पहाड़ी जिलों के मोर्चों पर उग्रवादी कुकी समूह के लोग गांव के 'लड़ाकों' के साथ भिड़ते हैं. वे सब एसएलआर और एके-47 से लैस हैं.
गुरुवार को चूड़ाचांदपुर जिले के पी. गेलजांग गांव के एक बंकर में 15 स्वघोषित कुकी 'लड़ाके' अपनी सिंगल और डबल बैरल बंदूकें रख रहे थे. उनके सामने बिष्णुपुर के मैती दबदबे वाले टेराखोंग गांव की तरफ का पूरा नज़ारा दिखाई दे रहा था.
कुकी समूह के लोग बंकर बना कर पहाड़ से घाटी की तरफ नज़र बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे.
शाम के करीब 4 बजे मैती इलाकों की ओर से बंकर को निशाना बनाया गया और गोलियां दागी गईं.
इसके बाद 'लड़ाके' अपने बचाव के लिए छुपने लगे. वे बंकर के पीछे घुटने के सहारे बैठ गए. जबकि बंकर के आसपास से गुजरने वाले लोग गोलीबारी से बचने के लिए पहाड़ी से सटे नाले में कूदने लगे. अगले कुछ मिनटों में घाटी की ओर से गोलीबारी और तेज हो गई.
घाटी से आने वाली बंदूकों की गोलियां कभी बंकर के आसपास से गुजर रही थी, तो कभी पेड़ो में लग रही थी या कहीं गायब हो जा रही थी.
लेकिन 'लड़ाकों' का समूह वहीं रुका रहा. वे लोग रेत की बोरियों के पीछे बैठे थे और बीड़ी-सिगरेट पीते हुए गोलियां किस ओर से आ रही हैं ये पता लगाने के लिए बाहर की ओर झांक रहे थे.
बीते समय में बिष्णुपुर-चूड़ाचांदपुर की तराई इलाके में भीषण गोलीबारी हो रही है. ज्यादातर मैती जो कभी पहाड़ियों में रहते थे, वे घाटी की ओर चले गए. जबकि जो कुकी घाटी में रहते थे, वे चूड़ाचांदपुर और कांगपोकपी के पहाड़ी ज़िलों में चले गए हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले बिष्णुपुर जिले के मैती दबदबे वाले इलाकों से क्रॉस-फ़ायरिंग की रिपोर्ट दी थी. 3 मई को शुरू हुई हिंसा के बाद से मणिपुर में अब तक 180 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और 50 हजार लोग विस्थापित हुए हैं.
बैकग्राउंड में गोलियों के शोर के बीच 'लड़ाकों' में एक लड़के ने हंसते हुए एक चुटकुला सुनाया, जबकि कुछ लड़के अपने सोशल मीडिया अकाउंट के लिए शॉटगन के साथ तस्वीरें खींचवा रहे थे. इन 'लड़ाकों' में से कुछ कॉलेज के छात्र थे, जैसे चुटकुला सुनाने वाले डेनिस इंजीनियरिंग के छात्र हैं.
डेनिस हमसे सवाल पूछते हैं, “क्या आप दिल्ली में इस तरह दिवाली मनाते हैं? यह स्पेशल मणिपुरी दिवाली है.यह हमारे लिए सामान्य दिन है. अब फेसबुक पर मैती लोग गोलीबारी के लिए कुकी लड़ाकों को जिम्मेदार ठहराएंगे.”
घाटी और पहाड़ी में गोलीबारी की घटना सामान्य होने लगी
बंकर तक जाने वाली सड़क का एक हिस्सा गोलीबारी के लिहाज से खतरनाक था.
उस सड़क पर बाइक और चार पहिया वाहनों का रुक-रुक कर आना-जाना लगा हुआ था. 'लड़ाके' मजाकिया अंदाज में शोर मचाने वाली स्कूटी को "हेलीकॉप्टर" कह रहे थे. उसके पीछे बैठी महिला ने पहाड़ पर ऊपर की तरफ आते वक्त अपने बैग से सिर को ढक लिया था.
ये देख कर एक 'लड़ाके' ने तंज करते हुए कहा, "क्या वह सोचती है कि एक बैकपैक उसे गोली से बचा सकता है."
लगभग 50 वर्ष के एक ग्रामीण बंकर के ऊपर चढ़ गए थे. इसी बीच उनकी पत्नी का फोन आया. उन्होंने फोन स्पीकर पर रखा और अपनी पत्नी से कहा कि वे गोलीबारी के बीच फंस गए हैं.
उनकी पत्नी ने फ़ोन पर कहा, "मुझसे झूठ मत बोलो कि आप गोलीबारी की जगह हो. आप बहुत डरपोक हो.आप अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहे होंगे. इससे पहले कि आपको कुछ होश न रहे, आप घर आ जाओ."
इस फोन कॉल के कारण बंकर ठहाकों से गूंज उठा.
'लड़ाकों' को अपनी सिंगल और डबल बैरल बंदूकों की लो फायरिंग रेंज की वजह से समस्या हो रही थी. वे लोग अपने बाकी साथियों से सहायता की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन इसके लिए उन्हें एक घंटे और इंतजार करना पड़ा.
लेकिन जल्द ही दो स्नाइपर और ऑटोमेटिक हथियारों से लैस कुछ लोग बंकर के पास पर पहुंचे. उन्होंने आने के साथ ही बंदूकें निकालीं और टार्गेट सेट करने लगे. लेकिन उनका टार्गेट शूटिंग रेंज में नहीं था. वे लोग टार्गेट को अपने दायरे में लाने के लिए पहाड़ की ढलान से 200 मीटर नीचे तक उतर गए.
थोड़ी देर के बाद एक एसयूवी में सात और लोग एसएलआर और एके-47 बंदूक के साथ वहां पहुंचे. ये लोग कथित तौर पर कुकी उग्रवादी समूहों से थे.
इस दौरान गोलियों से बचने के लिए 'लड़ाके' पहाड़ी ढलान से मैती इलाके की ओर लुढ़क कर जाने लगे.
शाम करीब पांच बजे कुकी समूह ने गोलियों का जवाब देना शुरू किया और इस वजह से पूरा वातावरण गोलियों के शोर से गूंज उठा. इसके अलावा रात में कुछ और सहायता वहां पहुंची.
बारूदी सुरंगों से घिरी जमीन और 'हथियारों की चोरी'
जिन इलाकों में अक्सर गोलीबारी होती रहती है, वहां मैती और कुकी के बीच नो मैन्स लैंड पर बारूदी सुरंग बिछा दी गई हैं.
कुकी समूह के एक व्यक्ति ने कहा, "केवल कट्टर लड़ाकों को ही इन इलाकों में प्रवेश करने की इजाजत है."
एक 'लड़ाके' ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में बताया कि ये गोलीबारी पिछले चार-पांच दिनों से शांत थी.
वे मैती समुदाय और पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ''अब ऐसा लगता है कि उन्हें (मैती को) राज्य की पुलिस ने बंदूकें तोहफे में दी हैं.''
गुरुवार की सुबह बिष्णुपुर जिले के नारान्सेइना में सेकेंड इंडियन रिजर्व बटालियन के हथियार गृह से हथियार और गोला-बारूद लूट लिया गया. इंडियन रिज़र्व बटालियन मणिपुर पुलिस के अंतर्गत आती है.
बिष्णुपुर के पुलिस अधीक्षक रोनी मायेंगबाम ने न्यूज़लॉन्ड्री से इस घटना की पुष्टि की है, लेकिन उन्होंने घटना की विस्तृत जानकारी साझा करने से इंकार कर दिया, क्योंकि वह इसकी "पड़ताल के लिए इंडियन रिजर्व बटालियन के हथियार गृह जा रहे थे".
बता दें इंडियन रिज़र्व बटालियन की कई इमारतों में से एक को दूरबीन के सहारे पी गेलजांग गांव से देखा जा सकता है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक़, इंडियन रिजर्व बटालियन के हथियार गृह से लूटे गए हथियारों में एक एके सीरीज असॉल्ट राइफल, इंसास राइफल (25), घातक राइफल (4), इंसास एलएमजी (5), एमपी-5 राइफल (5), हैंड ग्रेनेड (124), एसएमसी कार्बाइन (21), एसएलआर (195), 9 एमएम पिस्तौल (16), डेटोनेटर (134), जीएफ राइफल (23 ), 51 एमएम एचई बम (81) शामिल हैं.
गांवों में बनाई गई डिफेंस कमेटी
मुठभेड़ से पहले न्यूज़लॉन्ड्री जर्मन रोड के चूड़ाचांदपुर की तराई से होते हुए खौसाबुंग गांव तक पहुंचा, जहां मैती फ्रंट के आखिरी कुकी बंकर हैं. जर्मन रोड को उग्रवादी समूह कुकी नेशनल फ्रंट के कमांडर-इन-चीफ जर्मन टी. हेमलाल ने बनाया था.
तराई में बसा यह गांव बिष्णुपुर के मैती बहुल नगंगखालाई से महज़ दो किलोमीटर की दूरी पर है. हिंसा के शुरुआती दिनों को छोड़कर, कुकी-मैती का टकराव पहाड़ी जिलों की सीमा से लगे घाटी इलाके के किनारों तक ही सीमित है.
मई में, पहाड़ी इलाकों में कुकी ने "ग्राम रक्षा समितियों" का गठन किया, जिसमें ग्राम प्रतिनिधियों को शामिल किया गया.
खोसाबंग की रक्षा समिति में 10 गांव के लोगों का योगदान है, इसके तहत 14 बंकर बनाए गए हैं. इन बंकरों में 140 'लड़ाके' तैनात किए गए हैं. हर बंकर में एक वक्त पर पांच लोग मौजूद रहते हैं. प्रत्येक 'लड़ाके' को कम से कम 12 घंटे बंकर में गुजारना पड़ता है.
बंकर में तैनात इन 'वॉलंटियर्स' को हथियार चलाने के लिए दो-तीन दिन की ट्रेनिंग मिली हुई है लेकिन एनसीसी में कैडेट के तौर पर काम कर चुके लड़ाके समूह की पहली पसंद होते हैं, क्योंकि वे बंदूकों और लड़ाई के दांव-पेंच से भली-भांति परिचित होते हैं.
जब हमने खोसाबंग ग्राम समिति के अध्यक्ष हेनलालसिम गंगटे से पूछा कि सिंगल और डबल बैरल बंदूकें कितनी कारगर हैं, इसपर उन्होंने कहा, "इसमें बंदूकों का कोई लेना-देना नहीं है, ये इसे चलाने वाले बेखौफ इंसान के ऊपर है."
अध्यक्ष हेनलालसिम गंगटे बढ़ती हिंसा को लेकर कहते हैं, "स्थिति सामान्य नहीं है लेकिन यह सामान्य होने की राह पर है."
हमने खोसाबंग गांव की सड़क पर युवाओं को वॉलीबॉल खेलते हुए देखा, वहीं एक ओर 'लड़ाके' कंधों पर बंदूकें लटकाए हुए अपने दोस्तों के साथ बातचीत कर रहे थे.
इसी बीच गांव के एक सरदार ने लोहे की पाइप से बनी सिंगल बैरल बंदूक दिखाई. वो कहते हैं, "यह असली के मुकाबले थोड़ा भारी है."
‘अपनी जमीन बचाने के लिए बंदूक उठाई’
खोसाबुंग में एक कॉलेज के छात्र से हमने मुलाकात की, वे भी 'लड़ाकों' के समूह में शामिल हैं. जब हम उनसे मिले तब वे एक सिंगल बैरल बंदूक, एक चाकू और 12 मिमी के बैंडोलियर से लैस थे. वे 3 मई से जारी हिंसा के बीच लड़ाई में सबसे आगे तैनात हैं.
तीन दिनों तक हथियारों की ट्रेनिंग पाने वाले एक युवा 'लड़ाके' को फुटबॉल से बेहद लगाव है.
वो कहते हैं, "कड़ी मेहनत करने के कारण क्रिस्टियानो रोनाल्डो मेरे पसंदीदा फुटबॉलर हैं, जबकि मेसी की प्रतिभा जन्मजात है."
वो बताते हैं कि उन्होंने मोबाइल गेम पबजी से कुछ हैक सीखे हैं. उनका दावा है कि उन्होंने पबजी के जरिए बुलेट रेंज के बारे में सीखा है.
वो कहते हैं, "मिसाल के तौर, 9 एमएम की गोलियों की रेंज 70 मीटर के आसपास होती है जो कि लो रेंज है. वहीं 5.56 एमएम 200-500 मीटर के बीच की मीडिल रेंज और 7.26 एमएम 500 मीटर से एक किलोमीटर के बीच लॉन्ग रेंज होती हैं."
पबजी से उन्होंने एक और ‘हैक’ सीखा है. उनका मानना है कि 'लड़ाकों' को किसी एक जगह इकट्ठे नहीं रहना है.
वो कहते हैं, "हमें इधर-उधर फैल जाना चाहिए. इससे हताहतों की संख्या कम होगी और दुश्मन का ध्यान भटकेगा."
वे फुटबॉल नहीं खेल पा रहे हैं और ये बात उन्हें खलती है.
जब उनसे पूछा गया कि किस वजह से उन्हें बंदूक उठानी पड़ी तो वो एक पल के लिए शांत हो गए और बोले , "हमारी भूमि को मैती से बचाने के लिए."
जब हम चूड़ाचांदपुर की तरफ वापस लौट रहे थे, तब हमने देखा कि गोलीबारी की जगह पर वाहनों की एक लंबी कतार खड़ी है. चूड़ाचांदपुर शहर में घुसने से पहले एक नाकाबंदी बनाई गई थी. वहां एक व्यक्ति 10 युवाओं को निर्देश दे रहे थे. वे युवा सिंगल और डबल हथियारों से लैस थे.