अवसान की ओर कदम बढ़ाती यूएनआई न्यूज एजेंसी, दोष किसका?

छह दशक पहले, आठ प्रमुख मीडिया संस्थान पीटीआई के एकाधिकार का मुकाबला करने के लिए एक साथ आए थे. लेकिन यह एजेंसी धीरे-धीरे अवसान की तरफ जा रही है.

WrittenBy:तनिष्का सोढ़ी
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1959 में भारत के आठ सबसे बड़े समाचार पत्र, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के एकाधिकार को तोड़कर एक समाचार एजेंसी शुरू करने के लिए साथ आए. आज छह दशक बाद, यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ इंडिया अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. स्थायी कर्मचारियों को पांच साल से पूरा वेतन नहीं मिला है, कंपनी की संपत्तियां जब्त कर ली गई हैं और एजेंसी के खिलाफ अदालती मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिनमें एजेंसी को दिवालिया घोषित करने की याचिका भी शामिल है.

यूएनआई के अवसान की यात्रा धीमी रही है. इसके मुख्य कारण हैं 2006 के बाद से सदस्यता में लगातार गिरावट और फायदेमंद संभावित सौदों का सतत आंतरिक प्रतिरोध. लेकिन यूएनआई पर शायद सबसे घातक प्रहार 2020 के अंत में हुआ, जब राष्ट्रीय प्रसारक प्रसार भारती ने एजेंसी छोड़ दी, जिसके कारण इसके मासिक राजस्व में लाखों रुपए की गिरावट आई.

फिलहाल यूएनआई के कर्मचारी संघ ने समाचार एजेंसी को दिवालिया घोषित करने की याचिका दायर की है. याचिका में मांग की गई है कि यूएनआई अपने कर्मचारियों को 103 करोड़ रुपए का भुगतान करे, इसमें मौजूदा व पूर्व कर्मचारियों का वेतन, ग्रेच्युटी और भविष्य निधि बकाया शामिल है. 2006 में जब से शेयरधारकों ने एक-एक करके सदस्यता समाप्त करनी शुरू की, तब से एजेंसी के लिए पूर्ण वेतन का भुगतान एक समस्या बनी हुई है.

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