मीडिया में कितने दलित रिपोर्टर? आशुतोष के इस सवाल पर सोशल मीडिया पर भिड़े पत्रकार

पत्रकार आशुतोष का ट्वीट सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बन गया है. कई पत्रकार ही उनसे पूछ रहे हैं कि आपने संपादक रहते कितने दलितों को नौकरी दी.

Article image

मीडिया में दलितों का नहीं होना हमेशा से एक सवाल रहा है. समय-समय पर इस मुद्दे पर बहस भी होती रहती है कि आखिर लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले मीडिया में दलितों की भूमिका गायब क्यों है? इसी मुद्दे पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. दरअसल पत्रकार से राजनेता बने और फिर से पत्रकारिता कर रहे आशुतोष ने एक ट्वीट किया कि "टीवी में कितने दलित रिपोर्टर हैं?" इसके बाद सोशल मीडिया में एक बार फिर यह मुद्दा गरमा गया. इस ट्वीट के बाद लोग उल्टा आशुतोष से ही सवाल करने लगे कि जब आप मेन स्ट्रीम मीडिया में थे तब आपने अपनी कलम से कितने दलितों को नौकरी दी?

आशुतोष के इस ट्वीट के बाद कमेंट की बाढ़ सी आ गई. ज्यादातर लोगों ने उनकी आलोचना करते हुए उनसे ही सवाल पूछे. इसके बाद आशुतोष ने फिर एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने कहा "मैंने एक सवाल पूछा था कि कितने दलित रिपोर्टर हैं, तब से मुझे जमकर गालियां दी जा रही हैं. मैं फिर पूछता हूं कि क्या मीडिया में खास तबके का पूर्ण वर्चस्व है या नहीं? और अगर ऐसा है फिर खबर एक खास नजरिए से ही क्यों नहीं दी जाएगी? मीडिया में कब दलित संपादक/रिपोर्टर्स का वर्चस्व होगा."

इस ट्विटर लड़ाई में कई पत्रकार आपस में भी उलझते दिखे. आज तक चैनल के एंकर रोहित सरदाना ने आशुतोष के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए कहा कि "संपादक रहते कितने लोगों से भर्ती के समय जाति प्रमाण पत्र मांगते थे आप?" इसके जवाब में आशुतोष ने कहा कि "मैंने तो छोटा सा सवाल पूछा. अगर जवाब नहीं है तो कोई बात नहीं. वैसे जवाब सबके पास है. एक बार न्यूज रूम में नजर डालते ही पता चल जाता है." इस पर फिर रोहित सरदाना कहते हैं कि "बड़ी जाति-परक नजर है आपकी! शक्ल देख कर जान लेते हैं आदमी की जाति क्या है? हमें तो न्यूजरूम में जातियां दिखाई नहीं दी कभी. पर खैर, सोच सोच की बात है!"

इसके बाद आशुतोष फिर एक ट्वीट करते हैं "जब से कहा है कि कितने दलित रिपोर्टर हैं मीडिया में एक तबके में आग लग गई है. मैं फिर कहता हूं कि अगर मीडिया में एक खास तबके के लोग रहेंगे तो खास तरह का ही नजरिया चलेगा. रोजाना की टीवी डिबेट में कितने पिछड़े समाज के पैनलिस्ट होते हैं? उनकी आवाज कहां सुनाई पड़ती है."

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा कि "ध्यान से देखिए सोशल मीडिया पर किस तबके के लोग हैं. जो सुबह से शाम तक गालियां देते हैं. जान से मारने की धमकी देते हैं, महिलाओं को रेप की धमकी देते हैं. उनके प्रोफाइल पढ़कर पता चल जाएगा कि ये कौन लोग हैं. जब दलितों की बात करो तो उनको क्यों आग लग जाती है."

यही नहीं न्यूज नेशन के एंकर दीपक चौरसिया ने भी उनके ट्वीट को रीट्वीट करते हुए कहा कि "प्रिय मित्र आशुतोष, आपने दो दशक से ज्यादा पत्रकारिता मेरे साथ की. आपने अपने सिग्नेचर से कितने दलित रिपोर्टर रखें? वैसे आपको अपना पूरा नाम आशुतोष गुप्ता सिर्फ चॉंदनी चौक के चुनाव में क्यों याद आया, फिर चुनाव के बाद क्यों भूल गए इसका भी खुलासा करिए." इस पर आशुतोष ने कहा "दीपक चौरसिया मेरे मित्र. अगर मैंने कोई काम नहीं किया तो अब वो काम नहीं होना चाहिए. ये तर्क नहीं कुतर्क है. आओ हम लोग मिलकर उस गलती को सुधारते हैं और मीडिया में आरक्षण की मांग को उठाते हैं, उसको लागू करवाते हैं. आओ मेरे साथ." इस पर दीपक चौरसिया ने कहा "प्रिय मित्र आशुतोष, पहले जामिया और एएमयू में दलितों को आरक्षण दिलवा दीजिए. अभी यही से शुरुआत करते हैं."

इसके अलावा भी कई अन्य पत्रकारों और लोगों ने आशुतोष के इन ट्वीट्स पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं. खैर... सवाल ये नहीं है कि आशुतोष ने संपादक रहते कितने दलितों को नौकरी दी है या नहीं दी, या उन्होंने न्यूज रूम में क्या किया है और क्या नहीं. लेकिन उसकी आड़ में यह भी ठीक नहीं है कि जो आपने नहीं किया तो फिर आपको हमें यह कहने का भी अधिकार नहीं है.

अगर आप इस समस्या को इस तरह देखते हैं कि जो आपने नहीं किया तो हमसे भी मत कहिए, यह आज के दौर के पत्रकारों के लिए बहुत ही बुरी स्थिति है. क्योंकि ये सच्चाई है कि मीडिया में आज दलितों के नाम पर चंद ही पत्रकार हैं. जो इक्का दुक्का हैं भी तो इनमें ऐसा कोई नहीं है जो किसी संस्थान में संपादक, एंकर या कोई नामी रिपोर्टर हो.

मीडिया का माहौल ऐसा है जिसमें दलित-पिछड़े पत्रकारों को काबिलियत दिखाने का मौका ही नहीं है. यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि मीडिया में सवर्ण तबके का वर्चस्व है. न्यूज़लॉन्ड्री ने पिछले साल ऑक्सफैम के साथ मिलकर मीडिया में डाइवर्सिटी के मुद्दे पर विस्तृत शोध किया था जिसमें यह समस्या खुलकर सामने आई थी.

आज के संपादकों और दूसरे वरिष्ठ लोगों को इस मुद्दे पर सोचना होगा कि मीडिया में एक वर्ग बिल्कुल गायब क्यों है. क्या जो काम आशुतोष नहीं कर पाए वह अन्य पत्रकारों को नहीं करना चाहिए? आषुतोष के ट्वीट पर अन्य पत्रकारों की प्रतिक्रिया बताती है कि वो समस्या नोटिस भी नहीं लेना चाहते, उसे दूर करना तो दूर की बात है.

Also see
article imageहाथरस में मीडिया कवरेज को रोकने पर एडिटर्स गिल्ड ने यूपी सरकार की आलोचना की
article imageअपना कंटेंट बदले टीवी मीडिया, नहीं तो बंद कर देंगे विज्ञापन देना: एडवरटाइजर्स

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like