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इस्लाम, मजहब और सियासत पर हिलाल अहमद से बातचीत

एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद की नई किताब 'अल्लाह नाम की सियासत' के बारे में कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया की पूरी बातचीत.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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न्यूज़लॉन्ड्री इंटरव्यू में इस बार सीएसडीएस में एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद से बातचीत होगी. इस बातचीत का ज़रिया बनी हिलाल की नई किताब 'अल्लाह नाम की सियासत'. अतुल चौरसिया ने इस दौरान उनसे मजहब, सियासत, सेक्युलरिज़्म, गांधी और जिन्ना समेत तमाम मुद्दों पर खुलकर बातचीत की.  

इस दौरान हिलाल ने बेबाकी से सब सवालों के जवाब दिए. एक सवाल के जवाब में हिलाल ने कहा कि आधुनिक समाज ने ही हमें हिंदू-मुस्लिम का चश्मा दिया है. वे कहते हैं कि आधुनिक परिकल्पना ये है कि धर्म और राजनीति दो अलग-अलग चीजें हैं. कई बार ऐसा होता है कि अनैतिक चीजों को राजनीति की संज्ञा दे दी जाती है. वहीं, धर्म के बारे में हिलाल कहते हैं कि धर्म कहीं न कहीं एक सामाजिक आंदोलन होता है. 

गांधी पर बात करते हुए हिलाल कहते हैं कि वे गांधीवादी नहीं बल्कि गांधीजन हैं. इसकी परिभाषा बताते हुए बिलाल कहते हैं कि गांधीजन वो लोग हैं जो गांधी को चाहते तो हैं लेकिन उनकी पूजा नहीं करते. वहीं, गांधीवादी लोग वो होते हैं जो उन बातों को भी सही साबित करते हैं, जिनसे वो खुद कई बार सहमत भी नहीं होते हैं.

धर्म और राजनीति का मिश्रण पर वे कहते हैं कि गांधी ने कहा था अगर राजनीति में धर्म नहीं होगा तो राजनीति कैसे होगी? सेक्युलरिज़्म को लेकर वे कहते हैं कि हम सब साथ मिलकर अलग-अलग रहें इसे ही सेक्युलरिज़्म कह दिया है. जबकि हमें इसके लिए नया शब्द ढूंढने की जरूरत है. जैसा कि योगेंद्र यादव भी कई बार कहते हैं कि भारत को स्वधर्म की जरूरत है. इसके अलावा हिलाल से उनकी किताब ‘अल्लाह नाम की सियासत’ पर भी बात हुई. देखिए ये पूरा इंटरव्यू.

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