बिहार सिपाही पेपर लीक: पत्नी की शेल कंपनी को ठेका, पति यूपी शिक्षक भर्ती पेपर लीक में जा चुका जेल

उत्तर प्रदेश के शिक्षक भर्ती पेपर लीक मामले में जेल गए कौशिक कुमार कर की पत्नी की कंपनी को बिहार केंद्रीय चयन पर्षद (सिपाही भर्ती) के पेपर की जिम्मेदारी दी गई. 

WrittenBy:बसंत कुमार
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बिहार में सिपाही भर्ती परीक्षा के पेपर लीक को लेकर अक्टूबर, 2023 में प्राथमिकी दर्ज हुई.

एक तरफ जहां देश बेरोजगारी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. काम नहीं मिलने की स्थिति में आए दिन युवाओं द्वारा आत्महत्या की खबरें आती रहती हैं. वहीं, दूसरी तरफ अगर कोई भर्ती निकलती भी है तो उसका पेपर ही लीक हो जाता है. हाल में नीट समेत कई पेपर के लीक होने की खबरें आई हैं. पेपर लीक में सबसे कमज़ोर कड़ी वो प्राइवेट कंपनियां/एजेंसियां हैं, जहां पेपर की छपाई होती हैं. 

बिहार में सिपाही भर्ती परीक्षा के पेपर लीक को लेकर अक्टूबर, 2023 में प्राथमिकी दर्ज हुई. जिसकी जांच आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने की. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस जांच से जुड़े कागजात हासिल किए तो सामने आया कि इस परीक्षा का पेपर तैयार करने की जिम्मेदारी जिस कंपनी को दी गई थी, उसका कोई दफ्तर ही नहीं था. उसने यह पेपर एक अन्य कंपनी से बनवाया. इस अन्य कंपनी के मालिक उत्तर प्रदेश के शिक्षक भर्ती पेपर लीक मामले में जेल जा चुके हैं. 

पेपर लीक की क्रोनोलॉजी  

केंद्रीय चयन पर्षद सिपाही (सीएसबीसी) बिहार ने जून 2023 में 21391 पदों पर सिपाही भर्ती की अधिसूचना जारी की. इसके लिए करीब 18 लाख युवाओं ने फॉर्म भरा था. जिसका पेपर 1, 7 और 15 अक्टूबर 2023 को दो पालियों में आयोजित होना था. पहली पाली सुबह 10 से 12 बजे तक और दूसरी शाम में 3 बजे से 5 बजे तक.

एक अक्टूबर को दूसरी पाली की परीक्षा होने के बाद ही छात्रों ने पेपर लीक को लेकर हंगामा करना शुरू कर दिया. जिसकी कई शिकायतें और सबूत परीक्षार्थियों ने पुलिस को दी थी. तब सीएसबीसी ने पेपर लीक होने की सम्भावना से इंकार कर दिया.

2 अक्टूबर को मीडिया से बात करते हुए बिहार के पूर्व डीजीपी और सीएसबीसी के तत्कालीन चेयरमैन एसके सिंघल ने बताया था कि उनकी व्यवस्था के अनुरूप कहीं भी पेपर लीक नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, “हमारा प्रोसेस बिलकुल साफ-सुथरा और विश्वसनीय है. अब तक उसमें कोई कमी नहीं पाई गई है. जो युवा पकड़े गए हैं, उनके पास भी प्रश्न पत्र के क्रम में उत्तर नहीं है. वो अपने हिसाब से कुछ जवाब लिखकर लाए थे, किसी का दो सवाल मिला तो किसी का चार.’’

हालांकि, अगले ही दिन यानी तीन अक्टूबर को ही लीक की बात स्वीकारते हुए पेपर रद्द कर दिया गया. उसके बाद अब तक यह बहाली नहीं आई है.

सीएसबीसी द्वारा पेपर रद्द करने को लेकर जारी आर्डर.

विश्वसनीय प्रक्रिया: जहां कदम-कदम पर हुई लापरवाही 

इस मामले में 31 अक्टूबर को आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की. वहीं, जून 2024 से इसको लेकर गिरफ्तारी शुरू हुई. अब तक सात आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं. 

ईओयू की प्रारंभिक जांच में सामने आया कि भर्ती की आधिकारिक घोषणा के बाद से ही लीक गिरोह सक्रिय हो गए थे. इस गिरोह के सदस्य व्हाट्सएप और टेलीग्राम ग्रुप बनाके सिपाही बहाली के प्रश्न पत्र सौ प्रतिशत आउट करने का आश्वासन दे रहे थे. कुछ गिरोह इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का प्रयोग कर चोरी कराने के संसाधन एकत्रित करने में जुटे थे. वहीं, कुछ गिरोह सेंटर से सेटिंग कर चोरी करने की बात कर रहे थे. इसके बदले पैसों का लेनदेन भी हो रहा था. पैसे देने के लिए नंबर और बैंक अकॉउंट नंबर भी साझा किए जा रहे थे. यह सब खुलेआम हो रहा था.   

ईओयू ने अपनी जांच शुरू की तो संजीव सिंह उर्फ संजीव मुखिया का नाम सामने आया. मुखिया के साथियों के साथ कोलकत्ता जाने और कई दिनों तक होटल रुकने की बात भी सामने आई. मालूम हो कि कोलकाता में ही इस परीक्षा का पेपर तैयार और प्रकाशित किया गया था.  इसके बाद पुलिस ने मुखिया के साथ कई अन्य को आरोपी बनाया गया.  संजीव का नाम नीट पेपर लीक में भी सामने आया है. हालांकि, अभी भी वो पुलिस और सीबीआई की गिरफ्त से बाहर है. 

संजीव मुखिया के बारे में विस्तार से जानने के लिए यह ख़बर पढ़ सकते हैं. 

जांच के दौरान ईओयू के सामने एक दिलचस्प जानकारी सामने आई. दरअसल, सीएसबीसी के चेयरमैन एसके सिंघल (पूर्व डीजीपी बिहार) ने प्रश्न पत्रों की सेटिंग और छपाई के लिए कोलकाता की कंपनी कैल्टेक्स मल्टीवेंचर प्राइवेट लिमिटेड को चुना. 

एसके सिंघल और कैल्टेक्स के निदेशक सौरभ बंद्योपध्याय के बीच इकरारनामा हुआ. जिसमें लिखा गया, “चूंकि यह परियोजना गोपनीय प्रकृति की है, इसलिए गोपनीयता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है. वेंडर को सुरक्षित अभिरक्षा की पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी तथा सीएसबीसी द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों और तारीख की गोपनीयता बनाए रखनी होगी. सीएसबीसी द्वारा दिए गए प्रत्येक दस्तावेज और डाटा को पूरी तरह से गोपनीय रखा जाएगा और इसका कोई भी हिस्सा सीएसबीसी से लिखित इजाजत के बिना किसी भी समय किसी भी व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा, अगर इसमें कोई चूक होती है तो पूरी तरह कैल्टेक्स कंपनी जिम्मेदार होगी.’’

कैल्टेक्स मल्टीवेंचर प्राइवेट लिमिटेड की कोई वेबसाइट नहीं है. कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (एमसीए) की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, इस कंपनी की शुरुआत अगस्त, 2021 में हुई थी. 

सबसे पहला सवाल यह है कि एक कम अनुभव वाली कंपनी को आखिर सीएसबीसी के चेयरमैन एसके सिंघल ने पेपर तैयार करने और प्रिंट करने की जिम्मेदारी किस आधार पर दी? 

इस जांच से जुड़े एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि किस कंपनी को पेपर प्रिंटिंग और सेटिंग की जिम्मेदारी दी जानी है यह बेहद गोपनीय जानकारी होती है. यह सिर्फ चेयरमैन को और संबंधित कंपनी को पता होता है. इसके लिए कोई टेंडर नहीं निकलता है. चेयरमैन के पास इस काम से जुड़ी कंपनियों की लिस्ट होती है. उसमें से वो चार-पांच कंपनियों से कोटेशन मंगाते हैं और खुद तय करते हैं कि किसे यह काम दिया जाए.

कैल्टेक्स का फर्जीवाड़ा 

सीएसबीसी से इकरारनामे में कैल्टेक्स कंपनी ने अपने दफ्तर का जो पता दिया था वह ईओयू को संदेहास्पद लगा. जिसके बाद पटना से अधिकारियों ने जाकर उसकी जांच की. 

जांच के दौरान वहां कैल्टेक्स का कोई कार्यालय ही नहीं था. कंपनी के एक अन्य निदेशक सुमन विश्वास की बहन साथी चौधरी के निजी आवास को कार्यालय के रूप में रेंट एग्रीमेंट किया गया था. जहां प्रिंटिंग करने योग्य कोई भी लॉजिस्टिक या कार्यालय नहीं पाया गया.

कैल्टेक्स ने बिना सीएसबीसी को सूचना दिए प्रिंटिंग, पैकिंग और सवाल तैयार करने के लिए ब्लेसिंग्स सिक्योर्ड प्रेस प्राइवेट लिमिटेड की मशीन का इस्तेमाल किया.  

ब्लेसिंग्स सिक्योर्ड प्रेस प्राइवेट लिमिटेड और कैल्टेक्स का रिश्ता जान लेते हैं. कैल्टेक्स कंपनी बनी तब संजोय दास और तनवीशा धर इसके शेयर धारक और निदेशक थे. आगे चलकर तनवीशा धर इस कंपनी से अलग हो गई. 

कैल्टेक्स कंपनी के डिटेल्स

धर साल 2017 से एक और कंपनी में डायरेक्टर हैं, जिसका नाम ब्लेस्सिंग्स सिक्योर्ड प्रेस प्राइवेट लिमिटेड है. ब्लेस्सिंग्स के प्रमुख कौशिक कुमार कर हैं, जो तनवीशा धर के पति हैं.

जिन्हें उत्तर प्रदेश एटीएस ने यूपी लोक सेवा आयोग परीक्षा के पेपर लीक मामले 2019 में गिरफ्तार किया था. वहीं ब्लेसिंग्स के एक अन्य कर्मी दिलीप साहा को अरुणाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के साथ जेल भेजा गया था. 

तनवीशा के हटने के बाद कैल्टेक्स के चार निदेशक बने, सौरभ बंद्योपाध्याय, संजय दास, सुमन बिस्वास और सुपर्णा चक्रवर्ती. ये सभी ब्लेसिंग्स से ही जुड़े हुए हैं. 

आगे चलकर ईओयू की जांच में एक और दिलचस्प जानकारी सामने आई. इसका जिक्र करते हुए जांच से जुड़े वरिष्ठ पुलिस बताते हैं, ‘‘पेपर के सवाल भी तैयार करने की जिम्मेदारी कैल्टेक्स कंपनी की ही थी. लेकिन सिपाही भर्ती का पेपर कौशिक कुमार कर की बहन संघमित्रा ने तैयार किए थे. संघमित्रा ब्लेस्सिंग्स कंपनी में बतौर डायरेक्टर साल 2017 से जुड़ी हुई है.’’

ऐसे में साफ जाहिर होता है कि कैल्टेक्स तो महज दिखावे की कंपनी थी वास्तव में ब्लेस्सिंग्स और कौशिक ही सबकुछ कर रहे थे.  

दोबारा गोपनीयता हुई भंग 

अब तक हमने देखा कि कैल्टेक्स ने करार के समय गोपनीयता की जिन शर्तों पर हस्ताक्षर किए थे वो पूरी नहीं कीं. सिर्फ यही नहीं आगे भी इसी तरह का खेल कैल्टेक्स कंपनी ने किया. 

पेपर तैयार हो जाने के बाद उसे अलग-अलग जिलों के कोषागार में भेजने के लिए कैल्टेक्स ने कोलकत्ता की डीपी वर्ल्ड एक्सप्रेस लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड से करार किया. दोनों कंपनियों की 2 सितंबर 2023 को जो बैठक हुई थी, उसमें कैल्टेक्स का कोई प्रतिनिधि उपस्थित ही नहीं था. यहां देवाशीष बागची और कौशिक कुमार कर उपस्थित थे. उस दिन के मिनट्स ऑफ़ मीटिंग में इनके ही हस्ताक्षर हैं.

ईओयू की जांच के मुताबिक पेपर कोषागार में ले जाने की जिम्मेदारी तो डीपी वर्ल्ड एक्सप्रेस लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड को थी, लेकिन 24 सितंबर 2023 को जब इस कंपनी की गाड़ी पटना के वेयर हाउस पहुंची तो यहां एक अन्य कंपनी को जिलावार पेपर पहुंचाने की ज़िम्मेदारी दे दी गई. इस कंपनी का नाम जेनिथ लॉजिस्टिक्स एंड एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड था. यहीं से संजीव मुखिया और उसके गैंग के लोगों ने पेपर लीक कर लिया. यह सब जेनिथ के कुछ कर्मियों की मदद से हुआ. 

सिपाही भर्ती के पेपर में शुरू से ही कोताही बरती गई जिसका नतीजा यह हुआ कि पेपर लीक हो गया.

वहीं, सीएसबीसी और कैल्टेक्स के बीच जो इकरारनामा हुआ था, उसमें कहीं भी जेनिथ लॉजिस्टिक्स या डीपी वर्ल्ड एक्सप्रेस का पेपर पहुंचाने को लेकर जिक्र नहीं था. जांच में यह भी आया कि कैल्टेक्स की तरफ से पेपर पहुंचाने का काम इन दोनों कंपनियों को दिया जा रहा ऐसी कोई सूचना सीएसबीसी को नहीं दी गई थी. 

इस तरह से साफ जाहिर होता हैं कि सिपाही भर्ती के पेपर में शुरू से ही कोताही बरती गई जिसका नतीजा यह हुआ कि पेपर लीक हो गया.

एसके सिंघल से अब तक पूछताछ नहीं

ईओयू की जांच में साफ पता चलता है कि गलती पेपर कराने के लिए ‘कंपनी’ के चयन से ही शुरू हो गई. एक ऐसी कंपनी को ठेका दिया गया जो दो साल पहले ही बनी थी. उसका कोई खास अनुभव भी नहीं था.

पेपर लीक होने के बाद शुरूआती जांच में ही सिंघल की भूमिका पर सवाल खड़े होने लगे थे, जिसके बाद उन्हें दिसंबर 2023 में सीएसबीसी के चेयरमैन पद से हटा दिया गया. जांच के दौरान ईओयू ने सिंघल के कई ठिकानों पर छापेमारी भी की थी. इनके कई करीबियों से पूछताछ हुई थी, लेकिन अभी तक सिंघल से पूछताछ नहीं हुई है.

सीएसबीसी के चेयरमैन पद से हटाए जाने के तीन महीने बाद मार्च 2024 में इन्हें बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड का सिक्योरिटी एडवाइजर बना दिया. 

ऐसे में सवाल उठता है कि सिंघल कैल्टेक्स की हकीकत से सच में अनजान थे? आखिर एक नई कंपनी को उन्होंने किस आधार पर ठेका दिया था? हमने सिंघल से बात करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई. ऐसे में हमने उनके नंबर पर सवाल भेजे हैं. अगर जवाब आता है तो उसे जोड़ दिया जाएगा.

ईओयू इस मामले में 7 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी हैं. 26 जून को ही कौशिक कुमार कर, सौरभ बंदोपध्याय, सुमन बिस्वास, संजय दास को गिरफ्तार किया गया है. वहीं, संजय मुखिया ग्रुप के तीन सदस्य अश्विनी रंजन, विक्की कुमार और अनिकेत को ईओयू पहले ही 5 जून को गिरफ्तार कर चुकी थी. 

लेकिन सवाल यह उठता है कि इतने सारे सबूत होने के बावजूद ईओयू एसके सिंघल से पूछताछ क्यों नहीं कर रही है? इसको लेकर हमने ए.डी.जी. नैय्यर हुसैन खान को सवाल भेजा है. अगर जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जायेगा. 

नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली बिहार सरकार सिंघल पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान रही है. यह वही डीजीपी हैं जिन्हें एक समान्य युवक ने खुद को हाईकोर्ट का मुख्य न्यायधीश बताते हुए कॉल किया और कहा था कि शराब से जुड़े मामले में एक आईपीएस अधिकारी को क्लीन चिट दे दो.’’ और सिंगल साहब ने क्लीनचिट भी दे दिया. 

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