दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
किष्किंधा पुरी में चुनाव चल रहे थे. इसलिए दरबार कई दिनों से स्थगित था. बड़े दिनों बाद दरबार में रौनक लौटी थी. धृतराष्ट्र और संजय काफी तरोताज़ा और जोश में नज़र आ रहे थे. संजय की पोटली में घटनाओं और कहानियों का जखीरा मौजूद था.
कर्नाटक चुनावों के नतीजे का लोगों पर कई तरह से असर हुआ. भाजपा के प्रोपगैंडा अभियान (आईटी सेल) के मुखिया अमित मालवीय ने हार के मौके पर छोटा दिल और कुंठित मानसिकता वाला चरित्र पेश किया. जानकारों के मुताबिक इसे अंग्रेजी में बैड लूज़र कहते हैं और हिंदी में खिसियाई हुई बिल्ली का खंभा नोचना.
लगे हाथ बात इंडिया टुडे समूह की भी. ये वो चैनल है जो अपने एंकर-एंकराओं को ही बीच मझधार में छोड़ देता है. इस चैनल पर सत्ताधारी दल का एक नेता कुछ भी अल्ल-बल्ल बक कर चला गया और चैनल ने विरोध भी दर्ज नहीं किया. राजदीप सरदेसाई के साथ इस शो में एक और सलमा-सितारा एंकर राहुल कंवल भी थे लेकिन इस पूरी बतकुच्चन के दौरान उन्होंने सुविधाजनक चुप्पी ओढ़ ली.
इस टिप्पणी में हम चैनलों की एक नई धूर्तता आपके सामने उजागर करेंगे. किस तरह से सुबह नौ बजे ज्यादातर चैनल आईबॉल खींचने की होड़ में फर्जी, आधारहीन आंकड़े उछालते हैं और मोदी, भाजपा के साथ इसका कॉकटेल बनाकर एक हिस्टीरिया क्रिएट करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा दर्शक उनकी तरफ आकर्षित हो सकें. सेंसेशन पैदा करके दर्शकों को अपनी तरफ खींचना, टीआरपी बढ़ाना और उस टीआरपी का इस्तेमाल विज्ञापन हासिल करने में करना इसका मकसद है. एबीपी न्यूज़ पर यह चतुराई हमने पकड़ी.