ज्यादातर न्यूज़ चैनलों पर यही आरोप लगाया जा रहा था कि यह हिंसा समाज के एक खास वर्ग की साजिश का नतीजा थी.
चैंपियंस ट्रॉफी में न्यूजीलैंड के खिलाफ भारत की जीत के बाद बीते रविवार को इंदौर के महू में जश्न की रैली के दौरान झड़प, पथराव और आगजनी की वजह से इलाके में बड़ी तादाद में पुलिस बल तैनात करना पड़ा.
इंदौर ग्रामीण की एसपी हितिका वासल ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "मैच के बाद कुछ जुलूस निकल रहे थे जिसमें कुछ लोगों ने मस्जिद के बाहर पटाखे चलाए, जिसके बाद दोनों पक्षों में विवाद की स्थिति उत्पन्न हुई और दनों पक्षों में पथराव हुआ. पुलिस बल यहां पूरी तरह मौजूद है और लगातार पेट्रोलिंग भी कर रहा है. अभी यहां पूरी तरह शांति बनी हुई है” पुलिस ने इस मामले में पांच एफआईआर दर्ज की हैं और अब तक 13 लोगों को गिरफ्तार किया है.
इसी दौरान एसपी ने नागरिकों से इस घटना से संबंधित अफवाह न फैलाने की अपील की, लेकिन लगता है मेनस्ट्रीम मीडिया के टीवी चैनल्स ने इस निर्देश को नजरअंदाज कर दिया.
उदाहरण के लिए कोई भी चैनल देखिए, एक के बाद एक पर एंकर हिंसा के पीछे साजिश का आरोप लगाते दिखे. उन्होंने भारत के प्रति मुसलमानों की निष्ठा पर सवाल उठाया. घटना की विस्तृत जानकारी को नज़रअंदाज किया और यह संकेत दिया कि कुछ लोग, यानि मुसलमान, चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की जीत से खुश नहीं थे.
यह घटना कांग्रेस नेता शमा मोहम्मद की क्रिकेटर रोहित शर्मा पर टिप्पणी के बाद हुई. तब भी कुछ टीवी चैनल्स ने शमा के बहाने विपक्षी पार्टियों को राष्ट्र-विरोधी की तरह दिखाने की कोशिश की थी.
इस बार भी ज्यादातर चैनलों ने मस्जिद में मौजूद लोगों के बयान पर भी ध्यान तक नहीं दिया. मीडिया से बात करते हुए महू में जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद जावेद ने कहा कि रैली उस समय इलाके से गुज़री, जब श्रद्धालु रमज़ान के दौरान तरावीह की नमाज़ अदा कर रहे थे. जावेद ने आरोप लगाया कि मस्जिद के अंदर एक पटाखा फेंका गया जिससे विवाद शुरू हो गया.
पर यह पहली बार नहीं है जब टीवी न्यूज़ ने किसी खास नैरेटिव के चलते सांप्रदायिक उन्माद को भड़काया है, और ऐसा भी नहीं लगता कि ये आखिरी बार हुआ है. 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर रिपोर्ट साफ़ कहती है कि उस समय टीवी न्यूज़ चैनलों पर "मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह" एक "आम बात" थी.
आइए देखते हैं कि चैनलों ने महू के बारे में क्या कहा.
ज़ी न्यूज़
इंदौर में हिंसा करने वालों की पहचान की पुलिस द्वारा पुष्टि न किए जाने के बावजूद, ज़ी न्यूज़ ने यूट्यूब पर अपलोड की गई एक वीडियो का शीर्षक रखा- “मस्जिद से निकली भीड़ ने जला डाला इंदौर!”
इस चैनल ने इस बात को भी हवा दी कि लोग जश्न मनाने से कथित तौर पर नाराज थे. इसी प्रसारण के दौरान एक टिकर में लिखा था, “जीत के जश्न में नफरत की चिंगारी?” वॉयस ओवर में कहा गया, “भारी संख्या से आते हैं, नारेबाजी करते हैं, पत्थर फेंकते हैं… “, ये संकेत देते हुए कि बस एक खास समूह के लोग ही इन गतिविधियों में शामिल थे.
इस बीच, प्रसारण के दौरान चली सुर्खियों में से एक थी, “जमकर हुई दोनों तरफ से नारेबाजी.”
टाइम्स नाउ नवभारत
एक बुलेटिन पढ़ते हुए टाइम्स नाउ नवभारत की एंकर दीपिका यादव ने कटाक्ष करते हुए कहा, “लगता है कुछ लोगों को टीम इंडिया के जीत का जश्न लोगों को बर्दाश्त नहीं हुआ.”
चैनल की एक दूसरी एंकर बरखा शर्मा ने भी इसी तर्ज पर अपनी बहस शुरू की. “बड़ी हैरानी हो रही है मुझे… हमारी टीम जीती है, किनको पेट में दर्द हो रहा है?”
जैसे कि यह सांकेतिक टिप्पणी काफी नहीं थी, इसलिए शायद कानून से हटकर कार्रवाई का उल्लेख लापरवाही से किया गया. एक टिकर में लिखा था, “जीत के जश्न पर पत्थर फेंकने वालों पर बुलडोजर?”
यहां यह याद रखना आवश्यक है कि नवंबर 2024 के अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने संदिग्ध लोगों की संपत्तियों को ढहाने से रोकने के लिए निर्देश मांगने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इसके लिए सख्त दिशा-निर्देश तय किए थे.
रिपब्लिक टीवी
सोमवार को रिपब्लिक टीवी पर महू हिंसा के बारे में अपनी प्राइम टाइम बहस से पहले एंकर अर्णब गोस्वामी ने अपने एकल आलाप में पूछा कि “कुछ लोग” पत्थर क्यों फेंकते हैं, और वाहन और दुकानें क्यों जलाते हैं. फिर उन्होंने अपने सवाल का खुद ही जवाब दिया: “क्योंकि कुछ लोग भारतीय जीत को भारत की जीत के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते.”
वो बार-बार सवाल उठाते रहे कि 2017 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय क्रिकेट टीम की हार पर “कुछ लोगों” ने जश्न क्यों मनाया, साथ ही ये तस्वीर पेश करते रहे कि महू में हुई हालिया घटना के लिए “उसी तरह के लोग” जिम्मेदार हैं.
इसी दौरान टीवी पर चल रहे एक टिकर में तो इस घटना पर चैनल का फैसला भी सुना दिया कि यह “राष्ट्रीय गौरव पर हमला” था.
अर्णब ने पूछा कि क्या हमें “ऐसे लोगों” को बर्दाश्त करना चाहिए जो भारतीय हैं, लेकिन उनके दिल में पाकिस्तान है. इस टीवी बहस का बाकी का प्रसारण अर्णब के “पाक-प्रेमी”, “औरंगजेब मानसिकता” और “पाकिस्तान वापस जाओ” जैसे उकसाने वाली बातों से भरा हुआ था.
एबीपी
अपने शो महादंगल में चित्रा त्रिपाठी ने कहा कि पत्थरों की मौजूदगी का मतलब है कि कोई साजिश थी, जबकि पटाखे “स्वाभाविक” हो सकते थे.
“अचानक से सुतली बम फेंक दिया होगा. स्पॉन्टेनियस हो सकता है. किसी ने चिढ़ाने के लिए फेंका हो. पत्थर कहां से आए? वो तो साजिश है न?”
ये चर्चा धीरे-धीरे महू की घटना से दूर होती चली गई और बड़े विचित्र तरीके से एक ऐसी बहस में बदल गई, जहां त्रिपाठी ने एआईएमआईएम दिल्ली के महासचिव हाजी मेहरदीन रंगरेज़ से पूछा, “अगर आपको ‘बुरा ना मानो, होली है’ कहके रंग लगा दिया… उससे क्या हो जाएगा आपका? वो अपने त्यौहार में आपको भी शामिल करना चाहते हैं. क्या दिक्कत हो जाएगी इससे?”
10 मिनट की इस बहस के बाकी पांच मिनट होली पर यह बेतुकी चर्चा तक चलती रही, जो कथित तौर पर महू में हुई हिंसा पर थी.
न्यूज18 इंडिया
अपने शो आर पार से पहले अमीश देवगन ने कहा कि चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की जीत के साथ ही कुछ लोग नफरत का एजेंडा सेट कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "होली के इस रंग में और टीम इंडिया की भव्य और बड़ी जीत के जश्न में कुछ लोग नफरती एजेंडा फिट करने में जुट गए हैं.” वहीं इस दौरान टिकर पर चल रहा था, “चैंपियंस का जश्न, किसे नापसंद?”