कश्मीर टाइम्स के दफ्तर में पुलिस का तलाशी अभियान, अखबार ने कहा- चुप कराने की एक और कोशिश

अखबार की संपादक अनुराधा भसीन के खिलाफ देश की संप्रभुता को खतरे में डालने वाली हानिकारक सामग्री का कथित रूप से प्रचार करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है.

कश्मीर टाइम्स के दफ्तर के बाहर की एक तस्वीर.

जम्मू-कश्मीर पुलिस की राज्य जांच एजेंसी (एसआईए) ने जम्मू स्थित कश्मीर टाइम्स अखबार के मुख्यालय पर तलाशी अभियान चलाया. जानकारी के मुताबिक, इस दौरान अखबार की संपादक अनुराधा भसीन के खिलाफ कथित तौर पर देश की संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने और सार्वजनिक कानून व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करने के आरोप में एफआईआर भी दर्ज की गई है.

मीडिया रिपोर्टों में अधिकारियों के हवाले से कहा गया कि गुरुवार सुबह दो मंजिला बिल्डिंग में की गई तलाशी के बाद दस्तावेज़ और डिजिटल डिवाइस जांच के घेरे में थे. जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों ने एसआईए अधिकारियों की मदद की, जिन्होंने बाहरी घेरा बना रखा था. 

मालूम हो कि कश्मीर टाइम्स जम्मू-कश्मीर के सबसे पुराने अखबारों में से एक है. साल 2020 में उसके श्रीनगर कार्यालय को सील कर दिया गया था. 

कश्मीर टाइम्स ने तलाशी अभियान के बाद जारी अपने बयान में कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप डराने, बदनाम करने और चुप कराने की एक और कोशिश हैं. 

आउटलेट ने कहा, “हमे चुनकर टारगेट इसलिए किया जा रहा है क्योंकि हमने पत्रकारिता को जारी रखा है. ऐसे युग में जब आलोचना करने वाली आवाजें लगातार कम होती जा रही हैं, हम उन कुछ स्वतंत्र आउटलेट्स में से एक हैं, जो सत्ता के सामने सच बोलने को तैयार हैं."

बयान में आगे कहा गया है, "हम अधिकारियों से अनुरोध करते हैं कि वे इस उत्पीड़न को तुरंत रोकें, इन बिना आधार के आरोपों को वापस लें और संविधान से मिली प्रेस की स्वतंत्रता की गारंटी का सम्मान करें. हम मीडिया के हमारे साथियों से भी अनुरोध करते हैं कि वे हमारे साथ खड़े हों. वे नागरिक जो समाज को और अपने जानने के अधिकार को महत्व देते हैं, हम उन नागरिकों से भी आग्रह करते हैं कि वे इस बात को समझें कि यह समय इस बात की परीक्षा है कि क्या पत्रकारिता बढ़ते अधिकारवाद के माहौल में जिंदा रह सकती है या नहीं." 

न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले भी श्रीनगर में अख़बार के कार्यालय को सील किए जाने और उस पर हुई कार्रवाई पर पत्रकारों की भारी निंदा पर खबर की थी.

अनुराधा भसीन ने कहा कि यह उनके और उनके अख़बार के ख़िलाफ़ एक "टारगेटेड कार्रवाई" थी. उन्होंने कहा कि, "किसी भी उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया" और न ही "निकलने या रद्द किए जाने का कोई नोटिस दिया गया."

उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मैं बहुत खुलकर बात करने वाली रही हूं, कश्मीर में जो कुछ हुआ है और लोग कैसे पीड़ित हैं, उसके बारे में लिखती और बोलती रही हूं. इसलिए, हमें किसी न किसी तरह से निशाना बनाए जाने की उम्मीद थी और ये बिल्कुल वही हो रहा है."

5 अगस्त, 2019 को, जब भारत सरकार ने कश्मीर की स्वायत्तता को खत्म करते हुए अनुच्छेद 370 को हटा दिया और पूरे इलाके को कम्यूनिकेशन ब्लैकाउट में धकेल दिया, उस समय भसीन ने पत्रकारों की स्वतंत्र और सुरक्षित आवाजाही के लिए इंटरनेट और फ़ोन सेवाओं की बहाली करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी. तब सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से कम्यूनिकेशन पर लगे प्रतिबंधों में ढील देने को कहा था. 

इस साल पहलगाम हमले के बाद, भसीन ने सुरक्षा खामियों को दूर करने के साथ ही सत्ता की जवाबदेही की जरूरत पर भी लिखा था. "अगर उग्रवाद से लड़ना है, तो यह सिर्फ सैन्य ताकत से नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसका असर सिर्फ एक सीमित वक्त के लिए ही रहेगा. इसके लिए जरूरी है कि कश्मीरियों में भरोसा बनाया जाए और शांति कायम की जाए. साथ ही साउथ एशियाई स्तर पर भी कूटनीति को बेहतर किया जाए. पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 

साल 2019 में जब जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर उसे लद्दाख समेत दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. तब अनुराधा ने बड़े तीखे शब्दों में इसकी आलोचना की थी. उन्होंने लिखा था, “अब यहां के हर मामले में केंद्र का पूर्ण अधिकार है लिहाजा यहां बनने वाली किसी भी सरकार को अब एक साधारण नगरपालिका में बदल दिया जाएगा. कठपुतली सरकारो के जरिए यहां के निवासियों से बंधक प्रजा की तरह व्यवहार किया जाएगा.” यह पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 

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