एनडीआरएफ, सेना और पंजाब सरकार राहत कार्य कर रही है लेकिन जमीनी स्तर पर लोग खुद अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं और एक-दूसरे की मदद में जुटे हैं.
देश का कृषि प्रधान राज्य पंजाब बुरी तरह बाढ़ की चपेट में है. हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में लगातार बारिश, बादल फटने की घटनाओं, सतलुज, ब्यास, रावी नदियों के जल स्तर में वृद्धि तथा भाखड़ा, पौंग, रणजीत सागर डैम से भारी मात्रा में पानी छोड़े जाने से पंजाब में भयानक बाढ़ आई है.
पंजाब के सभी 23 जिलों में बाढ़ का प्रभाव पड़ा है. पाकिस्तान सीमा से लगते सरहदी जिलों में अधिक नुकसान की खबरें हैं. कई जिलों में पानी का स्तर 8 से 10 फुट तक पहुंच गया है. लगातार बारिश ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है. घग्घर नदी के बढ़ते जल स्तर से मालवा इलाके के पटियाला, संगरूर, मानसा और मोहाली जिलों में दहशत का माहौल है. राज्य में अब तक 40 मौतें हो चुकी हैं, साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं, 1.75 लाख हेक्टेयर (लगभग 4.33 लाख एकड़) कृषि क्षेत्र प्रभावित हुआ है, और 1,655 गांव बाढ़ की चपेट में हैं. बाढ़ से राज्य को बड़ा आर्थिक नुकसान होने की आशंका है. लोगों के घरों को भारी क्षति पहुंची है और उनके पशु बह गए हैं.
हालांकि, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की टीमें, सेना और पंजाब सरकार राहत कार्य कर रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर लोग खुद अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं और एक-दूसरे की मदद में जुटे हैं. लोग मिट्टी से पुल बना रहे हैं. सामाजिक, धार्मिक संस्थाएं और आम नागरिक सरकार से अधिक सक्रिय दिख रहे हैं. हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश से लोग ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में राशन और जरूरी सामान लेकर पंजाब पहुंच रहे हैं.
भले ही राजनैतिक पार्टियों के लोग भी बाढ़ पीड़ित लोगों की मदद के लिए उनसे मिलने आ रहे हैं लेकिन लोग इसे सियासी पैंतरेबाज़ी के तौर पर ही देख रहे हैं. तरन तारन जिले के महिंदर सिंह कहते हैं, “सत्ताधारी पार्टी समेत सभी नेता यहां अपनी राजनीति चमकाने आते हैं. अब उन्हें तरन तारन विधानसभा का उप-चुनाव दिख रहा है. अगर पहले ध्यान दिया होता, तो हमें यह दिन न देखने पड़ते.”
इससे कुछ दिन पहले पंजाब सरकार के तीन मंत्रियों- बरिंदर कुमार गोयल, हरभजन सिंह ईटीओ, लालजीत भुल्लर, की एक वीडियो वायरल हुई, जिसमें वे बाढ़ग्रस्त इलाकों का नाव से दौरा करते हुए गोवा और स्वीडन की क्रूज यात्राओं के अनुभव साझा कर रहे थे. विपक्ष और आम लोगों ने इसे असंवेदनशीलता करार दिया.
राज्य सरकार के मुताबिक, अभी तक 3.54 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं . पानी में फंसे 19,597 लोगों को सुरक्षित बाहर निकला जा चुका है. 171 राहत कैंपों में 5,167 लोग पहुंचाए जा चुके हैं. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राहत कार्यों के लिए 3 सदस्यीय कमेटी बनाई है, जो जल संसाधन, राजस्व, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों पर आधारित है. उन्होंने मुख्य सचिव को प्रभावित इलाकों का दौरा कर राहत सुनिश्चित करने के निर्देश दिए. 31 अगस्त को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर 60 हजार करोड़ रुपये के फंड की मांग की गई है. साथ ही एसडीआरएफ मुआवजा नियमों में संशोधन की भी मांग है.
सरकार ने नुकसान की सूची तैयार कर केंद्र को मेमोरैंडम भेजने की तैयारी शुरू की है. पंजाब को ‘आपदा प्रभावित राज्य’ घोषित किया गया है, और राहत-पुनर्वास के लिए 71 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं. सभी शैक्षणिक संस्थानों की छुट्टियां 7 सितंबर तक बढ़ा दी गई हैं. विपक्ष नेता प्रताप सिंह बाजवा और भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने भी प्रधानमंत्री से राहत पैकेज की मांग की है.
इस बाढ़ ने पंजाब में 1988 की तबाही याद दिलवा दी है. 1988 की बाढ़ में पंजाब के 12,989 में से 9,000 गांव प्रभावित हुए थे, 2,500 से अधिक गांव पूरी तरह डूब गए थे. सरकारी रिकार्ड के मुताबिक, तब 1,500 लोग मारे गए थे और 500 लोग लापता हुए थे. इस तरह बाढ़ ने कुल 34 लाख लोगों को प्रभावित किया था. 1988 से पहले 1955-60 के समय आई बाढ़ को भी बुजुर्ग याद करते हैं. ‘88 के बाद 1993, 1995, 2010, 2013, 2019 और 2023 में भी बाढ़ ने पंजाब का नुकसान किया है.
रिपोर्ट लिखे जाने तक पहाड़ी राज्यों और पंजाब में रेड अलर्ट है. रूपनगर प्रशासन ने सतलुज के निकटवासी लोगों को सतर्क किया है. भाखड़ा में पानी का स्तर 1,677.84 फुट है जबकि इसकी क्षमता 1,680 फुट है. डैम में पानी का बहाव 86,822 क्यूसिक और बाहरी बहाव 65,042 क्यूसिक है. डैम के अधिकारियों ने बताया कि पानी का निकास बढ़ा 75,000 क्यूसिक कर दिया गया है. साथ ही नंगल इलाके के लोगों को सचेत रहने को कहा गया है. 3 सितम्बर को घग्घर नदी में बढ़ते जल स्तर के कारण पंजाब के मोहाली, संगरूर, मानसा, पटियाला जिलों को अलर्ट किया गया है.
खेती पर कहर, पशुधन को नुकसान
बाढ़ से सबसे अधिक कृषि प्रभावित हुई. जानकारी के मुताबिक, तीन हजार करोड़ की फसल को नुकसान पहुंचा है और कुल सवा चार लाख एकड़ से ज्यादा (4.33) क्षेत्र प्रभावित हुआ है. जिसमें गुरदासपुर (1 लाख एकड़), अमृतसर (70,537), मानसा (55,707), फाजिलका (41,548) प्रमुख हैं. किसान दावा करते हैं कि नुकसान इससे अधिक है.
फसलों के हिसाब से बात करें तो सबसे ज्यादा नुकसान धान को पहुंचा है. 3.31 लाख एकड़ धान, 21,545 एकड़ गन्ना, 49,496 एकड़ कपास, 11,417 एकड़ मक्का, और 19,101 एकड़ में खड़ी अन्य फसलें प्रभावित हुई हैं. सिर्फ चार जिलों से मलेरकोटला, फरीदकोट, नवां शहर (शहीद भगत सिंह नगर) और फतेहगढ़ साहिब में फसलों के हुए नुकसान के सही आंकड़े सामने नहीं आये हैं.
इस बीच पंजाब सरकार ने फसलों के सरकारी रेट के मुताबिक नुकसान का हिसाब लगाया है. चूंकि सरहदी इलाकों में खेतों में काफी रेत इकट्ठा हो गई है. यहां दोबारा फसल की बिजाई मुश्किल होगी. मौजूदा नियमों के अनुसार, सौ फीसद फसल के नुकसान पर 15 हज़ार रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा मिलता है. किसान नेता इस रकम को ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ बता रहे हैं. वे वास्तविक नुकसान के आधार पर मुआवजा मांग रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार की ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’, जिसमें प्राकृतिक आपदा, फसल को बीमारी लगने की सूरत में किसान को फसल के बीमे की राशी मिलती है, पंजाब में लागू नहीं है. खेती विशेषज्ञ दविंदर शर्मा की मानें तो पंजाब सरकार को इस योजना की कुछ शर्तों पर ऐतराज़ था. जिसके चलते यह राज्य में लागू नहीं की गई. वहीं, ‘आप’ सरकार ने 2023 में ‘फसल बीमा स्कीम’ लागू करने का ऐलान किया था लेकिन अभी तक उसे अमल में नहीं लाया गया. इसके अलावा राज्य सरकार की नई खेती नीति में 200 करोड़ रुपये का फंड रखने की बात कही गई थी. हालांकि, अभी तक उसको भी लागू नहीं किया गया है.
पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुडीयां ने केंद्र सरकार से फसलों के हुए नुकसान की भरपाई की मांग की है. किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां कहते हैं, “बाढ़ सरकारों की गलतियों और बारिश से पहले सफाई न कराने से हुई. दोनों सरकारें मदद करें.”
किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के नेता सरवन सिंह पंधेर कहते हैं, “किसानों की फसलें ही बर्बाद नहीं हुईं बल्कि उनके उनके घर, पशु का भी नुकसान हुआ है. सरकार को किसानों को मुआवजा प्रति एकड़ 70 हज़ार रुपये और मजदूरों को प्रति एकड़ 10 हज़ार रुपये देना चाहिए.”
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए पंधेर कहते हैं, “पंजाब सरकार को केंद्र से इस बारे बात करनी चाहिए. पंजाब में यह पानी बांधों से छोड़ने के कारण आया है. बांध के अधिकारियों को किसने कहा था कि पहले पानी रोको फिर एक दम छोड़ दो? आखिर जवाबदेही किसकी है? रावी नदी में 14.11 लाख क्यूसिक पानी छोड़ा गया जिससे गुरदासपुर, अमृतसर और पठानकोट ज़िले डूब गए.”
बाढ़ में फसलों के अलावा पशुओं की मौतों या नुकसान के बारे सही जानकारी सामने नहीं आ सकी. अब तक 365 पशुओं की मौत की जानकारी पुख्ता हो पाई है. जिसमें गुरदासपुर ज़िले से 254, पठानकोट में 89 और अमृतसर ज़िले में 57 पशुओं की मौत की खबर आ रही है. गुरदासपुर में 17,900 मुर्गियों और अन्य जानवरों की मौत की जानकारी आ रही है.
सरहदी ज़िलों में संकट, एकजुट समाज इंसानियत की मिसाल
भारत-पाकिस्तान सरहद के पास गुरदासपुर ज़िले के 335 गांव इस वक्त बुरी तरह बाढ़ की गिरफ़्त में हैं. ज़ीरो लाइन पर स्थित ज़िले के गांव मकौड़ा पत्तन में भारत- पाकिस्तान को बांटने वाली बाड़ का एक हिस्सा नदी में बह गया है. इसके अलावा सरहद के पास लगते जैदेपुर, काजला, मखनपुर, कोहलियां गांव में भी भारी नुकसान हुआ है. वहीं, अजनाला-गुरदासपुर सड़क और करतारपुर हाईवे के साथ लगते सभी गांव बाढ़ की चपेट में आ गए हैं.
गांव सिंगोवाल के ईश्वर सिंह कहते हैं, “मात्र पांच हजार रुपये महीने की तनख्वाह पर मैं एक निजी स्कूल की बस चलाता हूं. मां लोगों के घरों में काम करती है. दो छोटे बच्चे हैं. मकान इस बाढ़ में टूट गया है. अब गांव के सरपंच और अन्य लोग मेरी मदद कर रहे हैं.”
गुरदासपुर के किसान हरदयाल सिंह ने 3 एकड़ ज़मीन ठेके पर ली थी. खेतों में पानी भरने से उसकी पूरी फसल डूबकर तबाह हो गई. सदमे में दिल का दौरा पड़ने से 3 सितम्बर को उसकी मौत हो गई.
तरन तारन ज़िले में खेमकरण सरहद पर स्थित मेहंदीपुर गांव का एक पुल टूट गया है. यहां कोट बुढा, झुग्गीयां पीर बख्श, राम सिंह वाला, सभरा और रसूलपुर गांव प्रभावित हुए हैं. तरन-तारन के उपायुक्त राहुल का कहना है, “बांधों को मज़बूत करने के लिए प्रशासन पुख्ता इंतजाम कर रहा है. इसमें लगने वाले ट्रैक्टरों में डीज़ल प्रशासन की तरफ से दिया जा रहा है और मिट्टी भरने के लिए बोरियां और अन्य राहत समग्री दी जा रही है.”
तरन-तारन के हरीके से फिरोजपुर ज़िले को जाते सतलुज दरिया के बांध पर स्थानीय लोग पहरा देते हैं ताकि होने वाले नुकसान से सचेत हुआ जा सके. स्थानीय किसान जसवीर सिंह का कहना है, “दरिया में पानी तेज़ है. कहीं बांध में दरारें न पड़ जाएं इस लिए हम रात को रोज़ाना पहरा देते हैं.”
इसी तरह अमृतसर ज़िले के 140 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं. उपायुक्त साक्षी साहनी और ज़िला पुलिस मुखिया मनिंदर सिंह ट्रैक्टर पर बैठ कर खुद बचाव पीड़ितों से मिल रहे हैं और राहत कार्यों को देख रहे हैं. साक्षी साहनी ने बताया, “राहत कार्य जारी हैं. जिन घरों का ज्यादा नुकसान हुआ है, उनकों राहत कैपों में ले जाया गया है.”
पठानकोट ज़िले में भी ज़ीरो लाइन के गांव सिंबल, धींदे, भूपालपुर एक मौसमी नदी के उफान से डूब गए हैं. कुछ दिन पहले ही मादोपुर हैडवर्क्स में सीआरपीएफ के जवानों और तीन नागरिकों को एक खस्ता हाल इमारत से सुरक्षित निकाला गया था. नदियों में बढ़ते जल स्तर ने ज़िले के लोगों को चिंता में डाल दिया है.
फिरोज़पुर जिले में 112 से अधिक गांव बाढ़ से प्रभावित हैं. ज़िले के 3432 लोगों को सुरक्षित ठिकानों में पहुंचाया गया है. फाज़िलका जिले के 50 के करीब गांव बाढ़ से प्रभावित हैं. सतलुज के साथ लगते 20 गांव में हालत गंभीर बनी हुई है. मालूम हो कि फाजिलका के एक तरफ सतलुज है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान का बॉर्डर है.
पंजाब के कई ज़िलों में राहत कार्यों में सक्रिय जोती फाउंडेशन (Joti Foundation) के निखिल कुमार सिंह हमें बताते हैं, “यहां पीड़ित गांव के लोगों को भोजन और पशुओं के चारे की दिक्कत आ रही है. हम अपनी संस्था के सहयोग से लोगों को भोजन, कपड़े, नाव, सैनेटरी पैड, दवाइयां आदि पहुंचा रहे हैं. नेता लोगों के आने से तो प्रशासन के द्वारा जो काम हो रहा है, उसमें भी दिक्कत बन जाती है. प्रशासन तो इन नेताओं की आवभगत में लग जाता है. हमारे पास राशन या राहत समग्री की इस समय कोई कमी नहीं है. जहां हमारी संस्था का नेटवर्क नहीं है हम चाहते हैं कि किसी तरह वहां भी मदद पहुंचा सकें.”
कपूरथला ज़िले के सुल्तानपुर लोधी इलाके के गांव में ब्यास नदी का पानी भर गया है. कपूरथला के प्रभावित गांव में बाउपुर कदीम, बाउपुर जद्दीद रामपुर गौरा, मंड कदीम, मंड बुड कदीम, मोहम्मदाबाद गांव बाढ़ग्रस्त हैं.
ज़िला जालंधर के मंड इलाके में ब्यास नदी ने कई गांव को प्रभावित किया है और यहां के घर पूरी तरह बारिश में बह गए हैं. ज़िले की शाहकोट तहसील के एक दर्जन गांव चिट्टी वेईं (नदी) की लपेट में आ गए हैं. स्कूलों में पानी भर गया है. गांव गट्टा मुंडी की धक्का बस्ती के 90 घर पानी में डूब गए हैं. मल्सीया गांव के नज़दीक प्रवासी मजदूरों की झुग्गियां पानी में डूब गई हैं.
मालवा में बरनाला ज़िले की महल कलां तहसील में अपलसाड़ा ड्रेन की मार में सैंकड़ों एकड़ फसल बर्बाद हो गई है. पंजाब के अन्य ज़िलों में होशियारपुर ज़िला के 127 गांव, मानसा के 125, संगरूर के 119 गांव बाढ़ प्रभावित हैं. 3 सितम्बर को मालवा में तपा मंडी, लहरागागा, बठिंडा, महलकलां और रायकोट में घरों के टूटने के मामले आये हैं जिसमे तीन लोगों की मौत और 8 के जख्मी होने की खबर है.
फिलहाल पूरा पंजाबी समाज हमेशा की तरह धर्म-जाति से ऊपर उठ कर एक दूसरे की मदद के लिए आगे आ रहा है. लोग अपने-अपने गांव से ज़रूरी सामान, खाना आदि इकट्ठा कर पीड़ित गांवों तक पहुंचा रहे हैं, कोई कपड़े इकट्ठे कर भेज रहा है तो कोई जानवरों के लिए चारा, राशन और रेत से भरी ट्रालियों का प्रबंध कर रहा है. बठिंडा के लवप्रीत सिंह बाढ़ पीड़ितों के लिए ले राशन पहुंचा रहे हैं. वो बताते हैं, “हम पंजाबी तो देश और दुनिया में आपदा में पड़े लोगों की मदद करने के लिए जाने जाते हैं तो फिर अपने ही पंजाबी भाई-बहनों को भूखा कैसे मरने दे सकते हैं.”
गांव की पंचायतें मदद के लिए आगे आ रही हैं. शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी ने अपने लंगर लगा दिए हैं. स्थानीय गुरूद्वारे भी इस काम में लगे हैं. मलेरकोटला ज़िले के मुसलमान बढ़-चढ़ कर लंगर लगा रहे हैं और बाढ़ प्रभावित जगहों में जा कर लोगों की मदद कर रहे हैं. खालसा ऐड, यूनाइटेड सिख, हेमकुंड फाउन्डेशन, ग्लोबल सिख ऐड, सरबत दा भला जैसी चैरिटेबल संस्थाएं बढ़ चढ़ कर योगदान दे रही हैं. पंजाब के कई बड़े गायक, कलाकार भी लोगों की मदद के लिए आगे आए हैं.
पंजाब में लगातार बाढ़ की समस्या बारे पंजाब के पर्यावरण विशेषज्ञ विजय बम्बेली का कहना है, “असल में यह इंसान द्वारा अपने लालच में आकर कुदरत के निजाम में दखल देने के कारण हुआ है. विकास के जिस गैर-वैज्ञानिक मॉडल को अपनाया गया है वह पर्यावरण को तबाही की ओर ले जा रहा है. सरकार, भू-माफिया और रियल-एस्टेट कारोबारियों के गठजोड़ ने नदियों के रास्तों पर इमारतें खड़ी कर दी हैं, जिन्होंने पानी के कुदरती रास्तों को रोक दिया है. गैर-कानूनी माइनिंग हो रही है और सरकारों की यह नालायकी रही है कि बरसात से पहले नदियों, नालों और पानी के निकासी वाले रास्तों की कोई सफाई नहीं करवाई गई. हरित क्रांति की अंधी दौड़ ने भी पर्यावरण का बहुत नुकसान किया है.”
गौरतलब है कि पंजाब सरकार ने 2024 में विशेषज्ञों की सलाह से बाढ़ समस्या से बचने के लिए एक ‘गाइड बुक’ तैयार की थी लेकिन सरकार ने उस ‘गाइड बुक’ के सुझावों पर कोई अमल नहीं किया. पंजाब के दविंदर शर्मा जैसे माहिर तो बांधों से पानी छोड़े जाने के तरीके पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.