रक्षा मंत्रालय के दिशा निर्देश में चलने वाले सैनिक स्कूल भारत के सशस्त्र सेनाओं में कैडेट भेजते हैं. इस नई पहल से भविष्य के कैडेट में विशेष राजनीतिक नजरिया पैदा होने का खतरा बढ़ा.
यह स्टोरी द रिपोर्टर्स कलेक्टिव पर मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित हुई है.
देश के पवित्र माने जाने वाले शहरों में से एक वृन्दावन में हिंदू राष्ट्रवादी विचारक साध्वी ऋतंभरा, लड़कियों के लिए एक स्कूल संविद गुरुकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल चलाती हैं. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और संघ की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी की संस्थापक ऋतंभरा राम मंदिर आंदोलन में एक प्रमुख किरदार थीं.
पिछले साल जून में स्कूल के एक कार्यक्रम के दौरान भगवाधारी ऋतंभरा छात्रों के व्यक्तित्व विकास शिविर में शिरकत कर रही थीं. इस दौरान छात्रों को 'सम्मान', परंपरा और रीति-रिवाजों को लेकर बहुत सी बातें कहीं. स्कूल के फेसबुक पेज पर मौजूद एक वीडियो में ऋतंभरा यह कहते हुए दिखाई देती हैं कि कॉलेजों और सोशल मीडिया में लड़कियां कैसे "नियंत्रण से बाहर" हो गई हैं.
ऋतंभरा कहती हैं, “हमें कॉलेजों में क्या मिलता है? आधी रात को सिगरेट पीती लड़कियां. शिक्षा के इन केंद्रों में महिलाएं शराब की बोतलें तोड़ रही हैं और मोटरसाइकिलों पर अपने बॉयफ्रेंड्स के साथ अश्लीलता फैला रही हैं. हमने कभी नहीं सोचा था कि भारत की बेटियां इतनी निरंकुश हो जाएंगी. वे सोशल मीडिया पर गाली-गलौज वाली रील्स पोस्ट कर रही हैं. वे न्यूड फोटोशूट करा रही हैं. वे अंडरगारमेंट्स में अपने शरीर का प्रदर्शन कर रही हैं. ऐसा लगता है कि ये महिलाएं मानसिक रूप से बीमार हैं. इन लड़कियों में संस्कार नहीं हैं.”
वृन्दावन में लड़कियों का स्कूल और दूसरा हिमाचल प्रदेश के सोलन में राज लक्ष्मी संविद गुरुकुलम हाल ही में कम से कम 40 स्कूलों की उस सूची में शामिल हो गए हैं, जिन्होंने सैनिक स्कूल सोसाइटी (एसएसएस), जो कि रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला एक स्वायत्त निकाय है, के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत सैनिक स्कूल चलाने हेतु एक समझौता ज्ञापन (एमओए) पर हस्ताक्षर किए हैं.
2021 में, केंद्र सरकार ने भारत में सैनिक स्कूल चलाने के लिए निजी क्षेत्र के लिए दरवाजे खोल दिए. उस साल सरकार ने अपने वार्षिक बजट में, पूरे भारत में 100 नए सैनिक स्कूल स्थापित करने की योजना की घोषणा की थी.
कोई भी स्कूल जो एसएसएस द्वारा निर्धारित बुनियादी ढांचा रखता हो- बुनियादी भूमि, भौतिक और आईटी ढांचा, वित्तीय संसाधन, कर्मचारी इत्यादि - उसको संभावित रूप से नए सैनिक स्कूलों के रूप में मंज़ूरी मिल सकती है. अनुमोदन नीति के दस्तावेज के अनुसार बुनियादी ढांचा ही एकमात्र शर्त थी, जो किसी स्कूल को इस मंज़ूरी का पात्र बनाती थी. इस चीज़ ने संघ परिवार से जुड़े स्कूलों और समान विचारधारा वाले संगठनों के लिए आवेदन करने के दरवाज़े खोल दिए.
केंद्र सरकार की प्रेस विज्ञप्तियों और सूचना के अधिकार (आरटीआई) से मिले जवाबों में एक चिंताजनक रुझान दिखता है. हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि अब तक हुए 40 सैनिक स्कूल समझौतों में से कम से कम 62 प्रतिशत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके सहयोगी संगठनों, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं, उनके राजनीतिक सहयोगियों, दोस्तों, हिंदुत्ववादी संगठनों और अन्य धार्मिक हिन्दू संगठनों से जुड़े लोगों को दिए गए हैं.
जहां एक तरफ सरकार को उम्मीद है कि नए पीपीपी मॉडल से सशस्त्र बलों के लिए भर्ती के पूल को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक क्षेत्र के लोगों और दक्षिणपंथी संस्थानों की सेना के सेकुलर ढांचे में संभावित घुसपैठ ने चिंताएं भी बढ़ा दी हैं.
सैनिक स्कूल शिक्षा प्रणाली के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब सरकार ने निजी खिलाड़ियों को एसएसएस से संबद्ध होने, "आंशिक वित्तीय सहायता" प्राप्त करने और अपनी शाखाएं चलाने की मंज़ूरी दी. 12 अक्टूबर, 2021 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कैबिनेट बैठक का नेतृत्व किया जिसमें स्कूलों को "एक विशेष वर्टिकल के रूप में चलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, जो रक्षा मंत्रालय के मौजूदा सैनिक स्कूलों से अलग और विशिष्ट होगा."
इस नीति के दस्तावेज के अनुसार- सरकार एसएसएस के माध्यम से “कक्षा 6 से लेकर कक्षा 12 तक, मेरिट-कम-मीन्स यानी योग्यता व आर्थिक क्षमता के आधार पर कक्षा के 50 फीसदी तक बच्चों (अधिकतम 50 बच्चों तक) के लिए 50 प्रतिशत (प्रति वर्ष 40,000/- रुपये तक की सीमा में) की सालाना फीस का समर्थन प्रदान करती है.” इसका अर्थ है कि ऐसे स्कूलों के लिए जहां 12वीं तक की शिक्षा मिलती है, एसएसएस प्रति वर्ष अधिकतम 1.2 करोड़ रुपये के समर्थन की पेशकश करता है. यह छात्रों को आंशिक वित्तीय सहायता के रूप में दिया जाता है. स्कूलों को दी जाने वाली अन्य सुविधाओं में "12वीं कक्षा में छात्रों के पढाई में प्रदर्शन के आधार पर, सालाना प्रशिक्षण अनुदान के रूप में 10 लाख रुपये की राशि दी जाती है."
सरकारी समर्थन और प्रोत्साहन के बावजूद, रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पाया कि उत्तर माध्यमिक कक्षाओं के लिए वार्षिक शुल्क 13,800 रुपये प्रति वर्ष से लेकर 2,47,900 रुपये तक हो सकता है. यह नए सैनिक स्कूलों के फीस के ढांचे में एक बड़ी असमानता का संकेत है.
नए सैनिक स्कूल कौन चलाएगा?
नई नीति आने से पहले तक, देश में 16,000 कैडेटों के लिए 33 सैनिक स्कूल मौजूद थे. एसएसएस इनकी मूल संस्था के रूप में कार्य करता था. एसएसएस रक्षा मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त इकाई है. कई सरकारी रिपोर्ट रक्षा संस्थानों में कैडेटों को भेजने में सैनिक स्कूलों के महत्व की ओर इशारा करती हैं. रक्षा संबंधी स्थायी समितियों ने अक्सर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और भारतीय नौसेना अकादमी के लिए कैडेटों को तैयार करने में सैनिक स्कूलों की भूमिका पर जोर दिया है. 2013-14 की स्थायी समिति के अनुसार, सबसे लोकप्रिय सैन्य प्रवेश परीक्षा एनडीए में शामिल होने वाले सैनिक स्कूल के छात्रों में हर साल लगभग 20 फीसदी छात्र चुने जाते हैं. इस साल की शुरुआत में राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह वर्षों में सैनिक स्कूल के 11 प्रतिशत से अधिक कैडेट सशस्त्र बलों में शामिल हुए. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सशस्त्र बलों में 7,000 से अधिक अधिकारियों के योगदान का श्रेय सैनिक स्कूलों को देते हैं.
राष्ट्रीय इंडियन सैन्य कॉलेज और राष्ट्रीय इंडियन सैनिक स्कूलों के साथ सैनिक स्कूल, 25-30 प्रतिशत से अधिक कैडेटों को भारतीय सशस्त्र बलों की विभिन्न प्रशिक्षण अकादमियों में भेजते हैं.
एक सेवानिवृत्त मेजर जनरल जो अपना नाम सार्वजनिक नहीं करना चाहते, कहते हैं, “सिद्धांत रूप से पीपीपी मॉडल एक अच्छा विचार है. लेकिन मेरी आशंका उस तरह के संगठनों को लेकर है, जो ये अनुबंध हासिल करेंगे. यदि अधिकांश स्वामित्व भाजपा से संबंधित व्यक्तियों/संगठनों के हाथों में है, तो यह वैचारिक पूर्वाग्रह वहां दी जाने वाली शिक्षा की प्रकृति पर भी असर डालेगा. इन छात्रों को भी एनडीए और सशस्त्र बलों के लिए अन्य प्रवेश परीक्षाओं के लिए आवेदन करना होगा, तो जिस तरह की शिक्षा उन्होंने प्राप्त की है, वह निश्चित रूप से सशस्त्र बलों के दृष्टिकोण को प्रभावित करेगी.”
आरटीआई से मिले जवाबों के अनुसार, कम से कम 40 स्कूलों ने 05 मई, 2022 और 27 दिसंबर, 2023 के बीच सैनिक स्कूल सोसायटी के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं. द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा की गई एक पड़ताल से पता चलता है कि 40 स्कूलों में से 11 स्कूल सीधे तौर पर भाजपा राजनेताओं के स्वामित्व में हैं या उनकी अध्यक्षता वाले ट्रस्टों द्वारा प्रबंधित हैं, या भाजपा के मित्रों और राजनीतिक सहयोगियों के हैं. आठ का प्रबंधन सीधे तौर पर आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा किया जाता है. इसके अतिरिक्त, छह स्कूलों का संबंध हिंदुत्ववादी संगठनों या घोर दक्षिणपंथी, धार्मिक हिंदू संगठनों से है. स्वीकृति पाने वाला कोई भी स्कूल ईसाई या मुस्लिम संगठन या भारत के किसी भी अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समूह से जुड़ा नहीं है.
पार्टी के सदस्यों और दोस्तों के लिए स्वीकृत
गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक बड़ी संख्या में इन नए सैनिक स्कूलों में या तो भाजपा नेताओं की प्रत्यक्ष भागीदारी देखी जाती है, या स्कूल उन ट्रस्टों के स्वामित्व में हैं जिनके वे प्रमुख हैं.
अरुणाचल के सीमावर्ती शहर तवांग में तवांग पब्लिक स्कूल राज्य में स्वीकृत एकमात्र सैनिक स्कूल है. इस स्कूल का स्वामित्व राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के पास है. हितेंद्र त्रिपाठी स्कूल प्रबंध समिति के पूर्व सचिव हैं. वे स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में भी कार्य करते हैं. त्रिपाठी ने स्कूल समिति के अध्यक्ष के रूप में खांडू की भूमिका की पुष्टि की. खांडू के भाई त्सेरिंग ताशी जो तवांग से भाजपा के विधायक हैं, स्कूल के प्रबंध निदेशक हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार ने उनके भाजपा संबंधों के कारण उनके स्कूल को चुना है. इस पर त्रिपाठी ने कहा, "मुझे उस दावे में कोई सच्चाई नहीं दिखती क्योंकि संबंधित अधिकारियों द्वारा तीन बार गहन निरीक्षण किए गए थे." हालांकि, ताशी और खांडू ने हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया है.
गुजरात के मेहसाणा में श्री मोतीभाई आर चौधरी सागर सैनिक स्कूल, दूधसागर डेयरी से संबद्ध हैं, इसके अध्यक्ष मेहसाणा के पूर्व भाजपा महासचिव अशोक कुमार भावसंगभाई चौधरी हैं. पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह ने वर्चुअल माध्यम से इस स्कूल का शिलान्यास किया था. गुजरात में एक और स्कूल, बनासकांठा में बनास सैनिक स्कूल, बनास डेयरी के तहत गल्बाभाई नानजीभाई पटेल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित किया जाता है. इस संगठन का नेतृत्व थराद से भाजपा विधायक और गुजरात विधानसभा के वर्तमान अध्यक्ष शंकर चौधरी करते हैं.
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में शाकुंतलम इंटरनेशनल स्कूल एक गैर-लाभकारी संस्था मुन्ना स्मृति संस्थान द्वारा चलाया जाता है. इसकी अध्यक्षा अध्यक्ष भाजपा विधायक सरिता भदौरिया हैं. उनके बेटे आशीष भदौरिया, जो स्कूल का कामकाज देखते हैं, ने हमें बताया, “हमें सैनिक स्कूल चलाने का कोई अनुभव नहीं है. हम इसे आगामी सत्र से शुरू करेंगे.” उन्होंने दावा किया कि, ''चयन प्रक्रिया बहुत व्यापक थी.'' जब उनसे पूछा गया कि क्या पार्टी से जुड़ाव के चलते उन्हें सैनिक स्कूल के लिए चुना गया, तो उन्होंने कहा, “यह तो आपको सरकार से पूछना चाहिए.”
खोजबीन में पाया गया कि इस नए पीपीपी मॉडल से लाभान्वित होने वाले लोगों में कई भाजपा नेता भी शामिल हैं. इस लंबी सूची में अलग-अलग राज्यों के भाजपा नेता हैं.
हरियाणा के रोहतक जिले में श्री बाबा मस्तनाथ आवासीय पब्लिक स्कूल अब एक सैनिक स्कूल है. पूर्व भाजपा सांसद महंत चांदनाथ ने इसकी स्थापना की थी और वर्तमान में इसका संचालन उनके उत्तराधिकारी महंत बालकनाथ योगी द्वारा किया जाता है, जो राजस्थान के तिजारा से मौजूदा भाजपा विधायक हैं.
महाराष्ट्र के नए-नए स्वीकृत स्कूलों में अहमदनगर का पद्मश्री डॉ. विठ्ठलराव विखे पाटिल स्कूल शामिल है. इस संस्था के अध्यक्ष पूर्व कांग्रेस विधायक राधाकृष्ण विखे पाटिल हैं, जो 2019 में भाजपा में शामिल हो गए थे. राजस्थान में सीकर जिले के पूर्व भाजपा अध्यक्ष, हरिराम रणवा उस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं जो भारतीय पब्लिक स्कूल का प्रबंधन करता है. सांगली में एसके इंटरनेशनल स्कूल जिसे सैनिक स्कूल से संबद्धता मिली है, इसकी स्थापना भाजपा के सहयोगी सदाभाऊ खोत ने की थी, जो 2014 की देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे. मध्य प्रदेश के कटनी में जिस सिना इंटरनेशनल स्कूल को मंजूरी मिली है, उसकी प्रमुख मध्य प्रदेश में भाजपा विधायक संजय पाठक की पत्नी निधि पाठक हैं.
उपर्युक्त स्कूलों में से कुछ स्कूल पहले से चल रहे हैं, जिन्हें सैनिक स्कूल बनने की मंजूरी मिल गई है. देश के कई अन्य सरकारी स्कूलों की तरह सैनिक स्कूल भी मुख्य रूप से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड पाठ्यक्रम (सीबीएसई) का पालन करते हैं, जिसके साथ कुछ अतिरिक्त विषय जैसे नैतिक मूल्य, देशभक्ति, सांप्रदायिक सद्भाव और व्यक्तित्व विकास इत्यादि पढ़ाए जाते हैं.
भाजपा के करीबी अदाणी ग्रुप के तहत एक फाउंडेशन द्वारा संचालित एक स्कूल को भी सैनिक स्कूल की संबद्धता दी गई.
आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में अदाणी वर्ल्ड स्कूल इससे जुड़ा है. यह स्कूल कृष्णापट्टनम बंदरगाह के पास स्थित है, जो पूर्वी तट पर अदाणी समूह द्वारा संचालित एक गहरे पानी का बंदरगाह है. स्कूल का स्वामित्व अदाणी कम्युनिटी एम्पावरमेंट फाउंडेशन के पास है. फाउंडेशन की अध्यक्ष प्रीति अदाणी ने हमारे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया.
सैनिक स्कूलों का भगवाकरण
अनुमोदन की सूची में केवल भाजपा नेता ही शामिल नहीं थे, निजी सैनिक स्कूलों को चलाने का अधिकार आरएसएस से जुड़ी संस्थाओं और कई हिंदू दक्षिणपंथी समूहों को भी दिया गया. विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान संघ का शैक्षणिक अनुषंगिक संगठन है. ऐसी सात संबद्धताएं भारत में पहले से मौजूद विद्या भारती स्कूलों को मिलीं हैं. इनमें से तीन बिहार में स्थित हैं, और एक-एक मध्य प्रदेश, पंजाब, केरल और दादरा और नगर हवेली में स्थित हैं. भाऊसाहब भुस्कुटे स्मृति लोक न्यास, जो संघ के सामाजिक सेवा संगठन राष्ट्रीय सेवा भारती से जुड़ा है, वह भी स्कूलों को चलाने वाले समूह का हिस्सा है. होशंगाबाद में उनके स्कूल, सरस्वती ग्रामोदय हायर सेकेंडरी स्कूल को मंजूरी मिली.
विद्या भारती, जिस पर अक्सर इतिहास को नए सिरे से लिखने, उसमें तोड़मरोड़ के आरोप लगते है, मुस्लिम विरोधी पाठ्यक्रम का आरोप लगाया जाता है, इसको लेकर स्पष्ट है कि वे अपने मिशन को कैसे चलाते हैं. आरएसएस ने अपने अधीन स्कूलों की बढ़ती संख्या को संचालित करने के लिए 1978 में विद्या भारती की स्थापना की थी. वर्तमान में इसके अंतर्गत 12,065 औपचारिक स्कूल हैं, जिनमें 31,58,658 छात्र हैं, जो इसे भारत में निजी स्कूलों के सबसे बड़े नेटवर्क में से एक बनाता है. जैसा कि उनकी वेबसाइट पर उल्लेख किया गया है, वे "एक ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण करना चाहते हैं जो हिंदुत्व के लिए प्रतिबद्ध हो और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत हो."
नए नीतिगत बदलावों ने सैनिक स्कूलों को चलाने वाले मूल सोच को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं. पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मेनन ने इस बात पर सहमति जताई कि ऐसे संगठनों को अनुबंध देने से सशस्त्र बलों के चरित्र और लोकाचार पर असर पड़ेगा. उन्होंने कहा, "यह साफ़ है कि कच्ची उम्र में ट्रैप करने की सोच काम कर रही है.” मेनन वर्तमान में तक्षशिला संस्थान में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक हैं.
एक लेख में, मेनन ने "शिक्षा के वैचारिक रूप से झुके हुए संस्करण को बढ़ावा देने के लिए संघ और निजी पार्टियों के बीच विकसित होने वाले सांठगांठ के संभावित खतरे पर प्रकाश डाला है जो कि संविधान में निहित मूल्यों से बहुत दूर है.
आरएसएस, स्कूल टेक्स्ट्स एंड द मर्डर ऑफ महात्मा गांधी: द हिंदू कम्युनल प्रोजेक्ट पुस्तक के सह-लेखक आदित्य मुखर्जी को यह बात चौंकाने वाली लगी कि ऐसे स्कूलों को रक्षा मंत्रालय से आधिकारिक समर्थन प्राप्त हुआ. मुखर्जी ने द कलेक्टिव को बताया, “लोकतंत्र में, विद्या भारती जैसे स्कूलों का अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए क्योंकि वे अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं. लेकिन कम से कम वे केवल आरएसएस स्कूल थे. उन्हें राष्ट्रीय संस्थानों, विशेषकर रक्षा संस्थानों से संबद्ध करके, सरकार देश के सामने एक अकल्पनीय खतरा खड़ा कर रही है. इससे रक्षा बलों का बहुसंख्यकवादी, सांप्रदायिक दृष्टिकोण से संक्रमित हो जाना लाज़िमी है.''
द कलेक्टिव के साथ एक साक्षात्कार में, विद्या भारती केंद्रीय कार्यकारी समिति के महासचिव अवनीश भटनागर कहते हैं, “हम इन अर्ज़ियों पर अपनी तरफ से हस्तक्षेप नहीं करते. प्रत्येक स्कूल व्यक्तिगत स्तर पर आवेदन करता है. स्कूल समिति को पता होगा कि क्या उनका पक्ष लिया गया था. मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता.”
हालांकि, विद्या भारती केंद्रीय कार्यकारी समिति के अध्यक्ष डी. रामकृष्ण राव ने इस तरह की अन्य संबद्धताओं के लिए आवेदन करने की योजना के बारे में बात की. राव ने कहा, “अभी के लिए, हमने केवल कुछ स्कूलों के साथ प्रयास किया. लेकिन हम और ज़्यादा विद्या भारती स्कूलों को आवेदन करने और एसएसएस से संबद्ध कराने की योजना बना रहे हैं.”
सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एजुकेशन सोसाइटी द्वारा संचालित भोंसला मिलिट्री स्कूल, नागपुर को भी सैनिक स्कूल के रूप में चलाने की मंजूरी दी गई. स्कूल की स्थापना 1937 में दक्षिणपंथी हिंदू विचारक बीएस मुंजे द्वारा की गई थी. 2006 के नांदेड़ बम विस्फोट और 2008 के मालेगांव विस्फोटों की जांच के दौरान, महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते ने भोंसला मिलिट्री स्कूल की जांच की, जहां विस्फोट के आरोपियों को कथित तौर पर प्रशिक्षित किया गया था.
बीएमएस की तरह ही कई अन्य हिंदू धार्मिक ट्रस्टों, जिनमें से कुछ की स्थापना हिंदुत्व समर्थकों द्वारा की गई है, को अपने मौजूदा ढांचे में सैनिक स्कूल चलाने की मंजूरी मिल गई है. इसमें हिंदुत्ववादी नेता साध्वी ऋतंभरा के ऊपर उल्लिखित दो स्कूल शामिल हैं.
दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए अपने भाषणों के लिए कुख्यात ऋतंभरा को इतिहासकार तनिका सरकार ने "मुस्लिम विरोधी हिंसा भड़काने का सबसे शक्तिशाली साधन" करार दिया है. अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच करने वाले लिब्रहान आयोग ने ऋतंभरा सहित 68 लोगों पर देश को "सांप्रदायिक असहनशीलता के कगार पर ले जाने" का आरोप लगाया था.
वह आज भी संघ परिवार में महत्वपूर्ण हैं और कई भाजपा नेताओं की करीबी हैं. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दिसंबर 2023 में उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं देने के लिए वृंदावन गए थे. जनवरी में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सभी लड़कियों के लिए संविद गुरुकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल का उद्घाटन किया. समारोह के दौरान, सिंह ने राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए ऋतंभरा की सराहना की. “दीदी मां (ऋतंभरा) ने राम मंदिर आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने समाज को अपना परिवार माना है,” सिंह के हवाले से समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने यह वक्तव्य जारी किया था.
हरियाणा के कुरूक्षेत्र में श्रीमती केसरी देवी लोहिया जयराम पब्लिक स्कूल, का मालिकाना हक़ भारत साधु समाज (बीएसएस) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पास है. बीएसएस हिंदू संन्यासियों की एक सामाजिक इकाई है. श्री ब्रह्मानंद विद्या मंदिर गुजरात के जूनागढ़ को भी सैनिक स्कूल की मान्यता मिली है, इसे भगवतीनंदजी एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है, जिसके प्रबंध ट्रस्टी मुक्तानंद 'बापू' - 2019 से भारत साधु समाज (बीएसएस) के अध्यक्ष हैं.
केरल के एर्नाकुलम में श्री शारदा विद्यालय एक हिंदू धार्मिक संगठन आदि शंकर ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है, जो शृंगेरी शारदा पीठम की एक इकाई है. श्रृंगेरी शारदा पीठ एक सनातन हिंदू मठ है. माना जाता है कि इसे 8 वीं शताब्दी के हिंदू दार्शनिक और विद्वान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था.
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने रक्षा मंत्रालय और सैनिक स्कूल सोसायटी को सवालों की विस्तृत फेहरिस्त भेजी है. कई बार संपर्क करने पर भी हमें अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. परम शक्ति पीठ की संस्थापक, साध्वी ऋतंभरा और इसके महासचिव संजय गुप्ता के साथ बातचीत का अनुरोध भी अनुत्तरित रहा.
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