पीएम किसान मान-धन: 5 साल में 5 प्रतिशत भी पूरी नहीं हुई 5 करोड़ का जीवन सुधारने वाली योजना

झारखंड चुनाव से ठीक पहले सितंबर, 2019 में पीएम मोदी ने रांची से इसकी शुरुआत की थी. दावा किया गया था कि इस योजना से 5 करोड़ लघु और सीमांत किसानों का जीवन सुरक्षित होगा.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर

झारखंड चुनाव से ठीक पहले सितंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रांची में किसान मान धन योजना का शुभारंभ किया था. तब पत्र सूचना कार्यालय यानि पीआईबी ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया था कि इस योजना से 5 करोड़ लघु और सीमांत किसानों का जीवन सुरक्षित होगा. हालांकि, बीते करीब पांच सालों में 5 करोड़ के इस दावे का 5 प्रतिशत भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है. 

सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के जरिए न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के मुताबिक, बीते पांच सालों में 23 लाख 40 हज़ार 192 किसानों ने ही इस योजना के लिए पंजीकरण करवाया है. आंकड़े बताते हैं कि इस योजना के प्रति किसानों में खास दिलचस्पी नहीं है.

इस योजना के तहत 18 से लेकर 40 साल की उम्र वाले किसान अपना पंजीकरण करा सकते हैं. इसके लिए उन्हें हर महीने 55 रुपये से लेकर 200 रुपये तक जमा कराना पड़ता है. 60 साल की आयु पूरी करने के बाद किसानों को पेंशन के रूप में हर महीने तीन हजार रुपये दिए जाएंगे. अगर किसान की मृत्यु हो जाती है तो उस पर आश्रित शख्स को 15 सौ रुपये प्रति महीना मिलेंगे. 

हाल ही में जब देश के अलग-अलग हिस्सों के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी पर कानून की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे तब मीडिया ने इस योजना के बारे में फिर से ख़बरें प्रकाशित की. 

जैसे- ज़ी न्यूज़ ने लिखा, ‘किसानों के लिए शानदार है ये सरकारी स्कीम, बस ₹55 प्रतिमाह जमा कराने पर मिलेगी 3000 रुपये मंथली पेंशन‘ 

वहीं, इंडिया न्यूज़ ने PM Kisan Mandhan Yojana: इस योजना में किसानों को हर महीने 3000 रुपये देती है सरकार, जानें कैसे करें आवेदन शीर्षक से खबर प्रकाशित की हैं. 

कृषि एवं कल्याण मंत्रालय ने इस योजना के तहत अब तक पंजीकरण कराने वाले किसानों की जानकारी  साझा की. आरटीआई के तहत मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक, साल 2019-20 में 19 लाख 96 हजार 983, साल 2020-21 में 1 लाख 13 हज़ार 754, साल 2021-22 में 1 लाख 49 हज़ार 12 किसानों ने पंजीकरण करवाया. पिछले दो सालों में इसमें और गिरावट आई.  साल 2022-23 में 72 हज़ार 436 और 2023-24  (फरवरी 2024 तक)  सिर्फ 8,OO7 किसानों ने इस योजना के तहत अपना पंजीकरण करवाया. 

आंकड़ों से साफ पता चल रहा है कि किसानों की इस योजना में दिलचस्पी कम हो रही है. अगर राज्यवार आंकड़ों की बात करें तो सबसे ज़्यादा सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में अब तक 2 लाख 52 हज़ार 950 किसानों ने इसके लिए पंजीकरण करवाया है. इसमें 2 लाख 40 हज़ार 261 किसानों ने 2019-20 में अपना पंजीकरण करवाया है. वहीं, 2020-21 में 6 हज़ार 336, 2021-22 में 2 हज़ार 645, 2022-23 में 3 हज़ार 3 सौ 71 और 2023-24 आते-आते यह आंकड़ा सिर्फ 337 हो गया. 

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हरियाणा की करें तो यहां अब तक 4 लाख 32 हज़ार 622 किसानों ने पंजीकरण कराया है. इसमें से 4 लाख 22 हज़ार 726 किसानों ने 2019-20 में पंजीकरण कराया. वहीं, उसके बाद वित्त वर्ष 2020-21 में 2 हज़ार 141, 2021-22 में 7,109, 2022-23 में 551 और 2023 -24 में यह आंकड़ा महज 95 है.  

झारखंड- जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की शुरुआत की थी- वहां 26 फरवरी 2024 तक कुल 2 लाख 52 हज़ार 847 किसान अपना पंजीकरण करवा चुके हैं. इनमें से 2 लाख 43 हज़ार 213 किसानों ने वित्त वर्ष 2019-20 में ही अपना नाम दर्ज करवाया था. वहीं, वित्त वर्ष 2020-21 में 3 हज़ार 271, 2021-22 में 1705, 2022-23 में 1,015 और 2023-24 में 3,643 में किसानों ने पंजीकरण कराया है. 

किसानों तक नहीं पहुंच रही योजना!

गौतम बुद्ध नगर जिले के गढ़ी शाहपुर गांव के रहने वाले राजीव कुमार खेती करते हैं. 14 मार्च को रामलीला मैदान में संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर वे दिल्ली में एक दिवसीय प्रदर्शन में शामिल हुए. कुमार से जब हमने पीएम किसान मानधन योजना के बारे में पूछा तो वो कहते हैं, ‘‘सब कागजों में है, गांवों तक नहीं पहुंची है. हमारे गांव में इसका कोई प्रचार नहीं हुआ. मेरी जानकारी में तो किसी किसान ने इसके लिए नामांकन नहीं करवाया है.”

यहीं मिले उत्तराखंड, हरिद्वार के सुकुपाल सिंह भी इस योजना से अनभिज्ञ नजर आते हैं. वो कहते हैं, “मेरे गांव में तो शायद ही किसी ने इस योजना के लिए अप्लाई किया हो. इस योजना का नाम भी मैंने आपसे ही सुना है.”

प्रधानमंत्री किसान योजना पर खर्च हुआ सालाना बजट

न्यूज़लॉन्ड्री ने आरटीआई के जरिए योजना के प्रचार-प्रसार पर खर्च राशि का भी ब्यौरा मांगा, लेकिन सरकार ने ये जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई. अगर इस योजना के लिए जारी बजट की बात करें तो 2019-20 में एक अरब 25 करोड़ रुपया खर्च हुआ. उसके बाद 2020-21 में एक अरब 10 करोड़,  2021-22 में यह घटकर 40 करोड़, 2022-23 में 12 करोड़ 50 लाख हो गया. उसके बाद 2023-24 में फिर से यह बढ़कर एक अरब हो गया है. 

मालूम हो कि इस योजना के लिए 2 हेक्टेयर यानी करीब 5 एकड़ जमीन होनी चाहिए. योजना में जितना पैसा किसान देते हैं उतना ही केंद्र सरकार की तरफ से दिया जाता है.

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के पढ़ुआ गांव के रहने वाले जेपी मौर्या एक प्रगतिशील किसान माने जाते हैं. वे 2 हेक्टेयर से ज़्यादा की खेती करते हैं. ऐसे में वह इस योजना के अंतर्गत नहीं आते. जब हमने उनसे पूछा तो वो कहते हैं, ‘‘मैं पहली बार आपसे इस योजना के बारे में सुन रहा हूं. सरकारी योजनाएं आती हैं तो मैं किसानों को उस बारे में बताता हूं लेकिन मुझे ही जब इसके बारे में नहीं मालूम तो क्या कह सकता हूं.’’

भाजपा से जुड़े बाराबंकी के रहने वाले अमरेंद्र सिंह से का कहना था कि एक तो लोगों को इसकी जानकारी नहीं है दूसरा, जिन्हें पता है वो भी भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. इसमें लंबे समय तक किसानों को पैसे जमा करने हैं. लोगों में डर रहता है कि कोई अन्य सरकार आएगी तो योजना बंद न हो जाए. मेरी जानकारी में तो एक भी शख्स नहीं है, जिसने इस योजना के तहत रजिस्ट्रशन कराया है.     

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस योजना को लेकर कृषि एवं कल्याण मंत्रालय से संपर्क किया. अधिकारी हमारे सवालों को एक-दूसरे का नाम लेकर टालते रहे. फिलहाल, हमने मंत्रालय के सचिव मनोज आहूजा को अपने सवाल भेजे हैं. अगर उनका कोई जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा. 

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