संसद टीवी में छंटनी: ‘एचआर और संपादक की भूमिका में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़’

संसद टीवी के कर्मचारियों का आरोप है कि चैनल में नौकरी पर रखने, निकालने और अप्रेजल जैसे फैसले उपराष्ट्रपति कर रहे हैं और राज्यसभा टीवी के कर्मचारियों के साथ भेदभाव हो रहा है.  

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
Article image

संसद टीवी में काम करने वाले कर्मचारियों खासकर पत्रकारों के लिए जून का महीना परेशानी भरा रहा. कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के डर के बीच कर्मचारी काम करते रहे. इसकी वजह थी 12 जून को हुई छंटनी. इस दिन 19 अस्थायी और फ्रीलांस कर्मचारियों और उसके बाद 27 जून को सात कर्मचारियों का कॉन्ट्रैक्ट संसद टीवी ने खत्म कर दिया. दिलचस्प बात यह है कि संसद टीवी को साल भर पहले ही लोकसभा और राज्यसभा टीवी का एकीकरण करके बनाया गया था. लेकिन जून महीने में हुई सारी छंटनियों के शिकार वो लोग हुए जो पूर्व में राज्यसभा टीवी में काम करते थे. लोकसभा टीवी वालों को इससे बाहर रखा गया.  

संसद टीवी, मार्च 2021 में लोकसभा और राज्यसभा टीवी के विलय के बाद बना था. उस समय भी राज्यसभा के कई लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. 

भारत सरकार ने गाजे-बाजे के साथ इस विलय को अंजाम दिया, लेकिन संसद टीवी कभी भी ठीक से ट्रैक पर नहीं आ पाया. लोकसभा टीवी में पांच साल और राज्यसभा में बीते चार साल से कमर्चारियों के वेतन में कोई वृद्धि नहीं हुई थी. कर्मचारी बेहतरी की उम्मीद में काम कर रहे थे. लेकिन बहुतों के हाथ ‘बेरोजगारी’ लगी है. 

गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति और राज्यसभा टीवी का चेयरमैन होता था. संसद टीवी बनने के बाद अब उपराष्ट्रपति ही इसके चेयरमैन हैं. संसद टीवी में काम करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि जगदीप धनखड़ ने आने के बाद से ही संसद टीवी के कामकाज में गहरी दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया. लोगों को नौकरी पर रखने, हटाने, शो से संबंधित निर्णय और यहां तक कि लोगों के अप्रेजल आदि के निर्णय भी उनके दफ्तर से ही आने लगे. 

संसद टीवी में काम करने वाली एक कर्मचारी, जो विलय से पहले राज्यसभा के लिए काम करती थीं, हमें बताती हैं, ‘‘ऐसा नहीं था कि पूर्व के उप राष्ट्रपतियों को इसमें दिलचस्पी नहीं थी. उन लोगों का इससे एक पर्सनल अटैचमेंट था. चाहे हामिद अंसारी हों या वेंकैया नायडू. लेकिन उन्हें चैनल के अंदर की गतिविधियों से मतलब नहीं होता था. धनखड़ इस मामले में थोड़ा अलग हैं. उनकी तरफ से रोज़ाना कामकाज का माइक्रो मैनेजमेंट हो रहा है. यह कहना गलत नहीं होगा कि वीपी (धनखड़) यहां एचआर की भी भूमिका भी निभा रहे हैं.’’

एक जानकार हमें बताते हैं कि इसी साल 29 जनवरी को पहली बार धनखड़ ने संसद टीवी के कर्मचारियों के साथ मीटिंग की.  इस मीटिंग में संसद टीवी के सभी कर्मचारी मौजूद थे. उस दिन उन्होंने लोगों से उनके काम के बारे में पूछा. लोगों ने अपनी परेशानी भी साझा की. जिसमें ज़्यादातर की शिकायत वेतन को लेकर थी. तब वीपी ने कहा कि भरोसा रखें सब बेहतर होगा. 

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
12 जून को 19 अस्थायी कर्मचारियों को निकालने का नोटिस संसद टीवी के सीईओ राजित पुन्हानी ने जारी किया. ये सारे लोग राज्यसभा टीवी के थे. इन्हें हटाए जाने का कारण भी नहीं बताया गया.

मीटिंग में मौजूद रहे एक पत्रकार बताते हैं, ‘‘सब लोग उम्मीद लगाए हुए थे. अप्रैल में हमारे कई शो बंद कर दिए गए. अप्रैल से पहले तक हम पांच से छह घंटे का ओरिजनल कंटेंट रोज़ बनाते थे. संसद टीवी के कई शो- अपना आसमान, प्रोस्पेक्टिव, ग्लोबल डिबेट, आपका मुद्दा, आवाज़ देश की आदि बंद हो गए. अप्रैल के बाद से संसद टीवी सप्ताह में सिर्फ दो से तीन घंटे का ओरिजिनल कंटेंट बना रहा है. ये ओरिजिनल कंटेंट भी ज़्यादातर उपराष्ट्रपति के स्पेशल विजिट के ऊपर बनते हैं.’’

पत्रकार आगे बताते हैं, ‘‘संसद टीवी में काम कम कर दिया गया और उसके बाद बुलाकर पूछा जाने लगा कि आप आजकल क्या काम करते हैं? अब जब ओरिजनल कंटेंट ही कम बन रहा था तो लोगों के पास बताने के लिए कुछ बचा नहीं था. इसके बाद निकालने की प्रक्रिया शुरू हुई.’’ 

12 जून को 19 अस्थायी कर्मचारियों को निकालने का नोटिस संसद टीवी के सीईओ राजित पुन्हानी ने जारी किया. ये सारे लोग राज्यसभा टीवी के थे. इन्हें हटाए जाने का कारण भी नहीं बताया गया. 

इसके बाद दो अस्थायी कर्मचारी रह गए. दीपाली पंडित और सगीर अहमद. दीपाली, वीपी सेक्रेटेरिएट के लिए भी काम करती हैं. वहां वो सहायक सूचना अधिकारी के रूप में काम करती हैं. सगीर अहमद वीपी के कार्यक्रमों की निगरानी करते हैं और कार्यक्रम के फुटेज को एडिट कर वीपी ऑफिस भेजते हैं. जो कि वीपी के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट होता है.  

पत्रकार आगे बताते हैं, ‘‘इसके बाद 14 या 15 जून को एक बार फिर मीटिंग हुई, जिसमें धनखड़ भी मौजूद थे. वहां चैनल के 22 सीनियर कर्मचारियों को बुलाया गया. उसमें से सात कर्मचारियों को राजित पुन्हानी से मिलने के लिए कहा गया. पुन्हानी से उन्हें सूचना दी कि उन लोगों का कॉन्ट्रैक्ट 30 जून को खत्म हो जाएगा. यह तमाम लोग राज्यसभा टीवी के जमाने से सीनियर पदों पर काम कर रहे थे. ये सारे लोग भी राज्यसभा टीवी के थे.’’

 ‘‘किसी को नहीं पता था कि इस मीटिंग में धनखड़ भी आने वाले हैं. जब लोग मीटिंग के लिए ऑडिटोरियम पहुंचे तो थोड़ी देर में वहां धनखड़ भी आ गए. मीटिंग में धनखड़ ने बताया कि 95 हज़ार से कम सैलरी वाले लोगों को नौकरी से नहीं निकला जाएगा. उन्हें अगले एक साल का कॉन्ट्रैक्ट दिया जाएगा.’’

मीटिंग में मौजूद रहे एक सीनियर पत्रकार ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "सीईओ पुन्हानी ने मुझसे कहा कि आप लोग अपना सीवी मुझे भेज दें, मैं एनडीटीवी में बात कर लूंगा." दो अन्य कर्मचारियों ने भी इस बात की पुष्टि की कि सीईओ ने ऐसा कहा था.  

27 जून को एक और मीटिंग हुई. जिसकी जानकारी 26 जून की शाम को सीईओ राजित ने दी थी. इसको लेकर 27 जून को 12 बजे सभी को एक मेल आया जिसमें कहा गया कि सभी को बालयोगी ऑडिटोरियम की मीटिंग में आना है. संस्थान में बीते दिनों जो कुछ हुआ था उससे कर्मचारी डरे हुए थे. नौकरी जाने का डर सबको सता रहा था. 

एक कर्मचारी बताती हैं, ‘‘किसी को नहीं पता था कि इस मीटिंग में धनखड़ भी आने वाले हैं. जब लोग मीटिंग के लिए ऑडिटोरियम पहुंचे तो थोड़ी देर में वहां धनखड़ भी आ गए. मीटिंग में धनखड़ ने बताया कि 95 हज़ार से कम सैलरी वाले लोगों को नौकरी से नहीं निकाला जाएगा. उन्हें अगले एक साल का कॉन्ट्रैक्ट दिया जाएगा.’’

वो आगे बताती हैं, ‘‘इसके बाद 95 हज़ार से ऊपर की सैलरी पाने वाले 22 लोगों से वीपी अपने चैंबर में मिले. 22 में से सात को, जिसे सीईओ ने पहले ही कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने की बात बता दी थी, उन्हें वापस भेज दिया गया. बाकी 15 लोगों के साथ मीटिंग हुई. उनसे कहा गया कि उनके काम का अगले छह महीने तक रिव्यू होगा. इन्हें छह महीने का कॉन्ट्रैक्ट दिया जाएगा.’’

वीपी सेक्रेट्रिएट ने इसके लिए संसद टीवी में 95 हज़ार पैमाना रखा. यहां पर 95 हज़ार से ऊपर वाले सिर्फ 22 लोग थे. एक कर्मचारी बताते हैं, ‘‘इसमें से जिन सात लोगों को निकाला गया उसके पीछे कारण यह था कि उनकी बहाली कांग्रेस के शासन में हुई थी. कुछ का कामकाज ठीक नहीं था. कुछ की सैलरी बहुत ज़्यादा थी.’’  

लोगों को नौकरी से निकाले जाने के बाद बचे कर्मचारियों का अप्रेजल भी हुआ. जो पिछले चार-पांच साल से नहीं हुआ था. जहां कुछ लोग धनखड़ की भूमिका से खफा हैं वहीं, इससे खुश होने वाले भी मौजूद हैं. ऐसे ही एक प्रसन्न कर्मचारी ने हमें बताया, “अगर वो (धनखड़) सीधे दखल नहीं देते तो शायद ही अप्रेजल हो पाता. बड़ी तनख्वाह वाले सात लोगों को निकाल कर बड़ी संख्या में छोटे कर्मचारियों को बचा लिया गया. बहुत से लोगों का भला हो गया. हमारे लिए तो वीपी फायदेमंद ही साबित हुए हैं.”

इस घटनाक्रम से नाराज एक कर्मचारी बताते हैं, ‘‘जिन लोगों को नौकरी से निकाला गया वो अनुभवी और जानकार लोग थे. प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेकर यहां तक पहुंचे थे. उनकी सैलरी भी ज़्यादा थीं. इन्हें नौकरी से निकालकर, उनकी सैलरी को बाकियों में बांट देना, मैनेजर का काम है, उपराष्ट्रपति का नहीं. 95 हज़ार से ज़्यादा वेतन वाले कमर्चारियों को कोई अप्रेज़ल नहीं मिला. वहीं बाकी कर्मचारियों की सैलरी में 5 से 9 हज़ार के बीच बढ़ोतरी हुई है. जिन लोगों को निकाला गया उनको भी तो घर चलाना होता है. वीपी लगातार कहते रहे कि यहां ओवरस्टाफ है. अब जब शो ही बंद कर दिया जाएगा तो ओवरस्टाफ तो लगेगा ही.”

कुछ लोग वीपी की सक्रियता से खुश भी हैं.  ऐसे ही एक कर्मचारी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘लोकसभा टीवी और राज्यसभा टीवी का विलय 2021 में हो गया था, लेकिन अब तक किसी के पास संसद टीवी का न आईकार्ड था और न ही दूसरा कोई प्रमाण. सैलरी भी अलग-अलग जगहों से आती थी. वीपी की सक्रियता की वजह से विलय अंतिम चरण में पहुंचा है.’’  

कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार संसद टीवी को भी दूरदर्शन बनाने पर लगी है. जहां सिर्फ सरकार की तारीफ हो.

धनखड़ की अतिसक्रियता

उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, इन दिनों धनखड़ संसद टीवी की ‘संपादकीय मीटिंग’ भी लेने लगे हैं. इन संपादकीय मीटिंग्स को "सामान्य मीटिंग" का नाम दिया जाता है. हमें मिली जानकारी के मुताबिक 10 जुलाई और 11 जुलाई को धनखड़ ने एंकरों, एडिटरों और प्रोड्यूसर्स को अपने चैंबर में मीटिंग के लिए बुलाया था. पहले दिन इस मीटिंग में आठ लोग थे, दूसरे दिन 12 लोग पहुंचे थे. इसमें चैनल के कंटेंट पर चर्चा हुई. क्या चलेगा, मोदी सरकार के नौ साल के सफर पर किस तरह के शो बनाये जाएंगे, उसमें क्या दिखाया जाएगा आदि पर बात हुई. 

संसद टीवी के एक कर्मचारी ने हमें बताया कि इसे ‘संपादकीय मीटिंग’ नहीं बोला गया लेकिन जो बातें हुईं वो संपादकीय मीटिंग में ही होती हैं. ऐसा पहली बार हो रहा है. इससे पहले जो भी वीपी थे, उन्होंने अधिकारियों को इसकी जिम्मेदारी दे रखी थी. जैसे वेंकैया नायडू के समय एडिशनल सेक्रेटरी एए राव निर्णय लेते थे. हामिद अंसारी के लिए ये सारे काम गुरदीप सप्पल करते थे. 

सिर्फ राज्यसभा के ही कमर्चारी क्यों निकाले जा रहे?

अभी तक संसद टीवी से जिन लोगों का कॉन्ट्रैक्ट खत्म किया गया वो सब पूर्व में राज्यसभा टीवी से जुड़े हुए थे. यहां एक चीज स्पष्ट कर दें कि राज्यसभा और लोकसभा टीवी के मर्जर के बाद भले ही संसद टीवी का निर्माण हो गया हो लेकिन यह मर्जर पूरा नहीं हुआ है. आज भी लोकसभा टीवी के कर्मचारियों का वेतन लोकसभा सचिवालय से और राज्यसभा टीवी का राज्यसभा सचिवालय से आता है. 

राज्यसभा टीवी की फॉउन्डिंग टीम के एक सदस्य न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘जब दोनों टीवी चैनलों का मर्जर हुआ तभी से दोनों के कर्मचारियों के बीच खटपट शुरू हो गई थी. दरअसल, राज्यसभा में जो लोग काम करते थे, वो प्रोफेशनल्स थे. हम कई बार ऐसी खबरें भी कर देते थे जिससे कांग्रेस सरकार परेशान हो जाती थी. सरकार का चैनल है फिर भी प्रोफेशनल होने के नाते ऐसा कर पाते थे. हमने कभी डीडी न्यूज़ की तरह काम नहीं किया. कुछ एक कांग्रेस नेताओं के कहने पर भी आए थे. लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कम थी. लोकसभा टीवी में ऐसा नहीं था.’’

ये पत्रकार आगे कहते हैं, ‘‘लोकसभा टीवी ने कभी भी कुछ खास नहीं किया. वहां अलग से कोई बुलेटिन नहीं चलता था. वहां लोगों की सैलरी भी ज़्यादा नहीं थी. जबकि राज्यसभा सचिवालय के कॉन्ट्रैक्ट में था कि हर साल 10 प्रतिशत अप्रेजल होगा. लोकसभा में ऐसा कोई नियम भी नहीं था. नतीजतन विलय के बाद लोकसभा के कर्मचारियों को दिक्कत होने लगी. एक समय आया कि राज्यसभा के लोग ही संसद टीवी में हरेक काम देखते थे.’’  

‘‘इस छंटनी के बाद राज्यसभा के हिंदी विंग के लोग संसद टीवी से खत्म हो गए हैं. अब जो बचे हैं वो सब अंग्रेजी वाले हैं.’’

एक अन्य कर्मचारी बताते हैं, ‘‘हमने सुना कि लोकसभा ने लोकसभा टीवी में किसी भी छंटनी से इनकार कर दिया था. दरअसल, जिन 22 लोगों को 95 हजार से ज्यादा सैलरी के आधार निकालने की बात सामने आई थी उसमें दो लोकसभा टीवी के थे. राजेश कुमार झा और श्याम सहाय. इनको बुलाने के बाद कहा गया कि आप दोनों को गलती से बुलाया गया है. आप जा सकते हैं. श्याम सहाय को अब एडिटर बना दिया गया है.’’

संसद टीवी की एक कर्मचारी बताती हैं, ‘‘इस छंटनी के बाद राज्यसभा के हिंदी विंग के लोग संसद टीवी से खत्म हो गए हैं. अब जो बचे हैं वो सब अंग्रेजी वाले हैं.’’

कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार संसद टीवी को भी दूरदर्शन बनाने पर लगी है. जहां सिर्फ सरकार की तारीफ हो. संसद टीवी का यूट्यूब चैनल इसकी गवाही देता है. मसलन, सात जुलाई को इसके यू-ट्यूब चैनल पर दस वीडियो पब्लिश हुए. जिसमें से छह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़े थे. बता दें कि इस दिन पीएम मोदी छत्तीसगढ़ और गोरखपुर में योजनाओं के उद्घाटन के लिए मौजूद थे. एक कारगिल शहीद विक्रम बत्रा से जुड़ा वीडियो साझा हुआ. वहीं बाकी एक क़्विज था और दो संसद से संबधित बुलेटिन थे. 

यहां काम कर रहे कर्मचारियों की मानें तो अब संसद टीवी भी प्रधानमंत्री और सरकार के प्रचार के एक माध्यम के अलावा कुछ नहीं है.  

इस पूरे मामले पर न्यूज़लॉन्ड्री ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के मीडिया विभाग से बात की. महर सिंह ने कहा कि आप अपने सवाल भेज दें. हमने उन्हें सवाल भेज दिए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. हमने उपराष्ट्रपति के दफ्तर को भी सवाल मेल भेजे हैं. जवाब मिलने पर उसे इस स्टोरी में जोड़ दिया जाएगा.  

कुछ सवालों के जवाब संसद टीवी के सीईओ राजित पुन्हानी से अपेक्षित थे लेकिन उन्होंने भी हमारे सवालों का कोई जवाब नहीं दिया है. संसद टीवी संपादक श्याम सहाय ने भी कोई कमेंट करने से इंकार कर दिया. 

Also see
article imageजगदीप धनखड़ का सियासी सफर: किठाना गांव से रायसीना रोड तक
article imageव्हाट्सएप ग्रुप पर आए दो नोटिस और संसद टीवी के 19 कर्मचारी हुए रातों-रात बेरोजगार
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like