हवा का हक़: मिलिए विषय के विशेष जानकारों से

ये विशेषज्ञ इस मुहिम के दौरान न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्टिंग टीम का मार्गदर्शन करेंगे ताकि कुछ छूट न जाए.

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वायु प्रदूषण से बचने के लिए एक इंसान के पास बहुत ही सीमित विकल्प हैं. लेकिन सामूहिक प्रयास से इस समस्या से निपटा जा सकता है. और हमारे अस्तित्व पर मंडरा रहे इस संकट को हल करने के लिए निरंतर प्रयास की जरूरत होगी न कि सिर्फ साल के कुछ दिनों में सुर्खियां बनाने वाले माहौल की. इसीलिए हमने ‘हवा का हक़' मुहिम की शुरुआत की है. एक मीडिया संस्थान होने के बावजूद इस मुहिम की जरूरत क्यों पड़ी, जानने के लिए अभिनंदन सेखरी का यह लेख पढ़िए.

लेकिन हम अकेले इस मुहिम को आगे नहीं बढ़ा सकते. इसके लिए आपकी भी भागीदारी अनिवार्य है. और आप कई तरीकों से इस मुहिम से जुड़ सकते हैं. ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं. हमारी इस मुहिम का हिस्सा होंगे इस विषय को बेहतर तरीके से समझने और समझाने वाले विशेषज्ञ. विशेषज्ञों का हमारा यह सलाहकार पैनल हमारी रिपोर्टिंग और संपादकीय टीम के निरंतर संपर्क में होगा. ये हमें प्रतिक्रिया और सुझाव देने के साथ-साथ मार्गदर्शन भी करेंगे. ताकि इस मुहिम में कोई कमी न रहे और कुछ छूट न जाए.  

हमारी इस सलाहकार टीम में सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण कानून से लेकर उत्सर्जन मानकों और स्वच्छ हवा की नीतियों को अच्छे से समझने वाले लोग शामिल हैं. आइए आपको एक-एक कर उनसे मिलवाते हैं.  

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ

अभिनया सेकर

अभिनया सेकर, नई दिल्ली में हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट में कंसल्टिंग रिसर्च फेलो (सलाहकार शोध सहयोगी) हैं. उन्होंने भारत में राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को संशोधित करने और किसी भौगोलिक एरिया विशेष की परिस्थितियों के मुताबिक दृष्टिकोण विकसित करने का काम किया है.

पर्यावरण स्वास्थ्य विशेषज्ञ

धर्मेश शाह

धर्मेश शाह, सेंटर फॉर इंटरनेशनल एनवायरनमेंटल लॉ के पर्यावरण स्वास्थ्य कार्यक्रम के वरिष्ठ सलाहकार कैम्पेनर हैं. वह मुख्य रूप से एक प्रभावी वैश्विक प्लास्टिक संधि को लागू करने के प्रयासों के लिए रणनीति और समन्वय बनाने पर काम करते हैं. उन्होंने पहले जैव विविधता, वायु प्रदूषण, रसायन और विषाक्त पदार्थ, खतरनाक अपशिष्ट और प्लास्टिक प्रदूषण पर केंद्रित भारतीय और वैश्विक संगठनों के साथ एक सहयोगी के रूप में भी और स्वतंत्र रूप से भी काम किया है.

पर्यावरणविद्

विमलेंदु झा

विमलेंदु झा ने 2000 में स्वेच्छा नाम से एक एनजीओ की स्थापना की. इससे पहले उन्होंने सिविकस वर्ल्ड असेंबली, ब्रिटिश काउंसिल, अमेरिकी विदेश विभाग के आईवीएलपी, यूएनडीपी और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ काम किया है. उन्होंने पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर कई डॉक्यूमेंट्री बनाई हैं. जैसे कि डिस्पोजेबल और वेस्टेड, जो ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट) से संबंधित हैं; जिजीविषा, जिसमें पानी के मुद्दे पर बात की गई; और तत्व, जिसमें टिकाऊ ऊर्जा और विकास की चुनौतियों पर चर्चा की गई है.

उत्सर्जन विशेषज्ञ

सुनील दहिया

सुनील दहिया, एनवायरोकैटालिस्ट्स के संस्थापक और प्रमुख विश्लेषक हैं- यह एक ऐसा कार्यक्रम है, जो डाटा, शोध और सहयोग के माध्यम से पर्यावरण, ऊर्जा और स्वास्थ्य के विषय पर समाधान प्रदान करता है. उन्होंने नागरिक समाज की उस प्रेरणा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण भारत का राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम शुरू हुआ. वे भारत में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए उत्सर्जन मानकों के कार्यान्वयन के विशेषज्ञ भी हैं. 

पर्यावरण कानून विशेषज्ञ

संजय उपाध्याय

संजय उपाध्याय, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील हैं और एनवायरो लीगल डिफेंस फर्म का नेतृत्व करते हैं. वे 1993 से पर्यावरण और विकास कानून जैसे विषयों पर काम कर रहे हैं. इससे पहले वह विश्व बैंक, आईयूसीएन, यूएनडीपी, एएफडी, डीएफआईडी, आईएलओ, एसडीसी, आईसी, आईआईईडी, ओडीआई, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, ग्रीन पीस, एचबीएफ, टेरी, विनरॉक, एमओईएफ, एफओपीआर, एमओटीए, एमएनआरई, आईआईएफएम, आईसीएफआरई, आईईजी और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय जैसे कई वैश्विक और राष्ट्रीय संस्थानों के साथ एक विशेषज्ञ के रूप में काम कर चुके हैं.

पूर्व नौकरशाह

ब्रजेश कुमार

ब्रजेश कुमार, ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के पूर्व सीईओ हैं. वह यूपी कैडर के 1968 बैच के आईएएस अधिकारी रहे हैं. उन्होंने एयर इंडिया के प्रबंध निदेशक, इंडियन एयरलाइंस के अध्यक्ष और संयुक्त सचिव (नागरिक उड्डयन) सहित विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दी हैं.  

वायु नीति विशेषज्ञ

मनोज कुमार

मनोज कुमार, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर में शोधकर्ता हैं. उनका काम मुख्य रूप से भारत में वायु प्रदूषण से जुड़ी नीतियों और स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव पर केंद्रित है. उनके पिछले काम में मोबाइल मॉनिटरिंग के ज़रिए सैंपलिंग साइट्स की पहचान, पीएम मास कैरेक्टराइजेशन, आकार वितरण, रासायनिक कैरेक्टराइजेशन, स्रोत विभाजन, श्वसन जमाव संबंधी खुराकें और समय से पहले मृत्यु दर का अनुमान शामिल है.

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