दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
धृतराष्ट्र के सामने संजय ने लहकते हुए कहा, “काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की है गिलास में. उतरा है रामराज डंकापति के राज में.” डंकापति के शागिर्द आईटी सेल के ठलुआ हरकारे सरे राह लड़कियां उठा ले रहे हैं, उनके साथ मनमर्जी कर रहे हैं, बलात्कार कर रहे हैं, कपड़े उतरवा रहे हैं. इससे बढ़िया रामराज्य क्या होगा महाराज.
दूसरी तरफ देश का हुड़कचुल्लू मीडिया है जिसने बीते हफ्ते एक नया कारनामा कर दिया. टेलीविज़न का एक एंकर बाकायदा अपने शो के बीच एक कारपोरेट कंपनी के उत्पाद का खुलेआम प्रचार कर रहा था. यह पहली बार हो रहा है. एक पत्रकार अपने शो के दौरान किसी कंपनी के उत्पाद का प्रचार करे, यह नैतिक बेइमानी भी है और पत्रकारीय मर्यादा के साथ धूर्तता भी है.
पत्रकार की अपनी एक साख होती है. पहले आप वो साख अर्जित करते हैं, आम लोग आपके ऊपर भरोसा करने लगते हैं. फिर आप उस भरोसे की आड़ में धंधा करने लगते हैं. आप भरोसे में आए लोगों को बालम खीरे का चूरन से लेकर हकीम लुकमान के सेक्स समस्या वाले च्यवनप्राश बेचने लगते हैं.