अयोध्या के स्थानीय लोग राम मंदिर के निर्माण से तो खुश हैं लेकिन घरों और आजीविका को नुकसान पहुंचाने वाले बदलावों को लेकर उनमें असंतोष पनप रहा है.
साल 2024 के शुरुआती दिनों में अयोध्या शहर बॉलीवुड फिल्म के किसी बड़े से पौराणिक बड़े सेट की तरह दिख रहा है.
बुलडोजर, खुदाई करने वाली मशीनें और ड्रिलिंग मशीनें हर कोने पर शोर कर रही हैं. हज़ारों मज़दूर दिन- रात काम कर रहे हैं. वे फुटपाथ बना रहे हैं, बड़ी-बड़ी स्ट्रीट लाइट्स लगा रहे हैं और मंदिर के सामने वाले हिस्से को उस भव्य समारोह के लिए तैयार कर रहे हैं.
तीन मुख्य सड़कों के किनारे की इमारतें, जिनका नाम बदलकर राम पथ, भक्ति पथ और राम जन्मभूमि पथ कर दिया गया है- भगवा रंग, नागर शैली के मेहराब और रामायण से प्रेरित रूपांकनों से सजी हुई हैं, जिनमें हनुमान, धनुष और तीर और गदा शामिल हैं.
30,000 करोड़ रुपये की चौंकाने वाली लागत से विकसित एनिमेटेड लेआउट, भगवान राम के शासनकाल के दौरान अयोध्या के पौराणिक साम्राज्य की फिर से काल्पनिक अनुभूति पैदा करता है.
ये सारी चीजें 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में होने वाले राम मंदिर के ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा समारोह को नजर में रखते हुए हो रही हैं. जिसे भारतीय जनता पार्टी की ओर से आगामी लोकसभा चुनाव अभियान के आगाज की पृष्ठभूमि तैयार करने के तौर भी देखा जा रहा है.
मुख्य मंदिर के निर्माण का काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है. अनुमान है कि इसे 2025 तक पूरा कर लिया जाएगा. इसी मंदिर में पांच वर्षीय राम लला के स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा होगी. हालांकि, रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह और अयोध्या में हो रहे बदलावों को लेकर चर्चा जोरों पर है. भाजपा की ओर से किए गए राजनीतिक वादे के पूरा होने से उत्साहित हजारों रामभक्त भी रोजाना अयोध्या पहुंच रहे हैं.
सात दशकों से अयोध्या के निवासियों ने राम जन्मभूमि के आसपास रहने के दर्द और राजनीति को महसूस किया है. इस इलाके में विकास लंबे समय से रुका हुआ था लेकिन अब जब बदलाव की बयार चली है तो ये अयोध्यावासियों के लिए किसी आर्शीवाद से ज्यादा एक अभिशाप बन चुकी है.
सीमित बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए किया जा रहा सड़कों का चौड़ीकरण और शहर का सौंदर्यीकरण लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. इस बदलाव ने लोगों के घरों और आजीविका को बुरी तरह प्रभावित किया है.
वक्त के ताने बाने में फंसे लोग
मंजू मोदनवाल अयोध्या की रहने वाली हैं. उनके घर का आधा हिस्सा ढहा हुआ है. घर में रसोई का सामान और कपड़े चारों ओर बिखरे हुए हैं. मिट्टी वाली फर्श पर बैठी हुई मंजू कहती हैं कि राम मंदिर का निर्माण "अच्छी बात" है.
भावहीन चेहरे के साथ वह अवधी भाषा में कहती है, “सबसे बड़ी समस्या समाप्त हो गई, और का?”
मंदिर बनने के साथ ही आख़िरकार अयोध्या को मंदिर-मस्जिद तनाव को निजात मिलेगी. वहां के निवासियों को अब सांप्रदायिक तनाव, कर्फ्यू और पुलिस की निरंतर बंदोबस्त की कीमत नहीं चुकानी होगी. हलवाई समुदाय से आने वाली मंजू को उम्मीद है कि उनके बच्चों का भविष्य कम से कम आर्थिक और सामाजिक तौर से बेहतर होगा, भले ही राम पथ पर स्थित उनके घर और उसी में बनी दुकान को तोड़ दिया गया हो, इसके बावजूद वह अपने परिवार को सहारा देने की कोशिश कर रही हैं.
जब मंदिर का निर्माण शुरू हुआ, तब मंजू को यह अंदाज़ा नहीं था कि उनके परिवार और शहर के बाकी लोगों को कुर्बानी देने के लिए मज़बूर किया जाएगा. अप्रैल में उनके घर के सामने वाले हिस्से को सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत तोड़ दिया गया. इस जगह पर वह चाट की दुकान चलाती थी. फैजाबाद में शहादतगंज को नए घाट से जोड़ने वाली 13 किलोमीटर लंबी सड़क को 20 मीटर चौड़ा करने के लिए कई प्राचीन मंदिरों और मस्जिदों सहित 4,000 से ज्यादा आवासीय और वाणिज्यिक ढांचों को गिरा दिया गया.
मंजू की बेटी रानी कॉलेज में पढ़ती हैं. वह कहती हैं, “हम पहली बार (अयोध्या में) किसी तरह का विकास देख रहे हैं. सालों से किसी भी सरकार ने इस शहर के लिए कुछ नहीं किया. आप जो कुछ भी नया देख रही हैं, वह पिछले दो बरस में विकसित किया गया है.”
मंदिर निर्माण को लेकर दशकों तक चले कानूनी और सांप्रदायिक संघर्ष ने अयोध्या के बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक सुविधाओं पर बुरा प्रभाव डाला है. शहर का बड़ा हिस्सा संकरी गलियों, ढहते आंगन, प्राचीन मंदिरों, मस्जिदों, मीनारों के अलावा ईंट और रेत के घरों से घिरा हुआ है. इन्हें देखकर लगता है कि मानो समय कहीं रुक सा गया है.
हनुमानगढ़ी और राम जन्मभूमि मंदिर के आसपास का तीन किलोमीटर तक का इलाका मंदिरों, छोटी दुकानों और फेरीवालों से भरा हुआ है. इन दुकानों में पूजा सामग्री, माला, प्लास्टिक के खिलौने, ज्वेलरी और आध्यात्मिक पुस्तकें बेची जाती हैं. यहां कोई बड़ी फैंसी दुकानें या रेस्तरां नहीं हैं. यहां आने वाले ज्यादातर आगंतुक दिन में आते हैं. वे लोग नाश्ते और चाय के लिए छोटे-छोटी दुकानों और खाने के लिए ढाबों पर निर्भर होते हैं.
यही एक वजह है कि अयोध्या में तेजी से हो रहे विकास को लेकर रानी उत्साहित हैं. अयोध्या जैसे शांत शहर में मंदिर की वजह से आधुनिक शहर की तमाम सुख- सुविधाएं पहुंच रही हैं- जैसे एक नया हवाई अड्डा, वाईफाई जोन, रामायण थीम पार्क और घाटों पर होने वाली मनोरंजक गतिविधियां.
रानी कहती हैं, "एक नज़रिए से देखें तो ये सारे बदलाव अच्छे हैं लेकिन दूसरी ओर यह हमारे लिए तबाही लेकर आया है."
मोदनवाल परिवार को 1.5 लाख रुपये का मुआवज़ा मिला, लेकिन यह दीवार के प्लास्टर या एक माले के घर बनाने की लागत को पूरा करने के लिए काफी नहीं था. घर टूटने की वजह से अब यह जर्जर हो गया है.
अयोध्या उद्योग व्यापार मंडल ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष नंदू कुमार गुप्ता कहते हैं कि छोटे दुकानदारों और व्यवसायों ने सड़क विस्तार परियोजनाओं के लिए भारी कीमत चुकाई है.
वह कहते हैं, "योजनाओं को मूल आबादी के हितों और कल्याण को ध्यान में रखते हुए बनाया जाना चाहिए था. इसके बजाय हमें परेशान किया गया और धमकी दी गई. वहीं, मुआवजे के भुगतान में भी कंजूसी बरती गई."
नंदू कुमार गुप्ता समाजवादी पार्टी के सदस्य हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि शहर में तोड़फोड़ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के नेतृत्व करने की वजह से अधिकारियों ने उनके आवास की बिजली काट दी. इसके अलावा उनकी दुकान से कई उपकरण भी ज़ब्त कर लिए गए.
उन्होंने कहा, "आम लोग परेशान हैं, लेकिन कोई भी आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं कर रहा है. लोगों में डर है कि अगर उन्होंने विकास के खिलाफ आवाज़ उठाई, तो उन्हें पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा या इससे भी बुरा ये होगा कि एक बुलडोजर उनके घर पर चल जाएगा. "
'असीमित' अवसर, लेकिन सीमित विकल्प
2019 से पहले अयोध्या में पर्यटन की आमद काफी हद तक पड़ोसी शहरों और गांवों के स्थानीय तीर्थयात्रियों तक ही सीमित थी. वे राम नवमी, कार्तिक स्नान, रथ यात्रा और राम विवाह जैसे लोकप्रिय मेलों और त्योहारों के लिए जाते थे. लेकिन ये लोग यहां आने पर बहुत कमे खर्च करते थे. ये लोग मुफ़्त में धर्मशालाओं में रहते थे और मंदिरों में वितरित प्रसाद भोग से ही अपना पेट भर लेते थे.
लेकिन इसके बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. फैसले में विवादित जमीन को राम मंदिर बनाने के लिए हिंदू समूहों को सौंपने का आदेश दिया गया. मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होने के साथ ही अयोध्या में जमीन में निवेश और वाणिज्यिक क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिले.
स्थानीय निवासी रितेश अवस्थी का कहना है कि उन्होंने पिछले तीन सालों में राम जन्मभूमि के एक किलोमीटर के दायरे में दो होटल खोले हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि मंदिर निर्माण की शुरूआत होते ही हॉस्पिटैलिटी और रियल एस्टेट बिजनेस में "असीमित अवसर" खुले गए हैं.
रितेश अवस्थी कहते हैं, "यहां हर किसी के लिए व्यवसाय के लिए अच्छा अवसर है. यहां तक कि जो लोग भक्तों के माथे पर ‘जय श्री राम’ का टीका लगाते हैं, वे भी रोजाना 1,000 रुपये कमा रहे हैं."
राम मंदिर के निर्माण और प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार की ओर से स्थापित श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की योजना देश-विदेश से लाखों तीर्थयात्रियों को लाने की है. अयोध्या विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष विशाल सिंह का कहना है कि आने वाले महीनों में, अधिकारियों को उम्मीद है कि पर्यटकों की संख्या प्रति दिन तीन लाख से ज्यादा हो जाएगी. ये संख्या पूरे शहर की मौजूदा आबादी से ज्यादा है.
पर्यटकों की भारी आमद को ठहराने के लिए राम मंदिर ट्रस्ट यूपी सरकार, अयोध्या जिला अधिकारियों और शहर के नगर निगम के साथ काम कर रहा है ताकि नए बुनियादी ढांचे को विकसित किया जा सके और नई व्यवस्था को लेकर योजना तैयार की जा सके.
इसमें होटलों, आवासीय परियोजनाओं, सिविल कार्यों, परिवहन, मौजूदा रेलवे स्टेशन के बेहतर बनाने के लिए, लक्जरी टेंट शहरों और होमस्टे के लिए भूमि आवंटन शामिल है.
विशाल सिंह कहते हैं, "हमने तीर्थयात्रियों के खानपान के हर पहलू पर काम किया है. हम धीरे-धीरे अपनी सार्वजनिक सुविधाओं और बुनियादी ढांचे की क्षमता बढ़ाते रहेंगे." यानी सारा ध्यान "समावेशी विकास" पर है जिससे स्थानीय लोगों को भी आर्थिक अवसरों का फायदा पहुंच सके.
दुकानदार पुरुषोत्तम झा भी इस बात से सहमत हैं कि केंद्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की ओर से हिंदुत्व को बढ़ावा देने के बाद से अयोध्या के स्थानीय लोगों को पर्यटकों की बढ़ती आमद से फ़ायदा हो रहा है.
पुरुषोत्तम झा कहते हैं, "लेकिन अब हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है. और हमें ये भी यकीन है कि विस्तार परियोजना में अपने घरों और आजीविका को खोने वाले हजारों लोगों को समायोजित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जाएगी."
पुरुषोत्तम झा की अमावा राम मंदिर के पास राम गुलेला मार्केट में लगभग 10-12 फीट की एक दुकान थी. ये राम लला के अस्थायी मंदिर से सटी हुई थी. वह अपनी दुकान में पूजा का सामान, पीतल की बर्तन और चूड़ियां बेचते थे, लेकिन पिछले नवंबर में दुकान को तोड़ दिया गया. उन्हें लगभग एक लाख रुपये का मुआवज़ा मिला और उन्हें मुख्य मंदिर परिसर से एक किलोमीटर दूर टेढ़ी बाजार चौराहा के पास एक नए वाणिज्यिक केंद्र में एक दुकान आवंटित की गई. लेकिन, जैसा कि पुरोषोत्तम बताते हैं, कोई भी पर्यटक मंदिर से इतनी दूर छोटी-मोटी पूजा वस्तुओं की ख़रीदारी करने नहीं आएगा.
प्रकाश की परेशानी यहीं ख़त्म नहीं होती है. उन्हें दुकान के लिए 27 लाख रुपये देने होंगे और फिर 30 साल के लिए दुकान लीज पर दी जाएगी. लेकिन इतनी भारी रक़म उनके बजट से बाहर है.
वह कहते हैं, "कोई रास्ता नहीं है कि हम उनकी दुकान ले सकें, भले ही हम 8 लाख रुपये का बैंक लोन ले लें. हम तो अभी राम भरोसे चल रहे हैं."
प्रकाश की तरह पूरे अयोध्या में कई लोग ऐसी ही कहानी बयां करते हैं. कई वाणिज्यिक और आवासीय संरचनाओं के लिए मेगा-विकास परियोजनाओं को कई चरणों में मंजूरी दी जानी है. मंदिर परिसर से दूर नगर निगम के अधिकारियों ने 20 दिसंबर को नया घाट के दुकानदारों और परिवारों को परिसर खाली करने के लिए सूचित किया गया.
नगर निगम के अधिकारियों ने बाबू चंद गुप्ता को भी चेतावनी दी है. वह कहते हैं कि मंदिरों और घाटों के आसपास तीर्थ यात्रियों के लिए लगाई जाने वाली पारंपरिक दुकान के छोटे-बड़े व्यापारियों के लिए आजीविका कमाने के लिए कोई सुरक्षित विकल्प नहीं बचा है.
उन्होंने कहा, "आम लोगों के लिए अयोध्या के मुख्य शहर में कोई जमीन नहीं बची है. सरकार सारी जमीन अधिग्रहण कर रही है और इससे प्रभावित लोगों को बयाने की रक़म मुआवज़ा के तौर पर दे रही है."
बाबू चंद गुप्ता सवालिया लहजे में कहते हैं, "आप ही बताएं हम कहां जाएं?
मुस्लिम कल्याण का क्या?
जिले के 3.5 लाख मुसलमानों के मन में भी यही सवाल खटक रहा है. वे लोग अपने हिंदू पड़ोसियों के साथ दुख-सुख में मिल-जुल कर रहते हैं. बाबरी मस्जिद भूमि विवाद से उपजी सांप्रदायिक हिंसा और ध्रुवीकरण की सबसे ज्यादा मार इस समुदाय को झेलनी पड़ी है.
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष आजम कादरी ने कहा, "हम मंदिर निर्माण को लेकर खुश हैं. तनाव ख़त्म हो गया है और अब हम आगे बढ़ना चाहते हैं."
बाबरी की बुरी यादों को दफनाना मुश्किल है. मुस्लिम परिवार आज भी कारसेवकों की ओर से मस्जिद के गुंबदों को ढहाने की यादें संजोए हुए हैं. इसके बाद हुए दंगों में अठारह मुसलमान मारे गए. साथ ही आगजनी और मुस्लिम संपत्तियों की लूटपाट भी हुई.
कोतवाली क्षेत्र के निवासी मोहम्मद उमर को दिसंबर 1992 जैसी घटनाओं के फिर से घटने का डर है क्योंकि अगले साल से बड़ी संख्या में हिंदू तीर्थयात्री अयोध्या आना शुरू कर देंगे.
तीन दशक पहले उग्र भीड़ ने मोहम्मद उमर के घर को जला दिया था. वह कहते हैं, "मेरे साथ तब ऐसा हुआ था लेकिन ये फिर हो सकता है."
दंगों का सदमा उमर के जीवन पर लंबे वक्त तक रहा. तीन दशक पहले की टीस से उबरने के बाद पिछले साल दिसंबर में उन्हें एक और बार झटका लगा जब उनके घर और दुकान का एक हिस्सा सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत तोड़ दिया गया. अब वह पास के क़ब्रिस्तान में रहते हैं. क़ब्रिस्तान में उन्होंने अपने घर के चार सदस्यों के लिए एक अस्थायी कमरा बनावाया है.
प्रशासन द्वारा तोड़े गए घर की छोटी सी जगह में उन्होंने किसी के निशाने पर आने से बचने के लिए एक बेनाम हार्डवेयर की दुकान खोली है. दुकान में कोई नेमबोर्ड नहीं लगा है.
उमर कहते हैं, "यहां मुसलमानों के लिए सीमित व्यावसायिक विकल्प हैं. पर्यटक मुस्लिम नाम की दुकानों से खरीदारी नहीं करते हैं और हम रेस्तरां या चाय की दुकानें नहीं खोल सकते क्योंकि हिंदू हमारे हाथों से खाना-पीना पसंद नहीं करते हैं. हमारे पास पहचान छिपाकर (धर्म बताए बिना) कारोबार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है."
उमर और बाकी के मुसलमान अयोध्या के अमन और एकता, शांति और सद्भाव के मॉडल की वकालत करते हैं. इस मॉडल ने हिंदू पड़ोसियों के साथ मुसलमानों के शांतिपूर्ण अस्तित्व के आर्दश को बढ़ावा दिया है.
आजम कादरी कहते हैं, "बाहरी लोगों ने इलाके में तनाव को भड़काया है और हमें एक-दूसरे के खिलाफ कर दिया है. यहां तक कि अगर एक या दो तत्व मुसलमानों को निशाना बनाकर किसी तरह की परेशानी पैदा करना चाहते हैं, तो इससे माहौल और खराब हो सकता है."
लेकिन पिछले साल पुलिस ने सात हिंदू लोगों के एक समूह को गिरफ्तार किया. ये लोग अयोध्या जिले के स्थानीय निवासी थे. इन लोगों पर जिले की कई मस्जिदों में कथित तौर पर सूअर का मांस, अपमानजनक चिट्ठी और इस्लामी किताबों के फटे हुए टुकड़े फेंकने का आरोप है. अयोध्या की कश्मीरी मोहल्ला मस्जिद, तातशाह मस्जिद, घोसियाना रामनगर मस्जिद, ईदगाह सिविल लाइन मस्जिद और गुलाब शाह दरगाह में ये कथित घटनाएं हुई हैं.
मुस्लिम परिवारों का कहना है कि उन्होंने हिंदू पड़ोसियों के साथ तनाव से बचने के लिए समझौता किया है. ईद और बाकी धार्मिक समारोहों को काफी हल्के-फुलके तरीके से मनाया जाता है और त्योहारों के लिए पुलिस की इजाजत लेना जरूरी होता है. मुस्लिम नेताओं ने कथित तौर पर हिंदू त्योहार के साथ टकराव से बचने के लिए मुहर्रम के जुलूस के समय को बदल दिया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि मुसलमान शहर में मांस या मांस से बने व्यंजन नहीं बेच सकते हैं.
इन बदलावों ने अल्पसंख्यक समुदाय को अंधेरे में धकेल दिया है. इससे उनके वजूद, मजहब और जीवन जीने के तरीके को खतरा पैदा हो गया है. कादरी ने हिंदू कट्टरपंथियों और कुछ पंडितों पर मुस्लिम भूमि पर कब्जे की कोशिश का आरोप लगाया है.
वह कहते हैं, "भू-माफिया हमारी मजहबी विरासत को जब्त करने की धमकी दे रहे हैं. हमारी प्राचीन मजारें, मकबरे, छोटी मस्जिदें और यहां तक कि कब्रिस्तान भी महफूज नहीं हैं. सरकार एक नए मंदिर के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही है, लेकिन उसके पास इस्लामी विरासत के उत्थान के लिए पैसा नहीं है."
कादरी ने कहा कि उनके समुदाय ने जिला प्रशासन से इन संपत्तियों की हिफाजत करने और उनके रखरखाव के लिए फंड जारी करने की अपील की थी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है.
कादरी पूछते हैं, "अयोध्या क्या सिर्फ हिंदुओं की है?"
अयोध्या की धरोहर है बहुसंस्कृतिवाद
ऐतिहासिक रूप से अयोध्या हिंदू धर्म के साथ-साथ इस्लाम, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लिए प्रभाव का केंद्र रहा है. हिंदू मंदिरों के अलावा अयोध्या में 100 से ज्यादा मस्जिदें, पांच जैन मंदिर और साथ ही गुरुद्वारे और प्राचीन बौद्ध स्थल हैं. इनकी खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने की है.
सेवानिवृत्त स्कूली शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता संपूर्णानंद बाजपेयी अयोध्या के खत्म होते बहुसंस्कृतिवाद पर अफसोस जताते हैं.
वह कहते हैं, "यह बड़े निगमों के लिए पैसा बनाने और सरकार के लिए वोट कमाने के लिए एक वाणिज्यिक परियोजना में बदल गया है."
संपूर्णानंद बताते हैं कि अयोध्या में जो विकास हो रहा है जिसमें बड़ी मूर्तियां और चौड़ी सड़कें शामिल हैं वह वास्तविक विकास नहीं है जो स्थानीय लोग चाहते हैं.
वह कहते हैं, "यह सब व्यवस्था पर्यटकों और आगंतुकों के फायदे के लिए की जा रही है, जबकि बुनियादी ढांचे पर आम लोगों के मुद्दों को नजरअंदाज किया जा रहा है."
वह बेगमपुरा में अपनी आवासीय कॉलोनी का उदाहरण देते हैं. वहां पिछले चार महीनों से पानी नहीं है. उनका यह भी कहना है कि कैंसर और हृदय संबंधी बीमारी के इलाज के लिए इलाके में कोई स्पेशल डॉक्टर या अच्छे अस्पताल नहीं हैं. इस वजह से बाईपास सर्जरी के लिए लखनऊ जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
उन्होंने कहा, "भाजपा सरकार 2024 के चुनावों के लिए अयोध्या के विकास को दिखाना चाहती है और राम मंदिर मॉडल पर वोट मांगना चाहती है. "
लेकिन संपूर्णानंद बाजपेयी आगाह करते हैं कि भाजपा के लिए अयोध्या का वास्तविक महत्व इससे समझ आता है कि उसने स्थानीय आबादी को प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से रोक दिया है.
संपूर्णानंद कहते हैं, "वे हमारे शहर में एक मंदिर बना रहे हैं, लेकिन नहीं चाहते कि मूल निवासी, मूल अयोध्यावासी, जिनका भगवान राम पर पहला अधिकार है, इसके प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल हों. हमें घर पर रहने के लिए कहा गया है."
इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
अनुवादक: चंदन सिंह राजपूत