मध्य प्रदेश: प्रवासी भारतीय सम्मेलन का उत्सव एक परिवार के लिए बन गया दुखों का पहाड़

प्रवासी भारतीय सम्मेलन के लिए मध्य प्रदेश के इंदौर शहर को सजाया गया, इसकी चपेट में आकर राहुल वर्मा का परिवार पूरी तरह बर्बाद हो गया.

मध्य प्रदेश: प्रवासी भारतीय सम्मेलन का उत्सव एक परिवार के लिए बन गया दुखों का पहाड़
कार्तिक कक्कर
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भारत के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में 17वें प्रवासी भारतीय सम्मेलन का आयोजन हुआ. इसके लिए शहर को सजाया गया, सजावट में आ रही रुकावटों को हटाया गया. इस दौरान सड़क के किनारे की बस्तियों को ढक दिया गया ताकि देश की गरीबी, झुग्गी झोपड़ियां या कुछ भी ऐसा दिखाई न दे जो इस भव्यता के प्रदर्शन में आंखों को खटके. 

इसी क्रम में एयरपोर्ट के पास सड़क किनारे बसी एक बस्ती को भी ढक दिया गया. उनके घरों के सामने खूबसूरत पेंटिंग हुईं, टीन की चादरें लगा दी गईं, ताकि सब स्वच्छ और चमचमाता हुआ दिखे. सड़क के किनारे बने कई घर भी अतिक्रमण के नाम पर तोड़ दिए गए और उनके सामने दीवारें खड़ी कर दी गई हैं. 

इतना ही नहीं, अतिक्रमण और सौंदर्यीकरण के नाम पर कुछ लोगों की दुकानों को भी हटा दिया गया. इंदौर में यह सारा काम एक महीने से ज्यादा से चल रहा था. इस दौरान हटाए गए एक परिवार के सामने आर्थिक संकट आ गया, जिसके चलते परिवार के मुखिया 36 वर्षीय राहुल वर्मा ने शहर के पास शिप्रा नदी में कूदकर जान दे दी. मरने से पहले उन्होंने एक वीडियो बनाकर अपने परिजनों को भेजा. 

उनके आखिरी शब्द थे, "मैं अपनी मर्जी से मर रहा हूं. इसमें मेरे परिवार की, किसी की भी कोई गलती नहीं है. भैया, मम्मी पापा को अच्छे से रखना और मेरे छोरे का ध्यान रखना. मोना का भी ध्यान रखना." यह वीडियो न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद है.

मृतक राहुल वर्मा के भाई रवि वर्मा रुंधे हुए गले से लंबी सांस लेते हुए कहते हैं, “वह बेरोजगार हो गया था. पत्नी और बच्चे का भार था, काम धंधा चल नहीं रहा था. दुकान लगाता था पहले, लेकिन नगर निगम ने हटा दी थी.”

वह बताते हैं, “राहुल की दुकान, जहां पर प्रवासी भारतीय सम्मेलन हो रहा है वहीं पर थी. ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर, नक्षत्र गार्डन के पास. वहां पहले कच्चा विकास था, कच्चा मार्ग था लेकिन अब इन लोगों ने वहां पर पक्का विकास कर दिया है. दुकान लगाने की भी जगह नहीं रही. इसी से परेशान होकर राहुल डिप्रेशन में आ गया था. दुकान हटने के बाद दूसरी जगह लगाई, लेकिन चल नहीं रही थी. उसे पता था कि दुकान तो वापस लगनी नहीं है, इसलिए टूट गया था वो.” 

रवि कहते हैं कि प्रशासन ने वहां मौजूद सभी 8-10 दुकानें हटा दी थीं, लेकिन दुकान हटने के बाद भाई का काम बिल्कुल बंद हो गया था. दुकान वाली जगह पर प्रवासी भारतीय सम्मेलन के चलते सरकार ने वहां का सौंदर्यीकरण कर दिया है. सड़कें पक्की कर दी गई हैं और एक गार्डन बना दिया है. इस पूरी जगह को ब्लॉक कर दिया गया है और अब यहां दुकान लगाने की जगह ही नहीं बची है.

वह कहते हैं, “हम दो भाई हैं दोनों ही परिवार चलाने में सहयोग करते थे. नदी में कूदने से पहले राहुल ने अपनी पत्नी को भी कॉल किया था कि मैं यहां पर हूं, और मेरी गाड़ी यहां खड़ी हुई है. मैं मर रहा हूं. यहां से मेरी गाड़ी और मोबाइल ले जाना.”

इंदौर के ईश्वर नगर में रहने वाले इस परिवार में अब उनकी पत्नी और और एक 8 वर्षीय बेटा है. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने मृतक की पत्नी मोनिका वर्मा से भी बात की. पति के मरने के बाद से वह बेहद गम में हैं. मद्धम आवाज में वे कहती हैं, “वह घर से काम देखने के लिए कहकर गए थे क्योंकि उनकी दुकान तो हट ही गई थी. इसलिए काम धंधे से बेरोजगार हो गए थे.” 

वे बताती हैं, “दुकान हटने के बाद से वह यही सोचते रहते थे कि दुकान लगेगी या नहीं. क्योंकि जब नगर निगम वालों ने दुकान हटाई थी तो उन्होंने यह नहीं बताया कि यहां दोबारा दुकान लगा सकते हैं. उनके दिमाग में बहुत ज्यादा टेंशन थी कि कभी दुकान लगेगी या नहीं लगेगी.” 

अपने पति के अंतिम क्षणों को बयान करते हुए मोनिका कहती हैं कि राहुल ने नदी के पास पहुंचकर वहां होने की बात बताई थी, और उन्होंने मोनिका को ये बात उनके बड़े भाई और पिता को बताने को कहा था ताकि वे लोग वहां पहुंच सकें. नदी में कूदने से पहले राहुल ने एक वीडियो भी बनाकर उन्हें मोबाइल पर भेजा था, जिससे उन्हें इस अनहोनी का आभास हुआ.

अपने और अपने आठ वर्षीय बेटे के भविष्य को लेकर चिंतित मोनिका कहती हैं, “हमारे दो बेटे थे. एक की दो साल पहले मृत्यु हो गई.” 

अपनी बातों में वे आने वाले समय को लेकर डर जताती हैं क्योंकि आज वो नहीं जानतीं कि आगे की जिंदगी कैसे गुजरेगी.

शिप्रा थाने के प्रभारी और मामले में जांच कर रहे गिरिजा शंकर महोबिया कहते हैं, “राहुल, पिता सेवकराम, नाम के युवक ने आत्महत्या कर ली है. उनके परिवार ने हमें बताया कि अतिक्रमण में होने की वजह से उनकी दुकान हटा दी गई थी. जिसकी वजह से वह डिप्रेशन में था. उसने जहां दूसरी जगह दुकान खोली थी वहां पर चल नहीं रही थी. इससे परेशान होकर वह शिप्रा नदी के पास आया, अपनी पत्नी को फोन लगाया कि मैं मरने जा रहा हूं, मैं खुश नहीं हूं. घरवालों ने उसे समझाया और 100 नंबर पर पुलिस को फोन भी किया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.”

“इसके बाद उनके घरवालों और पुलिस की मौजूदगी में लाश को निकाला गया और पंचनामा कराया गया. परिवार के बयान लिए गए हैं.” उन्होंने कहा.

हमने उनसे पूछा कि मामला यही है, या मरने की कुछ और वजह भी हो सकती है? वह कहते हैं कि यही मामला है, क्योंकि मृतक डिप्रेशन में था. 

हमने उनसे यह भी जानना चाहा कि दुकान किसने हटाई थी? पुलिस, प्रशासन या नगर निगम ने? जवाब में वे कहते हैं कि उन्होंने वहां जाकर नहीं देखा है इसलिए वे ये नहीं बता सकते कि दुकान किसने तोड़ी थी.

बता दें कि महात्मा गांधी 9 जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे. इसी की याद और उनके सम्मान में, 2003 से, हर 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय सम्मेलन का आयोजन शुरू हुआ. 2015 के बाद से यह समारोह, हर दूसरे साल आयोजित किया जाता है.

इस साल कार्यक्रम में 70 देशों के तीन हजार से ज्यादा एनआरआई शामिल हुए हैं. 

वह ऑटो जिसमें वह दुकान चलाते थे

वह ऑटो जिसमें वह दुकान चलाते थे

राहुल के भाई रवि कहते हैं कि “जहां पर यह आयोजन हो रहा है वहां पर मेरे भाई की दुकान थी. वो वहां पर पंचर बनाने का काम करता था.”

राहुल के पिता सेवकराम वर्मा कहते हैं, “स्थिति खराब हो गई थी, माइंड काम नहीं कर रहा था. रोज कमाने खाने वाला व्यक्ति था. मैं तो उसका पिता हूं, मुझे जिंदगी भर के लिए बुढ़ापे में दुख दे गया."

इस कार्यक्रम के लिए 9 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी भी इंदौर पहुंचे. जिस रास्ते से सभी प्रवासी और खुद प्रधानमंत्री एयरपोर्ट से शहर की ओर गए, उस पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आसमान छूती तस्वीरें लगी हैं. इस रास्ते पर जहां भी दुकाने बाहर थीं, उन्हें हटा दिया गया. और जो स्थान ‘खूबसूरत’ नहीं लग रहे थे, उनके सामने दीवारें खड़ी कर दी गईं. 

हालांकि 10 जनवरी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी इस सम्मेलन समारोह के समापन के लिए इंदौर पहुंचीं, लेकिन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की तरह उनकी तस्वीरें रास्ते पर नहीं दिखाई दीं.

इस रास्ते पर जगह-जगह पोस्टरों और दीवारों पर “देश के सबसे स्वच्छ शहर में आपका स्वागत है” लिखा हुआ देखा जा सकता है. 

जैसा कि हमने पहले ज़िक्र किया कि एयरपोर्ट से शहर के इस रास्ते पर एक बस्ती भी पड़ती है. जिसे पूरी तरह से टीन के बोर्डों पर बनी खूबसूरत पेंटिंग से ढक दिया गया है.

बन्ना सिंह

बन्ना सिंह

बस्ती ढकने को लेकर वहां के निवासी बन्ना सिंह कहते हैं, “हमें बताया गया है कि मोदी आ रहे हैं, इसे इसलिए ढ़का गया है. मैंने पूछा तो ढक क्यों रहे हैं? तो बताया गया कि इसे एक महीने बाद वापस हटा दिया जाएगा.”

वह आगे की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि आगे तो पूरी तरह से दीवार से ढक दिया गया है. वे ये भी कहते हैं कि ढकने वालों ने उनसे कहा था कि झुग्गी झोपड़ी दिखनी नहीं चाहिए, इसलिए ये सब कर रहे हैं. 

एयरपोर्ट से शहर के इसी रास्ते के किनारे बनी दीवारों पर आर्ट के जरिए इंदौर की खासियत दिखाई गई है. हालांकि 12 फीट ऊंचे इस ढांचे के पीछे बने टूटे मकान साफ दिखाई पड़ते हैं. साफ़ है कि ये ढांचा भी इसलिए खड़ा किया गया, ताकि सड़क से ये टूटे-फूटे मकान दिखाई न दें. यह ढांचा एयरपोर्ट के सामने की सड़क पर बनी पटेल कॉलोनी के सामने खड़ा है. 

हमने इस बारे में इंदौर नगर निगम की उपायुक्त लता अग्रवाल से भी बात की. लेकिन हमारे सवाल करने पर वे कहती हैं कि “मैं अभी व्यस्त हूं और बात नहीं कर सकती.”

हमने उनसे राहुल की दुकान हटाए जाने और उसके बेरोज़गारी की वजह से आत्महत्या को लेकर भी मालुमात करने की कोशिश की. लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.

वहीं इंदौर नगर निगम अपर आयुक्त मनोज पाठक से भी हमने इस बारे में बात की. वह कहते हैं कि यह मेरा विषय नहीं है. मैं अभी ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर के ही एक सत्र में हूं लेकिन यह काम मैं नहीं देखता हूं. 

वह कहते हैं कि यहां पर पांच एडिशन कमिश्नर हैं और हर एक के विभाग बंटे हुए हैं. ये पार्ट मैं नहीं देखता हूं. फिर यह जवाबदेही किसकी है? इस पर वह कहते हैं कि यह लता अग्रवाल जी देख रही हैं. इसकी हेड वही हैं. इसलिए इस बारे में वही बता पाएंगी.

मालूम हो कि इंदौर शहर, लगातार छह सालों से भारत में स्वच्छता में अव्वल रहा है. शायद इसी उपलब्धि की बदौलत ही इंदौर को 17वें प्रवासी भारतीय दिवस की मेजबानी हासिल हुई.

लेकिन शायद प्रशासन को अपने गरीब नागरिक भी ‘अस्वच्छता’ लगते हैं, जिन्हें प्रवासी भारतीयों की नज़रों से छिपाना एक सफल आयोजन के लिए ज़रूरी है.

बता दें कि 24 फरवरी 2020 को गुजरात के अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम, जिसे अब नरेंद्र मोदी स्टेडियम के नाम से जाना जाता है, में ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम हुआ था.

ट्रम्प के स्वागत में एयरपोर्ट से स्टेडियम तक के रास्ते को सजाया गया था. कई जगहों पर सड़क के आसपास की बस्तियों को ढक दिया गया. ट्रंप की नजरों से बचाने के लिए इसके आसपास दीवार का निर्माण कराया गया था.

इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अहमदाबाद एयरपोर्ट पहुंचे थे, और वहां से कार्यक्रम में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गए. इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए थे.

बीते गुजरात चुनाव में न्यूज़लॉन्ड्री ने अभी वहां क्या स्थिति है यह जानने के लिए रिपोर्ट भी की है.

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