दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस हफ्ते की टिप्पणी में बहुत कुछ ऐतिहासिक है. भारत की टेलीविजन पत्रकारिता सुगंधित मूर्खता के ऐतिहासिक दौर से गुजर रही है. लिपे-पुते चेहरों ने मिलकर टीवी पत्रकारिता को खूबसूरत और ग्लैमरस तो बनाया है लेकिन कुछ चीजें इसमें से पूरी तरह लुप्त हो गई हैं. उनमें से पहली चीज है कॉमन सेंस, दूसरी चीज है रीढ़ की हड्डी. इस ऐतिहासिक सुगंधित मूर्खता पर इस बार विशेष टिप्पणी.
इसके अलावा ऐतिहासिकता पर एक कहानी भी इस हफ्ते. इसका शीर्षक है संसद में ऐतिहासिक चर्चा. प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. शुरुआत में ही उन्होंने एजेंडा साफ कर दिया. साफ एजेंडे की खास बात यह थी कि उसमें कोई मिलावट नहीं थी. उन्होंने साफ कहा कि शीतकालीन सत्र रचनात्मक होना चाहिए, सकारात्मक होना चाहिए. हल्ला गुल्ला नहीं, स्थगन, नारेबाजी नहीं. पक्ष विपक्ष के बीच स्वस्थ रिश्ता होना चाहिए. संवाद की धारा दोतरफा बहनी चाहिए. सिर्फ मन की बात से काम नहीं चलेगा. यह इस सरकार का आखिरी सत्र है. इसे मिलजुल कर ऐतिहासिक बना देना है. इसी ऐतिहासिकता के भावभीने माहौल में इस बार की टिप्पणी देखिए.