भारत में ऐसा भी कोई विशिष्ट क़ानून नहीं है, जो पत्रकारों के स्रोतों को संरक्षण प्रदान करता हो.
दिल्ली की एक अदालत के फैसले के बाद यह बहस फिर से ताज़ा हो गई है कि पत्रकार अपने सूत्रों की गोपनीयता कैसे बचाए रखें? क्या पत्रकारों को उनके सोर्स ज़ाहिर करने के लिए मजबूर किया जा सकता है?
सीबीआई की अदालत ने हाल ही में एक मामले की क्लोज़र रिपोर्ट रद्द करते हुए यह फैसला सुनाया है कि भारत में पत्रकारों को जांच एजेंसियों को अपने सोर्स के बारे में बताने को लेकर कोई वैधानिक छूट नहीं है. विशेष रूप से ऐसे मामलों में, जहां एक आपराधिक जांच में सहायता के उद्देश्य से इस तरह का स्पष्टीकरण ज़रूरी हो.
आज़ाद पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों में से एक, स्रोतों के संरक्षण को गाहे बगाहे चुनौती मिलती रहती है. सारांश के इस अंक में हम यह जानेंगे कि आखिर भारत में इसे लेकर क्या क़ानून हैं, और विश्व भर के पत्रकार इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं?
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