इलेक्टोरल ट्रस्ट का इस्तेमाल बड़े व्यवसायियों की ओर से राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जाता है, बिना सीधे यह बताए कि वे किस पार्टी का समर्थन करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट की एक्सक्लूसिव इन्वेस्टिगेशन सीरीज का तीसरा भाग.
इस श्रृंखला का पहला और दूसरा भाग पढ़ें.
2022-23 में कांग्रेस को इलेक्टोरल ट्रस्टों के चंदे में 100 में से 19 पैसे मिले. इलेक्टोरल ट्रस्ट एक ऐसी योजना है, जिसमें कॉरपोरेट कंपनियां पार्टियों के दिए जाने वाले चुनावी चंदे को एक ट्रस्ट में जमा करती हैं. कंपनियों का सीधे तौर पर नाम उजागर किए बैगर अलग-अलग राजनीतिक दलों में चंदे का पैसा बांटा जाता है.
असल में 2013 और 2023 के बीच 10 सालों में कांग्रेस को इलेक्टोरल ट्रस्टों के जरिए जो रकम मिली है वह भाजपा को सिर्फ 2022-23 में मिली रकम से भी कम है.
हालांकि, इस बारे में कोई साफ जानकारी नहीं है कि ये ट्रस्ट काम कैसे करते हैं या फिर वे हरेक राजनीतिक दल को मिलने वाली रकम पर किस आधार पर फैसले लेते हैं.
इस व्यवस्था के तहत भाजपा को जो पैसा मिला है वह भारती ग्रुप द्वारा स्थापित एक ही संगठन प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से आया है.
2024 के आम चुनाव करीब आ चुके हैं. ऐसे में चुनावी मैदान में उतरने वाली दो सबसे बड़ी पार्टियों को मिले चंदे में भारी असमानता साफ दिख रही है. तो क्या राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल ट्रस्ट में एक समान मौका मिला है? और क्या लोकतंत्र में राजनीतिक दल कैसा प्रदर्शन करते हैं, इस पर बड़ी कंपनियों का प्रभाव होता है?
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