चुनाव आयोग के रिकॉर्ड, केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई और वित्तीय रिकॉर्ड एक पैटर्न की ओर इशारा करते हैं. पढ़िए न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट की एक्सक्लूसिव इन्वेस्टिगेशन सीरीज का दूसरा भाग.
पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
➨ वित्तीय वर्ष 2018-19 से 2022-23 के बीच भाजपा को कुल लगभग 335 करोड़ रुपये का चंदा देने वाली कम से कम 30 कंपनियों को इसी अवधि के दौरान केंद्रीय एजेंसियों की छापेमारी का सामना करना पड़ा.
➨ इन कंपनियों में से 23 कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने इस अवधि के दौरान पार्टी को कुल 187.58 करोड़ रुपये चंदा दिया. जबकि इन्होंने 2014 से छापा पड़ने की अवधि के बीच कभी भी भाजपा को चंदा नहीं दिया था.
➨ इन 23 कंपनियों में से कम से कम चार ऐसी हैं जिन्होंने कार्रवाई के चार महीनों के भीतर कुल 9.05 करोड़ रुपये का चंदा दिया.
➨ इनमें से कम से कम छह कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने पहले भी भाजपा को चंदा दिया था, लेकिन छापेमारी के बाद के महीनों में चंदे की रकम को और बढ़ा दिया.
➨ छह अन्य कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने कुछ साल पहले भाजपा को चंदा दिया था लेकिन एक साल चंदा रोक दिया. और रोकते ही उन्हें केंद्रीय एंजेंसियों की कार्रवाई का सामना करना पड़ा.
➨ कम से कम तीन भाजपा के दानदाता, जो 30 की सूची का हिस्सा नहीं हैं, ऐसे हैं जिन पर केंद्र से अनुचित लाभ प्राप्त करने का आरोप लगाया गया था.
➨ इसी अवधि के दौरान कुल 32 कंपनियों में से केवल तीन ने कांग्रेस को चंदा दिया.
ये आंकड़े वित्तीय वर्ष 2018-19 से 2022-23 के बीच चुनाव आयोग के रिकॉर्ड, केस फाइलों और वित्तीय विवरणों की न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज मिनट द्वारा की गई पड़ताल के निष्कर्ष हैं. कुछ मामलों में, कंपनी पर छापे के दौरान या उसके बाद चंदा दिया गया था और कुछ अन्य में, दान करने वाली कंपनियों को लाइसेंस या मंजूरी मिली थी.
इस रिपोर्ट में उल्लेखित प्रकरण केंद्रीय एजेंसियों द्वारा छापे/सर्वेक्षण और भाजपा को चंदा देने के बीच एक पैटर्न की ओर इशारा करते हैं. राजनीतिक फंडिंग के जबरन वसूली से कम न होने के आरोप पहले भी सुर्खियों में रहे हैं.
यह बात इस तथ्य को देखते हुए और भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि विपक्षी नेताओं और उनके समर्थकों के खिलाफ सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर (आईटी) विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई में वृद्धि हुई है. नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा 2017 में घोषित चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर पहले से ही चिंताएं जाहिर की गई थी कि सरकार एक अपारदर्शी प्रणाली लेकर आई है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था, साथ ही यह चेतावनी भी दी कि इससे परस्पर लेनदेन (क्विड प्रो को) वाली व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है.
लेकिन यह सिर्फ राजनीतिक चंदे और चुनावी बॉन्ड की बात नहीं है- भाजपा को चुनावी ट्रस्टों के माध्यम से भी सबसे ज्यादा रकम मिली है. चुनाव आयोग द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2022-23 में चुनावी ट्रस्टों द्वारा दिए गए कुल दान का 70% से अधिक भाजपा के हिस्से में गया.
तो, वे 30 कंपनियां कौन थीं जिन्होंने 2018-19 से 2022-23 के बीच सीधे भाजपा को दान दिया? वे कहां की कंपनियां थीं? उन पर क्या आरोप लगाए गए?
आइये देखते हैं.
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