उत्तराखंड: व्हाट्सएप, रेडियो जिंगल्स, डिजिटल और दिल्ली से गोवा तक होर्डिंग्स पर धामी ने खर्चे 182 करोड़

एसएमएस और व्हाट्सएप मैसेज भेजने पर सरकार ने चार सालों में 40 करोड़ से ज्यादा खर्च किए हैं, उसमें से 32.9 करोड़ रुपये सिर्फ एक कंपनी मास्टर स्ट्रोक को दिए गए हैं.

WrittenBy:बसंत कुमार
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उत्तराखंड सरकार के विज्ञापनों की प्रतीकात्मक तस्वीर.

अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो अक्सर आपको बस स्टॉप, मेट्रो स्टेशन, रेलवे स्टेशन या किसी और जगह कभी न कभी उत्तराखंड सरकार का विज्ञापन दिखाई दिया होगा. आपके मन में भी सवाल आया होगा कि आखिर उत्तराखंड सरकार का विज्ञापन यहां क्यों?  

दरअसल, यह झलक उस एक हजार करोड़ से ज्यादा के खर्च की है. जो बीते पांच सालों में उत्तराखंड सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने विज्ञापनों पर खर्च किया है. जिसमें से एक बड़ा हिस्सा (करीब 923 करोड़ रुपये) अकेले पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री रहते खर्च हुआ है. 

पहले भाग में हम बता चुके हैं कि कैसे सरकार ने टीवी मीडिया में विज्ञापनों पर बेहताशा खर्च किया. दूसरे भाग में हमने अख़बारों और बुकलेट्स के प्रकाशन हुए खर्च का ब्यौरा दिया. ये दोनों रिपोर्ट्स हमारे सब्सक्राइबर्स के लिए उपलब्ध हैं. 

इस रिपोर्ट में हम दिल्ली से गोवा तक दिखने वाले आउटडोर विज्ञापनों, डिजिटल मीडिया (वेबसाइट्स), रेडियो और व्हाट्सएप मैसेज एवं टैक्स्ट संदेशों (एसएमएस) के जरिए विज्ञापन पर किए खर्च का ब्यौरा देंगे. इन माध्यमों पर उत्तराखंड सरकार ने बीते पांच सालों में कुल 190 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं. जिनमें से 182 करोड़ मुख्यमंत्री धामी के कार्यकाल यानि बीते चार साल में हुए हैं.  

आउटडोर विज्ञापन पर 50 करोड़ का खर्च 

सूचना विभाग के पांच साल के दस्तावेजों में आउटडोर विज्ञापनों को लेकर जानकारी सिर्फ बीते साल यानी 2024-25 में ही मिलती है. धामी सरकार ने बीते साल में ही इस पर लगभग 50 करोड़ से ज्यादा खर्च किए हैं. सरकार ने ये आउटडोर विज्ञापन (बिलबोर्ड्स) प्रदेश के अलग-अलग शहरों के अलावा दिल्ली से लेकर गोवा तक लगवाए हैं. 

जानकारी के मुताबिक, अकेले दिल्ली में आउटडोर विज्ञापनों पर 34 करोड़ से ज्यादा खर्च किए गए हैं. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि जो विज्ञापन दिए गए वो किस विषय के थे. मेट्रो स्टेशन, बस स्टॉप, रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट, लगभग हर जगह एलईडी और मेट्रो के लोअर एवं अपर पैनल्स पर विज्ञापन के जरिए खर्च का विवरण जरूर मौजूद है. 

इस साल की शुरुआत में जनवरी से फरवरी के बीच प्रयागराज में हुए महाकुंभ में उत्तराखंड सरकार ने अपनी योजनाओं, उपलब्धियों के प्रचार के साथ-साथ लोगों के स्वागत में होर्डिंग्स लगवाए. इस पर 20.73 लाख रुपये खर्च हुए. 

वहीं, 2025 में आयोजित राष्ट्रीय खेलों के प्रचार के लिए प्रदेश में जगह-जगह होर्डिंग्स, पोस्टर्स आदि लगवाने पर 1.05 करोड़ रुपये खर्च किए गए. यह सब काम अलग-अलग एजेंसियों के माध्यम से हुआ. 

इन एजेंसियों में दैनिक जागरण से संबंधित जागरण एंगेज भी शामिल है. जिसने गोवा और दिल्ली मेट्रो पर लगाए गए विज्ञापनों का काम देखा. जिसके बदले इसे सरकार से 25.46 लाख रुपये प्राप्त हुए हैं. 

मालूम हो कि 38वें राष्ट्रीय खेलों का आयोजन उत्तराखंड में 28 जनवरी से 14 फरवरी 2025 तक किया गया था, जिसमें कुल 37 टीमें और 10,000 से अधिक खिलाड़ी शामिल हुए थे.

जून और जुलाई, 2024 में टाइम्स इनोवेटिव मीडिया लिमिटेड ने नई दिल्ली में 35 बस क्यू शेल्टर्स पर उत्तराखंड सरकार के विज्ञापन लगाए. जिसके बदले उन्हें 81.36 लाख रुपये का भुगतान हुआ. इसी अवधि में दिल्ली एयरपोर्ट पर भी उत्तराखंड सरकार के विज्ञापन लगाए गए. इनके बदले 55.82 लाख रुपये का भुगतान किया गया. 

बीते जून-जुलाई में साधना मीडिया ने भी दिल्ली में छह यूनिपोल (सड़क किनारे मौजूद खंभे पर लगे होर्डिंग्स) पर दो बार विज्ञापन लगवाए. जिसके बदले 12.07 लाख रुपये दिए गए. 

इस मामले में न्यूज़लॉन्ड्री ने उत्तराखंड सूचना विभाग के महानिदेशक बंशीधर तिवारी को कुछ सवाल भेजे, जिनका जवाब संयुक्त निदेशक नितिन उपाध्याय की तरफ से आया. उन्होंने कहा कि दिल्ली में ज़्यादातर विज्ञापन पर्यटन से जुड़े लगाए गए क्योंकि वहां देशभर से लोग आते हैं और पहाड़ी समुदाय की भी बड़ी आबादी है. वहीं, गोवा में फिल्म फेस्टिवल के दौरान उत्तराखंड की फिल्म नीति के प्रचार के लिए होर्डिंग्स लगाए गए थे. 

हालांकि, जब हमने बताया कि दिल्ली में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और दूसरे विषयों पर भी विज्ञापन लगाए गए थे जिनका पर्यटन से कोई लेना-देना नहीं था तो उन्होंने साफ-साफ कोई जवाब नहीं दिया.

डिजिटल को विज्ञापन

उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने डिजिटल मीडिया के जरिए भी खूब प्रचार किया. 

न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में जब त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब डिजिटल मीडिया के जरिए विज्ञापनों पर 7.15 करोड़ रुपये खर्च हुए. उसके बाद करीब सौ दिन के लिए तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बने और फिर पुष्कर सिंह धामी ने कुर्सी संभाली. 

धामी के आते ही 2021-22 में डिजिटल मीडिया के जरिए विज्ञापनों पर खर्च बढ़कर 22.32 करोड़ रुपये हो गया. प्रदेश में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव भी हुए. अगले साल 2022-23 में यह आंकड़ा 5.51 करोड़ रुपये का रहा. फिर 2023-24 में 24.21 करोड़ हुआ और बीते वर्ष 2024-25 में यह आंकड़ा 9.18 करोड़ हो गया. इस तरह इन पांच सालों में डिजिटल मीडिया को कुल 69 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च हुए. जिनमें से अकेले धामी के कार्यकाल में करीब 62 करोड़ रुपये खर्च हुए.

एक और दिलचस्प बात यह है कि 2020-21 में प्रदेश सरकार ने 145 न्यूज़ वेबसाइट को विज्ञापन दिया था. 2021-22 में यह आंकड़ा बढ़कर 343 तक पहुंचा. 2022-23 में 273 न्यूज़ पोर्टल्स को विज्ञापन मिला और 2023-24 में यह 426 को. बीते साल में 650 से ज़्यादा वेबसाइट्स को विज्ञापन के लिए भुगतान किया गया. यानी 2020-21 की तुलना में यह आंकड़ा चार गुणा तक बढ़ गया है. 

डिजिटल मीडिया में विज्ञापन पाने वाले कौन सबसे आगे

धामी के कार्यकाल में खर्च करीब 62 करोड़ में से ज्यादातर हिस्सा नेशनल मीडिया के डिजिटल आउटलेट्स को गया. जैसे इंडिया टुडे ग्रुप को सबसे ज्यादा 4.11 करोड़ रुपये मिले. हालांकि, इसमें ग्रुप के डिजिटल हिंदी आउटलेट द लल्लनटॉप को साल 2023-24 में मिले 1.25 करोड़ रुपये शामिल नहीं हैं.  

इसके बाद इंडियन एक्सप्रेस को 2.85 करोड़ रुपये, नेटवर्क 18 को 2.64 करोड़ रुपये, ज़ी न्यूज़ को 2.43 करोड़ रुपये, दैनिक जागरण को 2.10 करोड़ रुपये, अमर उजाला को 2.09 करोड़ रुपये, हिंदुस्तान टाइम्स डिजिटल को 2.36 करोड़ रुपये, डेली हंट को 1.98 करोड़ रुपये और एबीपी न्यूज़ को 1.70 करोड़ रुपये के विज्ञापन दिए गए. 

साल दर साल की बात करें तो 2020-21 में मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाले नेटवर्क 18 को सबसे अधिक राशि 69.08 लाख रुपये का भुगतान हुआ. वहीं, दैनिक जागरण और अमर उजाला, दोनों को ही 60.12 लाख रुपये का अलग-अलग भुगतान हुआ.  टाइम्स ऑफ़ इंडिया को 47.19 लाख रुपये मिले, जबकि ज़ी न्यूज़ और एबीपी न्यूज़ को अलग-अलग 35.40 लाख रुपये मिले.

फिर 2021-22 आया यानि प्रदेश के विधानसभा चुनावों का साल. इस साल खर्च 22.32 करोड़ रुपये तक बढ़ गया. इस साल इंडिया टुडे ग्रुप को सबसे ज्यादा 2.35 करोड़ रुपये मिले. इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप का डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म दूसरे स्थान पर रहा, जिसे 2.30 करोड़ रुपये मिले, इसके बाद नेटवर्क 18 को 1.54 करोड़ रुपये मिले. अन्य प्रमुख आउटलेट्स में हिंदुस्तान डिजिटल मीडिया (1.38 करोड़ रुपये), डेली हंट (1.37 करोड़ रुपये) के अलावा अमर उजाला, दैनिक जागरण और ज़ी न्यूज़ शामिल थे, जिन्हें एक-एक करोड़ रुपये से अधिक राशि मिली. 

अगले वर्ष 2022-23 में डिजिटल विज्ञापन खर्च 5.51 करोड़ रुपये तक गिर गया. लेकिन 2023-24 में फिर एक बड़ी बढ़ोतरी हुई और यह खर्च 24.21 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. एक बार फिर इंडिया टुडे ग्रुप को सबसे ज्यादा 2.83 करोड़ रुपये मिले. इसके बाद टाइम्स नाउ डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को 1.47 करोड़ रुपये मिले. इस साल नेटवर्क 18 को 98.60 लाख रुपये मिले, जबकि एचटी डिजिटल, एबीपी न्यूज़, ज़ी मीडिया और अन्य कई डिजिटिल आउटलेट्स को 70 से 90 लाख रुपये के बीच की राशि मिली. 

वहीं, छोटे डिजिटल पोर्टल्स जैसे द प्रिंट को 48 लाख रुपये, पंजाब केसरी को 36.58 लाख रुपये, इकोनॉमिक टाइम्स को 35.4 लाख रुपये और ट्रिब्यून इंडिया को 28.32 लाख रुपये मिले. कुछ अन्य पोर्टल्स जैसे टैक्सगुरु.इन को 23.60 लाख रुपये, शेयरचैट 21.23 लाख रुपये और पेटीएम को 36.58 लाख रुपये का भुगतान विज्ञापनों के बदले किया गया. 

फिर 2024-25 में खर्च में कमी आई, लेकिन विज्ञापन पाने वालों की संख्या बढ़ी.  धामी सरकार ने लगभग 10 करोड़ रुपये डिजिटल मीडिया पर खर्च किए लेकिन इस बार उन्होंने राष्ट्रीय समाचार आउटलेट्स को लगभग नजरअंदाज ही कर दिया. 

हालांकि, नितिन उपाध्याय का कहना है कि बीते साल भी नेशनल स्तर के डिजिटल मीडिया संस्थानों को विज्ञापन दिया गया है. जिसमें अमर उजाला, दैनिक जागरण और इंडिया टुडे शामिल हैं. लेकिन उन्होंने ये जानकारी देने से इनकार कर दिया कि इन्हें कितनी राशि दी गई. उपाध्याय कहते हैं कि ये संभव है कि आपके पास जो दस्तावेज हैं उसमें शायद ये जानकारी न हो. 

न्यूज़लॉन्ड्री के पास सूचना विभाग के ही दस्तावेज हैं, जिसमें 2024-25 में डिजिटल मीडिया वाले हिस्से में एक भी राष्ट्रीय स्तर के आउटलेट का नाम नहीं है.  

यहां सबसे बड़ा लाभार्थी समाचार फॉर यू डॉट कॉम रहा, जिसे 2.85 लाख रुपये मिले. वहीं, दूसरे स्थान पर पंजाब टाइम्स डॉट लाइव रहा, जिसे 2.82 लाख रुपये मिले. वहीं देवभूमि समीक्षा डॉट कॉम, हल्दवानी लाइव डॉट कॉम, ख़बर पहाड़ डॉट कॉम और हिमालय यूके डॉट ओआरजी, चारों को समान रूप से 2.76 लाख रुपये का विज्ञापन दिया गया.

इसके अलावा उत्तराखंड टुडे डॉट कॉम को 2.60 लाख रुपये, पराज स्पर्श डॉट कॉम को 2.53 लाख रुपये, हिंदी न्यूज़ डॉट मीडिया को 2.53 लाख रुपये, हैलो उत्तराखंड न्यूज़ डॉट कॉम को 2.51 लाख रुपये, सरस जनवाद डॉट कॉम को 2.50 लाख रुपये और विज़न 2020 न्यूज़ डॉट कॉम को 2.47 लाख रुपये का विज्ञापन उत्तखण्ड सरकार से मिला है.

मालूम हो कि उत्तराखंड सरकार ने साल 2015 में डिजिटल मीडिया को विज्ञापन देने के लिए नियम बनाए थे. जो बाद में संशोधित किए गए. मौजूदा नियमों के मुताबिक, किसी भी वेबसाइट को कम से कम छह महीने से संचालित होना चाहिए और उनके पास गूगल एनालिटिक्स के माध्यम से प्रमाणित हर महीने कम से कम तीन हजार यूनिक विज़िटर होने चाहिए. 

नियमों के मुताबिक, केवल उत्तराखंड से संचालित उन्हीं वेबसाइट्स को ही सूचीबद्ध किया जा सकता है जिनका संचालन करने वाली कंपनी/संस्था/व्यक्ति का निवास/कार्यालय उत्तराखण्ड में स्थित हो. वहीं, वेबसाइट्स को ट्रैफ़िक विजिटर के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है. 

रेडियो पर विज्ञापन 

डिजिटल मीडिया के साथ ही रेडियो पर भी उत्तराखंड सरकार ने जिंगल्स के रूप में सरकारी योजनाओं और अपने कामों का प्रचार किया. इसमें दिल्ली में चलने वाले प्राइवेट एफएम चैनल भी शामिल हैं. 

न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज़ों के अनुसार, त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान रेडियो पर दिए गए विज्ञापनों से जुड़ी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. वहीं, पुष्कर सिंह धामी के चार सालों के कार्यकाल में रेडियो के माध्यम से विज्ञापनों पर लगभग 31 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं.

अगर साल दर साल हुए खर्च की बात करें तो  2021-22 में 13.99 करोड़, 2022-23 में 1.27 करोड़, 2023-24 में 11.08 करोड़ और बीते वित्त वर्ष में  2024-25 में 4.61 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

किन रेडियो चैनल्स को मिला विज्ञापन

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव वाले साल में रेडियो के जरिए विज्ञापनों पर काफी खर्च हुआ. 5 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की समाधि का उद्घाटन किया. इसको लेकर 90 सेकंड के जिंगल्स विभिन्न रेडियो स्टेशनों पर प्रसारित किए गए. इस प्रचार अभियान पर राज्य सरकार द्वारा 3.70 करोड़ रुपये खर्च किए गए.

रेड एफएम, रेडियो फीवर एफएम और तड़का एफएम पर इन जिंगल्स के प्रसारण के लिए कुल 1.19 करोड़ रुपये खर्च हुए. वहीं बिग एफएम, रेडियो सिटी और एफएम देहरादून को 1.29 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया.

प्रसार भारती के अंतर्गत आने वाले ऑल इंडिया रेडियो के 13 स्टेशनों के माध्यम से इस जिंगल के प्रसारण पर 20 लाख रुपये खर्च किए गए. रेडियो मिर्ची एफएम को 93.28 लाख रुपये और हिट 95 एफएम, नई दिल्ली को 8.34 लाख के अलावा कुछ सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को भी 2.96 लाख रुपये भुगतान किया गया. 

इसके अलावा 2021 में हरिद्वार में हुए महाकुंभ से जुड़े 50 और 60 सेकंड के दो जिंगल्स अलग-अलग एफएम पर चले, जिसपर 3.40 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.  इस साल प्रदेश में चार धाम यात्रा भी थी. जिसे लेकर प्रदेश सरकार ने अलग-अलग एफएम पर विज्ञापन चलवाये. इन पर 2.89 करोड़ रुपये खर्च हुए.  

इस तरह देखें तो इन तीन विज्ञापनों पर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने 10.01 करोड़ खर्च किए हैं. बाकी बचे 3.98 करोड़ में सरकार ने कोरोना और वैक्सीन की जागरूकता, राज्य सरकार की उपलब्धियों से जुड़े विज्ञापन दिए हैं. 

2022-23 में रेडियो के जरिए किए गए विज्ञापनों में कमी आई. अब यह रकम महज 1.27 करोड़ थी. इस साल उत्तराखंड के ही एफएम स्टेशन्स को विज्ञापन दिए गए. इसमें धामी सरकार के सौ दिन पूरे होने के मौके पर ‘100 दिन विकास के’ थीम पर बने 60 सेकेंड के जिंगल्स पर सबसे ज्यादा 50.56 लाख रुपये खर्च हुए. 

इसके अलावा ‘‘राज्य स्थापना दिवस’’ एवं ‘‘संकल्प नये उत्तराखण्ड का” अभियान से जुड़े 90-90 सेकेंड के विज्ञापन पर 19.89 लाख रुपये, वहीं “हर घर तिरंगा” अभियान से जुड़े जिंगल्स पर 27.47 लाख रुपये खर्च हुए. बाकी बचे पैसे ‘अंतरराष्ट्रीय योग डे’ के लिए बने जिंगल्स और ‘मैं उत्तराखंड हूं’ से जुड़े विज्ञापनों पर खर्च हुए हैं. 

वित्त वर्ष 2023-24 में 11.08 करोड़ रुपये रेडियो के जरिए किए गए विज्ञापनों पर खर्च हुए हैं. यह खर्च शायद लोकसभा चुनाव के कारण बढ़ा था. एक बार फिर उत्तराखण्ड की धामी सरकार ने प्रदेश से बाहर के रेडियो स्टेशन को विज्ञापन दिए हैं. 

इस बार ज़्यादातर विज्ञापन चारधाम यात्रा, धामी सरकार का एक साल पूरा होने, डेंगू से बचाव और राज्य सरकार के उपलब्धियों से जुड़े विषयों पर दिए गए. 

चारधाम यात्रा के विज्ञापनों पर 4.38 करोड़ रुपये खर्च किए गए. वहीं धामी सरकार का एक साल पूरा होने पर बने 60 सेकेंड्स के जिंगल्स पर एक करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. सरकार की उपलब्धियों पर बने विज्ञापनों पर 4.97 करोड़ रुपये खर्च किए गए. बाकी रकम डेंगू से बचाव और योग डे आदि से जुड़े जिंगल्स पर खर्च हुई है. 

बीते वित्त वर्ष यानी 2024-25 में रेडियो से जुड़े विज्ञापनों पर 4.63 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.  इस साल एक और नई चीज़ देखने को मिली कि एजेंसियों के माध्यम से  अलग-अलग एफएम चैनल्स को विज्ञापन दिया गया. 

इस साल सबसे ज़्यादा खर्च उत्तराखंड में आयोजित राष्ट्रीय खेलों से संबंधित 60 सेकेंड के जिंगल्स पर हुआ. आंकड़ों के मुताबिक, इस पर 2.84 करोड़ रुपये खर्च हुआ. 1.25 करोड़ रुपये शीतकालीन यात्रा से संबंधित 60 सेकेंड के जिंगल्स पर खर्च हुआ. 

बाकी बचे 54.38 लाख रुपये का विज्ञापन सामुदायिक रेडियो स्टेशन्स को दिया गया. इसमें से भी एक बड़ा हिस्सा मतदाता जागरूकता, राज्य सरकार की उपबधियों और राष्ट्रीय खेलों के प्रचार-प्रसार पर खर्च हुआ. 

हमने जब दिल्ली के रेडियो चैनल्स को विज्ञापन दिए जाने पर नितिन से सवाल किया तो उन्होंने आउटडोर विज्ञापनों पर दिया तर्क ही दोहराया. उपाध्याय ने कहा कि ज़रूरी और पर्यटन से जुड़े विज्ञापन ही दिल्ली स्थित रेडियो स्टेशनों को दिए गए हैं. 

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एसएमएस और व्हाट्सएप मैसेज के जरिए बधाई पर करोड़ों खर्च 

उत्तराखंड सरकार साल 2021-22 के बाद से प्रदेश की जनता को एसएमएस और व्हाट्सएप मैसेज मैसेज के जरिए बधाई दे रही है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक, इसपर बीते चार वित्त वर्ष में 40 करोड़ से ज़्यादा का खर्च हुआ. 

इसमें 2021-22 में 15.79 करोड़, 2022-23 में 5.89 करोड़, 2023-24 में 12.60 करोड़ और 2024-25 में 6.15 करोड़ रुपये एसएमएस और व्हाट्सएप मैसेज मैसेज के जरिए प्रचार प्रसार में खर्च हुए हैं.  

साल 2021-22 एसएमएस और व्हाट्सएप मैसेज के जरिए उत्तराखंड की जनता तक प्रदेश सरकार ने मैसेज पहुंचाना शुरू किया. इस साल नागपुर की एजेंसी पिनेकल टेलीसर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को 3.59 करोड़, देहरादून की मास्टर स्ट्रोक मीडिया प्राइवेट लिमिटेड को 12.20 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. 

इसमें से 3.75 करोड़ रुपये वर्तमान राज्य सरकार के सौ दिन पूरे होने के अवसर पर मुख्यमंत्री का संदेश भेजने पर खर्च हुए. इसी में डेंगू, मलेरिया और फंगस से बचाव के सुझाव भी शामिल थे. 

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ भ्रमण से जुड़े एसएमएस और व्हाट्सएप मैसेज भेजने पर 49.73 लाख रुपये.  

वहीं मुख्यमंत्री द्वारा युवाओं को रोजगार से जुड़े व्हाट्सएप मैसेज और सुशासन से जुड़े वीडियो सन्देश भेजने पर 67.49 लाख रुपये खर्च हुए. वहीं मुख्यमंत्री द्वारा कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर व्हाट्सएप मैसेज भेजने पर 26.82 लाख रुपये. वहीं एसएमएस के जरिए मैसेज भेजने पर 16.95 लाख खर्च हुए हैं. 

ऐसे ही कई मौके आए जब प्रदेश सरकार ने एसएमएस और व्हाट्सएप के मध्य से प्रचार किया है.   श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की तरफ से जो बधाई संदेश भेजा गया उसपर कुल 44.92 लाख रुपये खर्च हुए. जिसमें से व्हाट्सएप पर 16.47 लाख और एसएमएस पर 28.45 लाख रुपये.

इसी तरह अलग-अलग मौकों पर एसएमएस और व्हाट्सएप के जरिए मैसेज लोगों को भेजा गया. 

साल 2022-23 में एसएमएस और व्हाट्सएप के जरिए प्रचार पर 5.89 करोड़ रुपये खर्च हुए. इस वर्ष भी नागपुर की एजेंसी पिनेकल टेलीसर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और देहरादून की मास्टर स्ट्रोक मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के जरिए ही मुख्यमंत्री की ओर से एसएमएस और व्हाट्सएप संदेश भेजा गया. इसमें से 4.88 करोड़ मास्टर स्ट्रोक को और 1.01 करोड़ पिनेकल को मिले.

इस साल सबसे अधिक राशि 1.02 करोड़ रुपये मुख्यमंत्री धामी द्वारा किए गए जनता से संवाद संबंधी न्यूज़लेटर भेजने पर खर्च हुई है. समान नागरिक संहिता (यूसीसी) से जुड़ी जानकारी देने वाले एसएमएस पर 59.03 लाख रुपये खर्च किया गया. 

राज्य सरकार के 100 दिन पूरे होने पर भेजे गए व्हाट्सएप मैसेज पर 53.55 लाख रुपये खर्च किए गए. नव वर्ष की बधाई से जुड़ा मुख्यमंत्री का संदेश भेजने पर 49.80 लाख रुपये, जबकि राज्य स्थापना दिवस के मौके पर भेजे गए संदेश पर 46.56 लाख रुपये खर्च हुए.

24 अक्टूबर, 2022 को दिवाली के अवसर पर मुख्यमंत्री द्वारा प्रदेशवासियों को भेजे गए व्हाट्सएप मैसेज की लागत 44.55 लाख रुपये रही. इसके अलावा 26 और 27 अक्टूबर को मुख्यमंत्री धामी ने प्रदेशवासियों को शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व की बधाई दी, जिसपर 35.01 लाख रुपये खर्च हुए. वहीं, विजय दशमी के मौके पर भेजे गए मुख्यमंत्री के संदेश पर 34.45 लाख रुपये खर्च हुए हैं. होली के मौके पर मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को जो बधाई दी, उसपर 34. 45 लाख रुपये खर्च हुए. 

साल 2023-24 में उत्तराखंड सरकार ने 12.60 करोड़ रुपये एसएमएस और व्हाट्सएप के जरिए विज्ञापनों पर खर्च किए हैं. इस बार नागपुर की एजेंसी पिनेकल टेलीसर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और देहरादून मास्टर स्ट्रोक मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के अलावा दो और एजेंसियों- गुरुग्राम की वैल्यू फर्स्ट डिजिटल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड और चडीगढ़ की वर्चुओसो नेट सॉफ्ट प्राइवेट लिमिटेड के जरिए धामी सरकार ने विज्ञापन दिए हैं. 

इन चार कंपनियों में सबसे अधिक 10.51 करोड़ रुपये मास्टर स्ट्रोक को दिए गए.  इसके बाद वैल्यू फर्स्ट को 80.47 लाख, पिनेकल को 67.77 लाख और वर्चुओसो को 60.73 लाख का भुगतान किया गया. 

उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2023-24 के व्हाट्सएप के जरिए भेजे गए संदेशों पर 10.51 करोड़ और एसएमएस के जरिए मैसेज पर 2.08 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. 

व्हाट्सएप के जरिए किए गए खर्च में लगभग आधा हिस्सा ‘मुख्यमंत्री संवाद’ कार्यक्रम से जुड़े मैसेज भेजने पर ही हुआ. हर महीने भेजे जाने वाले इस मैसेज पर 4.54 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

सरकार द्वारा विशेष पर्वों और अवसरों पर भेजे गए संदेशों पर भी लाखों रुपये खर्च हुए. कई मौके ऐसे आए जब व्हाट्सएप और एसएमएस दोनों के जरिए एक ही संदेश भेजा गया. जैसे- दशहरा के मौके पर व्हाट्सएप के जरिए बधाई देने में 37.51 लाख रुपये. वहीं एसएमएस के जरिए बधाई देने पर 17.23 लाख. यानी दहशरा पर बधाई देने पर कुल 54.75 लाख रुपये खर्च हुए है. 

ऐसे ही नए साल के मौके पर देखने को मिला. एसएमएस के जरिए मैसेज भेजने पर जहां 13.95 लाख रुपये खर्च हुए. वहीं, व्हाट्सएप के पर 37.51 लाख रुपये यानी कुल मिलाकर 51.46 लाख रुपये खर्च हुए. 

बीते साल का कितना खर्च

बीते वित्त वर्ष यानी 2024-25 में धामी सरकार ने एसएमएस और व्हाट्सएप के जरिए किए गए प्रचार पर 6.15 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इनमें 2023‑24 की तरह ही इस वर्ष भी मास्टर स्ट्रोक की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 5.33 करोड़ रुपये रही. मास्टर स्ट्रोक ने इसबार भी व्हाट्सएप के जरिए मैसेज भेजने का काम देखा.  

वहीं, पिनेकल को 31.07 लाख, वैल्यू फर्स्ट को 33.81 लाख और वर्चुओसो को 17.28 लाख रुपये का विज्ञापन मिला. 

इस बार, जून, 2024 से जनवरी, 2025 तक, 25 लाख प्रदेशवासियों को सात बार ‘मुख्यमंत्री संवाद’ न्यूज़लेटर व्हाट्सएप के जरिए भेजे गए. जिस पर 2.71 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

वहीं, हरेला पर्व पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने व्हाट्सएप मैसेज पर वीडियो संदेश भेजा, जिस पर 74.94 लाख रुपये खर्च हुए. हालांकि सूचना विभाग का कहना है कि यहां पर एक एक मैसेज जो जो 37 लाख का था, वो गलत तरीके से लिखा गया था. हरेला के मौके पर व्हाट्सएप के जरिए एक ही मैसेज भेजा गया था.  

बीते साल की तरह ही इसबार भी ‘ईगास बग्वाल’ पर्व के मौके पर व्हाट्सएप और एसएमएस दोनों के जरिए बधाई संदेश प्रदेश के लोगों को भेजा गया. इसमें व्हाट्सएप के जरिए भेजने गए मैसेज पर 37.71 लाख और एसएमएस के जरिए भेजे गए मैसेज पर 14.36 लाख रुपये खर्च हुए हैं. 

ऐसे ही राज्य स्थापना दिवस की मौके पर प्रदेशवासियों को व्हाट्सएप के जरिए बधाई भेजने पर 37.47 लाख और  एसएमएस के जरिए भेजने पर 16.90 लाख रुपये खर्च हुए हैं. यानी राज्य स्थापना के मौके पर दिए गए बधाई पर 54.38 लाख रुपये खर्च हुए.

बीते चार सालों में उत्तराखंड सरकार ने एसएमएस और व्हाट्सएप कम्युनिकेशन पर जो 40 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं, उसमें से करीब 32.9 करोड़ रुपये सिर्फ एक कंपनी मास्टर स्ट्रोक को दिए गए हैं.

यह कंपनी पीयूष त्यागी और दीप्ति त्यागी द्वारा संचालित है. पीयूष त्यागी का संबंध कई अन्य कंपनियों से भी है, जिसमें रियल एस्टेट से लेकर एग्रीटेक तक के क्षेत्र शामिल हैं. 

मास्टर स्ट्रोक की वेबसाइट पर कई उत्तराखंड आधारित संस्थाओं को इसके क्लाइंट के रूप में दिखाया गया है, जिनमें उत्तराखंड सूचना विभाग, पर्यटन विभाग, स्वास्थ्य विभाग, उत्तरांचल विश्वविद्यालय, देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय, उत्तराखंड राज्य इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड, और देहरादून स्थित ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाएं शामिल हैं. 

आपने गौर किया हो तो बीते दो सालों में सबसे ज़्यादा विज्ञापन जिस मद पर खर्च हुआ वो ‘मुख्यमंत्री संवाद’ का न्यूज़लेटर है. दरअसल, ‘मुख्यमंत्री संवाद’ एक मासिक पत्रिका की तरह है, जिसमें महीनेभर के सरकार के कार्यक्रमों और अन्य गतिविधियों का अपडेट होता है.  इसकी एक सॉफ्ट कॉपी (पीडीएफ वर्जन) व्हाट्सएप के जरिए भेजी जाती है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास सितंबर, 2025 की एक कॉपी है.  

इस बारे में हमने उत्तराखंड सूचना विभाग के संयुक्त निदेशक नितिन उपाध्याय से पूछा तो उन्होंने बताया कि व्हाट्सएप के जरिए जो विज्ञापन भेजे जा रहे हैं, उनके लिए टेंडर निकाला गया था. L-1 के तहत, यह काम मास्टर स्ट्रोक कंपनी कर रही है. यही वजह है कि बीते सालों में उसे भुगतान भी ज्यादा नजर आ रहा है. वहीं, एसएमएस के जरिए सूचना भेजने का काम डीएवीपी से तय दरों पर रजिस्टर्ड एजेंसियों को ही दिया गया है. कोरोना काल या दूसरे मौकों पर जनता से जुड़ने के लिए एसएमएस या व्हाट्सएप बेहतर माध्यम साबित हुआ है. इसीलिए तभी से यह चल रहा है. 

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