एनएसए के तहत असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल सिंह ने चुनाव में उतरकर खडूर साहिब को चर्चा के केंद्र में ला दिया है.
खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र में एक जून को मतदान होना है. उसके चार दिन पहले हम यहां पहुंचे तो किसी भी राजनीतिक दल का पोस्टर नजर नहीं आता है, सिवाय अमृतपाल सिंह के. असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद सिंह यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.
खडूर साहिब से 16 किलोमीटर दूर जल्लूपुर खेड़ा गांव है. अमृतपाल इसी गांव के रहने वाले हैं. हम खडूर साहिब से सिंह के गांव के लिए निकलते हैं तो इधर भी रास्ते में न किसी अन्य राजनीतिक दल का पोस्टर दिखता है और ना ही प्रचार गाड़ी. अमृतपाल के ही पोस्टर जगह-जगह नज़र आते हैं. कुछ पोस्टर में जरनैल सिंह भिंडरावाले की भी तस्वीर हैं.
सिंह के लिए मीडिया का काम देख रहे सुरेंद्र पाल सिंह भिंडरावाले की तस्वीर लगाने को लेकर कहते हैं, ‘‘भाजपा के लोग मोदी का फोटो अपने पोस्टर में क्यों लगाते हैं? क्योंकि वो उनके नेता हैं, वैसे ही भिंडरावाले हमारे नेता हैं. इसलिए उनकी तस्वीर पोस्टर पर लगी हुई है. इसमें गलत क्या है.’’
अमृतपाल के हलफनामे के मुताबिक, उनपर कुल 12 मुकदमे हैं. अभी वो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत जेल में बंद हैं. नशा छुड़ाने और खालिस्तान की बात करने वाले अमृतपाल सिंह आखिर चुनाव क्यों लड़ रहे हैं?
जेल से बाहर लाना हमारा मकसद
सुबह के करीब सात बजे हमारी मुलाकात अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह से हुई. वो और उनकी पत्नी बलविंदर कौर आज एक रोड शो में जाने वाले थे. सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ता उनके घर पर बैठे हुए थे. तरसेम सिंह व्यस्त होने के कारण हमसे बात करने से इनकार कर देते हैं. लेकिन फिर हमें इस शर्त पर पांच मिनट का समय देते हैं कि खालिस्तान से जुड़ा कोई सवाल नहीं होगा.
तरसेम सिंह कहते हैं, ‘‘मेरा पहले से कोई राजनीतिक अनुभव नहीं रहा है. पहली बार हम ये सब कर रहे हैं. गांव में हमारा भाई सरपंच रहा है. गांव स्तर की राजनीति करते थे लेकिन इतने बड़े स्तर पर हमारा कोई अनुभव नहीं था. यह तो लोगों का प्यार था और लोगों ने ही हमें राजनीति में आने के लिए मज़बूर किया. अब लोग ही प्रचार कर रहे हैं. पूरे पंजाब से लोग इनके प्रचार के लिए आ रहे हैं.’’
वो आगे बताते हैं, ‘‘पंजाब के अलग-अलग हिस्सों से आए हुए लोग कहते हैं कि सरकर ने अमृतपाल के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी की है. उसने नशा छुड़ाने को लेकर बहुत अच्छा काम किया है. लोगों को बड़ी उम्मीद है कि उनके बच्चों और पंजाब को नशे से निजात अमृतपाल ही दिला सकता है. लोग उन्हें अपना लीडर मानते हैं.’’
आखिर अमृतपाल ने चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया? वो नशामुक्ति की बात करते थे, धर्म की बात करते थे. अचानक राजनीति में आने का फैसला क्यों?
तरसेम सिंह इसको लेकर बताते हैं, ‘‘उसके एजेंडे में चुनाव लड़ना नहीं था लेकिन लोगों ने फैसला किया कि उनको चुनाव लड़ना चाहिए. हम जब जेल में उनसे मिलने गए और चुनाव लड़ने को लेकर बात हुई तो उन्होंने मना कर दिया. फिर जब हमने बताया कि लोगों का काफी दबाव है फिर उसने कहा कि हम लोगों की सेवा के लिए हैं. लोगों से बाहर हम नहीं जा सकते हैं.’’
सिंह अमृतपाल के चुनाव लड़ने के मकसद को लेकर कहते हैं, ‘‘हमारा मकसद पंजाब के नौजवानों को नशे से बचाकर उनकी ऊर्जा को बेहतर जगह लगाना है. उन्हें धर्म से जोड़ना है.’’
वहीं, सुरेंद्र पाल सिंह कुछ और कहते हैं. खेती बाड़ी करने वाले सुरेंद्र पाल आजकल सबकुछ छोड़ अमृतपाल के प्रचार में लगे हुए हैं. सुरेंद्र के मुताबिक, ‘‘एनएसए के तहत जब अमृतपाल को जेल में डाल दिया गया तो अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास विरोध प्रदर्शन चला. उसमें आसपास के गांवों के पंच-सरपंच शामिल होते थे. यहां विचार हुआ कि जैसे 1989 में सिमरन जीत सिंह मान को चुनाव जिताकर जेल से बाहर निकाला था वैसे ही अमृतपाल को भी चुनाव लड़वाओ. इस पर हमने कहा कि हम राजनीतिक व्यक्ति नहीं है, हमारा समर्थन कौन करेगा तो फिर सबने एक जुटकर हो कर कहा कि वो लोग साथ देंगे.’’
‘‘जब चुनाव लड़ने की बात अमृतपाल तक पहुंची तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि मुझे सरकार भले ही जेल में रखे, मैं चुनाव नहीं लडूंगा. बाद में उनके परिवार के सदस्य उन्हें मनाने गए तो वो तैयार हो गए.’’
गौरतलब है कि साल 2008 में परिसीमन के बाद खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया. पहले यह तरन-तारन लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. यहां से मान साल 1989 में लोकसभा का चुनाव जीते थे. पूर्व आईपीएस अधिकारी मान, खालिस्तान समर्थक हैं. इंदिरा गांधी की हत्या की साजिश रचने के मामले में इन्हें गिरफ्तार किया गया था और ये बिहार के भागलपुर की जेल में थे. वहां करीब पांच साल जेल में रहे. इसी बीच साल 1989 में तरन-तारन से लोकसभा का चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की. जिसके बाद इन्हें बिना शर्त जेल से रिहा कर दिया गया था.
अमृतपाल के समर्थक भी ऐसा कुछ सोच रहे हैं. अगर वो चुनाव जीतते हैं तो जेल से बाहर आने का रास्ता खुल जाएगा. मान की पार्टी शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) ने अमृतपाल को अपना समर्थन दिया हुआ है.
कौन कर रहा अमृतपाल का प्रचार
भारत में चुनाव लड़ना काफी महंगा और मेहनत वाला काम है. अमृतपाल खुद जेल में है, ऐसे में उनका प्रचार कौन देख रहा है. यह समझने के लिए हम खडूर साहिब में बने लोकसभा कार्यालय में गए. एक छोटे से कमरे में बने इस दफ्तर में दो सोफे और पांच-सात कुर्सियां रखी हुई हैं.
यहां हमारी मुलाकात खुशवंत सिंह से हुई. 30 वर्षीय खुशवंत, भटिंडा के रहने वाले हैं. पिछले 10 दिनों से अपने खर्च पर यहां प्रचार के लिए आए हुए हैं. प्रचार के लिए आने का कारण पूछने पर कहते हैं, ‘‘अमृतपाल को देखने के बाद लगा कि हमारी कौम का कोई हाजिर-जवाब लीडर है. उनका बाहर होना बहुत ज़रूरी है, इसलिए हम यहां प्रचार करने के लिए आए हैं. उनको गलत आरोप में सरकार ने जेल में डाला हुआ है. ऑफिस वाले जहां भी हमारी ड्यूटी लगाते हैं, वहीं हम प्रचार के लिए जाते हैं. आज मेरी ड्यूटी यहीं ऑफिस में ही लगी हुई है.’’
मालूम हो कि भटिंडा, अकाली दल का गढ़ है. वहां से हरसिमरत कौर चुनाव जीतती रही हैं.
अकाली दल को सिख धर्म का दल माना जाता है, ऐसे में अमृतपाल में ही आपको कौम का नेता कैसे दिखा? इस सवाल के जवाब में सिंह कहते हैं, ‘‘कहने को तो अकाली दल सिख कौम के लिए काम करता है. लेकिन हमें उनका इतिहास पता है. वह हमेशा भाजपा के साथ चलते हैं. जब उनका यहां राज रहा तो हमारे गुरुग्रंथ साहब की बेअदबी हुई. उसके इंसाफ के लिए संगत धरने पर बैठी तो पुलिस ने उनकी पिटाई की. संघर्ष में दो सिखों की हत्या हो गई. ऐसे में हम उन्हें पंथ का रक्षक कैसे मान सकते हैं.’’
अमृतपाल के चुनावी दफ्तर में हम बैठे थे तभी फतेहगढ़ साहिब के रहने वाले दलजीत सिंह अपने कुछ साथियों के साथ यहां प्रचार के लिए आए. सेना से रिटायर सिंह का परिवार नशे के कारण तबाह हो गया है. जानकारी मिली कि उनका एक 20 साल का बेटा है, उसे नशे की लत लगी हुई है, जिसको लेकर वो पुलिस में शिकायत करते हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती और अंत में बेटे की हालत यह हो गई कि अब वह घर का एसी, फ्रिज़, मोटर साईकिल उठाकर बेचने लगा है.
दलजीत सिंह कहते हैं, ‘‘मैं पुलिस में शिकायत करता रहा लेकिन किसी ने मेरी एक नहीं सुनी. मेरा एक ही बेटा है, वो बर्बाद हो गया. यहीं नहीं इसी बीच वो एक लड़की को उससे परिवार के इजाजत के बगैर शादी करके ले आया. उसकी जिंदगी भी खराब कर दी. मेरे गांव में जो ड्रग्स बेचते हैं वो एक राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं. जब मैं इस दल के नेताओं के पास जाता हूं तो मेरे बेटे को वो सूचना दे देते हैं. पुलिस के पास गया तो उल्टा मुझे ही परेशान किया गया. इसलिए मैं अमृतपाल जी के समर्थन में प्रचार करने के लिए आया हूं. वो नशामुक्ति के लिए काफी काम कर रहे थे. लोगों को अमृत चखाते हैं.’’
पंजाब में नशा एक बड़ा मसला है. नशे की स्थिति यह है कि हम देर रात नौ बजे तक गांव में रिपोर्टिंग के लिए रुकना चाहते थे तो हमारे ड्राइवर ने कहा कि 7 बजे के बाद गांवों से निकलना मुश्किल हो जाता है. बॉर्डर जिला होने के कारण पाकिस्तान की तरफ से आने वाला ड्रग्स आसानी से लोगों तक पहुंच जाता है.
पंजाब में ड्रग्स के कारण हर साल सैकड़ों नौजवानों की मौत होती है. ड्रग्स के ओवरडोज के चलते 2017 में 71, 2018 में 78 और 2019 में यहां 45 लोगों की मौत हुई थी. सबसे ज़्यादा मौत 18 से 30 साल के युवाओं की होती है. यह तो सरकारी आंकड़ा है, असली आंकड़े इससे कहीं ज़्यादा हो सकते हैं.
अमृतपाल के समर्थन में बात करने वाले लोग नशे को लेकर ही उन्हें वोट देने की बात करते नजर आते हैं. बाड़ गांव के रहने वाले जगदीप सिंह किराने की दुकान चलाते हैं. चुनाव के माहौल को लेकर सवाल करने पर कहते हैं, ‘‘यहां से तो भाई अमृतपाल जीत रहे हैं.’’
कारण पूछने पर जगदीप कहते हैं, ‘‘यहां मुख्य रूप से नशे का मुद्दा चल रहा है. इसी पर यह चुनाव लड़ा जा रहा है. यहां भाई अमृतपाल का ज्यादा जोर है. इसका बड़ा कारण उनका जेल में होना है. लोग सोचते हैं कि जानबूझकर उनको जेल में डाला गया क्योंकि उनकी प्रसिद्धि बढ़ रही थी. वो नौजवानों को अपने साथ लेकर चल रहे थे. नशे छुड़वा रहे थे. अमृत चखा रहे थे. इसीलिए यूथ उनके साथ है.’’
इसके बाद सिंह कहते हैं, ‘‘आम आदमी पार्टी ने चुनाव के समय नशा खत्म करने और बेअदबी के मामले में कार्रवाई का वादा किया था. लोगों ने उन्हें चुना और वो सत्ता में आए लेकिन वो दोनों में से एक भी नहीं कर पाए. इसीलिए लोग इनसे अब पीछे हट गए हैं. एकाध को छोड़कर आम आदमी पार्टी को कोई सीट नहीं मिलने वाली है. यहां पर अमृतपाल है. उनका प्रचार यहां के नौजवान कर रहे हैं. खुद से मोटरसाईकिल में पेट्रोल भरवाकर वो प्रचार करते हैं. लोग गांव-गांव में खुद से ही उनका प्रचार कर रहे हैं.’’
ऐसा हमें कई जगहों पर देखने को मिला. पंजाब के अलग-अलग हिस्सों से युवाओं, बुजुर्गों की टोली अमृतपाल के प्रचार के लिए उनके गांव में पहुंच रही है. इसमें से कुछ लोग इन्हें सिख समुदाय के नए नेता के रूप में देख रहे हैं तो कुछ नशे को लेकर इनके द्वारा किए गए काम को याद कर रहे हैं.
खालिस्तान के मुद्दे पर चुप्पी है. अमृतपाल के पिता भी इस सवाल से बचते हैं. वहीं, इनके दफ्तर का काम देख रहे लखविंदर सिंह खालिस्तान के सवाल पर कहते हैं, ‘‘आप देखिए देश के कई हिंदू समुदाय के लोग भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग करते हैं. कई नेता जो बड़े पदों पर हैं वो भी हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं. उनको कोई जेल में डाला अब तक?. अगर कोई हिंदू राष्ट्र की बात करता तो कोई बात नहीं और अगर किसी ने अपने धर्म की बात की तो उसपर एनएसए लगाकर जेल में डाल दिया. यह दोहरा रवैया पंजाब के साथ लंबे समय से चल रहा है. जो ठीक नहीं है.’’
विपक्षी दलों का क्या कहना है?
खडूर साहिब शहर में हमें अमृतपाल के अलावा किसी भी राजनीतिक दल का कोई पोस्टर नजर नहीं आता है लेकिन जैसे ही तरन-तारन शहर में पहुंचते हैं, भाजपा, कांग्रेस, आप और अकाली दल के पोस्टर और प्रचार गाड़ियां दिखने लगती हैं.
यहां से भाजपा ने मनजीत सिंह मन्ना, कांग्रेस ने कुलबीर सिंह जीरा, आम आदमी पार्टी ने प्रदेश के कैबिनेट मंत्री लालजीत सिंह भुल्लर और शिरोमणि अकाली दल ने विरसा सिंह वल्टोहा को मैदान में उतारा है. इसके अलावा बीएसपी, सीपीआई के भी उम्मीदवार यहां से मैदान में हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में यह सीट कांग्रेस के जसबीर सिंह गिल ने जीती थी. खडूर साहिब सिख बाहुल्य लोकसभा क्षेत्र है. किसान आंदोलन में भी इस जिले के किसानों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.
कांग्रेस के लोकसभा चुनाव के दफ्तर इंचार्ज एकदीप सिंह अमृतपाल को लेकर कहते हैं, “उनका प्रचार सोशल मीडिया पर ज़्यादा है. ग्राउंड पर नहीं दिख रहे हैं. दो दिन पहले तरन-तारन शहर में उनकी माताजी का रोड शो था. वहां इतने लोग थे कि जिन्हें मैं गिन सकता था. उसमें से आधे वो नौजवान थे जिनका नाम वोटर लिस्ट में होगा भी नहीं.’’
एकदीप आगे कहते हैं, ‘‘अमृतपाल अगर यहां से जीतते हैं तो शहर का भला नहीं होगा. इससे पहले इनकी ही विचारधारा वाले सिमरजीत सिंह मान को लोगों ने जिताया था. यहां के भले के लिए क्या किया? लोकसभा के अंदर बड़ा तलवार ले जाने के नाम पर प्रदर्शन करते रहे और इस्तीफा दे दिया. यहां के लोगों का क्या भला हुआ. अमृतपाल चुनाव में लोगों की धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल कर रहा है. जो अंत में नुकसान करेगा. उनके आने से हिंसा बढ़ेगी और फिर पंजाब आतंकवाद के दौर में वापस चला जाएगा.’’
हमारे हाथ में अमृतपाल सिंह का घोषणा पत्र होता है. जिसमें पंजाबी में जीतने के बाद क्या करेंगे लिखा हुआ है. उसमें एक वादा यह भी है कि पंजाब से और पंजाब में दोनों तरह के पलायन को रोकेंगे. एकदीप इसे पढ़ते हुए कहते हैं, ‘‘आप इसे पढ़िए. आज पंजाब में लाखों लोग यूपी , बिहार समेत अन्य राज्यों से आकर काम करते हैं. अगर ये जीतते हैं तो उनके लिए कितनी मुश्किलें खड़ी होंगी. वैसे अमृतपाल का शोर ज़्यादा है, ग्राउंड पर नहीं है. यहां 9 हलके हैं, एक दो को छोड़ दिया जाए तो वो आगे नहीं हैं. और एक ज़रूरी बात पढ़े-लिखे शांति की चाहत रखने वाले अमृतपाल को नहीं मौका देंगे.’’
यहां मौजूद एक दूसरे शख्स कर्मवीर सिंह मान खडूर साहिब में पोस्टर नहीं होने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘हम लोग पोस्टर हर जगह लगाते हैं. लेकिन अमृतपाल के पीछे जो नौजवान कूद रहे हैं वो या तो पोस्टर फाड़ देते हैं या उसके ऊपर अपना लगा देते हैं. होर्डिंग्स की जहां तक बात है, एक तो यहां के निर्वाचन अधिकारी आम आदमी पार्टी के अलावा किसी भी राजनीतिक दल को जल्दी होर्डिंग्स लगाने का मौका नहीं देते हैं. एकाध जगहों पर मौका मिलता भी है तो उसे अमृतपाल के युवा समर्थक तोड़ देते हैं.’’
आम आदमी पार्टी के शहरी प्रधान कुलवंत सिंह पन्नू भी पोस्टर को लेकर कर्मवीर की बात को ही दोहराते हैं. पन्नू का मानना है कि अमृतपाल लड़ाई में भी नहीं है. यहां मुकाबला आप और कांग्रेस के बीच है.
पन्नू बताते हैं, ‘‘खडूर साहिब हलका (विधानसभा) पंथ का माना जाता है. जिन्होंने अमृत चखा हुआ है वो अमृतपाल के पीछे लग गए हैं. लेकिन उनके साथ अब लोग कम जुड़े हैं. क्योंकि लोगों को पता चल गया कि ऐसे लोगों के आने से आतंकवाद फैलेगा. भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पंजाब ने कितना कुछ देखा. मान लो कि अगर खालिस्तान बनेगा तो फिर वहीं सब दिन देखना पड़ेगा. इसीलिए लोग अब उनसे दूर हो रहे है.’’
लेकिन अमृतपाल के परिवार और समर्थक ड्रग्स को लेकर ज़्यादा प्रचार कर रही है. इसपर पन्नू कहते हैं, ‘‘यह सच है कि यहां नशा बड़ी वजह है. हमारी सरकार से भी नशे पर कंट्रोल नहीं हुआ. इसलिए यहां मुद्दा है. लेकिन जो सयाने बंदे हैं वो अमृतपाल के मनसूबों को पहचान चुके हैं वो फिर से राज्य को आंतकवाद की गर्त में नहीं डालना चाहते हैं.’’
खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र 2008 में अस्तित्व में आया है. पहले यह तरन तारन लोकसभा क्षेत्र था. यहां अकाली दल का वर्चस्व रहा है. खडूर साहिब में अब तक तीन लोकसभा चुनाव हुए हैं. जिसमें से 2009 और 2014 में अकाली दल और वहीं 2019 में यहां से कांग्रेस जीती थी. इस क्षेत्र में 15 लाख मतदाता हैं. जिसमें से ज़्यादातर सिख समुदाय से हैं. यहां एक जून को मतदान होना है, नतीजे चार जून को आएंगे.