क्या सरकारी कीमतों के ‘डर’ से एचओएबीएल को जमीन बेच रहे अयोध्यावासी?

अयोध्या में जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं लेकिन सरकारी दर बहुत कम है. इसका डर दिखाकर निजी कंपनी बड़ी मात्रा में जमीन खरीद रही है.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
Article image

अयोध्या से करीब आठ किलोमीटर दूर माझा तिहुरा गांव है. लखनऊ-अयोध्या हाईवे से इस गांव को जाने वाला रास्ता बदहाल है. हालांकि, यहां फोर लेन की सड़क प्रस्तावित है.

जर्जर रास्ते से करीब डेढ़ किलोमीटर अंदर जाने पर हमें टीन शेड से घिरी हुई बड़ी-बड़ी ज़मीनें नज़र आई. सड़क के बाईं तरफ अमिताभ बच्चन का हाथ जोड़े मुद्रा वाला बड़ा सा होर्डिंग दिखा. इस पर ‘द हाउस ऑफ़ अभिनंदन लोढ़ा’ और ‘द लीला प्लेस’ लिखा हुआ है.

ये टीन शेड से घिरी जमीनें ‘द हाउस ऑफ़ अभिनंदन लोढ़ा’ (एचओएबीएल) की हैं. जो इन्होंने माझा तिहुरा के ग्रामीणों से पिछले एक साल में खरीदी हैं. खबरों के मुताबिक, यहीं पर अमिताभ बच्चन ने भी जमीन ख़रीदी है. हालांकि, अभी जमीन की खरीदी नहीं हुई है बल्कि सिर्फ अनुबंध हुआ है. 

मुंबई स्थित रियल एस्टेट के बड़े कारोबारी अभिनन्दन लोढ़ा, महाराष्ट्र के पयर्टन मंत्री और जाने माने व्यवसायी मंगल लोढ़ा के बेटे हैं. माझा तिहुरा में इनकी कंपनी एचओएबीएल एस्टेट होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड ने मई 2023 से जमीनों की खरीद-फरोख्त शुरू की थी. उत्तर प्रदेश के स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन विभाग की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, अब तक यह कंपनी 10.30 हेक्टेयर यानी लगभग 25 एकड़ जमीन अयोध्या में खरीद चुकी है और यह सिलसिला अभी जारी है. 

इस कंपनी के नाम अब तक लगभग 75 रजिस्ट्रियां हमारी जानकारी में आई हैं. 2023 में कुछ दिन ऐसे भी थे जब इस कंपनी ने एक ही दिन के भीतर दस-दस रजिस्ट्री कराई. स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन विभाग द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर जब हमने इन तमाम खरीद के सर्कल रेट का आकलन किया तो इसकी कीमत 14 करोड़ 68 लाख 58 हज़ार रुपए आई. लेकिन एचओएबीएल ने इस ज़मीन के लिए जो कीमत अदा की है उसका मूल्य है 38 करोड़ 10 लाख 22 हज़ार 556 रुपए. 

माझा तिहुरा गांव से सबसे ज़्यादा 81 बिस्वा जमीन पूरन यादव ने एचओएबीएल को बेची है. उनके बेटे राजेंद्र यादव के मुताबिक, खरीद के समय कंपनी आधा पैसा दे देती है. बाकी बचे पैसे चेक के जरिए देती है जो छह महीने के भीतर खाते में आ जाता है.   

बता दें कि उत्तर प्रदेश में एक हेक्टेयर में 79 बिस्वा जमीन होती है. वहीं, एकड़ के हिसाब से बात करें तो एक एकड़ में 32 बिस्वा जमीन होती है. 

एचओएबीएल ने कुछ ही महीनों के भीतर अयोध्या में इतनी बड़ी संख्या में जमीन खरीद ली. तो ऐसा क्या हुआ कि लोगों ने इस कंपनी को जमीन बेच दी. कुछ लोग इसके पीछे सरकार द्वारा जमीन लेने का डर बताते हैं. जिसकी वजह से ये लोग कंपनी को जमीन बेच रहे हैं.  

‘‘सरकार के डर से कंपनी को बेच रहे हैं’’

33 वर्षीय रामजी यादव और इनके रिश्तेदारों ने लगभग 110 बिस्वा जमीन एचओबीएल को बेची है. जिसमें दस बिस्वा इनकी है. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब रामजी से जमीन बेचने की वजह पूछी तो वो कहते हैं, ‘‘सरकार के डर से हमने एचओएबीएल को जमीन बेचना ठीक समझा क्योंकि कम से कम ये वाजिब दाम तो दे रहे हैं.’’ इनके परिवार को एक बिस्वा का 4 लाख 15 हज़ार रुपये मिला है. 

उनके साथ ही उनकी चाची ज्ञानमती यादव थीं. इन्होंने 20 बिस्वा जमीन एचओएबीएल को बेची है. नाराज़ ज्ञानमती स्थानीय भाषा में कहती हैं, “हमें मूर्ख बनाया गया है. हमसे डरा-धमका के जमीन ले ली. इनके (एचओएबीएल के) लोग आकर कहते थे कि हमें बेच दो नहीं तो सरकार औने-पौने दाम में ले लेगी.”

ज्ञानमती यादव

वे आगे कहती हैं, “हम सरकार से तो लड़ नहीं सकते हैं. अगर वो लेना चाहें तो रोक भी नहीं सकते हैं. ऐसे में हमने जमीन इन्हें (एचओएबीएल) ही बेच दी. तब हमें 4.15 लाख रुपए बिस्वा का रेट मिला. उसके बाद अब छह लाख बिस्वा तक दे रहे हैं..’’  

ज्ञानमती के पति दूधनाथ यादव कहते हैं, ‘‘अनपढ़ थे इसलिए उल्लू बना दिए.’’

किसने यह बात कही कि हमें दे दो नहीं तो सरकार ले लेगी? इस सवाल के जवाब में ज्ञानपति, विकास पांडेय का नाम लेती हैं. ‘‘सरकार से दो बार मनई (अधिकारी) आए थे नोटिस लेकर, जिसमें ये था कि सरकार इस गांव का अधिग्रहण करने वाली है.’’ 

इसी गांव के रहने वाले रामरूप मांझी ने 11 बिस्वा जमीन एचओएबीएल को बेची है. उनका घर ग्रुप की दो जमीनों के बीच आ रहा है. ऐसे में वो घर भी खरीदना चाहते हैं. मांझी उचित मूल्य मिलने पर अपना घर जमीन समेत बेचने को तैयार हैं. हमने पूछा इतनी जल्दबाजी क्यों है? तो मांझी वही जवाब दोहराते हैं जो बाकी लोगों ने दिया था. वो कहते हैं, ‘‘इन्हें नहीं देंगे तो सरकार ले लेगी. कम से कम ये बढ़िया कीमत तो दे रहे हैं.’’

इस गांव में दस से ज़्यादा लोगों से हमारी मुलाकात हुई. सबका यही कहना था कि सरकार के डर से हम कंपनी को जमीन दे रहे हैं. गांव के मुहाने पर हमारी मुलाकात गंगाराम यादव से हुई. इनके पिता दुर्गा प्रसाद यादव, इस गांव में एचओएबीएल को सबसे ज़्यादा जमीन बेचने वालों में दूसरे नंबर पर हैं. पहले नंबर पर पूरन यादव हैं. उन्होंने 81 बिस्वा जमीन बेची है. दुर्गा प्रसाद ने 39 बिस्वा जमीन बेची है.

गंगाराम भी इसी डर का जिक्र करते हैं. वो कहते हैं, ‘‘ सरकार कीमत कम देती और ये लोग ज्यादा दे रहे थे. इसलिए हमने इन्हें जमीन दी है. हम जमीन बेचना नहीं चाहते थे लेकिन एचओएबीएल के लोग पहले मान-मनौव्वल किए और फिर सरकार अधिग्रहण कर लेगी इसका डर दिखाने लगे. मज़बूर होकर हमने उन्हें बेच दिया.’’

आरोपों पर एचओएबीएल की सफाई 

उधर, एचओएबीएल के जिस विकास पांडेय का नाम लेकर गांववालों ने कहा कि जमीन लेने के लिए वो लोगों को डरा- धमका रहे थे. उनसे भी हमने इन आरोपों पर बात की. पांडेय का कहना था कि सभी आरोप निराधार हैं. सभी लोगों ने अपनी सहमति से जमीन कंपनी को बेची है. 

वे कहते हैं, “किसी की जमीन किसी भी बहकावे में किसी के दबाव में या किसी के साथ जोर जबरदस्ती करके नहीं लिखवाई गई है. सभी लोगों ने एक वर्ष तक कंपनी के लोगों के साथ अपनी सहमति बनाए रखी. कंपनी ने अपनी जांच पड़ताल और प्रक्रिया को पूरी करने के बाद इस जमीन को खरीदा है. आज हमारे डेवलपमेंट को देखकर किसान कोई भी बात करे उसका कोई औचित्य नहीं है. ” 

हमारी जानकारी में ये भी आया है कि नवंबर तक एचओएबीएल ने इन्हीं विकास पांडेय के नाम पर जमीनें खरीदी हैं.

सरकार से डर कैसा?

निजी व्यक्ति या निजी कंपनियों से सताये लोग अपने हक़ के लिए सरकार के पास पहुंचते हैं लेकिन यहां लोग सरकार से कंपनी की तरफ भाग रहे हैं. ऐसा क्यों? 

इसके पीछे बड़ी वजह है जमीन की कीमत कम मिलना. इसका कारण है 2017 के बाद अयोध्या में सर्किल रेट (सरकार द्वारा तय जमीन की कीमत) ना बढ़ना. अयोध्या के अलावा राज्य के अन्य हिस्सों में सर्कल रेट बदल चुका है. 

माझा तिहुरा, माझा बराठा हो या माझा शाहनेवाजपुर माझा, इन तीनों गांवों में जमीन सरकार अधिग्रहण करने वाली है. माझा बराठा और शाहजवाजपुर में उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद खरीद कर रहा है. तिहुरा में आवास एवं विकास परिषद के अधिकारी ओपी पांडेय, तब के स्थानीय एसडीएम और असिस्टेंट रेवेन्य अफसर (एआरओ) इसके लिए बातचीत करने आए थे. लोगों से कई दौर की बैठक हुई लेकिन बात नहीं बनीं. 

इस बैठक में शामिल रहे रामरूप मांझी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘दो-तीन बार ये अधिकारी यहां आए थे. उन्होंने बताया कि इस गांव की जमीन की दर 54-55 हज़ार रुपए बिस्वा है. हम इसके चार गुना तक दे सकते हैं. इससे ज्यादा नहीं. जबकि किसान ज़्यादा की मांग कर रहे थे.’’

रामचरण यादव

गांव के प्रधान रामचरण यादव ने हमें बताया कि उस समय किसान छह लाख बिस्वा की कीमत मांग रहे थे. अभी उन्होंने गांव की कुछ जमीनें ली हैं जिसके बदले ढाई लाख रुपए बिस्वा दे रहे हैं. वहीं, एक कंपनी है जो छह लाख रुपए दे रही है. इसीलिए कई ग्रामीण कंपनी को बेच रहे हैं.’’

पूरन यादव जिन्होंने गांव में सबसे ज़्यादा जमीन एचओएबीएल को दी है. सर्कल रेट के हिसाब से उनकी जमीन की कीमत 29 लाख 99 हज़ार रुपए होती है लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक, एचओएबीएल ने उन्हें 4 करोड़ 35 हज़ार 354 रुपए दिये हैं.

राज बहादुर ने एचओएबीएल को 64.55 बिस्वा जमीन बेची है. सर्कल रेट के मुताबिक, इसकी कीमत 45 लाख 54 हज़ार रुपए है. वहीं, कंपनी ने इन्हें 3 करोड़ 23 लाख 23 हज़ार 232 रुपए दिए हैं. 

लेकिन ऐसा हर बार होता नजर नहीं आता है. हमने ये भी पाया कि कंपनी ने सबको एक रेट नहीं दिया. जिससे जिस रेट पर बात बनी उसे उसी हिसाब से पैसे दिए गए हैं.  जैसे ममता सिंह, आशीष प्रजापति और राहुल मणि ने 0.0633 हेक्टेयर जमीन एचओएबीएल को बेची है. जमीन के इतने हिस्से का बाजार मूल्य 17 लाख 29 हज़ार है. लेकिन कंपनी ने इतनी ही जमीन ( 0.0633 हेक्टेयर) के लिए ममता शर्मा को 30 लाख रुपए दिए हैं. वहीं, बाकी दो को क्रमशः 20 लाख और 25 लाख रुपए दिए हैं. इसी तरह रामरूप मांझी की 11 बिस्वा जमीन का सर्कल रेट 38 लाख 7 हजार रुपए था. उन्हें एचओएबीएल द्वारा 49 लाख 50 हज़ार रुपए मिले थे.  

क्या यह डर वाजिब है या फैलाया गया?

इस जवाब की तलाश में हम उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद के अधिकारी ओपी पांडेय से मिलने पहुंचे. तिहुरा के ग्रामीणों के साथ यही अधिकारी बैठक करने जाते थे.

किसानों का आरोप है कि आवास एवं विकास परिषद पास के ही गांव शाहनेवाजपुर माझा में छह लाख बिस्वा जमीन खरीद रहा है, लेकिन उनके गांव में 2.50 लाख रुपए क्यों? जब हमने यह सवाल पांडेय से पूछा तो वो कहते हैं, ‘‘हम सरकारी कर्मचारी हैं. नियमों के तहत ही खरीद करते हैं. शाहनेवाजपुर का सर्कल रेट ज़्यादा है. तिहुरा का सर्कल रेट 11 लाख प्रति हेक्टेयर है. हम उन्हें इसका चार गुना यानी 44 लाख प्रति हेक्टेयर देने को तैयार हैं. इससे ज़्यादा हम नहीं दे सकते हैं.’’

ओपी पांडेय

एक हेक्टेयर में 79 बिस्वा होता है. इस हिसाब से देखें तो यह एक बिस्वा की कीमत महज 55 हज़ार होती है. 

पांडेय आगे कहते हैं, ‘‘माझा तिहुरा में हमने 700 एकड़ का गज़ट नोटिफिकेशन करा लिया है. उस जमीन का हमने अधिग्रहण नहीं किया है, लेकिन कभी भी कर सकते हैं. उस जमीन को किसान बेच नहीं सकते हैं. हम इस जमीन के सरकार द्वारा तय हिसाब से ही पैसे देंगे. दूसरी बात हमें अभी वहां और जमीन की ज़रूरत नहीं है, इसीलिए किसान क्या कर रहे हैं उसकी जिम्मेदारी हम कैसे ले सकते हैं.’’

क्या आगे आप तिहुरा माझा में और जमीन ले सकते हैं? इसपर पांडेय कहते हैं, ‘‘सरकार आगे क्या फैसला लेती हैं वो हमें नहीं पता. अगर फैसला लेगी तो हम जमीन तो लेंगे ही. किसान अगर ना देना चाहे तो हम जिलाधिकारी के माध्यम ले सकते हैं. क्योंकि जमीन के असली मालिक जिलाधिकारी ही होते हैं. शहनवाजेपुर माझा में कुछ किसान जमीन नहीं देना चाहते थे. हमने जिलाधिकारी के माध्यम से ले ली.  उस जमीन की कीमत किसान जिलाधिकारी से लेंगे. ’’

पांडेय की बात सुनने के बाद साफ लगता है कि किसानों का डर वाजिब है. उनका अंदेशा जायज है. वो कहते हैं कि सरकार जमीन लेना चाहेगी तो ले लेगी. पांडेय भी तो यही कह रहे हैं.  

इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

20 जनवरी, शाम 5 बजे अपडेट: इस रिपोर्ट में पहले कंपनी का नाम गलती से लोढ़ा ग्रुप लिखा गया. हाउस ऑफ अभिनंदन लोढ़ा (एचओएबीएल) कंपनी लोढ़ा ग्रुप से अलग कंपनी है. त्रुटि के लिए हमें खेद है. लेख के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर भी बदल दी गई है.

Also see
article imageअधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और आडवाणी को न्योते से इनकार पर क्या बोले विनय कटियार
article image‘मस्जिद का निर्माण होगा भी नहीं’, आखिर इतने नाउम्मीद क्यों हैं अयोध्या के मुसलमान ?

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like