‘वारिस पंजाब दे’ के मुखिया अमृतपाल सिंह से कई मुद्दों पर विस्तार से बातचीत.
हाल ही में ‘वारिस पंजाब दे’ के मुखिया अमृतपाल सिंह अपने कई बयानों और अजनाला में अपने एक साथी को हिरासत से निकाल ले जाने को लेकर सुर्ख़ियों में रहे हैं. अपने बयानों में उन्होंने अतीत में पंजाब की राजनीति का एक हिस्सा रही ‘खालिस्तान’ की मांग फिर से उठाई है. इन्हीं सब पहलुओं को टटोलने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की टीम उनके गांव पहुंची, जहां न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने अमृतपाल से विस्तार से बात की.
भारतीय लोकतंत्र में एक अलग राज्य की मांग पर सिंह कहते हैं, “लोकतंत्र कोई काम्प्लेक्स सब्जेक्ट तो है नहीं कि हम इस पर बात ही न करें. डेमोक्रेसी जो है, वो सबसे मिल कर बनती है. हमें भी उसका सम्मान करना चाहिए. अगर लोकतंत्र में कोई खड़े हो कर ये कहे कि ‘मैं हिन्दू नहीं हूं’, तो उसका सम्मान किया जाएगा. वैसे ही अगर लोकतंत्र में खड़े हो कर कोई ये कहे कि हम इस मुल्क से ताल्लुक नहीं रखते और हम अपनी बात रखना चाहते हैं, शांति से हम अपनी बात की वकालत करेंगे कि हमारा एक अलग मुल्क हो और हम आज़ादी चाहते हैं. शांति के तरीके से उस चीज़ को सम्मान देना डेमोक्रेसी के वैल्यू में आता है. ये दुनिया में कई जगह हुआ है, शांति से, पर अगर उसे दबाया जायेगा तो वो बाहर तो आएगा ही, जो कि हिंसा का रूप ले लेता है.”
अमृतपाल सिंह का कहना है कि वे ‘नेशन स्टेट में भरोसा’ नहीं करते हैं.
उनका कहना है कि अजनाला की घटना को खालिस्तान से जोड़ना पूरी तरह से गलत है. अजनाला की घटना एक गलत एफआईआर और किसी को गलत तरीके से जेल में डालने की है. वे कहते हैं, “हम बस इसी अन्याय के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और प्रदर्शन में कभी-कभी हिंसा हो जाती है. ऐसे तो जो किसानी मोर्चा है, जिसने दिल्ली में हिंसा की, उसको क्या कहा जाएगा? जब अग्निपथ स्कीम के खिलाफ ट्रेन जलाई गई, तो किसी ने नहीं कहा कि भारत टूट जाएगा. पंजाब में हर मसले को स्टीरियोटाइप करना, ये गलत है.”
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