कांग्रेस ने भाजपा से ज्यादा 'मुफ़्त तोहफ़ों' का वादा किया है. लेकिन भगवा पार्टी 'रेवड़ियों' का विरोध करती रही है.
शायद हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सलाह नहीं ली. महज चार महीने पहले ही, मोदी जी ने "रेवडी संस्कृति", या मुफ्त की संस्कृति के खिलाफ चेतावनी दी थी. उन्होंने इसे "वोट लेने" की चाल और "देश के विकास के लिए खतरनाक" कहा था. फिर पिछले महीने ही, मध्य प्रदेश में एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि "रेवड़ियां" करदाताओं के पैसे की बर्बादी है.
हालांकि कांग्रेस के घोषणापत्र में और भी ज्यादा मुफ्त तोहफ़े देने का वादा किया गया है, लेकिन भाजपा द्वारा भी हिमाचल प्रदेश जीतने पर "रेवड़ियों" की एक बड़ी राशि का वादा किया गया है - न्यूज़लॉन्ड्री के अनुसार इन रेवड़ियों की कुल लागत को बहुत कम करके भी आंका जाये तो भी ये आंकड़ा 2,250 करोड़ रुपये के पार जाता है.
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा 6 नवंबर, रविवार को जारी किये गए घोषणापत्र में भगवा पार्टी के मुफ्त तोहफों की पैकेजिंग "महिला सशक्तिकरण" के तौर पर की गयी है.
नड्डा ने कहा कि चुनाव जीतने पर भाजपा राज्य में सभी स्कूली छात्राओं को साइकिल और स्नातक छात्राओं को स्कूटी देने के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च करेगी. उनकी "डबल इंजन सरकार" सेब पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल में लायी जाने वाली सामग्री पर लगने वाले 25 करोड़ रुपये के अतिरिक्त जीएसटी करों को भी माफ कर देगी.
केवल इन मुफ्त सुविधाओं की ही लागत 525 करोड़ रुपये के पार पहुंच जाती है.
साथ ही पार्टी ने सरकारी स्कूलों में 12वीं कक्षा में टॉप करने वाली 5,000 छात्राओं को हर महीने 2,500 रुपये देने की पेशकश की है. यह राशि टॉपर्स को उनकी स्नातक की पढ़ाई के दौरान दी जाएगी. यह मानते हुए कि स्नातक की पढ़ाई तीन साल तक चलती है, न्यूज़लॉन्ड्री ने अनुमान लगाया है कि चुनाव जीतने पर सरकार को अपनी इस घोषणा पर हर साल 45 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे.
भाजपा प्रमुख ने यह भी कहा कि राज्य में लगभग 10 लाख किसानों को मुख्यमंत्री अन्नदाता सम्मान निधि के एक अंश के तौर पर हर साल 3,000 रुपये मिलेंगे. न्यूज़लॉन्ड्री के अनुसार इस कृषि आय की कुल लागत करीब 1,500 करोड़ रुपये होगी.
अंत में, नड्डा ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना या पीएम-जीकेएवाई में नामांकित गरीब परिवारों की महिलाओं के लिए तीन एलपीजी सिलेंडर का भी वादा किया.
आइए इस वादों को पूरा करने में खर्च होने वाली कम से कम लागत का अनुमान लगाये. सरकार के अनुसार, हिमाचल में पीएम-जीकेएवाई के तहत 28.6 लाख लाभार्थी हैं. लेकिन चूंकि नड्डा ने केवल "गरीब घरों" का ही उल्लेख किया है, इसलिए उस विशाल संख्या से बचना चाहिये और इसको हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 2.82 लाख परिवारों की संख्या तक ही सीमित रखना चाहिए. यह मानते हुए कि इन सभी परिवारों में एक या एक से अधिक महिलाएं हैं और चुनाव जीतने पर भाजपा सरकार उन्हें हर साल तीन मुफ्त एलपीजी सिलेंडर (जिसकी सब्सिडी के बाद औसतन 440 रुपये का खर्च आता है) देगी. तो ऐसा अनुमान है कि पांच सालों में, इस एसओपी पर लगभग 186 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.
भाजपा के घोषणापत्र में उपरोक्त आंकड़ों और "रेवड़ियों" को मिलाकर, कुल आंकड़ा 2,256 करोड़ रुपए के पार पहुंच जाता है.
लेकिन जैसा कि द हिंदू ने रिपोर्ट किया है कि कांग्रेस "हिमाचल चुनावों के लिए 'मुफ्त तोहफ़ों' पर दांव लगा रही है". कांग्रेस पार्टी ने 18 से 60 आयु वर्ग की महिलाओं के लिए 1,500 रुपये प्रति माह की राशि देने का वादा किया है. और 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का भी वादा किया है.
भारतीय जनगणना के एक अनुमान के अनुसार हिमाचल की आबादी 33.8 लाख है. जबकि पार्टी ने लाभार्थियों की संख्या को कम करने के लिए आयु वर्ग का एक फ़िल्टर भर जोड़ा है. हिमाचल में कांग्रेस के प्रवक्ता नरेश चौहान ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि विशेषज्ञों की एक टीम को दूसरे अपवाद भी खोजने होंगे. उन्होंने कहा, "राज्य में महिला सरकारी कर्मचारी के साथ-साथ पेंशनभोगी भी हैं. ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं कि इस योजना में हम उन्हें भी शामिल करें."
भले ही कांग्रेस इस आय को कुल महिला आबादी के 10वें हिस्से तक ही सीमित रखें, यानी करीब 3.38 लाख महिलाओं तक ही, फिर भी पांच सालों में राज्य के खजाने पर 3,000 करोड़ रुपये से अधिक का भार पड़ेगा. वहीं मुफ्त बिजली पर श्री चौहान का कहना है कि पार्टी ने सरकारी खजाने पर कुल 400 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया है.
कांग्रेस के 'मुफ़्त तोहफ़े' भाजपा से ज्यादा है. लेकिन कांग्रेस पार्टी में उसके प्रति कभी कोई ग्लानि भाव नहीं रहा है. 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, इसने भारत के गरीबों को एक सार्वभौमिक बुनियादी आय का वादा किया था. हालांकि, भाजपा जरूर मुफ्तखोरी के खिलाफ खड़ी हुई थी लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि उसके हिमाचल के घोषणापत्र में इस विचार को पूरी तरह से नहीं अपनाया गया है.
इस बाबत न्यूज़लॉन्ड्री ने हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के प्रवक्ता से संपर्क किया है. अगर वहां से कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.