डिजिपब फाउंडेशन ने ब्रॉडकास्टिंग बिल को लेकर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका ड्राफ़्ट सभी के साथ साझा न किए जाने को लेकर भी सवाल उठाए हैं.
सेल्फ सेंसरशिप किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए खतरनाक है. अगर डर का माहौल बनाया जाता है या पत्रकार को हर वक्त ये भय सताता है कि सरकार को बात पसंद नहीं आई तो उसका चैनल बंद हो सकता है. तो यह स्थिति आने वाले समय में और भी ज्यादा बिगड़ सकती है. एनडीटीवी इंडिया के पूर्व संपादक रवीश कुमार ने ये बात डिजिपब न्यूज़ इंडिया फाउंडेशन की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही. कुमार ब्रॉडकास्टिंग बिल को लेकर बोल रहे थे.
डिजिपब, भारत का सबसे बड़े डिजिटल न्यूज़ मीडिया संगठन है. जिसमें डिजिटल न्यूज संस्थानों के अलावा वरिष्ठ पत्रकार और बुद्धिजीवी लोग शामिल हैं.
दरअसल, बीते जुलाई में सरकार ने चुनिंदा लोगों को ब्रॉडकास्टिंग बिल का ड्राफ्ट जारी किया. इस ड्राफ्ट के मुताबिक, डिजिटल मीडिया में काम करने वाला लगभग हर शख्स बिल के दायरे में होगा. न्यूज़ की बात करें तो ध्रुव राठी और रवीश कुमार जैसे डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को भी बिल में 'डिजिटल न्यूज ब्रॉडकास्टर्स' के रूप में वर्गीकृत करने का प्रस्ताव रखा गया है. इसका अर्थ है कि डिजिटल क्रिएटर्स के लिए, चाहे वह टेक्स्ट हो या वीडियो, नए नियम लागू हो सकते हैं.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में रवीश कुमार के अलावा क्विंट की सह-संस्थापक और डिजिपब की महासचिव रितु कपूर, कारवां के संपादक और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अनंत नाथ और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के वकील और सह-संस्थापक अपार गुप्ता ने भी इस बिल पर चिंता व्यक्त की.
रितु कपूर ने कहा कि डिजिपब ने बिल को लेकर सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ बातचीत करने की कोशिश की लेकिन उनके किसी भी पत्र का जवाब नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि इस संवाददाता सम्मेलन का उद्देश्य मंत्रालय तक अपनी बात पहुंचाने का एक और प्रयास करना है.
'बिल का दायरा असीमित'
अनंत नाथ ने कहा कि ब्रॉडकास्टिंग बिल को पिछले कुछ वर्षों में पेश किए गए आईटी एक्ट, डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, दूरसंचार विधेयक, नए प्रेस एक्ट और नए आपराधिक कानूनों की पृष्ठभूमि में देखना जरूरी है.
उन्होंने कहा, "ब्रॉडकास्टिंग बिल डिजिटल कंटेंट को मॉडरेट करने की दिशा में सिर्फ एक और कदम है. एक ही कंटेंट को अब पांच अलग-अलग कानूनों और अधिनियमों के तहत निशाना बनाया जा सकता है. यह वैसा ही है, जैसे अगर विपक्ष का कोई नेता एक मामले में जेल जाता है और उसे सीबीआई से जमानत मिल भी जाती है, तो आईटी या ईडी के मामले में उसे फिर से फंसा दिया जाएगा."
नाथ ने कहा कि पत्रकारिता में सरकार को फैसला करने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "जो भी नियमन जरूरी है, वह स्व-नियमन के रूप में होना चाहिए. किसी भी तरह के सरकारी नियामक ढांचे के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. मीडिया को जो कुछ भी कहना है, उसे कहने का जोखिम उठाना होगा."
गौरतलब है कि ब्रॉडकास्टिंग बिल के ड्राफ्ट में डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को तीन स्तर पर नियमन का प्रस्ताव किया गया है. इसके बारे में जानने के लिए आप बिल पर हमारा ये वीडियो भी देख सकते हैं.
‘सरकारी दखल से मुक्त हो पत्रकारिता’
अपार गुप्ता ने कहा, "प्रसारण सलाहकार समिति के सदस्यों का चयन और उनका कार्यकाल सरकार द्वारा तय किया जाएगा. इसमें कोई कॉर्पोरेट स्वतंत्रता नहीं दी जा रही है जो यह सुनिश्चित करे कि यह समिति सरकार से स्वतंत्र रूप से काम करेगी."
उन्होंने आगे कहा, "प्रोग्राम कोड में 'अच्छे स्वाद' जैसी अस्पष्ट चीजें शामिल हैं, लेकिन हम जो कुछ भी कहते हैं, जैसे कि मैं समोसा खाना पसंद करता हूं, वह किसी और के लिए अच्छा नहीं हो सकता है. विधेयक का दायरा वस्तुतः असीमित है. यह अधिनियम सभी पॉडकास्टरों और यूट्यूबर्स पर लागू होता है और किस पर इसे लागू किया जाए, वह पूरी तरह से सरकार की इच्छा पर निर्भर होगा."
उन्होंने कहा कि ब्रॉडकास्टिंग बिल के बारे में कई समाचार लेखों और वीडियो के बावजूद, सरकार ने अब तक कोई खंडन नहीं किया है, जो यह संकेत देता है कि इन संदेहास्पद निहितार्थों में सच्चाई हो सकती है.
पैनलिस्टों ने इस बात पर जोर दिया कि प्रमुख मुद्दों में से एक यह था कि बिल केवल कुछ चुनिंदा लोगों के साथ ही साझा किया गया था. ड्राफ्ट की हर प्रति को उस संगठन के पहचानकर्ता के साथ चिह्नित किया गया है, जिसके साथ इसे साझा किया गया ताकि अगर यह लीक हो जाए तो इसे आसानी से ट्रेस किया जा सके.
रवीश कुमार ने कहा कि जिन व्यक्तियों और संगठनों के साथ यह बिल साझा किया गया है, उनके नाम जल्द से जल्द सार्वजनिक किए जाने चाहिएं और साथ ही बिल के ड्राफ्ट को जनता के लिए भी जारी किया जाना चाहिए.
चुनाव के बाद ही बिल का इतना कड़ा ड्राफ्ट
रितु कपूर ने कहा कि चुनाव के बाद बिल का ड्राफ्ट आने की टाइमिंग को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. डिजिटल मीडिया ने जमीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों के काम को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह बिल भविष्य में इस परिदृश्य को बदल सकता है.
उन्होंने कहा, "हमारी चिंता केवल विधेयक तक सीमित नहीं है बल्कि इसे लागू करने के तरीके को लेकर भी है. पिछले कुछ वर्षों में मीडिया घरानों पर छापे डाले गए हैं और बिना चेतावनी के यूट्यूब चैनलों को हटा दिया गया है, जिससे यह डर पैदा होता है कि यह बिल सेंसरशिप को बढ़ावा दे सकता है."
बिल ने डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को शामिल करके इसके दायरे को बढ़ा दिया है. जो लोग एक व्यवस्थित व्यवसाय, पेशेवर या व्यावसायिक गतिविधि के हिस्से के रूप में एक वेबसाइट या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रोग्रामिंग और क्यूरेटेड कार्यक्रम प्रदान करते हैं, उन्हें "ओटीटी ब्रॉडकास्टर्स" के रूप में माना जाएगा. इसका मतलब है कि एक चार्टर्ड अकाउंटेंट जो यूट्यूब पर एसआईपी में निवेश करने के टिप्स साझा करता है या एक पोषण विशेषज्ञ, जो आहार के बारे में जानकारी प्रदान करता है, उसे भी ओटीटी ब्रॉडकास्टर के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, "गांवों में लाखों क्रिएटर्स हैं, जो यूट्यूब का इस्तेमाल रचनात्मकता और पैसे कमाने के लिए कर रहे हैं. इस बिल के माध्यम से हम में से केवल चार या पांच लोगों को निशाना नहीं बनाया जा रहा है; यह लद्दाख से कन्याकुमारी तक हर यूट्यूबर को प्रभावित करने वाला है. "
उन्होंने आगे कहा, "यूट्यूब हमारे जैसे लोगों के लिए एक मंच है, जिन्हें मुख्यधारा के मीडिया द्वारा अभी तक काम नहीं दिया गया है. अगर सरकार हमें बंद करने का कोई तरीका खोज रही है तो उन्हें पता होना चाहिए कि इससे वे खुद बंद हो जाएंगे. अगर वे मीडिया रिपोर्टों पर ध्यान देंगे तो शायद वे स्थितियों को बेहतर तरीके से संभाल सकेंगे. पारंपरिक मीडिया इस बिल के खिलाफ क्यों नहीं बोल रहा है? क्या उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चिंता नहीं है? हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए क्या वे भी चिंतित नहीं हैं?"
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अनुवादः सैयद अब्दुल्लाह हसन
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