी भी बकाया हैं, कृपा करें सर लक्ष्मीनारायण विकट आर्थिक तनाव में है क्योंकि उसने बस के लिए उधार लिया था."

जीआइए यह नोट करता है कि 30 जून, 2017 को स्कैनिया ने फॉक्सवैगन फाइनेंस से पूछा कि क्या बस का लोन ट्रैवल टाइम कार रेंटल प्राइवेट लिमिटेड (ट्रैवल टाइम) को ट्रांसफर हो सकता है, क्योंकि ट्रांसप्रो मोटर्स "सहयोग नहीं कर रहा" है. लोन को ट्रांसफर करने की इस अर्ज़ी को, फॉक्सवैगन फाइनेंस ने खारिज कर दिया.

ट्रैवल टाइम पुणे महाराष्ट्र में स्थित एक प्राइवेट ट्रांसपोर्ट कंपनी है और उसने ही राज्य में स्कैनिया की बसों की डीलरशिप ली थी. उसी तरह जैसे कर्नाटक में स्कैनिया की डीलरशिप ट्रांसप्रो मोटर्स के पास थी.

20 और 24 मार्च 2017 को ट्रैवल टाइम के द्वारा ट्रांसप्रो मोटर्स को क्रमशः 12 लाख और 3 लाख रुपए की दो किश्तें ट्रांसफर की गईं. लक्ष्मीनारायण ने जीआइए को बताया कि यह पैसा बस के लिए आर्थिक मदद था. लेकिन जीआइए यहां इंगित करता है कि ट्रांसप्रो मोटर्स के खातों में यह सेवाओं के लिए किए गए भुगतान के रूप में दर्ज किया गया है और बस के लिए किए गए भुगतान से इसका कोई लेना देना नहीं है.

हमने ट्रांसप्रो मोटर्स को दिए गए पैसे को लेकर ट्रैवल टाइम से संपर्क किया. कंपनी के दो निदेशकों में से एक, विवेक कालकर ने जवाब दिया, "हम यह देखकर काफी चकित हैं कि स्कैनिया ने हमारा नाम अपने किसी गड़बड़ झाले में शामिल कर लिया है (अगर ऐसा हुआ है). हमने आपके द्वारा उल्लेख किए गए किसी भी मंत्री से किसी भी तरह के संबंध में कभी, किसी प्रकार का फायदा नहीं लिया है. हम अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों, जो बदनाम करने और लांछन लगाने वाले हैं, को सिरे से नकारते हैं."

1 दिसंबर, 2017 को निखिल गडकरी ने शिवाकुमार को एसएमएस सूचित किया कि 15 दिनों में अंतिम बकाया रकम चुका दी जाएगी. लेकिन जब 26 दिसंबर तक ट्रांसप्रो मोटर्स के पास कोई पैसा नहीं पहुंचा तो शिवाकुमार वापस हाथ फैलाकर उनके पास पहुंचे.

शिवाकुमार लिखते हैं, "डीलर के ऊपर अत्यधिक दबाव है और उसने फॉक्सवैगन फाइनेंस की तीन किश्तों को नहीं निपटाया है. आपने पक्का किया था कि 15 दिसंबर 2017 तक भुगतान हो जाएगा. कृपया इसमें मदद करें सर क्योंकि ट्रांसप्रो के डीलर पर इसकी वजह से मानसिक और शारीरिक रूप से फर्क पड़ा है, प्लीज सर कृपा करें."

इन मिन्नतों को किसी ने नहीं सुना

अब तक ट्रांसप्रो मोटर्स और फॉक्सवैगन फाइनेंस दोनों को समझ आ चुका था कि उन्हें बस के लिए अब और भुगतान नहीं मिलेगा.

इस दौरान, ट्रांसप्रो मोटर्स अक्टूबर 2016 से फॉक्सवैगन फाइनेंस को लोन की किस्तें भरती रही थी और नवंबर 2017 तक वह किसी तरह 44,91,936 लाख रुपए ही दे पाई. यह उनके द्वारा उधार ली गई रकम का छोटा सा हिस्सा था और सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी के द्वारा उन्हें दिए गए पैसों का 75 प्रतिशत हिस्सा था.

12 अक्टूबर 2018 को फॉक्सवैगन फाइनेंस के क्रेडिट आकलन विभाग के प्रमुख ने रिटेल फाइनेंस के वरिष्ठ मैनेजर और स्कैनिया इंडिया ऑफिस के क्रेडिट नियंत्रण विभाग को लिखा कि 2.21 करोड़ रुपए (₹22195991) (1,21,78,573 + 77,65,449 + 22,51,969 - तीनों लोन) ट्रांसप्रो मोटर्स पर बकाया हैं. क्योंकि स्कैनिया भारत ने इस लोन की ब्रांड गारंटी दी थी और उधार लेने वाले ने किश्तें नहीं चुकाई हैं, तो स्कैनिया को यह पैसे देने चाहिए.

30 सितंबर, 2018 को फॉक्सवैगन फाइनेंस के खातों में ट्रांसप्रो मोटर्स एक गैर निष्पादित संपत्ति या एनपीए (डूबी हुई रकम), के रूप में नामित हो गई. 4 अक्टूबर, 2018 तक कुल बकाया ऋण 2.22 करोड़ रुपए (2,22,07,299 रुपए) था.

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झूठ से भरी बस

मंत्री को स्कैनिया लग्जरी बस दिए जाने की बात जब शुरू में मीडिया में आई तो एक भारतीय मीडिया संस्थान ने स्कैनिया के प्रवक्ता हांसाओके डेनियल्सन के हवाले से एक वक्तव्य इस करार को लेकर चलाया. डेनियल्सन ने कहा- "नहीं, यह बस स्कैनिया इंडिया से 2016 में कंपनी के एक प्राइवेट डीलर ने खरीदी थी जिसने उसे अपने एक ग्राहक (एक भारतीय बस संचालक) को दे दिया था. बस की मौजूदा स्थिति के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है."

भारतीय समाचार रिपोर्ट ने इसमें यह भी जोड़ दिया कि स्कैनिया ने (डेनियल्सन के हवाले से) गडकरी के बेटों से जुड़े किसी (व्यक्ति या कंपनी) के साथ किसी भी तरह के व्यापारिक सौदे में पड़ने से इनकार किया है.

नितिन गडकरी ने इस न्यूज़ रिपोर्ट और वक्तव्य को, अपने और अपने परिवार को इस भ्रष्ट सौदे से पाक-साफ घोषित करने के लिए इस्तेमाल किया. उन्होंने इसे स्कैनिया का अंदरूनी मामला बताया.

इन संवाददाताओं ने डेनियल्सन से इन वक्तव्यों की पुष्टि की. उन्होंने माना कि हालांकि उनका वक्तव्य ठीक था लेकिन भारतीय न्यूज़ रिपोर्टों में इस्तेमाल किया गया दूसरा वक्तव्य भ्रामक था.

उन्होंने कहा, "मैं अपने बयान को पहचानता हूं और उसके साथ हूं. लेकिन परिवार के प्रतिनिधि के द्वारा की गई व्याख्या थोड़ी भ्रामक लगती है. जबकि तुम और मैं, हम दोनों जानते हैं कि ट्रांसप्रो से बस को किराए पर लेने वाली कंपनी को एक निकट का रिश्तेदार ही चला रहा था.” (स्वीडिश से अनुवादित)

उन्होंने लगातार ईमेल में दोहराया कि सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी वह कंपनी है, जो परिवहन मंत्री के बेटे से जुड़ी है और स्कैनिया इतना पक्का कर पाई है कि बस को "किराए पर" मंत्री के बेटे ने लिया था.

उन्होंने यह भी कहा, "हमें यह भी पता है कि मंत्री ने बस का इस्तेमाल निजी तौर पर किया है, अपनी बेटी की शादी में. लेकिन इसका वर्णन ऐसे भी हो सकता है कि मंत्री ने पार्टी के ट्रांसपोर्ट को संभालने के लिए एक बस कंपनी की सेवाएं लीं. हम यह साबित नहीं कर पाए हैं कि मंत्री को यह बस उपहार के रूप में मिली थीं."

डेनियल्सन के अनुसार स्कैनिया का तर्क- "क्या आप सही में सोचते हैं कि एक अच्छा भला भारतीय मंत्री एक बस को उपहार के तौर पर लेगा, खास तौर पर तब जब वह बहुत कम दामों में बसों की हेल्प अपने बेटे से ले सकता था जो एक बस कंपनी चलाता है?"

लेकिन, डेनियल्सन स्कैनिया से अकेले व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने मंत्री के बस से जुड़े होने की बात कही है.

26 फरवरी, 2021 को खबर के चलने से पहले स्कैनिया के सीईओ हैनरिक हेनरिक्सेन ने स्वीडन में एसवीटी को एक वीडियो साक्षात्कार दिया, और कहा कि कंपनी के पास जानकारी है कि मंत्रीजी की एक बेटी की शादी में बस का इस्तेमाल हुआ था.

उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत में स्कैनिया के वरिष्ठ कर्मचारी इस सौदे को विदेश में बैठे अपने वरिष्ठ मैनेजमेंट से छुपाना चाह रहे थे.

हेनरिक्सेन कहते हैं, "तो यह एक सौदा था जिसे कभी होना ही नहीं चाहिए था. और यह एक ऐसा शब्द है जहां पर हमने बस को अपने एक व्यक्तिगत डीलर को बेचा और उन्होंने इसके बाद उसे एक ट्रांसपोर्ट कंपनी को बेच दिया जिसके भारतीय मंत्री से पारिवारिक और व्यक्तिगत संबंध हैं. हमारे सिस्टम को इसे पकड़ना चाहिए था और हम सब के लिए खतरे की घंटी बज जानी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि भारत मैं स्कैनिया के वरिष्ठ लोगों ने सिस्टम को चकमा दिया क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि यह सौदा पूरा हो."

उन्होंने सौदे का ठीकरा स्कैनिया इंडिया के दफ्तर पर फोड़ते हुए यह भी कहा, "हमारे द्वारा बनाए गए नियमों को उन्होंने चकमा दे दिया, कागजात पूरे नहीं थे और वह हमें सूचना देने से बच रहे थे."

हेनरिक्सन ने इंटरव्यू में समझाया कि जैसे ही स्वीडन में स्कैनिया को इन भ्रष्ट सौदों के बारे में पता चला, उन्होंने तुरंत अपने तंत्र की सफाई की और जितने भी लोग दोषी पाए गए उन्हें निकाल दिया. उन्होंने यह भी कहा कि इतना ही नहीं स्कैनिया ने तो नरसापुरा में अपनी बस निर्माण इकाई को भी बंद कर दिया जिससे हजारों नौकरियां प्रभावित हुईं. सब भ्रष्टाचार की वजह से.

सच्चाई यह है कि जून 2018 में जब स्कैनिया ने भारत में अपनी उत्पादन इकाई को बंद किया तो ऐसी घटिया बिक्री की वजह से हुआ था न कि भ्रष्टाचार की वजह से, जो हेनरिक्सन का दावा था. उस समय मीडिया ने इस पर रिपोर्ट किया था और भारत में स्कैनिया की बसों के दो एजेंटों ने पत्रकारों से इस बात की पुष्टि की थी.

और अगर हम हेनरिक्सन की बात पर भरोसा करें, तो क्या स्कैनिया ने खराब बिक्री अपने भारत ऑफिस के भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए दिखाई थी?

स्कैनिया के एक पूर्व कर्मचारी जिन्हें बस प्लांट के बंद होने की वजह से निकाल दिया गया, कहते हैं कि आधिकारिक तौर पर प्लांट बंद करने की कार्यवाही के कागजात कर्नाटक श्रम विभाग को कभी सौंपे ही नहीं गए.

हेनरिक्सन ने यह जिक्र भी किया था कि भारत ऑफिस के जिन लोगों को भ्रष्ट सौदों का दोषी पाया गया, उन्हें निकाल दिया गया था. लेकिन स्कैनिया इंडिया के शीर्ष के अधिकारियों के द्वारा कंपनी को छोड़ने की टाइमलाइन जीआइए के द्वारा दाखिल किए गए समय से मेल नहीं खाती. इनके अलावा कुछ और लोग या तो ऊंचे पदों या बाहर के देशों में भेजकर पदोन्नत किए गए, जिनमें से कुछ आज भी स्कैनिया के कर्मचारी हैं.

बस सौदे के पीछे के तथाकथित सरताज, शिवाकुमार ने स्कैनिया मार्च 2018 में छोड़ दी थी. जीआईए के निष्कर्ष पूरे होने से 6 महीने पहले. उन्होंने एक ऐसी कंपनी को ज्वाइन किया जिसका स्कैनिया से बसों के कोच बनाने के लिए करार था.

संवाददाताओं ने स्कैनिया इंडिया के दो पूर्व कर्मचारियों, जिनमें से एक एचआर विभाग में था, से पुष्टि की कि शिवाकुमार को भ्रष्टाचार के कारणों से नहीं हटाया गया था. उन्होंने एक बड़े बोनस के साथ इस्तीफा दिया था. सूत्र यह भी बताते हैं कि स्कैनिया छोड़ने से एकदम पहले उन्हें कथित तौर पर जर्मनी स्थित, फॉक्सवैगन एजी ऑफिस में दो बार बुलाया गया.

हमने शिवाकुमार से संपर्क करने की कई कोशिश कीं. संवाददाताओं ने उनसे व्यक्तिगत तौर पर मिलने की गुजारिश की, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया. फोन से संपर्क करने पर उन्होंने कहा कि उन्होंने स्कैनिया को वर्षों पहले छोड़ दिया था और वह इस मामले पर कोई टिप्पणी करना नहीं चाहते. उन्होंने कई बार भेजे गए विस्तृत प्रश्नों का कोई जवाब नहीं दिया.

हेलमुट श्वारट्ज़ और सेल्स विभाग का वह कर्मचारी जिसने 2015 में "मेट्रोलिंक फॉर मिस्टर गडकरी” के शीर्षक वाली ईमेल भेजी थी, उसने स्कैनिया जुलाई 2017 में छोड़ दी.‌ एंडर्स ग्रंथ क्रोमा ने स्कैनिया इंडिया को सितंबर 2016 में छोड़ दिया था और वह स्वीडन ऑफिस में जुलाई 2017 तक रहे. इन तीनों ने स्कैनिया को जीआइए के तथ्यों के बाहर आने से एक वर्ष से अधिक पहले छोड़ दिया था. (उनकी लिंक्डइन प्रोफाइलों के अनुसार)

रिचर्ड वार्डमार्क ने स्कैनिया इंडिया ऑफिस को अक्टूबर 2018 में छोड़ दिया था लेकिन वह अब स्कैनिया के फिनलैंड ऑफिस- एसओई बस प्रोडक्शन फिनलैंड ओवाय के कार्यकारी निदेशक हैं.

उल्फ फ्रॉमहोल्स, जो स्कैनिया इंडिया के सीएफओ थे, उन्हें 11 जनवरी, 2018 को सूचित किया गया कि एसवीटी पत्रकारों के पास मौजूद जानकारी के अनुसार उन्हें निकाल दिया जाएगा. लेकिन जून 2018 तक वह नीदरलैंड में स्कैनिया प्रोडक्शन ज़्वोल्ल में काम कर रहे थे. (जानकारी स्वीडन में एसवीटी रिपोर्टर के पास है जिन्हें स्कैनिया के सूत्रों से लिया गया)

मिकाएल बैंजे स्कैनिया इंडिया ऑफिस के कार्यकारी निदेशक जनवरी 2016 में बने और मार्च 2018 में उन्होंने स्कैनिया के स्वीडन स्थित मुख्यालय में टीम लीडर डिफेंस का कार्यभार संभाला. फॉक्सवैगन एजी ने संवाददाताओं को बताया कि वह स्कैनिया समूह के लिए अब काम नहीं करते.

जिमी रेनस्ट्रोम, जिन्होंने एक जुलाई 2017 को स्कैनिया इंडिया के सीएफओ के रूप में कार्यभार संभाला, 2 वर्ष बाद वह स्कैनिया चीन चले गए. संवाददाताओं के द्वारा संपर्क किए जाने पर रेनस्ट्रोम ने टिप्पणी करने से मना कर दिया.

अरुण रंगासामी स्कैनिया इंडिया में तेजी से उभरे और अब वह बिक्री विभाग के जनरल मैनेजर हैं.

क्या स्कैनिया ने अपने कुछ उन कर्मचारियों को कंपनी में रहने दिया जिन्हें कथित तौर पर भारत के ऑफिस में भ्रष्टाचार के बारे में पता था? और क्या उसने भ्रष्ट सौदे में आरोपित लोगों को जीआइए की जांच पूरी होने से पहले हटाया? क्या इससे यह अर्थ निकलता है कि स्कैनिया स्वीडन को भ्रष्टाचार के बारे में पता था? अगर स्कैनिया इंडिया के दफ्तर में उच्च पदों पर बैठे लोगों का भ्रष्ट सौदे में लिप्त होना उनके हटाए जाने का कारण था, तो इस मामले की सूचना भारत या स्वीडन में, किसी भी पुलिस या दूसरी जांच एजेंसी को क्यों नहीं दी गई?

हमारे संवाददाता बंगलुरु में लक्ष्मीनारायण से भी मिले लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से मना कर दिया. उन्होंने सूचना दी कि ट्रांसप्रो मोटर्स हुबली, कर्नाटक में अपना व्यापार समेट रहा है, और अपनी फैक्ट्री स्कैनिया के सुपुर्द कर आखिरकार बंगलुरु को छोड़ रहा है.

इस रिपोर्ट के एक संवाददाता ने 11 फरवरी से 26 फरवरी 2021 के बीच नितिन गडकरी और सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय में उनके व्यक्तिगत सचिवों को, एक इंटरव्यू का निवेदन और विस्तृत प्रश्नोत्तरी भेजने के लिए चार बार लिखा. गडकरी के दफ्तर से कोई जवाब नहीं आया. इसके बाद संवाददाता ने प्रश्नों से भरा पत्र केंद्रीय मंत्री तक पहुंचाने के लिए जर्मनी में भारतीय दूतावास से संपर्क किया. लेकिन उस रास्ते से भी कोई जवाब नहीं मिला.

नितिन गडकरी के दोनों बेटों सारंग और निखिल गडकरी को भी विस्तृत प्रश्नोत्तरी दो बार भेजी गई. लेकिन उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया.

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बस अब कहां है

तकनीकी तौर पर, ट्रांसप्रो मोटर्स के लोन की किश्तें न चुका पाने के बाद, बस को लोन देने वाली कंपनी के द्वारा ज़ब्त किया जाना चाहिए था, जोकि फॉक्सवैगन फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड है.

उससे भी पहले, करार के मुताबिक, जैसे ही सुदर्शन हॉस्पिटैलिटी ने भुगतान का डीफॉल्ट करना शुरू किया ट्रांसप्रो मोटर्स बस वापस ले सकता था. लेकिन ट्रांसप्रो मोटर्स अपने किराएदार के खिलाफ कभी अदालत गया ही नहीं.

डेनियल्सन ने ट्रांसप्रो मोटर्स के भुगतान न कर पाने की पुष्टि एसवीटी से की और बताया कि इसके बाद स्कैनिया ने फॉक्सवैगन फाइनेंस का लोन चुकाया और अक्टूबर 2019 में बस का कब्जा अपने हाथ में ले लिया.

लेकिन सुदर्शन के ऑडिटर्स ने दर्ज किया है कि फाइनेंस कंपनी ने बस पर कब्जा मार्च 2019 में ही किया था न कि अक्टूबर 2019 में. तो बस को अपने कब्जे में लेने के बाद फॉक्सवैगन ने क्या किया.

फॉक्सवैगन, जर्मनी के सूत्रों ने रिपोर्टरों को बताया कि कंपनी को कोई जानकारी नहीं है बस के बारे में.

फॉक्सवैगन फाइनेंस के सूत्रों ने जीआइए को बताया कि उनकी इस घाटे के लोन पर कार्यवाही करने की कोई मंशा नहीं है, क्योंकि वे जानते हैं- "बस स्कैनिया इंडिया के द्वारा एक बड़े राजनेता को उपहार के रूप में दी गई थी, जो इस समय एक मंत्री हैं, इस उम्मीद से कि भारत में होने वाले सौदों को स्वीकृति मिल जाए." उन्होंने यह भी बताया कि कंपनी मंत्रीजी से बस को वापस लेने की कोई इच्छा नहीं रखती.

स्कैनिया के सीईओ हेनरिक्सन ने भी, बस की मौजूदा स्थिति से जुड़े प्रश्नों को टालने की कोशिश की. लेकिन कंपनी के प्रवक्ता डेनियल्सन ने लिखित उत्तर में पुष्टि की है कि बस को ट्रांसप्रो मोटर्स ने नागपुर स्थित एक दूसरी प्राइवेट कंपनी अयोध्या कॉमर्स प्राइवेट लिमिटेड (अयोध्या कॉमर्स) को बेंच दिया गया है और इस कंपनी के भी तार 'मंत्री' से जुड़े हैं. हालांकि हम इस जानकारी को स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं कर पाए.

डेनियल्सन लिखते हैं, "डीलर ट्रांसप्रो मोटर्स ने बस को अयोध्या कॉमर्स प्राइवेट लिमिटेड को बेच दिया, इस कंपनी के तार भी मंत्री से जुड़े हैं. ऐसे आरोप है कि ट्रांसप्रो ने अयोध्या कॉमर्स के हाथ बस स्कैनिया इंडिया की गुजारिश पर ही बेची. हम अपने कई सर्वे में इसका प्रमाण नहीं ढूंढ पाए हैं." (अनुवादित)

उन्होंने यह भी कहा, "आधिकारिक भारतीय रजिस्ट्रेशन के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी का आखिरी हफ्ते तक ट्रांसप्रो मोटर्स अभी भी बस का मालिक था." मालिकाना हक की जगह बंगलुरु से हटकर नागपुर हो गई है.

स्वीडिश कंपनी ने यह भी कहा कि क्योंकि बस का मालिकाना हक अभी तक नहीं बदला है, ऐसे में हो सकता है कि बस को ट्रांसप्रो मोटर्स ने अयोध्या कॉमर्स को किराए पर दिया हो.

इसी महीने में, कारवां पत्रिका ने रिपोर्ट किया था कि 2018 में एक स्कैनिया मेट्रो लिंक बस जिसका नंबर एमएच 31 ईएम 1530 था, पूर्ति सोलर सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के एक खाली पड़े प्लॉट में खड़ी हुई मिली थी. यह कंपनी नितिन गडकरी और उनके बेटों से जुड़ी हुई है. थोड़ा ढूंढ़ने पर, यह पता चला कि 6 दिसंबर, 2016 को बस का पंजीकरण "स्कैनिया मेट्रो लिंक एचडी 410 आईबी6" के तौर पर हुआ था. ट्रांसप्रो मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड का नाम बस के मालिक की जगह पर है और जैसा डेनियल्सन ने कहा, मालिकाना हक नागपुर में है. बस का मौजूदा स्टेटस इस समय एक्टिव है.

संवाददाताओं ने अयोध्या कॉमर्स से संपर्क किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. स्कैनिया प्रवक्ता द्वारा बस के मालिकाना हक और अयोध्या कॉमर्स की बस की बिक्री और किराए में भूमिका के दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि हमारे संवाददाता नहीं कर पाए.

क्या इसका यह मतलब है कि बस पर दोबारा कब्जा ट्रांसप्रो मोटर्स का था और फॉक्सवैगन फाइनेंस का नहीं? क्या फॉक्सवैगन के पास बस का कब्जा दोबारा से कभी आया? अगर नहीं, तो क्या कंपनी ने ऑन रिकॉर्ड झूठ बोला?

जहां बड़ी वैश्विक कंपनियां यह ढूंढ़ने में लगी है कि 14.5 मीटर की लग्जरी बस किसके पास है, स्वीडन में प्रशासन कार्यवाही करने की तैयारियां कर रहा है. स्वीडन में सूत्रों ने एसवीटी को बताया कि राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी इकाई और पुलिस के वकीलों ने, स्कैनिया के खिलाफ जांच शुरू कर दी है. वही ब्रोन्शविग में राज्य के अभियोजक अभी विचार कर रहे हैं कि उन्हें पड़ताल शुरू करनी चाहिए या नहीं.

लेकिन मुख्य प्रश्न अभी भी मुंह बाए खड़ा है- क्यों स्कैनिया ने उस बस के पैसे दिए जिसके तार एक भारतीय मंत्री से जुड़े थे? और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने स्कैनिया को इस उपहार के बदले में क्या दिया?

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