दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
आज हमारे देश में अनगिनत रेडियो रवांडा जैसे चैनल हैं. आप आंख बंद कर लीजिए और रिमोट से चैनल बदलते रहिए. आपके कानों में एक सी भाषा, एक से हिंसक जुमले और एक से कुतर्क सुनाई देंगे. यहां किसी विविधता के लिए स्थान नहीं है. यहां विपक्ष से सवाल पूछने की नई परिपाटी विकसित हुई है. ऐसे ही 14 एंकरों के बहिष्कार की घोषणा विपक्ष के इंडिया गठबंधन ने की है.
भारत में पत्रकारिता की हत्या का आयोजन करने वाले ये 14 एंकर और इनके चैनलों का एक सच और है. इन्होंने खुद अपने चैनलों पर अघोषित रूप से अनगिनत लोगों के ऊपर इकतरफा प्रतिबंध लगा रखा है. प्रतिबंध और बहिष्कार के बीच एक लंबा धुंधलका फैला हुआ है. जो दूर से नहीं दिखता. सत्ता के साथ आपराधिक गठजोड़ कर चैनलों के मालिकों ने 40-50 की कच्ची उम्र वाले अनगिनत पत्रकारों को बेरोजगार कर दिया है. चैनलों को बिक्री-खरीद का शिकार बना दिया है.
हालांकि, इंडिया गठबंधन ने जो लिस्ट जारी की है उससे बचा जाना चाहिए था. कोई किससे बात करना चाहता है और किससे नहीं यह हमेशा उसका अधिकार क्षेत्र है. इन एंकरों को नज़रअंदाज करने में कोई गलती या बुराई नहीं थी. लेकिन लिस्ट बनाकर घोषणा करने के संदेश दूरगामी हैं. खासकर तब जब आप सार्वजनिक जीवन में विलुप्त हो रहे लोकतांत्रिक मूल्यों को बहाल करने का वादा करते हैं.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeGeneral elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?