2022 में बार्क प्रसारकों का भरोसा फिर से हासिल कर सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ

टीआरपी की जंग, रेटिंग एजेंसी से शिकायतों, और घोटालों की जांच का एक और साल

WrittenBy:तनिष्का सोढ़ी
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भारतीय समाचार प्रसारण उद्योग, मुख्य रूप से दो परस्पर विरोधी गुटों में बंटा हुआ है. लेकिन पिछले कुछ महीनों में दोनों ने ही देश की प्रमुख टेलीविजन रेटिंग एजेंसी से संपर्क किया और कहा कि वह टीआरपी मापने की दोषपूर्ण प्रणाली में सुधार करे. इस बीच टेलीविजन के बड़े-बड़े नामों की खुद को रेटिंग की रेस का विजेता बताते हुए एक-दूसरे से भिड़ंत जारी है.

न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग डिजिटल एसोसिएशन में इंडिया टुडे, न्यूज़18, टाइम्स नाउ, एबीपी और ज़ी जैसे पुराने समाचार संगठन हैं, जबकि न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग फेडरेशन में रिपब्लिक और टीवी9 जैसे नए, आक्रामक ब्रांड हैं. क्या वजह है कि दोनों ही रेटिंग डेटा पर आपत्ति जता रहे हैं? क्या उनकी शिकायत एक समान है? और आगे क्या हो सकता है?

इस महीने की शुरुआत में, ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल के खिलाफ एनबीडीए की प्रमुख शिकायत "रोल्ड डेटा" को लेकर थी. उनका कहना था कि दैनिक डेटा की अनुपस्थिति में ही चैनल युद्ध भड़काने और घृणा फैलाने का काम करते हैं, क्योंकि वह नहीं जान पाते कि कौन सी खबर किस तरह चल रही है.

दूसरी ओर, एनबीएफ ने दर्शकों की संख्या निर्धारित करने के लिए 'लैंडिंग पेज' के उपयोग पर आपत्ति जताई. 'लैंडिंग पेज' वह चैनल होता है जिसे आप सेट-टॉप बॉक्स चालू करते ही अपने टीवी पर देखते हैं. चैनल इसे खरीद कर टीवी सेट पर प्रदर्शित होने के अपने अवसर बढ़ाते हैं. एनबीएफ ने कहा कि उनकी शिकायतों पर कोई स्पष्ट कार्रवाई न करके बार्क ने उन्हें विश्वास दिला दिया है कि परिषद की "ऐसे गलत कामों को रोकने की कोई मंशा नहीं है, और इससे भी बदतर है कि इस प्रकार की गतिविधियों में लिप्त को, अनुचित लाभ कमाने का अवसर देने में भी परिषद् को कोई एतराज़ नहीं है.”

बार्क की स्थापना 12 साल पहले हुई थी और इसका स्वामित्व समाचार उद्योग के शीर्ष प्रसारकों और विज्ञापनदाताओं के पास है. अक्टूबर 2020 में एक कथित टीआरपी घोटाले के बाद इसने समाचार पर रेटिंग देना स्थगित कर दिया था. इस मामले में रिपब्लिक टीवी भी एक आरोपी था. लगभग डेढ़ साल के अंतराल के बाद मार्च 2022 में बार्क ने फिर से रेटिंग देना शुरू किया. मुंबई पुलिस ने आरोप लगाया था कि कुछ मीडिया घरानों ने अपनी रेटिंग "गलत तरीके से बढ़ाने" के लिए मकान मालिकों को रिश्वत दी थी. तब बार्क ने कहा था कि उसने "मौजूदा मानकों की समीक्षा और संशोधन" करने की योजना बनाई है.

लेकिन इस साल रेटिंग फिर से शुरू होने से ठीक पहले एनडीटीवी ने यह कहते हुए खुद को बार्क से अलग कर लिया कि निकाय को "अपना कामकाज बेहतर करने" की जरूरत है. अक्टूबर में, लैंडिंग पेज से जुड़े मुद्दों का हवाला देते हुए ज़ी ने भी हाथ खींच लिए. अगला नंबर आईटीवी नेटवर्क का था, जिसने कहा कि उसने रेटिंग की विश्वसनीयता को लेकर बहुत गंभीर सवाल उठाए थे लेकिन उनमें से किसी का भी समाधान नहीं किया गया.

इस सबसे इतर, टीआरपी की गणना के लिए बार्क द्वारा अनुबंधित कंपनी हंसा रिसर्च ग्रुप के गलत काम भी इस साल उजागर हुए, जब प्रवर्तन निदेशालय ने कथित टीआरपी घोटाले पर चार्जशीट दायर की.

एनबीएफ के महासचिव आर जय कृष्ण ने कहा, "[बार्क से] हर समाचार चैनल को आपत्ति है लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. बार्क रेटिंग फ़िलहाल एकमात्र उपलब्ध बेंचमार्क हैं, कई विज्ञापनदाताओं को यह पता है. लेकिन कई अभी भी इन रेटिंग्स को मोलभाव करने का एक साधन समझते हैं. बार्क को लैंडिंग पेज से जुड़े मुद्दों और ऑन-ग्राउंड हेराफेरी पर ध्यान देने की जरूरत है.”

कई चैनलों का बार्क से दुराव, और 'समाधान'

दर्शकों को हर हफ्ते सुनने को मिलता है, "हम भारत के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले चैनल हैं" -- हर समाचार चैनल यह दावा करने के लिए बार्क के डेटा का अपने-अपने तरीके से विश्लेषण करता है. लेकिन आप तीन चैनलों को अब यह घोषणा करते नहीं देखेंगे, एनडीटीवी, ज़ी और न्यूज़एक्स, क्योंकि ये तीनों इस वर्ष बार्क से अलग हो गए हैं. 

ज़ी मीडिया के चीफ बिज़नेस ऑफिसर जॉय चक्रवर्ती ने कहा कि वह बार्क से अलग नहीं हुए हैं, मुद्दों का समाधान हो जाने तक सिर्फ रेटिंग स्थगित कर दी गई हैं. "लैंडिंग पेज हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा है. यह सबको समान अवसर नहीं देता. यह दर्शकों की संख्या मापने के लिए सही पैमाना नहीं है. यह दर्शकों को जबरन एक चैनल देखने पर विवश करना है जिसे लोग अपनी पसंद से नहीं देख रहे हैं. लोग कहते हैं कि यह एक मार्केटिंग टूल है. लेकिन मार्केटिंग टूल आपके सामने एक उत्पाद प्रस्तुत करते हैं, उसे आप पर थोपते नहीं, जैसा यहां हो रहा है."

चक्रवर्ती ने कहा, "कई ब्रांड अभी हमारे चैनलों पर नहीं आ रहे हैं क्योंकि वैश्विक मानकों के अनुसार एक चैनल को एक पैमाने का हिस्सा होना आवश्यक है.” स्वतंत्र थर्ड पार्टी ऑडिटर किसी चैनल विशेष के चयन हेतु मेट्रिक्स देखने के लिए, विज्ञापनों का मूल्यांकन करते हैं.

“इससे कुछ नुकसान हुए हैं, लेकिन दीर्घकालिक फायदे के लिए यह नुकसान अल्पकालिक हैं. हमने सोच-समझकर अपने उद्योग के लिए यह कदम उठाया है. इसके अलावा, लोग हमारी विरासत के बारे में सचेत हैं. जिन लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसा है वह [लैंडिंग पेज खरीद कर] रेटिंग प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन राजस्व नहीं. क्योंकि बाजार जानता है कि समाचार एक आदत है. आप अचानक नंबर एक पर नहीं जा सकते. आदतें इतनी जल्दी नहीं बदलतीं. इस स्थिति के लिए समाचार चैनल खुद दोषी हैं, क्योंकि हर हफ्ते कोई न कोई दावा करता है कि वे नंबर एक हैं, तो लोग भ्रमित हो जाते हैं कि वर्तमान में नंबर एक कौन है."

बार्क के साथ ज़ी की अन्य समस्याएं मापने की वरीयता और मल्टिपल स्क्रीन रिपोर्टिंग की कमी को लेकर हैं. "ओटीटी, टीवी और डिजिटल आदि कई स्क्रीनों पर देखे जाने से समाचार भी प्रभावित होते हैं. बार्क इसकी गणना करने में सक्षम नहीं है. यह दावा सही नहीं है कि अब समाचारों के दर्शकों का प्रतिशत बहुत कम हो गया है. लोग समाचार देखते हैं, लेकिन कई लोग अब इसे डिजिटल रूप में देखते हैं.”

टाइम्स नेटवर्क के एक प्रवक्ता ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "एक व्यवस्था उतनी ही अच्छी होती है जितना उसे नियंत्रित करने के नियम बनाने वाले लोग. हमारा मानना ​​है कि वर्तमान बार्क प्रणाली इससे अधिक विश्वसनीय नहीं हो सकती है. हम पहले के बार्क के बारे में ऐसा नहीं कह सकते." 

“"निष्पक्षता के लिए खिलाड़ियों को न केवल खेल के नियमों बल्कि रेफरी के तरीकों को भी जानना जरूरी है. हालांकि हमें वर्तमान नियंत्रकों पर भरोसा है, हमें लगता है कि और ज़्यादा पारदर्शिता हो सकती है. वर्तमान स्थितियों में सबसे अनुकूल और किफायती तरीका बार्क पहले से ही अपना रहा है.”

2023 में टीआरपी के झगड़ों और डेटा संग्रह के भविष्य के बारे में एक सवाल के जवाब में टाइम्स प्रवक्ता ने कहा, "जब तक टीवी प्रसारण प्रमुख रूप से मांग-आधारित नहीं बन जाता, डेटा संग्रह जारी रहेगा और टीआरपी का झगड़ा भी जारी रहेगा. और ऐसा होने में अभी कुछ साल लगेंगे."

एक प्रमुख मीडिया हाउस के कर्मचारी ने कहा कि लोगों की धारणा बार्क के नंबरों जितनी ही महत्वपूर्ण है. उदाहरण के लिए यदि आज तक सूची में पहले नंबर पर नहीं होता, तब भी यह सार्वजनिक धारणा के बल पर विज्ञापन और ऊंची दरों की मांग करता है, क्योंकि यह एक प्रतिष्ठित चैनल है. "यह (बार्क रेटिंग) एक करेंसी है. यह परफेक्ट नहीं है, लेकिन इसके अलावा और विकल्प क्या है?”

पिछले सात महीनों से TV9 भारतवर्ष, हिंदी भाषी चैनलों में 15 साल और उससे अधिक आयु वर्ग के अखिल भारतीय समूह में बार्क की लिस्ट में शीर्ष पर रहा है. इसके लिए उन्हें रूस-यूक्रेन युद्ध के अपने चौबीसों घंटे कवरेज का धन्यवाद करना चाहिए. उनकी इस छलांग पर भी कई सवाल उठे, एनबीडीए ने उनकी रेटिंग को "अस्वाभाविक रूप से ऊंचा" बताया.

टीवी9 नेटवर्क के चीफ ग्रोथ ऑफिसर (डिजिटल और ब्रॉडकास्टिंग) रक्तिम दास ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि यद्यपि कोई व्यवस्था "100 प्रतिशत सही" नहीं है, लेकिन वर्तमान स्थिति में बार्क एक मापक तंत्र के रूप में संतोषजनक प्रदर्शन कर रहा है. दास ने दावा किया कि बार्क, सुधारों और नए प्रयोगों के लिए भी तैयार है.

दास ने बार्क के बारे में न्यूज़लॉन्ड्री के सवालों का जवाब देते हुए कहा, "हमें याद रखना चाहिए कि बार्क खबरों से परे भी सभी तरह के कार्यक्रमों के लिए डेटा रिपोर्ट करता है, और उसकी डेटा गुणवत्ता को लेकर हाल के वर्षों में कोई शिकायत नहीं हुई है. न्यूज की रेटिंग को उद्योग के कुछ बड़े खिलाड़ियों के इशारे पर मनमाने ढंग से लगभग 17 महीने के लिए निलंबित कर दिया गया था, जिनका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था.”.

कुछ चैनलों द्वारा बार्क छोड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा, “जो लोग रेटिंग सिस्टम से बाहर हो गए हैं, वे या तो उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं या उनकी रेटिंग में भारी गिरावट हुई है. एक प्रमुख नेटवर्क ने इस प्रणाली से खुद को इसलिए अलग कर लिया कि सरकार ने केयू बैंड में चैनलों की एक साथ अप-लिंकिंग की अनुमति को रद्द करने का आदेश जारी किया था. सरकार के इस कदम से ये चैनल जो अब तक इस व्यवस्था का अनुचित लाभ उठा रहे थे, अब ऐसा नहीं कर पाएंगे.”

दास ने कहा कि अब समय आ गया है कि रिटर्न पाथ डेटा प्रस्ताव में निवेश किया जाए, जो टीवी दर्शकों की संख्या की गणना उनके घरों में लगे सेट-टॉप बॉक्स की सहायता से करता है.

दास ने कहा, "बदकिस्मती से रेटिंग की यह लड़ाई कुछ समय के लिए जारी रहेगी. यह सही नहीं है कि हर उस रेटिंग प्रणाली की आलोचना की जाए जो चैनल की साख के अनुरूप डेटा रिपोर्ट नहीं करती. ऐसा लगता है कि जिनके पास अपनी खुद की कोई योजना नहीं है, वह मौजूदा प्रणाली में काल्पनिक दोष ढूंढते रहते हैं. लेकिन क्या हम भविष्य के लिए तैयार हैं? शायद नहीं? यह शर्म की बात है कि हम कई दशकों पुराने सैंपलिंग मॉडल का प्रयोग कर रहे हैं. डिजिटाइजेशन के जमाने में अगर आपको छींक भी आ जाए तो उसका चौतरफा शोर हो जाता है. जैसे-जैसे हम पारंपरिक लीनियर मॉडल से दूर जा रहे हैं और समाचार ब्रांड हर प्लेटफ़ॉर्म पर उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं, तो दर्शकों की वास्तविक संख्या की गणना पारदर्शी तरीके से रियल टाइम में की जानी चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मार्ग पर आगे बढ़ते हुए हमें यूनिवर्सल डेटा रिपोर्टाज के लिए तैयार रहना होगा.”

न्यूज़लॉन्ड्री ने बार्क को कुछ सवाल भेजे हैं. कोई भी प्रतिक्रिया मिलने पर यह रिपोर्ट संशोधित कर दी जाएगी.

इस बीच, दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते एक याचिका पर केंद्र और बार्क से जवाब मांगा, जिसमें परिषद के सरकारी अधिग्रहण की मांग की गई है. यह याचिका वेटरन्स फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ द्वारा दायर की गई थी -- यह सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त अधिकारियों का एक संघ है, जो दावा करता है कि उनका मूल उद्देश्य सभी सरकारी और निजी निकायों में पारदर्शिता बहाल करना है. याचिका में भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 2016 के सख्त कार्यान्वयन और अनुपालन की मांग भी की गई है.

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