हमने शुक्ल से वाराणसी के उन मुद्दों पर बात की जिस पर अक्सर ही दूसरे मीडिया वाले बात करने से चूक जाते हैं.
आज कल, किसी शहर की राजनीतिक नब्ज जानने के लिए वहां के स्थानीय पत्रकार और चौक-चौराहों पर लोगों से बातचीत तक ही महदूद कर दिया जाता है. ऐसा कैसे हो सकता है कि शहर में मौजूद विद्वानों, लेखकों और चिंतकों से कोई बात ही न की जाए.
वाराणसी कहें या बनारस या काशी ये शहर आध्यात्म, संगीत और साहित्य का सदियों से घर रहा है. दाराशिकोह से लेकर पंडित रविशंकर और बिस्मिल्लाह खान जैसे अनगिनत रत्न इस प्राचीन शहर से किसी न किसी प्रयोजन से जुड़े रहे हैं. पर पिछले एक दशक में वाराणसी के वर्तमान सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में इस नगर में अनेक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं.
एक और चुनावी शो की इस कड़ी में हमने हिन्दी के बहुपठित कवि और लेखक व्योमेश शुक्ल से बातचीत की. हमने उनसे वाराणसी के उन मुद्दों पर बात की जिस पर अक्सर ही दूसरे मीडिया वाले बात करने से चूक जाते हैं. साहित्य के सत्ता पर जवाबदेही तय करने की क्षमता, बनारसिया होने का असल मतलब जैसे कई मुद्दे हमारी बातचीत में शामिल रहे.
शुक्ल ने नगर में पिछले दस सालों में प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में हुए परिवर्तनों पर प्रकाश डाला, धार्मिक श्रद्धालुओं और आध्यात्मिक शांति की खोज में आने वालों में अंतर बताया, पुलिसिया कार्रवाई, ज्ञानवापी मस्जिद और स्थानीय मुद्दों पर भी खुलकर बातचीत की.
कवि कहते हैं, “आज हम बनारस का व्यापक स्तर पर बाजारीकरण होते देख रहे हैं. प्राचीन कल में यही वह जगह थी, जहां भगवान बुद्ध वृक्ष के नीचे बैठकर अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे. लेकिन अब बनारस एक लॉलीपॉप बन गया है जिसे एक दिन में ही चूसकर खत्म कर देना है.”
देखिए कवि व्योमेश शुक्ल से हमारी ये बातचीत.