दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
चुनाव आयोग पिछले हफ्ते शिवसेना को लेकर संपूर्ण सेकुलर और निष्पक्ष हो गया. वही चुनाव आयोग मोदीजी को लेकर मखमली मुलायम हो गया. विपक्ष के लिए आरक्षित चुनाव आयोग की सेकुलरता और निष्पक्षता का मैं तहे दिल से सम्मान करता हूं.
दरअसल, मोदीजी के झोले में करतबों की भरमार है. ताली-थाली, दीया बत्ती से लेकर फ्लैशलाइट तक करवाने के बाद इस बार वो फिर से अपने ढर्रे पर लौट आए. शुरुआत में वो लगातार राम के नाम पर देदे बाबा, राम के नाम पर देदे बोल रहे थे. लेकिन लगता है लोगों को सुनाई नहीं दे रहा था.
इससे परेशान होकर उन्होंने खुल्ला खेल फर्रूखाबादी खेलने का तय किया. जहां मुंहजुबानी काम नहीं चल रहा था, वहां बदजुबानी से काम लिया. कोई लाग-लपेट नहीं, कोई आंखों की शरम नहीं. महान भारत देश का महान प्रधानमंत्री बिना संकोच, खुलेआम मुसलमानों का नाम लेकर हिंदुओं को डरा रहा है. हमें ये गाना याद आ रहा है क्या हुआ तेरा वादा, वो कसम वो इरादा. मोदी की गारंटी, सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास. ये सब हवा में फ़ना हो गए.