दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम लट्ठ. लगभग यही स्थिति खबरिया चैनलों से लेकर अखबारों तक मची रही समान नागरिक संहिता को लेकर. मानसून के साथ साथ देश में इन दिनों समान नागरिक संहिता ही है जिस पर खंचिया भर-भर ज्ञान बरस रहा है. झूठ को सच में इस तरह मिलाकर बेचा जा रहा है जैसे दूध में पानी. इस पर पोल खोल टिप्पणी.
यह खुला सच है कि देश के बड़े तबके में यूसीसी से जुड़ी बहुत सी चिंताएं और आशंकाएं हैं. लेकिन चूंकि अभी तक इसका कोई पक्का मसौदा सामने नहीं आया है, अभी यह विधि आयोग की टेबल पर है इसलिए अभी इसके बारे में बहुत बढ़चढ़ कर बातें करने से बचना चाहिए. लेकिन अगर आप हिंदी के खबरिया चैनलों के जरिए समान नागरिक संहिता को समझने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि यह सिर्फ मुसलमानों से जुड़ा मसला है, मुसलमानों के चलते ही यह अब तक अटका हुआ है.
दूसरी तरफ हमारी सरकार सोशल मीडिया एंफ्लुएंसर्स को लेकर कुछ बड़ा प्लान कर रही है. बड़ा मतलब इसके लिए टेंडर वेंडर निकाले गए हैं. इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बाकादा इसके लिए एक नोटिस जारी किया था. लेकिन किन लोगों ने टेंडर भरा, किनको चुना गया, इनसे सरकार क्या काम लेगी यह सब किसी को नहीं पता. लेकिन इसी बीच कुछ सोशल मीडिया एंफ्लुएंसर अचानक से लोगों को एंफ्लुएंस करने लगे. ऐसे दो तीरंदाज सामने आए. एक हैं रनवीर इलाहाबदिया और दूसरे हैं राज शमानी. इलाहाबदिया जिनका बियर बाइसेप्स के नाम से यू ट्यूब चैनल भी है उनके यहां राजीव चंद्रशेखर, एस जयशंकर, स्मृति ईरानी और पियूष गोयल के लंबे-लंबे इंटरव्यू प्रकाशित हुए. उधर शमानी बाबू के यहां भी नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान का इंटरव्यू चला. क्या है एंफ्लुएंसरों का पूरा खेल. देखिए इस हफ्ते की टिप्पणी.