कुछ फिल्मों के खिलाफ शातिर तरीके से सोशल मीडिया अभियान चलाए गए, जिनमें लाखों ट्वीट किए गए.
बीते 14 दिसंबर को मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने एक अभिनेत्री की बिकनी के रंग के कारण बॉलीवुड की एक आगामी फिल्म के एक गाने पर आपत्ति जताई. इसके कुछ ही घंटों बाद "धार्मिक भावनाओं को आहत करने" की वजह से इंदौर में दो कलाकारों के पुतले जलाये गये. इनमें से एक कलाकार मुस्लिम है, और दूसरा हिंदू. इसके बाद तो ट्विटर पर गुस्से से भरे ट्वीट्स की बाढ़ आ गई. इन ट्वीट्स में जाहिर था कि ये गुस्सा पुतले जलाने की घटना पर नहीं बल्कि अभिनेताओं, फिल्म, और समग्र रूप से फिल्म उद्योग पर था.
यह भारत में #BoycottBollywood का महज एक और दिन था.
2022 के दौरान कई बार सोशल मीडिया पर बॉलीवुड का बहिष्कार किया गया, उसे ट्रोल किया गया, बदनाम किया गया और गालियां दी गईं. ये अभियान स्वाभाविक नहीं थे - ये ट्विटर हैंडल, वेबसाइट्स और सोशल मीडिया "इन्फ्लुएंर्सस" द्वारा संचालित थे, और आमतौर पर कुछ ख़ास फिल्मों की रिलीज के समय ही आयोजित किये गए थे. इनकी राजनीति का रुझान दक्षिणपंथ की ओर था (उदाहरण के लिए बॉलीवुड को अक्सर "उर्दूवुड" कहा जाता था) और उनका स्वर आमतौर पर सांप्रदायिक था.
मिशिगन यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर जॉयजीत पाल और आईआईटी दिल्ली के रिसर्च असिस्टेंट शेरिल अग्रवाल के एक अध्ययन से पता चला है कि इस साल 1 अगस्त से 12 सितंबर के बीच 1,67,989 ट्विटर अकाउंट्स द्वारा कम से कम एक बार हैशटैग #BoycottBollywood का इस्तेमाल किया गया.
इन अकाउंट्स ने सामूहिक रूप से 14,38,221 ट्वीट किए. इनमें से 2,12,428 मूल ट्वीट थे, और बाकी या तो रीट्वीट, कोट-ट्वीट या जवाबी ट्वीट थे. 1,67,989 अकाउंट्स में से 12,889 शून्य फॉलोवर्स वाले "घोस्ट अकाउंट्स" थे.
पाल और अग्रवाल ने ऐसे 336 ट्विटर अकाउंट्स की भी पहचान की जिनमें से प्रत्येक ने 42 दिनों की अवधि में इस हैशटैग का प्रयोग करते हुए 1,000 से ज़्यादा ट्वीट किए थे.
पाल ने हमें बताया की उन्होंने यह अध्ययन इसलिए किया क्योंकि "हम आम तौर पर सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग विषयों का अध्ययन करते हैं, और हमने पाया कि ट्विटर पर ट्रेंड होने वाले विषयों में किसी कलाकार विशेष और यहां तक कि पूरे फिल्म उद्योग के बहिष्कार से संबंधित विषयों वाले ट्वीट्स का हिस्सा नाटकीय रूप से काफी ज्यादा था."
"हमने प्रतिबंध लगाने के लिए कॉल करने वाले नेटवर्क में नोड्स को मैप किया और पाया कि वे भारत भर के बहुत-से दूसरे सोशल मीडिया ग्रुप्स से जुड़े हुए हैं - और यही बात एक दिलचस्प अध्ययन का कारण बनी."
इनमें से ज्यादातर ट्रेंड्स बॉलीवुड फिल्मों की रिलीज के आसपास आयोजित किए गए थे. उदाहरण के लिए 3 अगस्त को सबसे ज्यादा ट्रेंड्स की भरमार देखी गयी, यह आलिया भट्ट अभिनीत डार्लिंग्स की रिलीज़ से दो दिन पहले हुआ. अध्ययन में इस प्रवृत्ति को "आमतौर पर बॉलीवुड विरोधी ट्वीट करने के केंद्र" में रखा गया है. अध्ययन में 8,100 से अधिक ट्वीट और 51,000 रीट्वीट दर्ज किए गए हैं.
11 अगस्त को ऐसा ही एक और संयोग आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा और अक्षय कुमार की रक्षा बंधन की रिलीज़ के साथ हुआ, जिसमें 5,800 से अधिक ट्वीट और 36,000 रीट्वीट दर्ज किए गए. 23 अगस्त को 9,800 से अधिक ट्वीट और 76,000 रीट्वीट में यही प्रवृत्ति लाल सिंह चड्ढा और 25 अगस्त को रिलीज हुई लाइगर के खिलाफ गुस्से के साथ मेल खाती है.
लाल सिंह चड्ढा, ब्रह्मास्त्र, पठान, रक्षा बंधन और लाईगर जैसी फिल्मों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया गया. इसके बाद छोटे पैमाने पर विक्रम वेधा और दोबारा को निशाना बनाया गया.
लाल सिंह चड्ढा को 38 दिनों में 73,000 से अधिक ट्वीट के साथ बहिष्कार कॉल मिले, जबकि ब्रह्मास्त्र को 43 दिनों में 70,000 से अधिक ट्वीट मिले. पठान को 37 दिनों में 28,600 से अधिक ट्वीट मिले हैं. गौरतलब है कि पठान अभी तक रिलीज़ नहीं हुई है.
जैसा कि जीवन में हर चीज के साथ होता है, ये अभियान भी संयुक्त प्रयासों का परिणाम थे. अध्ययन ने "निचले स्तर" के नेताओं की पहचान की - जैसे विहिप की साध्वी प्राची और दिनेश प्रताप सिंह, विष्णु वर्धन रेड्डी और वैशाली पोद्दार जैसे भाजपा नेता - जो इन हैशटैग्स से जुड़े हुए थे. इसमें "इन्फ्लुएंर्सस" का भी ज़िक्र था - विवेक अग्निहोत्री, आनंद रंगनाथन, इस्कॉन के प्रवक्ता राधारमण दास, व्यवसायी अरुण पुदुर और उद्यमी व पूंजीपति आशा मोटवानी - जिन्होंने "एक अच्छे कार्य के लिए समर्थन" की पेशकश की.
समर्थकों का एक गैर-भारतीय उपसमूह भी था जिसमें ज़ैनब खान और फ़्रांस्वा गौटियर जैसे लोग शामिल थे.
इन अभियानों में भाग लेने वाले कुछ टॉप अकाउंट्स यहां दिए गए हैं.
ट्विटर पर तीन लाख से ज्यादा फॉलोअर्स वाला जैम्स ऑफ बॉलीवुड, फिल्मों की समीक्षा की वेबसाइट होने का दावा करता है. इसके द्वारा शेयर किये गए पोस्ट्स ने साल भर में कई बार #BoycottBollywood विमर्श में योगदान दिया.
एक अंदाजा लगाने के लिए 26 दिसंबर का इसका यह होमपेज देखें.
इसका सबसे हालिया अभियान नवंबर में शाहरुख खान की पठान के खिलाफ था, जो मुकम्मल तौर पर 2 नवंबर को शुरू हुआ. जैम्स ऑफ बॉलीवुड ने पठान पर बीस्ट नामक एक हॉलीवुड फिल्म के पोस्टर को चुराने का आरोप लगाया. #Chorwood कहने वाले ट्वीट को 3,000 से अधिक बार ट्वीट किया गया था.
जब दिसंबर की शुरुआत में पठान के गीत बेशरम रंग पर विवाद शुरू हुआ, तब तक जैम्स ऑफ बॉलीवुड, शाहरुख खान और फिल्म के बारे में दर्जनों ट्वीट कर चुका था जिनमें से प्रत्येक ट्वीट के हजारों रीट्वीट हुए थे. "भगवा अधोवस्त्र", "तालिबानी कल्पनाएं" और "उर्दूवुड" के बारे में ट्वीट थे, और यह तो केवल पूरे कथानक का उदाहरण भर है.
क्रिएटली मीडिया एक दक्षिणपंथी वेबसाइट है, जिसका ट्विटर अकाउंट पिछले महीने "इस्लाम विरोधी सामग्री" के चलते निलंबित कर दिया गया था. यह नियमित रूप से मुस्लिम अभिनेताओं और फिल्मों को निशाना बनाता है, साथ ही उन्हें भी जो "वामपंथी" या "उदारवादी" के रूप में जाने जाते हैं. अध्ययन में कहा गया है कि क्रिएटली के "काफी छोटे फॉलोवर बेस के बावजूद #BoycottBollywood समुदाय में इसकी बहुत पैठ है."
क्रिएटली के एकाउंट से कई बार #BoycottBollywood हैशटैग का इस्तेमाल किया गया, लेकिन अकाउंट के निलंबन की वजह से पुराने ट्वीट्स वापस हासिल नहीं किये जा सकते. लेकिन इसके कारनामों के उदाहरण यहां, यहां, यहां, यहां और यहां देखे जा सकते हैं. अकेले दिसंबर में ही, क्रिएटली ने #BoycottBollywood और #BoycottPathan पर कम से कम 15 पोस्ट प्रकाशित किए.
जयपुर संवाद एक पूर्व आईएएस अधिकारी द्वारा संचालित एक संगठन है, जो "सनातन परम्परा" की दिशा में काम करने का दावा करता है और "हमारे धर्म के खिलाफ बनाई जा रही हर फिल्म का बहिष्कार" करने का वादा करता है. ट्विटर पर इसके 1,48,000 फॉलोअर और यूट्यूब पर 8,18,000 सब्सक्राइबर्स हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने अगस्त में रिपोर्ट किया था कि कैसे इस संगठन ने लाल सिंह चड्ढा के खिलाफ ट्विटर और यूट्यूब दोनों पर सोशल मीडिया का नेतृत्व किया. ब्रह्मास्त्र पर "मौसमी हिंदुओं" को सिने पर्दे पर दिखाने और "सूफीवाद को बढ़ावा देने" के लिए हमला किया गया था.
छद्म पत्रकार सुरेश चव्हाणके भी बहिष्कार करने वालों के इस संभ्रांत मंडली का हिस्सा हैं. चव्हाणके द्वारा हिंदी के ऊपर उर्दू को प्राथमिकता देने के लिए शाहरुख खान, जावेद अख्तर और बॉलीवुड पर "भाषा जिहाद" का आरोप लगाने के लिए #BoycottShahrukhKhan हैशटैग का इस्तेमाल करने के बाद यह हैशटैग पिछले साल ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा था.
तब से ही उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए अपने चैनल, सुदर्शन न्यूज़ और इसके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना जारी रखा. शाहरुख खान के परिवार पर "मादक आतंकवाद" को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया और करण जौहर पर भारतीय संस्कृति का अपमान करने का आरोप लगाया गया. सुदर्शन न्यूज के रिपोर्टर सागर कुमार की सहायता से चव्हाणके ने लाल सिंह चड्ढा के खिलाफ बहिष्कार अभियान की "सफलता" का भी जश्न मनाया (यहां, यहां और यहां देखें).
एक और गौरतलब कम्युनिटी एसएसआर भी है – ये दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के प्रशंसक हैं. न्यूज़लॉन्ड्री पहले ही उस व्यक्ति के बारे में रिपोर्ट कर चुका है जो #JusticeForSSR अभियान के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार था. यह व्यक्ति कम से कम 6,000 से 8,000 "स्वयंसेवकों" का प्रबंधन कर रहा था, और उन विशिष्ट हैशटैग्स को ट्रेंड कर रहा था जिन्हें वह हर सुबह और शाम चुनता था.
यही ग्रुप #BoycottBollywood अभियान चलाने में भी अहम भूमिका निभाता है. अध्ययन में बताया गया है कि इस हैशटैग को फैलाने में सबसे ज़्यादा प्रत्यक्ष व्यक्तिगत गतिविधि के मामले में "एसएसआर से जुड़े लोगों का प्रभुत्व बहुत ज्यादा है" (उदाहरण के लिए यहां, यहां, यहां, यहां और यहां देखें).
क्या इन ट्रेंड्स का वाकई कोई असर है?
फिल्म उद्योग के लोग या जो इसके बारे में लिखते हैं, #BoycottBollywood की इन मांगों के बारे में क्या सोचते हैं?
नीरज उधवानी ने दिल तो बच्चा है जी, इनसाइड एज, म्हस्का और ट्रिपलिंग जैसी फिल्मों और वेब सीरीज के निर्देशन और लेखन का कार्य किया है. उनका कहना है कि पठान की तरह ट्विटर ट्रोलिंग कभी-कभी "फिल्म के चारों ओर बड़ी चर्चा पैदा कर सकती है," और वह इससे डरते नहीं हैं.
उन्होंने कहा, "जब रचनात्मक विकल्पों की बात आती है, तो #BoycottBollywood का चलन लेखकों और निर्देशकों के रूप में हमें प्रभावित नहीं करता है. हां, एक कथावाचक के रूप में हम संवेदनशील हो गए हैं, और कुछ ऐसी कहानियों से बचते हैं जो धर्म या राजनीति को छूती हैं, लेकिन यह मौजूदा परिस्थितियों के कारण है. निर्माता कानूनी मुकदमे नहीं लड़ना चाहते हैं और इसलिए उनमें ऐसे विषयों से बचने की प्रवृत्ति है जो कानूनी परेशानी को न्यौता दे सकते हैं. लेकिन निश्चित तौर पर हम निहित स्वार्थों से प्रेरित पेड ट्विटर ट्रेंड से डरते नहीं हैं.”
उन्होंने कहा कि ये ट्रेंड्स, "अभिनेताओं और निर्देशकों के लिए महज छोटा-सी रुकावट भर हैं.”
मिड-डे में मनोरंजन के प्रमुख और फिल्म समीक्षक मयंक शेखर का कहना है कि यह एक "हिंदू विरोधी कदम" है, क्योंकि इस तरह की "बदनामी केवल हिंदी फिल्मों के लिए ही आरक्षित रखी गयी है."
उन्होंने कहा,"यह बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद का हवाला देते हुए शुरू हुआ, जबकि दक्षिण में फिल्म उद्योग पूरी तरह से एक दर्जन फिल्मी परिवारों द्वारा चलाया जाता है. तमिल, तेलुगु, मलयालम या अन्य सिनेमाघरों के लिए कोई बहिष्कार हैशटैग नहीं चलाया जाता. कुछ शरारती तत्वों द्वारा हिंदी भाषा के सिनेमा पर होने वाले इस खास तरह के हमले का भारत की सत्ताधारी पार्टी, भाजपा और उसके मूल संगठन आरएसएस द्वारा विरोध किया जाना चाहिए... किसी भी संस्था ने हिंदी के प्रसार में स्वाभाविक तौर पर और वैश्विक व राष्ट्रीय स्तर पर इतना योगदान नहीं दिया है, जितना कि बॉलीवुड या हिंदी सिनेमा ने करीब-करीब एक सदी में दिया है.”
शेखर ने आगे कहा कि यह कहना "कठिन" है कि इन हैशटैग्स का बॉक्स ऑफिस पर असर पड़ता है या नहीं. उन्होंने कहा, "फिल्म का शौकीन एक व्यक्ति आखिरकार फिल्म का शौकीन है. फिल्म की शौकीन एक महिला फिल्म देखने जायेगी ही जायेगी या फिर वो इन अवसाद से भरे, आनलाइन ख़ुशी के दुश्मनों की परवाह किए बिना घर पर ही खुद को व्यस्त रखेगी/मनोरंजन करेगी."
लेखक और फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि ये ट्रेंड्स "समाज की सभी बुराइयों" के लिए बॉलीवुड को दोषी ठहराने का प्रयास करते हैं. नतीजतन, फिल्म निर्माता विवादों में फंसने को लेकर चिंतित रहते हैं.
उन्होंने आगे कहा, "वे एक बेहद सुरक्षित खेल खेल रहे हैं, जिसमें वो ऐसी फिल्में बनाने से बचते हैं जो विभिन्न मुद्दों पर कड़े सवाल उठाती हैं. खुद पर इस अंकुश के कारण वे अच्छी सामग्री उत्पन्न करने में असमर्थ हैं. यह फिल्म उद्योग के लिए अच्छी बात नहीं है."
ब्रह्मात्मज के अनुसार लेकिन एक बात पक्की है. "अच्छी सामग्री वाली फिल्म किसी भी बहिष्कार अभियान से प्रभावित नहीं होगी."