अभिषेक चौधरी बताते हैं कि सबको साथ लेकर चलने की कला, वाजपेयी की सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी कमजोरी दोनों ही रही.
पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी का व्यक्तित्व सिर्फ एक नेता तक सीमित नहीं था, बल्कि वह भारतीय लोकतंत्र, विचारधारा और सत्तारूढ़ राजनीति के कई प्रयोगों के गवाह भी रहे. भारत की राजनीति को समझने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन और उनकी राजनीतिक यात्रा किसी भी गंभीर पाठक और शोधार्थी के लिए अपरिहार्य है. वाजपेयी के राजनीतिक सफर पर लेखक और शोधकर्ता अभिषेक चौधरी की बहुचर्चित किताब “बिलीवर्स डिल्लेमा” प्रकाशित हुई है. यह उनकी पहले की किताब “द एसेंट ऑफ हिंदू राइट” का अगला हिस्सा है.
इस खास इंटरव्यू में अभिषेक चौधरी विस्तार से बताते हैं कि क्यों उन्होंने इसे बायोग्राफी की बजाय पावर और पर्सनालिटी का अध्ययन कहा. किताब के जरिए वह वाजपेयी के जीवन के निर्णायक पड़ावों पर रोशनी डालते हैं. चाहे वो जनता पार्टी सरकार में मध्यस्थ की भूमिका हो या फिर भाजपा की स्थापना, चाहे 1984 की हार का सदमा हो या अयोध्या आंदोलन को लेकर मतभेद और अंततः 1990 के दशक में राष्ट्रीय राजनीति में उनका उदय, इन सब पर किताब विस्तार से प्रकाश डालती है.
चौधरी इस बात पर भी जोर देते हैं कि वाजपेयी का व्यक्तित्व हमेशा समावेशिता और रणनीति के बीच झूलता रहा. कभी वे वैचारिक रूप से संघ और पार्टी लाइन से अलग खड़े हुए, तो कभी सत्ता की राजनीति को साधने के लिए समझौते भी किए. यही द्वंद उन्हें एक अलग और जटिल राजनीतिक चरित्र बनाता है.
पूरा इंटरव्यू न सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का मौका देता है, बल्कि भारत की समकालीन राजनीति के उतार-चढ़ाव को भी समझने का एक अनोखा अवसर है.
देखिए ये खास इंटरव्यू.
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