मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में तथाकथित “तेंदुआ” ही एकलौता अप्रत्याशित मेहमान नहीं था.
तू कौन? मैं खामखां. तो मैं खामखां बीती नौ जून को देश के सामने दरपेश एक ऐतिहासिक मौके पर मौजूद मेहमानों की लिस्ट देखकर कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पा रही. बस खामखां, यूं ही.
समारोह का ड्रेस कोड फूलों के प्रिंट वाला था जो दिल्ली की गर्मियों को देखते हुए बहुत उपयुक्त था. निमंत्रण-पत्र भी अंग्रेजी की कर्सिव शैली में लिखे गए थे. मेहमानों की सूची 9,000 नामों के बोझ से दबी जा रही थी. इसमें अनेक राष्ट्राध्यक्ष, फिल्मी सितारे, खेल जगत की हस्तियां और कॉरपोरेट के बड़े चेहरे शामिल थे. समारोह के बाद एक शानदार भोज का आयोजन भी था, जिसका मेनू शाकाहारी था.
प्रधानमंत्री मोदी की तीसरी पारी के शपथ ग्रहण समारोह के लिए सारी तैयारियां अपने व्यवस्थित क्रम में थीं. लेकिन, समारोह में अचानक से एक रहस्यमयी जानवर के दिख जाने के बाद अटकलबाजियों की बाढ़ आ गई. कुछ लोगोंं ने तो उसके तेंदुआ होने का शिगूफ़ा छोड़ दिया था लेकिन बाद में वह जानवर एक बिल्ली निकली. लेकिन वहां बिल्ली ही एकलौती अप्रत्याशित मेहमान नहीं थी.
उस शाम राष्ट्रपति भवन में हल्दीराम भुजिया के फैन और नफरती भाषण के पारंगत सुरेश चह्वाणके थे. साथ ही खुद को बुद्धिजीवियों की कांटछांट करने वाले अभिजीत अय्यर मित्रा भी थे. पर उनमें पपराज्जियों जैसी अभिजात्य शालीनता दूर-दूर तक नहीं दिखी. वही अय्यर मित्रा जिनकी दिली तमन्ना थी कि एक बार वो ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबेर की मां के सामने अंग प्रदर्शन करें और उनके चेहरे पर थूकें. जी हां, उन्होंने यही इच्छा जताई थी.
समारोह में गोदी मीडिया के सम्मानित सदस्यों के अलावा अमन चोपड़ा जैसे नफरते के मिनिएचर वर्ज़न भी मौजूद थे. वहीं चोपड़ा जिन पर नफरत की दुकान लगाने के लिए कई बार कार्रवाईयां हो चुकी हैं.
चूंकि, वे सभी भारत के एक 'ऐतिहासिक पल' का गवाह बनने के लिए आमंत्रित थे, इससे पता चलता है कि जितना हम उनके बारे में जानते हैं, दरअसल उनकी प्रतिभा उससे कहीं ज्यादा गहरी और छिपी हुई है. इसीलिए हमने यह तय किया कि यहां तक आने के लिए उन्होंने अबतक जो-जो किया है उस पर एक सरसरी निगाह डाल ली जाए.
नटखट नागिन (नूपुर शर्मा), ऑपइंडिया
इसमें अचरज़ की कोई बात नहीं है कि हिंदुत्ववादी ब्लॉग ऑपइंडिया की मुख्य-संपादक को भी न्यौता मिला. आखिरकार इसकी मालिकाना कंपनी का आरएसएस और भाजपा से नाता जो है.
शर्मा की तमाम काबिलियतों में हर दूसरे ट्वीट में “जिहाद” शब्द का होना और नफरत व भ्रामक सूचनाएं फैलाने के चलते एफआईआर दर्ज़ होना भी शुमार है. जैसे कि तमिलनाडु में उन पर “दो समुदायों के बीच दुश्मनी फैलाने” का मुकदमा दर्ज़ है क्योंकि ऑपइंडिया ने यह ख़बर फैलाई थी कि राज्य में हिन्दी-भाषी प्रवासी, खास कर बिहार के, मजदूरों के साथ हिंसा और हत्याएं हो रही थी.
ऐसा नहीं है कि उनके काम की अनदेखी हुई है. उनको बराबर पहचान मिली है. 2020 में ऑपइंडिया से दो दर्जन कंपनियों ने “भ्रामक सामग्री” और “नफरती विचारों” का हवाला देकर विज्ञापन वापस ले लिए थे. इससे भी बड़ी पहचान ये है कि स्वयं श्रद्धेय प्रधानमंत्री उनको एक्स पर फॉलो करते हैं.
शर्मा पर हालिया एफआईआर पिछले साल की गई थी. यह एफआईआर सालों से समुदायों के बीच नफरत फैलाने और सार्वजनिक उपद्रव करने वाली बयानबाजी में उनकी भूमिका के बदले एक छोटा-सा सम्मान है.
ज़हर खुरान (सुरेश चह्वाणके), सुदर्शन न्यूज़ प्रमुख
तलवारों से लैस और नफरत की भाषा के लिए एफआईआरों की भरमार के साथ सुदर्शन न्यूज़ के मुखिया जिहाद और कॉमन सेंस के खिलाफ अपनी जंग के लिए जाने जाते हैं. भुजिया नमकीन हो या सिविल सेवा, अपने आप को हिन्दुत्व का आखिरी रक्षक बताने वाले यह महोदय पाताल तक जाकर कुछ भी अंट-शंट खोज लाते हैं.
कई बार तो ये आपे से बाहर भी चले जाते हैं. चाहे मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का आह्वान हो या हिन्दू राष्ट्र के लिए किसी की जान लेने की शपथ हो. खास बात है कि अपनी इस लड़ाई में चह्वाणके हमेशा खुलकर सामने आते आते हैं, कोई लुका-छिपी नहीं.
अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान पाने के सालों बाद, खुद को खोजी पत्रकार कहने वाले चह्वाणके के दर्शकों को तब बेहद निराशा हुई जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को यह बताया कि यूपीएससी जिहाद पर आधारित उनका शो तथ्य-आधारित पत्रकारिता थी पर उसके गलत होने की संभावना है.
शपथ ग्रहण समारोह में उनकी उपस्थिति उनके इन्हीं योगदानों का पुरस्कार था.
अंतरराष्ट्रीय इंटेलेक्चुअल (मिस्टर सिन्हा)
दक्षिणपंथियों के प्रिय इस ट्विटर अकाउंट की तारीफ में कसीदे पढ़े जा सकते हैं. एक मृत फिलिस्तिनी बच्चे को प्लास्टिक की गुड़िया कहने से लेकर एक मृत महिला के मामले में फर्जी ख़बर फैलाने के लिए तमिलनाडु पुलिस द्वारा नसीहत पाने वाले मिस्टर सिन्हा के सैकड़ों इस्लामोफोबिक ट्वीट इनकी प्रतिभा का चीख-चीख कर प्रदर्शन करते हैं. और प्रधानमंत्री खुद इनको एक्स पर फॉलो करते हैं. तो सोने पर सुहागा.
रोशन सिन्हा को उस वक्त बहुत वाहवाही मिली थी जब एक “ट्वीट” की बदौलत उन्होंने मालदीव के तीन मंत्रियों का खुलासा कर दिया था और भारत-मालदीव के बीच कूटनीतिक विवाद का नाला खोल दिया था.
हाल ही में, उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेता इमरान मसूद को बड़ी संख्या में वोट देने वाले हिंदुओं पर निशाना साधते हुए कहा, “इस्लामिस्ट अगर घर में घुसकर उन हिंदुओं की बहनों को उठा ले जाएं तो भी हिंदुओं को आपत्ति नहीं होगी क्योंकि मोदी को सबक सिखाना जरूरी है.”
ऐसा भी नहीं है कि उन्हें ढंग से शब्दों का इस्तेमाल करना नहीं आता. नमूना देखिए: “प्रिय मोदीजी, हिंदू श्रद्धालुओं पर हमला करके पाकिस्तान ने आपको चुनौती दी है. इसे हमेशा के लिए खत्म करने का यही आखिरी मौका है. मुझे यकीन है कि आपके पास कोई न कोई योजना जरूर होगी.”
तो जब चाहे सभ्य और जब चाहे असभ्य बनने की इनकी प्रतिभा एक अदद निमंत्रण का जुगाड़ तो कर ही सकती है. ये मेहनत करने से बाज नहीं आते हैं. शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भी इन्होंने सफाई कर्मियों के पास खड़े इंडिया टुडे समूह के पत्रकार राजदीप सरदेसाई की एक तस्वीर को इस कैप्शन के साथ पोस्ट किया कि “सफाईकर्मी सही जगह पर था.”
आखिरकार मोदीजी भी तो समझते हैं कि हार्ड वर्क वालों में हार्वर्ड से ज्यादा क्षमता है.
गब्बर सिंह, पाला बदलकर बने हिन्दुत्ववादी
गब्बर सिंह उर्फ अभिषेक अस्थाना का एक्स अकाउंट और खराब टिप्पणियां एक दूसरे का पर्याय हैं. हाल ही में उनके पुराने ट्वीट सोशल मीडिया पर दोबारा दिखने लगे थे. उनमें से एक यह भी था, “1984, 1992 और 2002 के मुख्य सजिशकर्ता **** अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं. किस बात का शौर्य…”
उनके दूसरे पुराने ट्वीटों में भगवान राम के लिए अपशब्दों का प्रयोग और बीफ से उनके प्रेम का ज़िक्र है. एक अन्य ट्वीट में वे द्रौपदी और पांडवों को लेकर भी बेहद अभद्र भाषा का प्रयोग करते दिखे. उस ट्वीट की भाषा इतनी आपत्तिजनक है कि हम ट्वीट को यहां साझा नहीं कर सकते हैं.
वे उद्यमी बनकर “ज्यादा लोकतंत्रितक संवाद” के लिए एक अनाम एप के लिए निवेशकों को लुभाने वाले शार्क टैंक शो में भी गए. वहां उन्हें अशनीर ग्रोवर और विजय शेखर शर्मा से फंड भी मिला.
उन पैसों का कितना “ज्यादा लोकतांत्रिक संवाद” के लिए इस्तेमाल हुआ इसकी जानकारी तो हमें नहीं है. पर अब अस्थाना अभद्र लतीफे शेयर करना छोड़ चुके हैं. अब वे केवल “भारत विरोधियों” पर कटाक्ष करते हैं.
मीठा ज़हर (अभिजीत अय्यर मित्रा)
वे खुद को “बुद्धिजीवियों का ऑरी” घोषित करते हैं, पर पपराज्जी इससे असहमत हैं. एक तो ऑरी चर्चा में रहने के लिए फूहड़ हरकतें नहीं कर रहे हैं. इसके विपरीत, मित्रा ने एक बार ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर से कहा था कि अगर ज़ुबैर सहमत हों तो मित्रा उनके घर आकर उनकी मां के सामने अपने अंग विशेष का प्रदर्शन करेंगे, उनपर थूकेंगे, उनके लिविंग रूम में पेशाब करेंगे और उनसे पोर्क विंडालू की मांग करेंगे.
इसके अलावा उनकी टिप्पणियों का बुद्धिजीवियों से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है. कांग्रेस के घोषणापत्र को उन्होंने “आईएसआईएस का घोषणापत्र” बताया था. इसके अलावा उनकी राय में मुसलमान “एक निरंकुश बहुसंख्यक या बेहद अशांत अल्पसंख्यक हैं जो अपने लिए अलग नियम लागू करवाना चाहते हैं”.
लेकिन मोदी सरकार के पहले दशक में जब कई दूसरे बुद्धिजीवी डरे हुए थे तब ये डटकर खड़े रहे. शायद समारोह में आए इन जैसे लोगों में यही बेहतर बात थी.
मित्रा न्यूज़लॉन्ड्री के भी बड़े दीवाने हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री का अपमान करने के लिए इस संस्था की तुलना वेश्यालय से की, अभिनंदन सेखरी के बारे में कहा कि कहीं उन्हें एड्स तो नहीं, और तो और हमें “आईएसआईएस का मुखपत्र” भी कहा. कितनी गहरी बात कह डाली उन्होंने!
झूठ का सच, फैक्ट चेक (विजय पटेल)
पटेल ओनली फैक्ट नाम की वेबसाइट चलाते हैं. इस वेबसाइट पर वे वाम मीडिया संस्थाओं पर हमले करते हैं.
अपने कॉन्सपिरेसी थ्योरी में वे यह दावा करते है कि फैब इंडिया का सीआईए से संबंध हैं क्योंकि उन्होंने दिवाली के विज्ञापन के लिए उर्दू का इस्तेमाल किया. न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट पर भारत के खिलाफ़ दुष्प्रचार युद्ध में लगे होने का आरोप भी लगाते हैं. इसके अलावा यह भी कहते फिरते हैं कि मुसलमान "कट्टरपंथियों के स्लीपर सेल" हैं. उन्हें अपनी इन सोशल मीडिया पोस्टों के बारे में ही बोलने के लिए न्यूज़ चैनलों पर भी आमंत्रित किया जाता है.
पटेल खुद को खोजी पत्रकार कहते हैं, लेकिन उनके एक्सप्लेनर वीडियो और लंबे थ्रेड्स व्यंग्य सरीखे होते हैं. जैसे कि अप्रैल का यह थ्रेड, जिसमें उन्होंने ध्रुव राठी (इस सीजन के उनके पसंदीदा यूट्यूबर) के व्हाट्सएप ग्रुप की “लीक चैट” होने का दावा किया है, या फिजूल बतकही वाले इस थ्रेड में नेहरू-गांधी परिवार के मुस्लिम मूल के होने या नहीं होने की जांच की गई है. या एक एक्सेल शीट की बात की गई है जिसमें मशहूर हस्तियों के लिए “ऑल आइज़ ऑन राफेह से संबंधित पोस्ट की मूल्य सूची” का ज़िक्र है और इसके लिए उन्हें कथित तौर पर क्रिप्टोकरेंसी में भुगतान भी किया गया था.
पटेल जैसे मेहनती और समर्पित फैक्ट-चेकर की मौजूदगी में मोदी सरकार शायद अपनी फैक्ट-चेक इकाई का आकार छोटा कर सकती है, इससे करदाताओं का पैसा भी बचेगा.
लीगल ल्युमिनरी (जे साई दीपक)
जे साई दीपक द्वारा आमंत्रण पत्र की तस्वीरों के ट्वीट के नीचे जवाब में किसी ने लिखा है, “बधाई हो. आप इसके हकदार हैं.” हालांकि, सिर्फ इतने से यह साफ नहीं हो पाता कि एक्स उपयोगकर्ता उन्हें क्यों निमंत्रण का हकदार मानते हैं? अदालत में दीपक के काम की वजह से, उनकी छपी हुई किताबों की वजह से या फिर हिन्दुत्व की लीक पर चलने के लिए. आखिर इसके लिए ही तो वे लोकप्रिय हैं.
दीपक की एक सूची में रोमिला थापर, इरफान हबीब और वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त जैसे लोगों को जगह मिली है. पर ये सूची उन लोगों की है जिन्हें “भारत छोड़ देना चाहिए और कभी वापस नहीं लौटना चाहिए”. वे “जाति को एक पश्चिमी अवधारणा” मानने वालों में अग्रणी हैं. साथ ही उनका यह दावा भी है कि अनुसूचित जाति-जनजाति उत्पीड़न अधिनियम से “उल्टा जातिवाद” फैल रहा था.
राष्ट्रपति भवन में सेल्फ़ी लेते हुए वकील साहब इस पर विचार कर रहे थे कि मोदी के नए कार्यकाल का हिन्दुत्व के लिए क्या मायने है. “मुझे उम्मीद है कि हिन्दुत्व के लिए कुछ काम कर पाने के आड़े गठबंधन धर्म न आए.”
बेसुरे तार (स्ट्रिंग रिवील्स)
स्ट्रिंग रिवील्स के संचालक विनोद कुमार हैं. कम से कम तब तक तो थे ही जब यूट्यूब के कम्यूनिटी गाइडलाइन्स का बार-बार उल्लंघन करने की वजह से उनका चैनल बंद कर दिया गया था.
उसके पहले, चैनल तथाकथित वामपंथी पत्रकारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग करते हुए कट्टर वीडियो के लिए प्रसिद्ध था. जैसे कि 2021 में एक वीडियो में यूट्यूबर ने 7 पत्रकारों को फांसी दे देने की वकालत की थी.
स्ट्रिंग रिवील्स भारत और इसके उद्योगों को लेकर भी चिंतित रहते हैं. पिछले साल जब अडानी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में बड़ी कॉरपोरेट धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया था तब स्ट्रिंग रिवील्स उनके समर्थन में खड़े थे.
यह आमंत्रण इसी तरह के स्थायी समाधान के बदले एक तोहफा है.
रंगा... (आनंद रंगनाथन)
प्रोफेसर साहब के सबसे ताजा विचारों में है कि कश्मीर का इलाज “इजरायल जैसे समाधान” में छिपा है.
मई में उन्होंने प्रधानमंत्री को “हिंदू-मुस्लिम करने” की सलाह देने के बाद कहा कि ऐसा नहीं किया गया इसीलिए हिंदू “सच्चाई से वाकिफ नहीं थे तथा उनके साथ भेदभाव हो रहा था और उन्हें आठवीं श्रेणी का नागरिक बनाने के लिए उनको अपराधबोध में डाला जा रहा था.”
न्यूज़लॉन्ड्री छोड़ने के बाद से उनकी लुढकन ने लंबा पासला तय किया है. गड्ढे गहरे होते जा रहे हैं. न्यूज़लॉन्ड्री में उन्होंने लेख लिखे, कुछ डूडलिंग की, एनएल हफ्ता पर बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का नारा लगाया और टीवी समाचार की गिरती गुणवत्ता का मर्सिया भी पढ़ा.
आइए अब गोदी-जीवियों की सूची और उनके कारगुजारियों की लोकप्रियता देखते हैं.
नफरती चिंटू (अमन चोपड़ा)
चोपड़ा के चेहरे पर झलकती उस मुस्कान भरी गिनती को कोई नहीं भूल सकता जब उन्होंने स्क्रीन पर मुस्लिम पुरुषों को गरबा कार्यक्रम में “अपनी पहचान छिपाने” के लिए पुलिस द्वारा सार्वजनिक रूप से पीटते दिखाया था. उन्हें अपने सांप्रदायिक शो के लिए कई बार जुर्माना भरना पड़ा है. इसमें 50,000 रुपए के जुर्माने से लेकर आपत्तिजनक सामग्री हटाने के आदेश तक शामिल हैं. पर क्या फर्क पड़ता है.
अभी भी कुछ नहीं बदला है. उन्हें न्यूज़लॉन्ड्री में “ज़हरीले चोपड़ा” का नाम मिला है. यह उपनाम अपने शो में उनकी जिहाद की विभिन्न मनगढ़ंत साजिशों और हिंदुओं के उत्पीड़न के निराधार आरोपों पर मिला है. सबूत मांगे जाने पर, वे काटने को दौड़ते हैं. वरना वे अपनी इस कट्टरता में आनंद लेकर खुश हैं.
उन्हें यह आमंत्रण राष्ट्रीय एकता के लिए उनकी खास कोशिशों का पुरस्कार है. वह उन कुछ भाग्यशाली लोगों में से एक हैं जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी फॉलो करते हैं.
थकना मना है (रुबिका लियाकत)
रुबिका की रिपोर्टें भले ही खास न हों, लेकिन उन्हें कहानी गढ़ना तो आता है. पिछले साल जब वे गाजा के बजाय इजरायल पहुंचीं. क्यों? यह वह, वे और उनका चैनल जाने. पर वे जानती थीं कि इस यात्रा का सबसे ज़्यादा फ़ायदा कैसे उठाया जाए. उन्होंने कुछ भ्रमित इजरायलियों से उनके पसंदीदा बॉलीवुड गाने पूछे और देश में घूमते हुए एक इंस्टाग्राम पर खुशनुमा गानों वाले वीडियो शेयर करती रहीं.
अपनी लोकप्रियता की बदौलत, वे घाट-घाट का पानी पीती रहीं हैं- एबीपी न्यूज़ से लेकर भारत 24 और फिर न्यूज़ 18 इंडिया तक, वह भी सब एक साल के अंदर. साथ ही उन्हें पीएम मोदी से कठिन सवाल पूछना भी आता है. इसमें उनके “कोमल मन” जैसा विवादास्पद विषय और यह प्रश्न भी शामिल है कि वह थकते क्यों नहीं हैं.
वह यह भी जानती हैं कि शोध पर कम खर्च करके और बचकाने तरीकों का इस्तेमाल करके जटिल से जटिल सवालों को कैसे सुलझाया जाए. जैसे कि एक बार जब उन्होंने सरकार और विपक्ष के बीच घनिष्ठ संबंध को समझाने के लिए सैंडविच का इस्तेमाल किया था.
लियाकत की कड़ी मेहनत ने उन्हें भाजपा की पसंदीदा पत्रकारों की सूची में स्थान दिलाया है. मिशिगन विश्वविद्यालय द्वारा राजनेताओं द्वारा पत्रकारों के समर्थन पर किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि एक वर्ष के भीतर उन्हें 150 से अधिक बार रीट्वीट किया गया. लेकिन चूंकि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी खुद एक्स पर फॉलो करते हैं, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
वह उन 14 एंकरों में शामिल थीं, जिनका पिछले साल इंडिया गठबंधन ने बहिष्कार करने का फैसला किया था. लेकिन शपथ ग्रहण समारोह में रुबिका को देखकर गठबंधन को इसका एहसास हुआ होगा कि उन्हें नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं है.
दो शब्द (अमीश देवगन)
अमीश देवगन सबके पसंदीदा हैं. और हो भी क्यों नहीं? वे मीम के बादशाह हैं. ऐसा लगता है कि वे जेन जेड के बीच भी अपना समर्थन चाहते हैं- शायद इसीलिए उन्होंने मोदी से पूछा कि उनका "बीएफएफ" कौन है.
उन्हें मर्यादा से बेहद लगाव है, लेकिन सिस्टम में कुछ लोग उनसे नफरत भी करते हैं. जैसे 2020 में एक सूफी उपदेशक को अपने शो में बुलाने और फिर उन्हें हमलावर और लुटेरा कहने के लिए उन्हें देशभर में एफआईआर का सामना करना पड़ा था.
सर्वोच्च न्यायालय ने एफआईआर रद्द करने से इनकार करते हुए कहा था कि लोगोंं में बड़ी पैठ रखने वाले प्रभावशाली व्यक्तियों को “कर्तव्य का पालन करना चाहिए और अधिक जिम्मेदार होना चाहिए”.
देवगन ने एक फरवरी से 12 अप्रैल के बीच न्यूज़ 18 पर 49 बहसों की मेजबानी की, जिनमें से 25 विपक्ष विरोधी, 15 सरकार समर्थक और चार सांप्रदायिक मुद्दों पर थीं.
देवगन को भी प्रधानमंत्री मोदी एक्स पर फॉलो करते हैं.
ज़ेनज़ी रिपोर्टर (नाविका कुमार)
नविका भी मेहनत से बाज नहीं आने वाली पत्रकार हैं. पर अक्सर वे अपने दुश्मनों द्वारा भेजे व्हाट्सएप फॉरवर्ड पर विश्वास करके उसको आगे बढ़ाने के जाल में फंस जाती हैं. ऐसे जाल में ही फंसकर उन्होंने एक बार काल्पनिक चीनी कैदियों का नाम टीवी पर लिया था, और भारत में कोविड संकट के लिए पूरी तरह से तब्लीगी जमात को जिम्मेदार ठहराया था.
उनके सवाल हमेशा तीखे ही होते हैं. क्या तैमूर हमें फ्लाइंग किस दे सकता है? क्या नीरज चोपड़ा की कोई गर्लफ्रेंड है? क्या दीपिका पादुकोण ड्रग्स लेती हैं? चूंकि पीएम मोदी उन्हें एक्स पर फॉलो करते हैं, इसलिए इस बात की बेहद कम संभावना है कि वे उनकी बेहतरीन रिपोर्टिंग देखने से चूके होंगे.
उनके खिलाफ पत्रकारिता के अपने कर्तव्य को निभाने के लिए कई एफआईआर दर्ज की गई हैं. एक एफआईआर इसलिए हुई कि उन्होंने टीवी पर बीजेपी प्रवक्ता नुपूर शर्मा को पैगम्बर मोहम्मद के बारे में अपनी बात कहने की सिर्फ़ अनुमति दे दी. पर क्या करतीं, रेटिंग और नैतिकता के बीच यह बेहद मुश्किल फैसला था.
न्यूज़लॉन्ड्री के एक विश्लेषण में पाया गया कि चुनावों से ठीक पहले कुमार ने टाइम्स नाउ पर अपने शो न्यूज़ऑवर में 51 सेगमेंट की मेजबानी की, जिनमें से 33 विपक्ष की आलोचना पर केंद्रित थे. 12 सेगमेंट सरकार की प्रशंसा करने के लिए समर्पित किए गए थे. इनमें से एक में उन्होंने कहा कि पीएम “सनातन को बदनाम करने वालों के खिलाफ दहाड़ते हैं.”
वैसे तो मोदी की तारीफ करने वाले और विपक्ष पर कटाक्ष करने वाले एंकरों की कमी नहीं है, लेकिन कुमार उन सब में सबसे अलहदा हैं और यह उनके निजी जीवन में भी दिखता है. आखिरकार, पिछले साल उनके बेटे की शादी में लगभग एक चौथाई कैबिनेट सदस्य शामिल हुए थे.
तिहाड़ शिरोमणि (सुधीर चौधरी)
जिहाद में पीएचडी और तिहाड़ जेल के अतीत वाले चौधरी, "गोदी मीडिया" के पोस्टर बॉय हैं. जिहाद के विभिन्न प्रकारों पर उनके विस्तृत चार्ट से वे प्रख्यात शिक्षाविदों और डेटा माइनर्स को शर्मिंदा भी कर देंगे. इस सूची के बताए गए जिहादों में भूमि जिहाद, शिक्षा जिहाद, फिल्म और गीत जिहाद हैं.
उस घटना के बाद उनपर दर्ज की गई एफआईआर को उन्होंने "सच्चाई की रिपोर्टिंग के लिए अपना पुलित्जर पुरस्कार" बताया. उनके अन्य पुरस्कारों में "सांप्रदायिक घृणा भड़काने" के मामले और सांप्रदायिक घृणा फैलाने के लिए समाचार प्रसारण प्राधिकरण द्वारा दी गई कई चेतावनियां भी हैं.
वे जांच करने वालों में सबसे तेज हैं. उदाहरण के लिए, जनवरी में पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद चौधरी ने कहा कि वे और उनका परिवार “आदिवासी” नहीं हैं क्योंकि वे “बड़े बंगलों” में रहते थे. पर यह भला क्या बात हुई कि इसके लिए उनपर एससी एसटी अधिनियम के तहत एक एफआईआर दर्ज कर दी गई. भारतीय राष्ट्राध्यक्षों को भूल जाइए, उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा का “टुकड़े टुकड़े गिरोह” और “खालिस्तानियों” से संबंध खोज निकाला है.
चौधरी आजतक पर ब्लैक एंड व्हाइट कार्यक्रम की मेजबानी करते हैं. चुनावों से पहले उन्होंने 27 सेगमेंट विपक्ष विरोधी, 15 मोदी समर्थक, दो सांप्रदायिक मुद्दों पर, एक पाकिस्तान पर और आठ अन्य विषयों पर किए. शिक्षा और बेरोजगारी पर उन्होंने कुछ दुर्लभ मौकों पर चर्चा की और की भी तो ऐसे जैसे इन मुद्दों पर सरकार की जवाबदेही का कोई लेना-देना ही नहीं था.
ऐसा नहीं है कि वे मोदी से सवाल नहीं करते. एक बार उन्होंने पूछा था कि क्या प्रधानमंत्री जब हवाई जहाज की खिड़की से बाहर देखते हैं तो क्या उन्हें अपनी यात्रा के बारे में दार्शनिक विचार आते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के प्रति भक्ति उनके डीएनए में है, शायद इसीलिए एक्स पर भी प्रधानमंत्री द्वारा फॉलो करने का सौभाग्य सुधीर को मिला है.
बुलेटबाज एंकर (चित्रा त्रिपाठी)
उनके सहकर्मियों की तुलना उनके पास प्रतिभा की थोड़ी कमी है. इसकी कमी वो मोटरसाइकिल पर बैठकर रिपोर्टिंग करते हुए पूरा करती हैं. उनके सहयोगी न्याय की बात करने के लिए बुलडोजर पर चढ़ जाते हैं. पर इसकी भरपाई के लिए त्रिपाठी ईमानदारी से प्रयास करती हैं. उनके सम्मानित सहकर्मियों की तरह उन्हें भी प्रधानमंत्री द्वारा एक्स पर फॉलो करने का सुख मिला है.
उन्होंने बड़ी नेक नियत से यह दावा किया कि मनमोहन सिंह सरकार द्वारा भारतीय नौसेना के झंडे पर सेंट जॉर्ज क्रॉस को वापस लाया गया था. उन्होंने अपनी बहस में कांग्रेस प्रवक्ता से पूछा भी कि कांग्रेस पार्टी के सभी औपनिवेशिक प्रतीकों के प्रति प्रेम का कारण क्या है.
इंडिया गठबंधन के समाचार एंकर बहिष्कार लिस्ट में अपनी जगह बनाना उनके लिए आसान काम नहीं था.
उनका भी विवादों से कम नाता नहीं रहा है. उनपर एक नाबालिग का कथित अश्लील वीडियो प्रसारित करने का मामला 10 साल तक चला और पिछले साल अदालत ने त्रिपाठी और कई अन्य पत्रकारों के खिलाफ आरोप तय किए.
कई बार तो वह बिना अपनी किसी गलती के भी सुर्खियों में आ जाती हैं. जैसे 2021 में, जब एक हिंदी अख़बार के संपादक उनके पति ने दावा किया था कि नोएडा में बंदूक की नोक पर उनके साथ लूट हुई थी. लेकिन यूपी पुलिस ने जांच के बाद इस दावे का खंडन करते हुए “मनगढ़ंत” कहानी होने का दावा किया था.
इन सितारों के अलावा, इस कार्यक्रम में कई पत्रकार भी मौजूद थे. लेकिन उनकी यात्रा अभी इस लायक नहीं हुई है कि प्रधानमंत्री उन्हें एक्स पर फ़ॉलो करें. या शायद इस हॉल ऑफ़ फ़ेम में शामिल होने के लिहाज से उनका काम बहुत ज़्यादा पत्रकारीय श्रेणी में आता है.
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