नीट पेपर लीक: कोचिंग सेंटर और पेपरलीक माफिया नेक्सस का गढ़ पटना

न्यूज़लॉन्ड्री ने आर्थिक अपराध इकाई की जांच से जुड़े कुछ दस्तावेज हासिल किए हैं. उसमें बिहार में कैसे इस गिरोह ने काम किया उसकी जानकारी दर्ज है.

WrittenBy:बसंत कुमार
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प्रतीकात्मक तस्वीर

बिहार के नालंदा जिले के पावापुरी क्षेत्र का एक गांव. फरवरी, 2024 में शाम का वक़्त था. 68 साल के बुजुर्ग अपने घर के सामने बैठे हुए थे. तभी उनके दूर के जानकार मिलने आए और बातचीत में कहा, किसी बच्चे का नीट क्लियर करवाना है तो बताइये करा देंगे. इस परिचिति ने शुरुआत में आठ लाख रुपये की मांग की, बाकि पैसे बाद में देने के लिए कहा.  

इसके साथ ही अपने दावे को मज़बूत करते हुए कहा कि मैं हज़ार रुपये के स्टांप पेपर पर लिखकर दूंगा कि नीट का एंट्रेंस करा दूंगा. बुजुर्ग ने यह कहकर इस ऑफर को ठुकरा दिया कि मेरे घर पर नीट लायक अभी कोई बच्चा ही नहीं है.

मार्च, 2024 में कुछ निजी चैनलों से बात करते हुए कई पेपर लीक में आरोपी रहा और जेल भी गया. विजेंद्र गुप्ता ने कहा था कि नीट का पेपर लीक होगा. इससे जुड़ी संस्थाएं ध्यान दें.  

यह दोनों घटनाएं फरवरी, 2024 की हैं. नीट यानी राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा का पेपर मई में होना था. पेपर लीक माफिया की तैयारी और पेपर आउट करा लेने के यकीन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो तीन महीने पहले से इसके लिए कैंडिडेट ढूंढने लगे थे. उनके आसपास के लोगों को इसका अंदाजा लग गया था.

बिहार पुलिस और इसकी आर्थिक अपराध इकाई (ईओडब्ल्यू) अपनी जांच में यह साबित कर चुकी हैं कि नीट पेपर लीक हुआ है. हालांकि, केंद्र सरकार का शिक्षा मंत्रालय इसे मानने से अब तक इनकार कर रहा है. अब यह केस केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को दे दिया गया है. सीबीआई इस मामले में लगातार गिरफ्तारियां कर रही हैं. 

बिहार और झारखंड कैसे बना सेंटर 

पांच मई को नीट के लिए प्रवेश परीक्षा थी. परीक्षा के बीचों-बीच पटना पुलिस को आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) की तरफ से सूचना मिली, जिसमें पेपर लीक कराने वाले गिरोह की डिटेल्स दी गई थी. आईबी की तरफ से इसके लिए इस्तेमाल की जा रही झारखंड नंबर वाली गाड़ी की जानकारी भी साझा की गई थी. इसके बाद पटना पुलिस सक्रिय हुई. जगह-जगह गश्त लगाई जाने लगी. शास्त्रीनगर थाने के एसएचओ अमर कुमार, उस दिन बेली रोड पर राजवंशी नगर मोड़ की तरफ गश्त लगाकर गाड़ियों पर नज़र रख रहे थे. 

तभी उन्हें एक गाड़ी आती दिखी. उस दिन अमर कुमार द्वारा दर्ज कराई एफआईआर के मुताबिक, गाड़ी में ड्राइवर समेत तीन लोग थे. सिकंदर यादवेन्दु, अखिलेश कुमार और ड्राइवर बिट्टू कुमार. पुलिस को देखकर ये लोग भागने लगे तो अन्य पुलिसकर्मियों की मदद से इन्हें काबू किया गया. इसके बाद पुलिस को जांच में नीट के चार अभ्यर्थियों के एडमिट कार्ड की फोटोकॉपी गाड़ी से मिली. 

इस तरह बिहार पुलिस के हाथ नीट पेपर लीक की जानकारी लगी. पुलिस को गाड़ी में जिन अभ्यर्थियों के एडमिट कार्ड की फोटोकॉपी मिली थी, उनकी जांच करनी शुरू कर दी. साथ ही इस दौरान उनके परिजनों को भी गिरफ्तार किया. इसके बाद पेपर लीक गिरोह की पोल खुलती गई. अब तक कुल 12 लोगों को बिहार पुलिस गिरफ्तार कर चुकी थी. हालांकि, बाद में ये मामला 14 मई को आर्थिक अपराध इकाई को सौंप दिया गया.

गिरोह में सबकी अलग-अलग जिम्मेदारी 

न्यूज़लॉन्ड्री ने आर्थिक अपराध इकाई की जांच से जुड़े कुछ दस्तावेज हासिल किए हैं. उसमें बिहार में कैसे इस गिरोह ने काम किया उसकी जानकारी दर्ज है. 

इस वास्तविक कहानी के कई किरदार हैं-  

सिकंदर यादवेन्दु, जो मूलरूप से समस्तीपुर का रहने वाला है. पूर्व में झारखंड के रांची में ठेकेदार का काम करता था. 2012 में यह बिहार में सरकारी कर्मचारी बना और वर्तमान में नगर परिषद दानापुर में कनीय अभियंता के पद पर है. इस पर भ्रष्टाचार का मामला दर्ज है. हालांकि, पेपर लीक से जुड़ा कोई आपराधिक रिकॉर्ड इसका अब तक नहीं है.

सिकंदर ने चार लड़के इकठ्ठा किए थे. उसमें से एक उसका रिश्तेदार 21 वर्षीय अनुराग यादव था. सिकंदर, अनुराग का रिश्ते में फूफा लगता है. अनुराग समस्तीपुर का ही रहने वाला है. इसने 2022 और 2023 में नीट का पेपर दिया था, तब इसके क्रमशः 340 और 560 नंबर आए थे. हालांकि, इस बार कथित तौर पर पूर्व में पेपर मिलने के बावजूद भी 185 नंबर आए हैं.

बाकी जो तीन लड़के थे, उनके परिजनों से यादवेन्दु का परिचय काम के दौरान हुआ था. उसमें से एक 21 वर्षीय अभिषेक कुमार, रांची का रहने वाला हैं. इसने भी 2022 और 2023 में नीट का पेपर दिया था लेकिन सफलता नहीं मिली थी. अभिषेक के पिता अवधेश कुमार,  यादवेन्दु के पुराने परिचित हैं. जब यादवेन्दु, रांची में ठेकेदारी का काम किया करते थे तो अवधेश उनके साथ काम करते थे. 

अवधेश कुमार, मूलतः भोजपुर जिले के मोआफ गांव के रहने वाले हैं. हालांकि, कई सालों से रांची में बस गए हैं. उनका बेटा भी वहीं साथ में रहता है, लेकिन फॉर्म भरा तो सेंटर पटना चुना. यह संकेत देता है कि पेपर लीक की प्लानिंग पहले से चल रही थी. 

अवधेश कुमार ने बताया है कि 2023 में सिकंदर ने उसे कहा था कि वो नीट परीक्षा पास कराने के लिए सेटिंग करा देगा. अन्य लोगों से जहां 40-50 लाख रुपये लिए तो करीबी होने के कारण अवधेश से सिकंदर ने 30 लाख में बात तय की. तब अवधेश ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के दो ब्लैंक चेक सिकंदर को दिए थे. हालांकि, 2023 में काम नहीं हो पाया तो फिर 2024 में कराने का वादा सिकदंर ने किया था. सबकुछ प्लानिंग के मुताबिक हुआ और 3 मई को अवधेश, अभिषेक को लेकर पटना आ गए और सिकंदर को सौंप दिया. 

सिकंदर का तीसरा क्लाइंट 19 वर्षीय आयुष कुमार था. जो दानापुर का ही रहने वाला है. जहां सिकंदर कार्यरत है. आयुष ने 2023 में भी नीट का पेपर दिया था, तब उसके 360 नंबर आए थे. आयुष के पिता अखिलेश कुमार, गोकुल ब्रिक्स नाम से ईंट भट्टा चलाते हैं. अखिलेश कुमार ने आर्थिक अपराध इकाई को बताया कि वो दानापुर नगर परिषद में नक्शा पास कराने गया था जहां उसकी मुलाकात सिकंदर से हुई थी. बातचीत के दौरान कुमार ने बेटे द्वारा नीट का फॉर्म भरने का जिक्र किया गया तो सिकंदर ने कहा कि वो सेटिंग करा देगा. 40 लाख रुपये में मामला तय हुआ. इसके लिए आईडीबीआई बैंक का ब्लैंक चेक कुमार ने सिकंदर को दिया. 

चौथा क्लाइंट 18 वर्षीय शिवनंदन कुमार था. जो गया का रहने वाला है. इसके पिता रामस्वरूप यादव की जान पहचान सिकंदर से थी. 

सिकंदर के बारे में और जान लेते हैं. सिकंदर की बेटी ने 2012-16 के बीच एमबीबीएस की है और वर्तमान में स्पोर्ट्स के सामान की दुकान चलाती है. जिस समय इनकी बेटी ने एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया, उसी साल 2012 में बिहार कर्मचारी आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में सिकंदर शामिल हुआ और कनीय अभियंता के पद पर नियुक्त हुए. 

इस कहानी के दूसरे महत्वपूर्ण किरदार अमित आनंद है. आनंद और सिकंदर की मुलकात 2022 में हुई थी. ये भी नक्शा ही पास कराने आए थे. अमित आनंद, संजीव मुखिया गैंग से जुड़ा हुआ, लेकिन इसकी कोई क्राइम हिस्ट्री नहीं है.

सिकंदर ने जिन चार लड़कों को इकठ्ठा किया था, उन्हें वो 4 मई की शाम को अमित आनंद को सौंप गया. आगे का काम अमित ने संभाला. अमित ही इसके बाद केंद्र बिंदु रहा. 

इस मामले में गिरफ्तार आशुतोष कुमार, आनंद का 2017-18 से दोस्त है. उसके मुताबिक, आनंद नीट के लिए कैंडिडेट खोज रहा था. तो उसने अपने रूममेट रोशन कुमार और मकान मालिक सोनू कुमार के साथ मिलकर एक कैंडिडेट खोजा. जिसका नाम अंशुमान यादव है. अंशुमान, उत्तर प्रदेश के बलिया का रहने वाला है. पेपर के पांच दिन पहले ही अंशुमान का रजिस्ट्रेशन स्लिप रोशन ने अमित आनंद के फोन पर भेज दिया था. 

29 वर्षीय अमित आनंद, मुंगेर का रहने वाला है. बीटेक करने के बाद आनंद ने इंडियन इंस्टीटूट ऑफ़ डेमोक्रेटिक लीडरशिप, मुंबई से पॉलिटिकल एवं मैनेजमेंट का कोर्स किया. उसके बाद बीजेपी बिहार के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और बेतिया से सांसद संजय जायसवाल के यहां इंटर्नशिप की. वर्तमान में यह जॉब कंसल्टेंसी और प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कराता था. 

यहां से सामने आता है, कोचिंग सेंटर का काला चेहरा. इस गिरोह के तीसरे सदस्य नीतीश कुमार को आनंद अपने यहां पढ़ने आने वाले प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र मुहैया कराता था. पटना के जाने माने शिक्षक रहमान सर बताते हैं, ‘‘पेपर लीक गिरोह में कई कोचिंग सेंटर वाले शामिल हैं.  अगर ठीक से जांच हो तो उनकी कलई खुल जाएगी. कुछ करोड़ खर्च कर वो अपने छात्र को टॉपर बनवा लेते हैं और फिर उसके नाम पर करोड़ों कमाते हैं. यहां कोचिंग सेंटर और पेपर माफिया का नेक्सस है.’’

पटना में नीट के लिए जो कैंडिडेट तय हुए थे, उनकी कुल संख्या 15 थी. जिसमें से चार सिकंदर लाया था. छह नीतीश, चार अमित आनंद ने ढूंढे थे. वहीं, एक रोशन और आशुतोष के माध्यम से आए थे. 

नीतीश कुमार बीपीएससी शिक्षक भर्ती में हुए पेपर लीक मामले में मार्च 2024 में जेल जा चुका है. वह फिलहाल जमानत पर बाहर आया था. इसी मामले में संजीव मुखिया का बेटा शिव, जो पटना पीएमसीएच से डॉक्टरी की पढ़ाई कर कर चुका है, वो भी जेल में है. 

नीट पेपर लीक जो आगे चलकर हज़ारीबाग पहुंचा. उसकी शुरुआत बीपीएससी शिक्षक भर्ती लीक के समय ही हो गई थी. इस बारे में हम आगे विस्तार से बताएंगे. 

इन सभी लड़कों को चार मई की रात में लर्न बॉयज स्कूल ले जाया गया. पटना के खेमनीचक स्थित इस स्कूल को ढूंढ़ना, घास के गट्ठे में सूई ढूंढने सा मुश्किल है.  

करीब घंटे भर की तलाश के बाद हम यहां के रामकृष्ण नगर स्थित लर्न बॉयज स्कूल पहुंचे. पटना बाईपास से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित इस स्कूल का रास्ता बेहद ही खराब है.  

इस स्कूल के गेट पर लिखा है, ‘‘a complete solution of your kids”. 

पटना स्थित लर्न प्ले स्कूल.

हमें पता चला कि इस स्कूल में कभी एडमिशन हुआ ही नहीं है. इसकी बिल्डिंग में तीन किरायेदार रहते थे. दो ऊपरी माले पर एक नीचे. नीचे वाले किरायेदार, एक मई को ही खाली करके जा चुके थे. बच्चों को नीचे वाले ही हिस्से में रखा गया था. 

पेपर लीक जांच से जुड़े एक अधिकारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि इतने अंदर बच्चों को रुकवाने का मकसद था कि किसी को इसकी भनक न लगे. यह हकीकत भी है. आसपास के लोगों को इसकी तब जानकारी हुई जब पुलिस जांच करने के लिए पहुंची थी. 

यहीं पड़ोस में रहने वाली एक महिला कहती हैं कि इस स्कूल में तो कभी कोई बच्चा पढ़ने नहीं आया है. किरायेदार रहते थे. कभी कभार इसके मालिक भी आया करते थे. यहां चार-पांच मई को क्या हुआ हमें इसकी कोई जानकारी नहीं. वो तो पांच की शाम में जब पुलिस जांच करने आई तो हमें पेपर लीक के बारे में पता चला. 

इस स्कूल के दूसरे माले पर आशुतोष कुमार किरायेदार के रूप में रहते थे. कुछ दिनों तक उनके बीमार माता-पिता भी यहां रहे. आशुतोष के जरिए ही लर्न बॉयज स्कूल बुक हुआ था. 

नितीश ने पुलिस को बताया कि मनीष प्रकाश के माध्यम से आशुतोष से इनका परिचय हुआ. मोटी रकम पर आशुतोष ने कमरा बुक किया था. सीबीआई ने केस लेने के बाद आशुतोष और मनीष प्रकाश को भी गिरफ्तार कर लिया है. 

चार मई की रात को यहां छात्रों को अलग-अलग गाड़ियों से पहुंचाया गया. जहां चिंटू कुमार उर्फ़ बलदेव कुमार, पिंटू कुमार और नितीश कुमार मौजूद थे. चिंटू के ही फोन पर सुबह के 9 बजे नीट पेपर का उत्तर आया. जो छात्रों को रटने के लिए दिया गया. छात्रों ने आनन-फानन में इसे याद किया और फिर इनको इनके सेंटरों पर छोड़ दिया गया. वहीं, छात्रों को दिया गया प्रश्न और उत्तर का प्रिंट आउट वापस ले लिया गया. इसे जलाने की जिम्मेदारी चिंटू, पिंटू और आशुतोष को दी गई थी. उन्होंने आग लगाई लेकिन यहां एक छोटी सी गलती इनसे हुई. यही गलती आगे चलकर इनके गले की फांस बनी और पेपर लीक का हज़ारीबाग कनेक्शन सामने आया. 

यह कागजात ठीक से जल नहीं पाए थे. सिकंदर और दूसरे लोगों से मिली जानकारी के आधार पर बिहार पुलिस जब जांच के लिए लर्न बॉयज स्कूल पहुंची तो उसे ये अधजले कागजात मिले. इन पर पेपर का बुकलेट नंबर मौजूद था. यह नंबर, 6136488 था. पुलिस को जो अधजला हिस्सा मिला, उसमें 73 से ज़्यादा प्रश्न पढ़े जा सकते थे. न्यूज़लॉन्ड्री के पास इससे जुड़े दस्तावेज मौजूद हैं.

यहीं से आर्थिक अपराध इकाई को इस पेपर लीक के हज़ारीबाग कनेक्शन का पता चला. दरअसल, बुकलेट नंबर 6136488 का पेपर हज़ारीबाग के ओएसिस स्कूल में एक छात्रा को अलॉट हुआ था. सीबीआई ने इस स्कूल के प्रिंसिपल, वॉइस प्रिंसिपल और इससे जुड़े प्रभात खबर अख़बार में विज्ञापन का काम देखने के वाले जमालुद्दीन को गिरफ्तार किया है. प्रभात खबर के ब्यूरो चीफ (जिन्हें अब हटा दिया गया है) सलाउद्दीन से भी सीबीआई पूछताछ कर चुकी हैं. सलाउद्दीन और जमालुद्दीन दोनों सगे भाई हैं. 

पटना से नालंदा

आर्थिक अपराध इकाई में कार्यरत रहे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बताते हैं, “बिहार में जब भी कोई पेपर लीक होता तो जांच टीम नालंदा में सक्रिय होती है. अंत में वहीं से इसका कनेक्शन निकलता है. पेपर लीक के मामले में नालंदा गढ़ बन चुका है.” 

वो हंसते हुए एक बात कहते हैं, ‘‘जैसे ईडब्लूएस, ओबीसी और एससी कोटा होता है, वैसे ही बिहार में ‘रंजीत डॉन कोटा’ चलता था और अब ‘संजीव मुखिया कोटा’ चलता है.’’ ये अधिकारी खुद भी इसी तरह के ‘कोटा’ वाले डॉक्टर से परिचित हैं, जिसे ठीक से टीका तक लगाना नहीं आता है.”

मालूम हो कि ​​डॉ. कुमार सुमन सिंह, जो आगे चलकर रंजीत डॉन के नाम से चर्चित हुए. 2000 के दशक में उनका नाम कई पेपर लीक में आया. कैट स्कैम में इसकी खूब चर्चा हुई थी. 

नालंदा के रहने वाले संदीप प्रसाद, रंजीत डॉन के पास के ही गांव के रहने वाले हैं. वह कहते हैं, “रंजीत ने इस पेशे से खूब पैसे बनाए. फिर राजनीति में आए. कभी निर्दलीय चुनाव लड़ा तो कभी लोक जनशक्ति पार्टी से. रंजीत हरेक पार्टी से जुड़े रहे. आगे चलकर वो इस पेशे से अलग हो गए और बिजनेस करने लगे हैं. रंजीत डॉन का ही चेला संजीव मुखिया है.’’ 

संजीव मुखिया का नाम अब तक कई पेपर लीक में आ चुका है. उसका बेटा शिव अभी पेपर लीक मामले में ही जेल में हैं. नीट मामले में भी मुखिया पर प्राथमिकी दर्ज हैं. इस मामले में उसका नाम सिकंदर के बयान के आधार पर दर्ज हुआ है. हालांकि, अभी भी वो जांच टीम के पकड़ से दूर हैं.

संजीव मुखिया भी नालंदा का ही रहने वाला है. यहीं के नालंदा उद्यान महाविद्यालय में टेक्निकल असिस्टेंट के रूप में 2012 से काम कर रहा है. उसे 65 हज़ार प्रति महीना का मेहनताना मिलता है. 

इस महाविद्यालय के बड़े बाबू प्रणय कुमार पंकज बताते हैं, ‘‘हमें पता ही नहीं था कि वो इस तरह के कामों में लिप्त है. एक ही गाड़ी से वो आते थे. अपने काम से मतलब रखते थे. अब पता चल रहा कि उनके पास बहुत ज़्यादा पैसा था. लेकिन कभी उन्होंने किसी को एक रुपये की मिठाई तक नहीं खिलाई है.’’

वहीं, कॉलेज में काम करने वाले एक अन्य शख्स नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि संजीव मुखिया के बारे में सब लोग जानते हैं. आगे बताते हुए कहते हैं, “दो महीने पहले ही पेपर लीक में उनका बेटा जेल गया है. वो यहां बुद्धा ढाबे पर बैठते थे. उसका मालिक भी जेल गया है. उसे ढूंढते हुए ईओयू (आर्थिक अपराध इकाई) की टीम कॉलेज भी आई थी. तो किसी को उसकी करतूत के बारे में पता न हो, यह कैसे मुमकिन है?”

इसके बाद वह कहते हैं, “यहां काम करते हुए पेपर लीक के मामले में 2016 में संजीव जेल गया था. ऐसे में किसी को इसकी जानकारी न हो यह अचरज की ही बात हो सकती है. यहां सब एक दूसरे से जुड़े हैं तो कोई बोलता नहीं है. ऊपर से संजीव काफी पावरफुल भी है. सीएम नीतीश कुमार के पास आना-जाना रहा है. राजनीतिक व्यक्ति है. सीएम नीतीश कुमार के साथ उसकी पत्नी की तस्वीरें हैं. ऐसे में डर से भी लोग बोलने से बचते हैं.’’

संजीव मुखिया का नाम गिरफ्तारी के तुरंत बाद ही पांच मई को सिकंदर ने अपने बयान में बताया. पुलिस ने एफआईआर में उसे आरोपी बनाया. हालांकि, संजीव 4 मई से ही कॉलेज से गायब हो गया था.

प्रणय बताते हैं कि 14 मई को कॉलेज प्रशासन के द्वारा बिना जानकारी ड्यूटी से अनुपस्थित होने को लेकर संजीव को पत्र लिखा गया. जिसका जवाब उन्होंने 21 मई को दिया. अपने जवाब में संजीव ने बीमार होने का जिक्र किया और साथ में पीएमसीएच, पटना का मेडिकल सर्टिफिकेट भी लगाया. उसने एक महीने की छुट्टी मांगी जो 6 जून को पूरी हो गई लेकिन अब तक संजीव नौकरी पर वापस नहीं लौटा है.  

न्यूज़लॉन्ड्री के पास पीएमसीएच के मेडिसिन विभाग के डॉक्टर (प्रो) आर डी सिंह द्वारा बनाया गया मेडिकल सर्टिफिकेट मौजूद है. जिसके मुताबिक, संजीव छह मई को यहां दिखाने के लिए आए थे. उसके बाद 21 मई को दोबारा आए. 

हमने पीएमसीएच से जानकारी मांगी कि क्या सच में संजीव अस्पताल में भर्ती हुए थे तो जवाब देने से इनकार कर दिया गया. यहां के उपाधीक्षक ने कहा, ‘‘सीबीआई हमसे अगर जानकारी मांगेगी तो हम देंगे.’’

नालंदा के बालवा में संजीव का घर हैं. इनके घर तक जाने का रास्ता बेहद बदहाल है. उबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए हम इनके गांव की तरफ बढ़ते हैं. एक पतली सी गली में इनका घर है. जहां हमारी मुलाकात संजीव के छोटे भाई और मां से हुई.  

मीडिया से होने की जानकारी मिलते हुए उनके भाई वहां से निकल गए. संजीव की मां पूर्व में सरकारी नर्स रही हैं. नैतिकता की कहानी सुनाते हुए अपने बेटे को पाक साफ बताती हैं. वो कहती हैं, “आप मीडिया वाले पता नहीं क्या-क्या कहानी दिखा रहे हो. उसके पास ये धन है, वो धन है. हमारा घर देख लो. आपको लगता है कि यह करोड़ों के मालिक का यह घर है?’’ 

इसके बाद वह नाराज़ होकर हमें अपने घर से बाहर कर देती हैं.

गांव के ही चौराहे पर हमारी मुलाकात एक 35 वर्षीय शख्स से हुई. जो जमीन का कारोबार करता है. संजीव की कई जमीन बिचवाने और खरीदवाने में भूमिका निभा चुका है. जानकर होने के कारण वो अपना नाम नहीं छपवाना चाहता है. 

न्यूज़लॉन्ड्री को इस शख्स ने बताया कि यहां का हर कोई संजीव के कारनामे से परिचित है. वो बताते हैं, ‘‘पहले ये ग्रुप डी में नौकरी लगाने का काम करते थे. फिर ये दरोगा बहाली, शिक्षक भर्ती, बीपीएससी समेत कई पेपर आउट कराने लगे. यहीं (नगरनौसा) चौराहे से दो बस में भरकर लड़कों को झारखंड ले जाया गया था. वहां पेपर का उत्तर रटवाया गया. यह सब तो सब हमारी आंखों के सामने हुआ.’’

यह शख्स आगे बताते हैं, ‘‘संजीव मुखिया को यहां लूटन मुखिया के नाम से बुलाया जाता है. साल 2016 में इनकी पत्नी ममता देवी यहां से चुनाव लड़ी थी. चुनाव में खूब पैसे लुटाये और जीत दर्ज की. उसके बाद ममता जदयू में शामिल हो गईं. वो विधानसभा चुनाव की तैयारी करने लगीं लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू से टिकट नहीं मिला तो लोक जनशक्ति पार्टी से मैदान में उतर गईं. हालांकि, चुनाव हार गईं. 2021 में जब मुखिया का चुनाव हुआ तो संजीव ने अपने चेले जितेंद्र की पत्नी को चुनाव लड़ाया. वो जीते. अब वो खुद 2025 विधानसभा की तैयारी कर रहा था.’’ 

संजीव मुखिया की मां कहती हैं कि मेरे बेटे को फंसाया जा रहा है ताकि वो 2025 का चुनाव नहीं लड़ पाए. वो सरकारी मुलाजिम है और उसी की कमाई से घर चलता है.

नालंदा से हज़ारीबाग 

संजीव मुखिया के गांव में मिले शख्स ने हमें बस द्वारा छात्रों को हज़ारीबाग भेजने की घटना का जिक्र किया था. दरअसल, यह बीते मार्च महीने की बात है. 15 मार्च को बिहार में शिक्षक भर्ती का पेपर होना था. उससे पहले हजारीबाग में तक़रीबन 250 छात्रों को बैक्वेंट हॉल और होटल में ठहराया गया और पेपर रटाया गया. इसी मामले में संजीव का बेटा डॉक्टर शिव अभी जेल में है. 

संजीव के रसूख और राजनीतिक संरक्षण का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस शिक्षक भर्ती पेपर लीक में आरोपी होने के बाद उन्हें पुलिस तलाशती रही, इस बीच वो कॉलेज में आते रहे, अपना काम करते रहे और सैलरी लेते रहे.  

कॉलेज के बड़े बाबू जो पहले यह कह रह थे कि उनको पेपर लीक में संजीव की भूमिका के बारे में जानकारी नहीं है, वो आगे कहते हैं, ‘‘अप्रैल महीने में ईओयू की टीम उनको ढूंढते हुए आई थी लेकिन वो कॉलेज में मौजूद नहीं थे. तब छुट्टी पर थे. उसके बाद कॉलेज आए अपना काम किया और अप्रैल महीने का उन्होंने वेतन भी लिया है.’’

नीतीश कुमार के घोर आलोचक और लोकहित में समय से पहले रिटायर कर दिए गए आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास बताते हैं, ‘‘मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात अधिकारियों ने जून के आखिरी सप्ताह में मुझे फोन कर बताया कि जिस संजीव मुखिया को बिहार पुलिस ढूंढ रही है, वो मुख्यमंत्री आवास में बैठा हुआ है. इस पर मैंने अपने यू-ट्यूब पर वीडियो बनाकर डाला हुआ है. अगर मैं गलत होता तो अब तक समन भेज ही दिए गए होते.’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस आरोप को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दफ्तर में संपर्क किया लेकिन हमें इसका जवाब नहीं आया. अगर जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा. 

हज़ारीबाग में लड़कों को ले जाकर पेपर रटाने का काम संजीव मुखिया के गैंग ने ही किया था. जब यह युवा पेपर देने के लिए बिहार लौट रहे थे तब हज़ारीबाग पुलिस ने बस को पकड़ा. तब किसी भी छात्र के पास फोन नहीं था. पेपर लीक के कारण यह एग्जाम भी रद्द हो गया था. संजीव मुखिया का बेटा, उसके करीबी और बुद्धा रेस्टोरेंट के मालिक अवधेश कुमार समेत कई लोग गिरफ्तार हुए. हालांकि, मुखिया गिरफ्तार नहीं हुआ.

इस मामले में हज़ारीबाग पुलिस ने तब प्रभात खबर के फोटोग्राफर दिलीप वर्मा को डिटेन कर घंटों तक पूछताछ की थी. तक़रीबन 15 सालों से प्रभात खबर से जुड़े वर्मा, इसके ब्यूरो चीफ सलाउद्दीन के बेहद करीबी हैं. 

नीट पेपर लीक मामले में सलाउद्दीन के छोटे भाई जलालुद्दीन को सीबीआई गिरफ्तार कर चुकी हैं. सलाउद्दीन से भी घंटों पूछताछ हुई. जिसके बाद से उन्हें प्रभात खबर के ब्यूरो पद से हटा दिया गया है. वो अभी किसी से मिल नहीं रहे हैं. हम उनसे मिलने 30 जून को उनके आज़ाद रोड स्थित आवास पर गए. कई बार फोन किया लेकिन दरवाजा नहीं खुला. उनके भांजे ने गेट के अंदर से बताया कि सलाउद्दीन अभी हजारीबाग में नहीं हैं, वो रांची गए हुए हैं.

हजारी बाग स्थित प्रभात ख़बर का दफ्तर.

30 जून को जब हम सलाउद्दीन के घर के बाहर बैठे हुए इंतज़ार कर रहे थे तो बड़ी सी टोपी पहने दिलीप वर्मा अपनी मोटर साईकिल से सलाउद्दीन के घर पहुंचे. जो गेट हमारे लिए बंद था वो उनके लिए खुल गया. वह तक़रीबन 10 मिनट बाद बाहर आए. उनके हाथ में दस के करीब पेपर थे. हमें यहां देखकर थोड़ा अचरज हुआ क्योंकि एक दिन पहले ही प्रभात खबर के दफ्तर में हम उनसे मिल चुके थे. हमारे पूछने पर वो कहते हैं कि दफ्तर का अख़बार रोज यहीं आता है. जिसे लेकर मैं ही रोजाना दफ्तर जाता हूं.  आज भी उसी के लिए आया था.

यह कहकर वर्मा चले जाते हैं तो थोड़ी देर बाद प्रभात खबर का एक और कर्मचारी यहां पहुंचता है. वह जब बाहर निकला तो हमने उससे भी आने का कारण पूछा. उसने कहा कि वह रोजाना अख़बार लाने जाता है. उसकी यही ड्यूटी है.

स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि मार्च में जब पेपर लीक के मामले में वर्मा से पूछताछ हुई तब सलाउद्दीन और जमालुद्दीन का भी नाम चर्चा में आया था. लेकिन तब कोई पुलिसिया कार्रवाई नहीं हुई थी. हालांकि, वर्मा इस पूछताछ को गलत बताते हैं. वो कहते हैं कि मैं फोटो खींचते हुए अंदर घुस गया था तो उसी को लेकर पूछताछ हुई थी.

हजारीबाग स्थित सलाऊद्दीन का घर.

नीट पेपर लीक मामले की जांच के दौरान जब ईओयू को बुकलेट नंबर 6136488 मिला और जांच में पाया कि यह हज़ारीबाग के ओवैस स्कूल में जारी हुआ था. तो यहां के प्रिंसिपल और एनटीए के सिटी कोडिनेटर डॉ. एहसान उल हक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. साथ ही कई मीडिया संस्थानों को इंटरव्यू दिया. यह सब जलालुद्दीन के द्वारा प्रायोजित कराया गया था.

जलालुद्दीन, प्रभात खबर अख़बार में विज्ञापन का काम देखते थे. जिस सिलसिले में शहर के तमाम कॉलेज और कोचिंग संस्थाओं के मालिकों से उनकी अच्छी बनती थी. यहां के एक नेशनल अख़बार के संपादक बताते हैं, ‘‘जलालुद्दीन, भले ही विज्ञापन विभाग का काम देखता था लेकिन असली ब्यूरो चीफ की भूमिका में वही था. क्या खबर जानी है क्या नहीं वही तय करता था. सलाउद्दीन प्रभात खबर से तक़रीबन 30 साल से जुड़े हुए हैं. रिपोर्टर से ब्यूरो चीफ बने हैं. शहर के तमाम बड़े लोगों के साथ उठना-बैठना था. लेकिन इस तरह (पेपर लीक) के किसी काम संलिप्तता आएगी इसका अंदाजा किसी को नहीं था.’’

जलालुद्दीन को गिरफ्तार करने के पीछे की वजह घटना वाले दिन और उसके बाद प्रिंसिपल हक़ से हुई लगातार बातचीत है. वो लगातार हक़ के संपर्क में था.

पेपर हज़ारीबाग में कहां से लीक हुआ इसको लेकर अभी भी सवाल बना हुआ है. ब्लूडार्ट कोरियर सर्विस से रांची से पेपर तीन मई को भेजा गया था. ऐसा बताया जा रहा है कि ई-रिक्शा चालक मनोज कुमार के द्वारा यह पेपर हज़ारीबाग के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की मुख्य ब्रांच में पहुंचाया गया. 

वहीं, न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के मुताबिक, पेपर पहले ओएसिस स्कूल में गया था. इसकी सत्ययता की जांच के लिए हम मनोज से मिलने पहुंचे. जिनसे सीबीआई पूछताछ कर चुकी हैं. वो हमें नहीं मिले. उनके बड़े भाई बब्बन कुमार न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘उसे डब्बा (पेपर) पहुंचाने के लिए बोला गया वो पहुंचा दिया. इतना ही ज़रूरी सामान था तो सरकारी गाड़ी से भेजते. ई रिक्शा से क्यों भेजा?’’

हजारीबाग स्थित ओएसिस स्कूल.

यहां एक तथ्य और भी सामने आया. एनटीए की तरफ से हजारीबाग के दो बैंको में पेपर भेजा गया था. एसबीआई के अलावा केनरा बैंक में भी. केनरा बैंक में भी ई-रिक्शा से ही पेपर आया था. यहां के मैंनेजर आनंद प्रभात बताते हैं कि पहले भी पेपर ई-रिक्शा या ऑटो पर ही आता रहा है. यह कोई नई बात नहीं है.

ऐसा इसीलिए किया जाता है कि पेपर माफिया को पता न चले कि कौन से बैंक का पेपर एग्जाम के दिन इस्तेमाल होगा. केनरा बैंक के मैनेजर आनंद प्रभात ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘इस बार ही नहीं हर बार दो पेपर आते हैं. अंदर दोनों में एक जैसे ही सवाल होते हैं या अलग-अलग यह नहीं मुझे नहीं पता. पिछले दो साल से एसबीआई का पेपर ही इस्तेमाल हो रहा है. इससे पहले केनरा बैंक का होता था.’’

अगर स्कूल से बाहर पेपर लीक हुआ तो सवाल उठता है कि पेपर लीक करने वाले को कैसे पता था कि एसबीआई का ही पेपर एग्जाम वाले दिन इस्तेमाल होगा? 

क्या कॉर्डिंनेटर को इसकी जानकारी होती है? इस सवाल के जवाब में आनंद प्रभात कहते हैं, “चार मई को डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर डॉ. एहसान उल हक का फोन आया कि कल आप तैयार रहना हम सात बजे तक पेपर लेने आएंगे. मैंने सुबह-सुबह अपने सहकारियों को बैंक भेज दिया था. हालांकि, उन्होंने फोन कर सूचित किया कि पेपर एसबीआई से लिया गया है. कॉर्डिनेटर को कब एनटीए की तरफ से इसकी जानकारी दी जाती है. ये मुझे नहीं पता है.’’

ईओयू की टीम जब इस मामले की जांच करते हुए हजारीबाग पहुंची तो उसने बताया कि सीलबंद पेपर को बेहद बारीकी से काटा गया है. उसके बाद बुकलेट नंबर 6136488 निकाला गया. वास्तव में पेपर के कवर को नीचे वाले हिस्से से बेहद करीने से काटा गया था. फिर से गोद लगाकर चिपका दिया गया था. सीबीआई जांच के दौरान तकरीबन तीन घंटे तो गोंद की तलाश की थी लेकिन उसे वह नहीं मिला है. 

सीबीआई की गिरफ्त में जाने से पहले डॉ. एहसान उल हक ने बताया था कि ईओयू के अधिकारियों के कहने के बाद जब हमने उस पेपर के कवर को देखा तब हमें भी पता चला की कुछ गड़बड़ तो हुई है. अब कहां से गड़बड़ हुई है यह तो जांच से ही पता चलेगा. 

एसबीआई हजारीबाग के तत्कालीन मैनेजर और डिप्टी मैनेजर का जून में ही तबादला हो चुका है. वर्तमान में यहां के मैनेजर बीरेंद्र कुमार हैं. हमने उनसे इस बारे में जानकारी लेनी चाही. उन्होंने यह कहते मना कर दिया कि मीडिया से बात करने पर रोक है और इसके लिए एनटीए या फिर पटना ऑफिस से बात करें. 

डॉ. एहसान उल हक बार-बार मीडिया से बात करते हुए प्रोसेस की बात करते हैं. उनके स्कूल में नीट का पेपर आयोजित हुआ था. स्कूल के वॉइस प्रिंसिपल इम्तियाज आलम सेंटर कोर्डिनेटर थे. जिसमें ऑब्ज़र्वर का जिक्र बार-बार आता है. आब्जर्वर एनटीए कई बार खुद ही तय करता है और कभी-कभी कोर्डिनेटर से सलाह भी लेता है.

ओएसिस स्कूल के ऑब्जर्वर अन्नदा कॉलेज से जुड़े एक कॉमर्स के प्रोफेसर डॉ. विश्व रंजन थे. जब हम उनसे बात करने अन्नदा कॉलेज पहुंचे तो उसके प्रमुख नीलमणि मुखर्जी ने बताया कि उनको मीडिया से बात करने के लिए एनटीए की तरफ से माना किया गया है. ऐसे में आपको जो जानना है मुझसे बात करें. 

मुखर्जी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘अगर आपने महाभारत पढ़ी है तो उसमें जो बर्बरीक की भूमिका थी. वही ऑब्जर्वर की होती है. पेपर वाले दिन ऑब्जर्वर बैंक जाते हैं, वहां से पेपर उठाकर लाते हैं. वहां से लेकर आने के बाद स्कूल में जो लॉकअप बना होता है, उसमें रख दिया जाता है. जिसकी चाभी ऑब्जर्वर के पास होती है. एनटीए द्वारा तय समय पर ताला खुलता है और सेंटर कोर्डिनेटर, दो परीक्षार्थी के सामने पेपर निकाला जाता है. जिसकी वीडियो रिकॉर्डिंग होती है. उसके बाद पेपर छात्रों को दे दिया जाता है.”

वह आगे कहते हैं, “मेरे साथी ने मुझे तब बताया था कि पेपर की पेटी पर जो ऑटोमेटिक ताला लगा हुआ था वो ओएसिस स्कूल में नहीं खुला. इसकी सूचना सिटी कोर्डिनेटर को दी गई. उन्होंने एनटीए से संपर्क किया और वहां से मौखिक आधार पर आदेश मिलने के बाद उसे तोड़ दिया गया.’’

क्या किसी तरह की छेड़खानी का जिक्र आपके साथी ने किया था. इसका जवाब मुखर्जी नहीं देते हैं. कहते हैं, ‘‘एनटीए और सीबीआई इसका जवाब देगी.’’ 

गौरतलब है कि हज़ारीबाग के कई पेपर सेंटर पर ऑटोमेटिक ताला (डिजिटल लॉक) समय पर नहीं खुला. इस लॉक का समय तय होता है. यह तय समय पर अपने आप ही खुल जाता है.

नीट पेपर में डीएवी स्कूल में आब्जर्वर की भूमिका निभाने वाले प्रोफेसर ब्रह्मदेव त्रिवदी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘मैं चार बार से आब्जर्वर हूं. मैं दावे से कह सकता हूं कि आब्जर्वर की देख रेख में पेपर आने के बाद लीक होना असंभव है. जो पेपर सात लेयर वाले बक्से में बंद होता है. आरी से हमें काटना होता है. इसबार तो डिजिटल लॉक था. बीते साल कार्ड मिला था. वह तय समय पर ही खुलता है. उसके अंदर पांच लेयर होते हैं. आब्जर्वर यह सब काम कैमरे की निगरानी में कराता है. सीसीटीवी की देख रेख में हो रहा होता है. उस वक़्त एनटीए भी पल-पल की जानकारी ले रहा होता है. कई बार तो परीक्षा निरीक्षक अगर आपस में बात कर रहे होते हैं तो इसको लेकर एनटीए की तरफ से आब्जर्वर को फोन आ जाता है.’’ 

पिछले तीन बार से एनटीए डिस्ट्रिक कोर्डिनेटर डॉ. एहसान उल हक को ही बना रहा है. इससे पहले डीएवी स्कूल के प्रिंसिपल  कोर्डिनेटर हुआ करते थे. इसके अलावा सीबीएसई द्वारा जो 10 और 12 वीं के पेपर आयोजित होते है उसका भी कोर्डिनेटर हक ही है.

हजारीबाग के एक बड़े स्कूल के प्रिंसिपल ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि हक़ का स्कूल कुछ खास नामचीन भी नहीं है. यहां सेंट जेवियर समेत कई बड़े स्कूल हैं. एनटीए का डिस्ट्रिक्ट कोर्डिनेटर तय करने का क्या पैमाना होता है और एक ही व्यक्ति को हर साल बनाने से क्या पेपर लीक गैंग की उन तक पहुंच हो जाने की संभावना ज़्यादा नहीं हो सकती है? क्या वजह रही कि डिजिटल लॉक काम नहीं किया? क्या इसकी तहकीकात को लेकर कोई टीम एनटीए ने बनाई है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं, जिसका जवाब एनटीए को देना है.

सिर्फ हज़ारीबाग ही नहीं बिहार में स्टेट कोर्डिनेटर पटना के डोनी पोलो पब्लिक स्कूल के एसएस सहाय को बनाया गया है. इनका बिहटा में बारहवीं तक का एक स्कूल है. वहीं, दानापुर के पास भी एक छोटा सा स्कूल है. इन दोनों स्कूल में खेलने का ग्राउंड तक नहीं है. वहीं, बेली रोड स्थित केंद्रीय विद्यालय के प्रिंसिपल पीके सिंह और रेडिएंट इंटरनेशनल स्कूल की प्रिंसिपल मनीषा सिन्हा को सब कोर्डिनेटर बनाया गया है. 

ईओयू के एक अधिकारी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘अपनी जांच के दौरान हमने स्टेट कोर्डिनेटर से पूछताछ नहीं की लेकिन जब मेरी जानकारी में  डोनी पोलो पब्लिक स्कूल का नाम आया तो मुझे गूगल करना पड़ा. पटना में कई नामचीन स्कूल हैं. इसका नाम तो कभी सुने ही नहीं हैं. मुझे एक बात समझ में नहीं आई कि जब केंद्रीय विद्यालय के प्रिंसिपल मौजूद ही थे तो एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल को स्टेट कोर्डिनेटर की जिम्मेदारी क्यों दी गई.’’

पटना स्थित डोनी पोलो पब्लिक स्कूल.

हमने एसएस सहाय से बात करने की कोशिश की. कई दफा कॉल किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.  उसके बाद हम उनके बिहटा स्थित स्कूल गए. जहां हमें जानकारी दी गई कि वो दानापुर स्थित स्कूल में हैं. जब हम दानापुर वाले डोनी पोलो पब्लिक स्कूल में पहुंचें तो वहां बताया गया कि वो बिहटा में हैं. इस स्कूल के मैनजेर प्रतीक कुमार बेहद तल्ख़ लहजे में हमें स्कूल से बाहर भेज दिया. और बताया कि मीडिया से वो बात नही करना चाहते हैं. 

ऐसे ही  रेडिएंट इंटरनेशनल स्कूल की प्रिंसिपल मनीषा सिन्हा ने भी नीट पर किसी भी तरह से बात करने से इनकार कर दिया. उनके पीए ने हमें बताया कि मैडम बाकी मुद्दों पर बात करने को तैयार है लेकिन नीट पर नहीं.

नीट को लेकर जहां इस बार हंगामा जारी है. वहीं बिहार के पीएमसीएच में पीजी की पढ़ाई करने वाले अभिनव आनंद (बदला नाम) बताते हैं, “25 प्रतिशत सीटें हर साल माफियाओं के लिए ‘रिजर्व’ होती हैं. यह सालों से चलता आ रहा है. इस बार यह मामला खुल गया तो सब अचरज में हैं. प्राइवेट में करोड़ों रुपये फीस देने से बेहतर लोग पहले ही 40-50 लाख रुपये पेपर खरीदने में खर्च कर देते हैं. आप नेताओं के बच्चों का देखिए उसमें कितनों ने डॉक्टर्स की पढ़ाई की और कितने प्रैक्टिस कर रहे हैं. उसी से आपको अंदाजा हो जाएगा. इस पेपर माफिया का और उनकी गिरोह का.”

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि इस बात में कोई शक नहीं है कि पेपर लीक हुआ है, लेकिन किस स्तर पर और कहां-कहां लीक हुआ है यह जांच का विषय है.

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