एनडीटीवी का अडानीकरण: नए चैनल, मोदी पर डॉक्यूमेंट्री, नेतृत्व का अभाव और बड़ी योजनाएं

चैनल की पत्रकारिता उस तरह से नहीं बदली है जैसी उम्मीद की जा रही थी, लेकिन शायद यह उसी ओर अग्रसर है.

WrittenBy:तनिष्का सोढ़ी
Date:
Article image

इस साल दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के दौरान एक असामान्य घटना हुई. इस घटना का मौद्रिक नीति, मंदी से जुड़ी चिंताओं या नेट-जीरो ऊर्जा प्रौद्योगिकियों से संबंधित निर्णयों से कुछ लेना-देना नहीं था. असामान्य यह था कि आठ साल के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने एनडीटीवी को इंटरव्यू दिया.

ईरानी ने एनडीटीवी की संपादकीय निदेशक सोनिया सिंह के साथ बैठकर बात की कि कैसे "भारत की विकास गाथा की चर्चा दावोस में हो रही है", "लैंगिक न्याय" में हम कैसे अग्रणी हैं, और कैसे कांग्रेस "अभी भी आहत" है कि उन्होंने 2019 में अमेठी में राहुल गांधी को हरा दिया.

इसे 'सॉफ्ट इंटरव्यू' कहा जा सकता है. हालांकि सिंह ने भारत की विकास गाथा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने, "सुपर सेंसरशिप" और अल्पसंख्यक संपर्क अभियान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणियों से जुड़े मुद्दों पर पांच कठिन सवाल भी पूछे.

इनमें से एक सवाल बातचीत शुरू होने के 10 मिनट के भीतर ही आया, जब सिंह ने कहा कि ईरानी कभी महिलाओं के अधिकारों की "मुखर समर्थक" हुआ करती थीं लेकिन मंत्री बनने के बाद उन्होंने इन मुद्दों पर चुप्पी साध ली है.

ईरानी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि "मैंने एनडीटीवी से (जरूर) बात नहीं की है". कुछ देर रुककर उन्होंने कहा, "लेकिन मेरा मानना ​​है कि अब यहां सत्ता बदल गई है," और फिर ठहाका लगाकर हंसी. सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, "हम बदले नहीं हैं, (हमारी) एक लक्ष्मण रेखा है."

एनडीटीवी के "सत्ता परिवर्तन" से ईरानी का मतलब था कि इसका स्वामित्व प्रणय और राधिका रॉय के हाथों से अब भारत के अग्रणी अरबपति गौतम अडानी के पास आ चुका है, जो नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाते हैं. इस "परिवर्तन" के बारे में केवल ईरानी ही बात नहीं कर रही हैं, बल्कि अडानी के एनडीटीवी के अधिग्रहण के छह महीने बाद भारत के पहले 24x7 समाचार चैनल में बहुत कुछ बदल गया है. हालांकि बहुत कुछ पहले जैसा ही है.

सबसे स्पष्ट बदलाव यह आया है कि ईरानी जैसे भाजपा मंत्री अब एनडीटीवी को इंटरव्यू देने लग गए हैं. 2017 में एक डिबेट के प्रसारण के दौरान निधि राजदान और भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के बीच कहासुनी होने के बाद, पार्टी नेताओं ने एनडीटीवी से बातचीत करना बंद कर दिया था.

गौरतलब है कि अधिग्रहण के बाद सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर रवीश कुमार, एग्जीक्यूटिव एडिटर निधि राजदान, ग्रुप एडिटर श्रीनिवासन जैन और सीनियर एडिटर सारा जैकब जैसे एनडीटीवी के कई स्टार एंकरों ने चैनल छोड़ दिया है.

शीर्ष प्रबंधन के कई सदस्य भी चैनल छोड़ चुके हैं, जैसे रॉय दंपत्ति, ग्रुप प्रेसिडेंट सुपर्णा सिंह, चीफ स्ट्रेटेजी ऑफिसर अरिजीत चटर्जी, चीफ टेक्नोलॉजी एंड प्रोडक्ट ऑफिसर कवलजीत सिंह बेदी, और सीनियर मैनेजिंग एडिटर चेतन भट्टाचार्य.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
वो नाम जिन्होंने अधिग्रहण के बाद एनडीटीवी छोड़ दिया.

हालांकि यह इतने स्पष्ट रूप से नहीं दिखता है, फिर भी चैनल के कंटेंट में भी थोड़ा बदलाव हुआ है. जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक नौ-भाग वाली डॉक्यूमेंट्री सीरीज, जिसमें उनकी शान में कसीदे पढ़े गए.

लेकिन इस साल और अधिक बड़े और ठोस परिवर्तन होने वाले हैं. दिल्ली और मुंबई स्थित एनडीटीवी के कार्यालय इन शहरों में नए स्थानों पर ले जाए जा रहे हैं और समूह के नौ नए क्षेत्रीय चैनल शुरू करने की योजना भी है. इनमें से चार उन राज्यों में शुरू हो रहे हैं जहां इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने एनडीटीवी के पूर्व और वर्तमान कर्मचारियों से बात कर यह जानने का प्रयास किया कि अडानी के एनडीटीवी में क्या बदलाव हुए हैं.

मोदी पर रिपोर्टिंग का एक नया स्वरूप

भारत में समाचार चैनल सत्तारूढ़ दल से कठिन सवाल पूछने के लिए नहीं जाने जाते हैं. इसी कारण से 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही एनडीटीवी एक अपवाद रहा. कई अन्य समाचार चैनल सरकार के मुखपत्र बन गए, लेकिन सरकार के सामने नतमस्तक नहीं होने के लिए एनडीटीवी को सराहा गया.

इसलिए, उम्मीद के मुताबिक पिछले छह महीनों में अडानी के एनडीटीवी में मोदी और उनकी सरकार पर रिपोर्ट करने के तरीके में बदलाव देखा गया है. हालांकि यह बदलाव बहुत सावधानी से और धीरे-धीरे हो रहा है, लेकिन फिर भी यह स्पष्ट है, न केवल दर्शकों को बल्कि इसके कर्मचारियों को भी.

एनडीटीवी के एक पूर्व पत्रकार ने बताया, "पहले हम यह मानना नहीं चाह रहे थे. हमने अपने काम में ईमानदारी बनाए रखने के लिए एक संतुलनकारी भूमिका निभाने की पूरी कोशिश की. लेकिन एक समय के बाद वास्तव में हम कुछ नहीं कर सकते थे. इसलिए हमने चुपचाप कंपनी को झुकते हुए देखा."

20 वर्षों से अधिक समय तक एनडीटीवी के साथ काम करने के बाद, इस साल मई में सारा जैकब ने इस्तीफा दे दिया. इससे एक दिन पहले उन्होंने एक समाचार बुलेटिन की एंकरिंग की थी जिसमें बताया गया था कि मोदी कैसे "महिलाओं का सम्मान करते हैं". इस सेगमेंट के दौरान वह स्पष्ट रूप से असहज दिख रही थीं.

एनडीटीवी के पत्रकारों और संपादकों के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़े कम से कम तीन सदस्यों ने बताया कि अडानी द्वारा अधिग्रहण के बाद से ग्रुप पर प्रधानमंत्री कार्यालय से संबंधित जानकारी "अधिक तेजी से साझा की जाती है".

"एक ही समाचार जो पहले आमतौर पर केवल पीएमओ या बीजेपी बीट के रिपोर्टर द्वारा भेजा जाता था, अब एक ही समय पर पांच लोगों द्वारा शेयर किया जाता है," एक रिपोर्टर ने बताया.

पहले केवल अखिलेश शर्मा एनडीटीवी के लिए भाजपा बीट कवर करते थे. मार्च में मेघा प्रसाद टाइम्स नाउ छोड़कर एनडीटीवी से जुड़ीं और उन्होंने पीएमओ को कवर करना शुरू किया. 

न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला कि मोदी से जुड़ी खबरों को "लीड या कम से कम शीर्ष पांच खबरों में" प्राथमिकता देने के अप्रत्यक्ष निर्देश भी दिए गए थे. साथ ही, उन्हें यह भी निर्देश दिया गया कि "कभी भी किसी खबर को दोनों पक्षों के बिना न लें. चाहे कुछ भी हो, खबरें संतुलित रहना जरूरी है". 

दिल्ली से बाहर के ब्यूरो के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि अब तक, प्रबंधन ने "मुझे किसी खबर को कवर करने से रोका नहीं है". "लेकिन चीजें धीरे-धीरे बदलती हैं, रातों-रात नहीं," उन्होंने कहा.

उनकी बात से सहमति जताते हुए एक अन्य रिपोर्टर ने भी कहा कि अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले या उसके आसपास और अधिक प्रत्यक्ष बदलाव होने की संभावना है. 

"अभी तक हमारी रिपोर्टिंग में कुछ नहीं बदला है, लेकिन बदलाव निश्चित है. अडानी यहां पत्रकारिता के झंडाबरदार बनने के लिए नहीं आए हैं. बदलाव होगा जरूर, लेकिन रातोरात नहीं," उन्होंने कहा, "2024 का चुनाव हमारे लिए इम्तिहान होगा".  

न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला कि कुछ पत्रकारों ने प्रबंधन से कहा था कि वह भड़काऊ "हिंदू-मुस्लिम" स्टोरीज नहीं करना चाहते, और प्रबंधन ने उन्हें आश्वस्त किया था कि उन्हें ऐसा नहीं करना पड़ेगा. 

एनडीटीवी पर ईरानी की वापसी के साथ भाजपा द्वारा चैनल के बहिष्कार का अंत हो गया, जो छह साल पहले शुरू हुआ था जब राजदान ने पात्रा को यह आरोप लगाने के लिए अपने शो से बाहर कर दिया था कि उनसे सवाल पूछने के पीछे एनडीटीवी का अपना "एजेंडा" है. राजदान ने जवाब दिया कि वह "अन्य चैनलों पर जाने के लिए स्वतंत्र है, जो दूरदर्शन से भी बड़े सरकारी चैनल हैं."

लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री को बताया गया है कि अब मंत्री और नेता फिर से चैनल से बातचीत कर रहे हैं और डिबेटों में भाजपा प्रवक्ता वापस आ रहे हैं. इसका मतलब एनडीटीवी पत्रकारों की "पहुंच" भी बेहतर होगी, जो रॉय दंपत्ति के स्वामित्व में संभव नहीं था. अप्रैल में मेघा प्रसाद ने पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू लिया था. जावड़ेकर फिलहाल भाजपा के केरल प्रभारी हैं.

जून में एनडीटीवी के उत्तर प्रदेश कॉन्क्लेव में उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल के साथ-साथ अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेताओं सहित कई राजनेताओं ने भाग लिया.

imageby :

इसके अतिरिक्त, 20 जून को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के जन्मदिन के अवसर पर एनडीटीवी को राष्ट्रपति भवन में उनके जीवन पर एक कार्यक्रम करने की विशेष अनुमति दी गई. अप्रैल या उसके बाद से चैनल पर यूपी सरकार के विज्ञापन भी देखे जा रहे हैं, जबकि अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच यूपी सरकार द्वारा टीवी समाचार चैनलों को दिए गए विज्ञापनों पर होने वाले खर्च के ब्यौरे में एनडीटीवी का नाम तक नहीं था. 

पिछले हफ्ते मोदी के फ्रांस दौरे को "प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा का 360 डिग्री कवरेज" और "एनडीटीवी का व्यापक कवरेज" के रूप में दिखाया गया. कवरेज में "बॉनजॉर मोदी", "डील्स, दोस्ती एंड डायलाग" और "2-डे पावर-पैक्ड विजिट" जैसे वाक्यांशों का प्रयोग किया गया.

imageby :

एक सेगमेंट में पेरिस में दौरे को कवर कर रहे विष्णु सोम ने मोदी का इंतजार कर रहे भारतीय प्रवासियों की भीड़ से उत्साहित होकर पूछा कि क्या मोदी का दौरा उनके लिए एक "त्योहार" की तरह है. जैसे ही भीड़ ने "मोदी, मोदी" का नारा लगाया, सोम ने एक युवा लड़की से कहा, "आपको भी नारा लगाना चाहिए". लोगों ने "मोदी है तो मुमकिन है" का नारा लगाया तो सोम ने कैमरे में देखकर कहा, "यह देख रहे हैं आप, यहां पेरिस में यही माहौल है."

वहीं एनडीटीवी इंडिया पर इस बात पर चर्चा हुई कि कैसे हम पहले के भारतीय प्रधानमंत्रियों के फ्रांस दौरों पर "ज्यादा ध्यान नहीं देते थे". लेकिन अब, जब मोदी दौरे पर जाते हैं तो वह विशेष रूप से भारतीय समुदाय से मिलते हैं, जिससे उनमें नया "विश्वास" पैदा होता है.

इसी तरह, जून में मोदी की यूएस यात्रा को एनडीटीवी पर "100 घंटे की नॉन-स्टॉप" कवरेज के रूप में दिखाया गया. रिपब्लिक या टाइम्स नाउ के दर्शक तो इस तरह के कवरेज से परिचित हैं, लेकिन एनडीटीवी के तौर-तरीकों में यह एक उल्लेखनीय बदलाव है. इसके ठीक विपरीत, 2019 में टेक्सास में हुए हाउडी मोदी कार्यक्रम का कवरेज कहीं अधिक संतुलित था.  

यूएस दौरे के कवरेज में एक "बिग स्टोरी" भी थी, जिसमें एंकर नम्रता बरार "चर्चित और क्रांतिकारी मोदीजी थाली" का स्वाद लेने के लिए न्यू जर्सी के एक रेस्तरां में गईं. उन्होंने रेस्तरां के मालिक, शेफ और ग्राहकों से थाली के बारे में पूछताछ की. हालांकि वह तब तक परोसी नहीं जा रही थी. उन्होंने विदेश मंत्री एस जयशंकर से प्रेरित एक ड्रिंक पर भी चर्चा की. एनडीटीवी ने एएनआई का एक वीडियो भी प्रसारित किया, जो मोदी द्वारा बाजरे के प्रचार से "प्रेरित" न्यूयॉर्क के एक रेस्तरां पर था.

imageby :
imageby :
imageby :

मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान सिर्फ अच्छी बातें ही नहीं हुईं. मानवाधिकारों के हनन पर उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए, 75 डेमोक्रेट नेताओं ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को इसके बारे में लिखा, कई सांसदों ने अमेरिकी कांग्रेस में उनके भाषण का बहिष्कार किया, और पत्रकारों की रक्षा करने वाली समिति ने भारत में कम होती प्रेस की आजादी पर वाशिंगटन पोस्ट में पूरे पेज का एक विज्ञापन निकाला. 

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी मोदी के राज में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की सुरक्षा पर बात की. जिसपर निर्मला सीतारमण जैसे भाजपा नेताओं ने कहा कि कोई ओबामा की बात क्यों सुनेगा, जिनके राष्ट्रपति रहते हुए यूएस ने सीरिया और यमन जैसे मुस्लिम देशों पर बम गिराए थे.

26 जून को एनडीटीवी ने इस पर एक शो प्रसारित किया था, जिसका शीर्षक था 'फंस गए रे ओबामा'. इस शो में कुछ ऐसे उपशीर्षक चलाए जा रहे थे: 'भारत पर टिप्पणी के बाद बराक ओबामा घिरे', 'निर्मला सीतारमण ने ओबामा को दिखाया आईना', 'ओबामा को अमेरिका में ही मिला करारा जवाब' आदि.

imageby :

इस कार्यक्रम की मेजबानी अखिलेश शर्मा ने की. उन्होंने यह भी बताया कि मोदी ने अमेरिका की यात्रा के तुरंत बाद मिस्र की एक मस्जिद का दौरा किया. मोदी को ऑर्डर ऑफ द नाइल से भी सम्मानित किया गया.

उन्होंने दर्शकों से कहा, "यह कोई पहली बार नहीं है जब मोदी ने किसी विदेशी देश में किसी मस्जिद का दौरा किया है," और फिर मिस्र सहित उन सभी मुस्लिम देशों के नाम गिनाए जिन्होंने मोदी को पुरस्कारों से "सम्मानित" किया है. "खास बात यह है कि मुस्लिम देशों के साथ भी भारत की दोस्ती गहरी हुई है," उन्होंने कहा.

लेकिन शायद मोदी के प्रति एनडीटीवी के प्रेम प्रदर्शन की पराकाष्ठा हुई मई में, जब चैनल ने उनके नौ सालों के कार्यकाल पर नौ-भाग की एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज प्रसारित की. भाजपा के ट्विटर अकाउंट से प्रचारित यह कार्यक्रम पत्रकारिता कम और विज्ञापन अधिक लग रहा था. पहला एपिसोड प्रसारित होने से पहले ही ग्राफिक्स के साथ ट्वीट कर दिया गया था.

जैसा कि एनडीटीवी के एक कर्मचारी ने कहा, "लगा मानो मोदी की प्रशंसा में हम भाजपा से आगे निकल गए हैं."

डॉक्यूमेंट्री का प्रत्येक एपिसोड अलग-अलग पत्रकारों द्वारा "रिपोर्ट" किया गया- विष्णु सोम, मेघा प्रसाद, उमा शंकर, आलोक पांडे, वसुधा वेणुगोपाल, नजीर मसूदी, संकेत उपाध्याय और प्रियांशी शर्मा. 10 से 28 मिनट तक लंबे हर एपिसोड की थीम अलग थी.

imageby :
द मोदी इयर्स एपिसोड.

इस सीरीज में कैबिनेट मंत्रियों और नौकरशाहों जैसे अमिताभ कांत, पीएम के आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य शमिका रवि और उद्योगपतियों जैसे अपोलो अस्पताल की संयुक्त प्रबंध निदेशक संगीता रेड्डी, शुगर कॉस्मेटिक्स की सह-संस्थापक विनीता सिंह आदि के साक्षात्कार भी दिखाए गए थे. प्रसार भारती के पूर्व सीईओ शशि शेखर वेम्पति, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सुशांत सरीन और तकनीकी पत्रकार पंकज मिश्रा भी इसमें दिखे.

सभी एपिसोड्स की "सीरीज एडिटर" के रूप में संतोष कुमार और वैशाली सूद का नाम दिया गया था. "विशेष धन्यवाद" की सूची में रक्षा मंत्रालय, भारतीय रेलवे, भारतीय वायु सेना और कश्मीर पर्यटन बोर्ड आदि का नाम आया.

पहले एपिसोड में एंकर विष्णु सोम- जो कुछ बचे पुराने लोगों में से एक हैं ने कहा, "दुनिया भर के कई नेताओं की नजर में, भारत और मोदी कुछ भी गलत नहीं कर सकते."

पूरी सीरीज का रुख ऐसा ही रहा.

छठे एपिसोड में एनडीटीवी ने पूछा कि क्या "संयुक्त विपक्ष" 2024 में मोदी को हरा सकता है. चौथे एपिसोड में बताया गया कि कैसे भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की ऐसी गति "पहले कभी नहीं देखी गई". 

पांचवे एपिसोड में कहा गया कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में "शांति" आई है, जिसने "स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है". इससे पर्यटन में भी उछाल आया है, क्योंकि मोदी ने "लोगों से कश्मीर की यात्रा करने और इसकी प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने के लिए कहा था, और इसका गहरा असर दिख रहा है".

गौरतलब है कि पिछले डेढ़ साल में कश्मीरी पंडितों ने समुदाय के कई लोगों पर हमलों के बाद केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है. कुछ लोगों ने तो अपनी जान के डर से अपना गांव छोड़ दिया. इसके अलावा, कश्मीर में "राजनैतिक अस्थिरता और हिंसा" के कारण 2022 में 49 बार इंटरनेट बंद रहा.

डॉक्यूमेंट्री में इनमें से किसी भी तथ्य का उल्लेख नहीं किया गया था.

निकास और आगमन 

अडानी द्वारा अधिग्रहण के बाद जिन लोगों ने एनडीटीवी छोड़ा उनकी कमी कर्मचारियों और दर्शकों दोनों को महसूस होती है. शायद रवीश कुमार की जगह भरना सबसे कठिन है, न केवल एनडीटीवी में बल्कि हिंदी समाचार के पूरे इकोसिस्टम में. 

दस सालों से अधिक समय से न्यूज़लॉन्ड्री में हम भारत के मीडिया की स्थिति, विशेषकर कुछ समाचार चैनलों और उनके प्राइमटाइम कार्यक्रमों, पर रिपोर्ट करते रहे हैं. एक-दूसरे पर चिल्लाते पैनलिस्टों और हिंदू-मुस्लिम मुद्दों पर बहसों से टीआरपी मिलती है, और टीआरपी से विज्ञापन आते हैं.

अमन चोपड़ा, सुधीर चौधरी और दीपक चौरसिया की हिंदी प्राइमटाइम दुनिया से रवीश कुमार अलग थे. उन्होंने गैस की कीमतें, सरकार का विरोध, बाढ़, बलात्कारियों को सम्मानित किए जाने जैसे जनहित के मुद्दों पर प्रकाश डाला और मोदी से इन मुद्दों पर उनकी चुप्पी, कथित हिपोक्रेसी और सरकार की नीतियों पर सीधे सवाल पूछे. 2022 में एनडीटीवी पर अपने आखिरी 30 प्राइमटाइम कार्यक्रमों में से 16 में उन्होंने मोदी से सवाल किए.

उदाहरण के लिए, 9 नवंबर 2022 के शो में कुमार ने शिवसेना नेता संजय राउत की गिरफ्तारी को "अवैध" बताया और पीएम या कानून मंत्री से जवाब मांगा. "क्या आपको अब भी भरोसा नहीं है कि जांच एजेंसियों का राजनैतिक इस्तेमाल किया जा रहा है?...उनका इस्तेमाल विपक्ष को कमजोर करने, उन्हें डराने और धमकाने के लिए किया जा रहा है."

20 अक्टूबर, 2022 के शो में कुमार साफ तौर पर नाराज दिखे. उन्होंने कहा कि जहां एक ओर मोदी ने महिलाओं के सम्मान पर भाषण दिया था, वहीं भाजपा नेताओं ने बलात्कार के दोषियों को सम्मानित किया. “क्या प्रधान मंत्री भूल गए कि उन्होंने इस 15 अगस्त को क्या कहा था? क्या बीजेपी यह भी भूल गई कि प्रधानमंत्री ने क्या कहा था?"

आउटस्टेशन ब्यूरो के एक पत्रकार ने कहा, "जब रवीश अपने शो में मेरी स्टोरीज प्रयोग करते थे, तो मुझे पता होता था कि दर्शकों पर इसका असर पड़ेगा. अभी भी एंकर मेरी स्टोरीज दिखाते हैं, लेकिन इसका प्रभाव अलग होता है. उनके बिना यह पहले जैसा नहीं रहा."

30 नवंबर को कुमार के एनडीटीवी छोड़ने के बाद 9 बजे का स्लॉट संकेत उपाध्याय को दे दिया गया. वो इस स्लॉट के होस्ट हैं. वीकली ऑफ या छुट्टी पर होने की स्थिति में संकेत का शो अंकित त्यागी या सुशील बहुगुणा होस्ट करते हैं. पूर्व में ज़ी न्यूज़ और एबीपी न्यूज़ के साथ काम कर चुके सुमित अवस्थी को इस महीने की शुरुआत में एनडीटीवी ने कंसल्टिंग एडिटर के तौर पर नियुक्त किया है. वो एक प्राइमटाइम शो की मेजबानी भी करेंगे. अटकलें हैं कि उन्हें रात 9 बजे वाला स्लॉट भी दिया जा सकता है. 

लगता नहीं है कि अवस्थी रवीश की राह पर चलेंगे. न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा पिछले जुलाई में किए गए विश्लेषण से पता चला कि उस महीने एबीपी न्यूज़ पर अवस्थी ने जो 20 शो होस्ट किए थे, उनमें से 12 के विषय सांप्रदायिक थे, चार में भाजपा सरकार की प्रशंसा की गई थी, और दो में विपक्ष पर सवाल उठाए गए थे. ईद के आसपास गाय की तस्करी के बारे में एक शो में अवस्थी ने एक ओपिनियन पोल में पूछा कि क्या कथित तस्करों और उनके सहयोगियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए. 

लेकिन फिलहाल एनडीटीवी रिपब्लिक रास्ते पर नहीं गया है. हालांकि यह अभी रवीश के तीखे अंदाज़ से बहुत दूर है.

उदाहरण के लिए, जब केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने पहलवानों के विरोध प्रदर्शन को राजनैतिक करार दिया, तो एंकर त्यागी ने कहा, "जो व्यक्ति यहां आरोपी है वह भाजपा सांसद है. क्या वह राजनीति का हिस्सा नहीं है? दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन आती है, जहां भाजपा का शासन है. जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा तब जाकर दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज की. क्या यह राजनीति नहीं है?"

हरियाणा में किसानों के विरोध प्रदर्शन पर एंकर उपाध्याय ने कहा, "क्या बातचीत से समाधान जल्दी और आसानी से निकलेगा? या क्या हम फिर वही समय देखेंगे जब घृणा फैलाने वाली और किसानों को बदनाम करने वाली बातें कही जाएंगी?"

हालांकि जो चले गए हैं, उनकी जगह लेने के लिए एनडीटीवी ने अभी भी बड़े नामों की नियुक्ति नहीं की है. चर्चा है कि सीएनएन-न्यूज़18 की मरिया शकील भी जल्द ही एनडीटीवी में शामिल हो सकती हैं. इसके अलावा नई नियुक्तियों में टाइम्स नाउ से मेघा प्रसाद, और क्विंट से वैशाली सूद और संतोष कुमार प्रमुख हैं. 

वर्तमान निदेशक मंडल में हैं नॉन-एग्जीक्यूटिव इंडिपेंडेंट डायरेक्टर-चेयरपर्सन उपेन्द्र कुमार सिन्हा; एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर्स संजय पुगलिया और सेंथिल सिन्निया चेंगलवरायण; और नॉन-एग्जीक्यूटिव इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स विरल जगदीश दोशी और दीपाली गोयनका. 

अडानी समूह द्वारा नामित बोर्ड के दो सदस्यों ने इस साल की शुरुआत में इस्तीफा दे दिया था. छत्तीसगढ़ के पूर्व नौकरशाह रह चुके एनडीटीवी के एडिशनल नॉन-एग्जीक्यूटिव इंडिपेंडेंट डायरेक्टर सुनील कुमार ने मार्च में इस्तीफा दे दिया था. अप्रैल में अडानी समूह के कॉर्पोरेट ब्रांड संरक्षक और कॉर्पोरेट मामलों के प्रमुख अमन सिंह ने नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया था. सिंह पूर्व आईआरएस अधिकारी हैं जिन पर छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे.

लेकिन इस जहाज के कप्तान ज़ाहिर तौर पर संजय पुगलिया हैं. अधिग्रहण के समय यह अनुभवी पत्रकार अडानी के एएमजी मीडिया नेटवर्क के सीईओ थे. वर्तमान में वह सेंथिल सिन्निया चेंगलवरायण के साथ एनडीटीवी बोर्ड के पूर्णकालिक निदेशक हैं. 

जब एनडीटीवी के वरिष्ठ अधिकारियों सुपर्णा सिंह, कवलजीत सिंह बेदी और अरिजीत चटर्जी ने जनवरी में इस्तीफा दे दिया था, तो पुगलिया ने घोषणा की थी कि जो भी लोग उनके मातहत थे, साथ ही सभी विभागों के प्रमुख अब उन्हें रिपोर्ट करेंगे. एनडीटीवी के कर्मचारियों ने पुगलिया को "मिलनसार" बताया.

वैशाली सूद और संतोष कुमार चैनल के नए सीनियर मैनेजिंग एडिटर्स हैं, जो रोजमर्रा का कामकाज देखते हैं.

अधिग्रहण के छह महीने बाद एनडीटीवी छोड़ चुके एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया, "सभी विभाग संजय और सेंथिल को रिपोर्ट करते हैं. लेकिन इन विभागों के लिए विशेषज्ञों की जरूरत है. वहां एक खालीपन है...वह केवल टीवी के बारे में सोचते हैं. डिजिटल क्षेत्र में कोई खास निर्णय नहीं लिए जा रहे हैं."

एक आउटस्टेशन ब्यूरो से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि चैनल के पास "फिलहाल कोई लीडर नहीं है".

उन्होंने कहा, "ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसे लोग पहचान सकें. संजय बड़ी बातों का ध्यान रखते हैं. संगठन अभी नेतृत्व विहीन है. पहले, एक बॉस और एक मुखिया होता था, जो नेतृत्व करता था. अब हमारी बातों में बहुत अधिक इनपुट नहीं होता है. जो ब्यूरो दिल्ली से बाहर हैं उनसे उम्मीद कम हुई है."

चैनल छोड़ चुके वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, "कॉमस्कोर डेटा से पता चलता है कि एनडीटीवी की रेटिंग गिर गई है लेकिन कोई यह नहीं बता रहा है कि वे इसे कैसे ठीक करेंगे."

कॉमस्कोर एक रैंकिंग कंपनी है जो टेलीविज़न और ऑनलाइन इंगेजमेंट के आंकड़े रखती है. अक्टूबर 2022 में समाचार/सूचना श्रेणी में एनडीटीवी 8वें स्थान पर था और इसके कुल 99 मिलियन से अधिक यूनिक विज़िटर्स थे. मई 2023 के नवीनतम कॉमस्कोर डेटा में एनडीटीवी 10वें स्थान पर गिर गया और इसके कुल यूनिक विज़िटर्स की संख्या 72 मिलियन से अधिक थी. इसके ऊपर टाइम्स ग्रुप, नेटवर्क18, एचटी मीडिया, इंडिया टुडे, एबीपी, जागरण, इंडियन एक्सप्रेस, ज़ी डिजिटल और डेलीहंट थे.

एनडीटीवी पिछले साल मार्च में बार्क रेटिंग्स से बाहर निकल गया था, इसके कारण बार्क डेटा उपलब्ध नहीं है.

शेयर बाजार में एनडीटीवी के शेयर अडानी समूह के शेयरों का हिस्सा हैं, लेकिन इसका कंपनी के शेयरों की कीमत पर अब तक ज्यादा असर नहीं पड़ा है. जून में एनडीटीवी के शेयर की कीमत 200 से 245 के बीच रही. पिछले साल नवंबर में इसकी कीमत सबसे अधिक 426 थी. 

नए चैनल

दिसंबर में मीडिया को जारी एक बयान में अडानी समूह ने कहा कि "एएमएनएल के पोर्टफोलियो में विस्तार के साथ बढ़ते आपसी तालमेल का लाभ उठाने की जरूरत है, जैसे बीक्यू प्राइम और एनडीटीवी प्रॉफिट के बीच". अधिग्रहण के बाद जनवरी में पहले टाउनहॉल के दौरान, एनडीटीवी के नए प्रबंधन ने कहा कि वे 2018 में बंद हो चुके एनडीटीवी प्रॉफिट को फिर से शुरू करना चाहते हैं. 

19 मई को भारत सरकार के बौद्धिक संपदा कार्यालय में एनडीटीवी बीक्यू प्राइम के एक ट्रेडमार्क का पंजीकरण किया गया.

हालांकि इसकी अभी कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन हमने एनडीटीवी पर बीक्यू प्राइम की और बीक्यू प्राइम पर एनडीटीवी की रिपोर्ट देखी है. उदाहरण के लिए, एनडीटीवी की वेबसाइट के बिजनेस पेज की अधिकांश खबरें बीक्यू प्राइम की वेबसाइट पर रीडायरेक्ट की जाती हैं और बीक्यू प्राइम के पत्रकारों द्वारा लिखी जाती हैं.

मोदी डॉक्यूमेंट्री सीरीज के लिए बीक्यू प्राइम के पत्रकारों को भी क्रेडिट दिया गया था.

इसके अलावा बहुत सारे नए चैनल आने वाले हैं. पिछले एक दशक में एनडीटीवी ने केवल चार चैनल चलाए हैं: एनडीटीवी 24x7, एनडीटीवी इंडिया, एनडीटीवी प्रॉफिट और गुड टाइम्स. दो महीने पहले समूह ने घोषणा की कि वह विभिन्न भाषाओं में नौ समाचार चैनल लॉन्च करने के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय से अनुमति मांगेगा.

न्यूज़लॉन्ड्री ने जो दस्तावेज देखें हैं उनसे पता चलता है कि समूह ने निम्नलिखित चैनलों हेतु ट्रेडमार्क के लिए आवेदन किया है: एनडीटीवी मलयालम, एनडीटीवी राजस्थान, एनडीटीवी एमपी/छत्तीसगढ़, एनडीटीवी बांग्ला, एनडीटीवी मराठी, एनडीटीवी गुजराती, एनडीटीवी कन्नड़, एनडीटीवी तेलुगु और एनडीटीवी तमिल। सभी नौ ट्रेडमार्क आवेदन 17 मई से 23 मई के बीच दाखिल किए गए थे.  

तो एनडीटीवी अंततः पूरे देश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा, जो ज़ी और न्यूज़18 जैसे प्रतिस्पर्धी दशकों पहले कर चुके हैं. एनडीटीवी ने एनडीटीवी 24x7 और एनडीटीवी इंडिया एचडी के लिए भी ट्रेडमार्क पंजीकृत किया है, जिसका मतलब है कि एचडी प्रसारण जल्द ही शुरू होने की संभावना है.

अडानी का कवरेज 

पिछले साल के अंत में जब यह स्पष्ट हो गया कि अडानी का अधिग्रहण अपरिहार्य है, सूत्रों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पिछले प्रबंधन ने ऑफिस स्पेस जैसे कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने से खुद को रोके रखा, क्योंकि इस बात की संभावना थी कि नए प्रबंधन की योजनाएं अलग होंगी.

अधिग्रहण की शुरुआत ही मार्केट क्रैश के साथ हुई.

24 जनवरी को अमेरिकी शार्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर "कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ी धोखाधड़ी" करने और दो दशकों के दौरान "बेशर्मी से शेयरों में हेरफेर और अकाउंटिंग में धोखाधड़ी करने" का आरोप लगाया. इस रिपोर्ट के पीछे दो साल की जांच थी, जिसमें दर्जनों लोगों के साक्षात्कार, हजारों दस्तावेजों की समीक्षा और लगभग आधा दर्जन देशों की यात्राएं शामिल थीं.

रिपोर्ट जारी होने के कुछ दिनों बाद अडानी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों को कुल मिलाकर $48 बिलियन का नुकसान हुआ. पांच महीने बाद ग्रुप की मार्केट वैल्यू अभी भी लगभग $100 बिलियन कम है. चार महीने की अवधि में 10 अडानी शेयरों में 23 प्रतिशत की औसत गिरावट देखी गई.

पहले दो दिनों तक एनडीटीवी ने इस विवाद पर कोई रिपोर्ट नहीं की. 27 जनवरी की दोपहर को वेबसाइट पर इस विषय में दो पीटीआई की खबरें प्रकाशित की गईं.

मई में जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने पाया कि अडानी समूह द्वारा "ट्रेडिंग में हेरफेर का कोई सुसंगत पैटर्न" नहीं पाया गया और कुछ आरोपों की "अभी भी जांच चल रही" है, तो इस अवसर पर एनडीटीवी की रिपोर्टिंग दिलचस्प रही.

चैनल ने कुछ इस तरह के टिकर चलाए: "अडानी मामले का सच आया सामने, एजेंडा हुआ उजागर", "हिट एंड रन एजेंडा हुआ पूरी तरह एक्सपोस" और "क्या एजेंडा ब्रिगेड माफी मांगेगा?" आदि. प्राइमटाइम पर सोम ने कहा कि जनता की भावनाएं प्रभावित हुई हैं, शेयर धारकों की संपत्ति के साथ-साथ कई समूहों की संपत्ति भी घटी है, और भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर भी असर पड़ा है केवल इसलिए क्योंकि कुछ राजनैतिक दल कानूनी प्रक्रिया के पूरा होने का इंतजार नहीं कर सके.

imageby :

एक पूर्व कर्मचारी ने आशंका जताई कि शायद हिंडनबर्ग रिपोर्ट एनडीटीवी के अडानीकरण में बाधक सिद्ध हुई और शायद यही कारण है कि चैनल अभी तक पूरी तरह से नहीं बदला है. 

एनडीटीवी के एक कर्मचारी ने कहा, "पिछले शासनकाल में भी पत्रकारिता बची रही, इसमें भी रहेगी, हालांकि ऐसा लगता है कि कुछ भक्तगिरी भी होगी." 

लेकिन गौतम अडानी के शब्दों में, एनडीटीवी का अधिग्रहण एक कर्तव्य था, कोई व्यावसायिक अवसर नहीं.

जैसा कि उन्होंने नवंबर में फाइनेंशियल टाइम्स से कहा था, "(प्रेस की) आज़ादी का मतलब है कि अगर सरकार ने कुछ गलत किया है, तो आप उसे गलत कहें. लेकिन साथ ही, जब सरकार हर दिन सही काम कर रही हो, तो आपको यह कहने का साहस भी रखना चाहिए." और एनडीटीवी अब तक बिल्कुल  यही कर रहा है.

रिसर्च में सहयोग: मोहम्मद सारिम.

ग्राफिक्स- गोबिंद वीबी.

Also see
article imageसरहद पार की प्रेम कहानी: 'पाकिस्तान की मौत जिल्लत भरी होगी, भारत में चैन से मरूंगी'
article imageकेजरीवाल ने सुनाई ‘चौथी पास राजा’ की कहानी, एनडीटीवी समेत कई चैनलों से गायब
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like