कोविड में इस्तेमाल हुए मास्क और दस्ताने पक्षियों के लिए बन सकते हैं जी का जंजाल

दुनिया भर के 114 दृश्यों को देखा गया जिनमें से 83 फीसदी में पक्षी, 11 फीसदी स्तनधारी, जबकि 3.5 फीसदी अकशेरुकी और 2 फीसदी मछलियां कोविड-19 के कचरे के सबसे अधिक संपर्क में थे.

Byदयानिधि
   bookmark_add
कोविड में इस्तेमाल हुए मास्क और दस्ताने पक्षियों के लिए बन सकते हैं जी का जंजाल
  • whatsapp
  • copy

वर्तमान में अध्ययनकर्ता इस बात की जांच करना चाहते थे कि इस कूड़े ने वन्यजीवों को कैसे प्रभावित किया है और कैसे सामुदायिक वैज्ञानिक ऐसे समय में जांच करने में मदद कर सकते हैं जब अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर भारी प्रतिबंधित लगे थे.

अध्ययनकर्ताओं ने अप्रकाशित वैज्ञानिक रिपोर्ट, सामुदायिक विज्ञान प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया नेटवर्क सहित विभिन्न स्रोतों से आंकड़ों का उपयोग किया. तब प्रत्येक महामारी अपशिष्ट घटना के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने के लिए गवाहों से संपर्क किया गया था.

कुल मिलाकर, अध्ययनकर्ताओं ने दुनिया भर के 114 दृश्यों को देखा गया जिनमें से 83 फीसदी में पक्षी, 11 फीसदी स्तनधारी, जबकि 3.5 फीसदी अकशेरुकी और 2 फीसदी मछलियां कोविड-19 के कचरे के सबसे अधिक संपर्क में थे.

मौजूदा परिणाम इस बात की तस्दीक करता है कि पक्षियों को प्लास्टिक से उलझने का विशेष खतरा है, समुद्री पक्षी प्रजातियों की अनुमानित तीसरी और मीठे पानी की प्रजातियों का 10वें हिस्से में सिंथेटिक वस्तुओं को पाया गया है.

कुल मिलाकर वन्यजीवों के महामारी के कचरे से उलझने का प्रभाव लगभग 42 फीसदी है, लेकिन यह केवल 40 फीसदी से थोड़ा अधिक है, जिसमें पक्षियों को घोंसले बनाने के लिए फेस मास्क और दस्तानों का इस्तेमाल करते देखा गया.

एलेक्स कहते हैं कि कई पक्षी घोंसले का निर्माण करते हैं और वे आम तौर पर उन्हें फिलामेंट वस्तुओं से बनाते हैं, चाहे वह घास, टहनियां, काई या मकड़ी का रेशम हो. दुर्भाग्य से, बहुत सारे कचरे में समान विशेषताएं होती हैं, विशेष रूप से मास्क जैसी वस्तुएं जिनमें कानों के चारों ओर लूप होते हैं. जब इसे घोंसलों में शामिल किया जाता है, तो यह वयस्कों और उनके चूजों दोनों के लिए एक उलझने का खतरा पैदा करता है.

उन्होंने कहा कि यह अध्ययन अंग्रेजी भाषा की खोजों तक सीमित था और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जो दुनिया के कुछ देशों में प्रभावी नहीं हैं, शोध इस बात की जानकारी प्रदान करता है कि महामारी पर्यावरण को कैसे प्रभावित करती रहेगी.

डिस्पोजेबल फेस मास्क को नष्ट होने में लगभग 450 साल तक लग सकते हैं, कोविड-19 के दौरान छोड़े गए कचरे को भविष्य में वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के किसी भी प्रयास पर विचार करना होगा.

कचरे के खिलाफ इस लड़ाई में, अध्ययन ने दिखाया कि समस्या को खोजने और दूसरों को सचेत करने में मदद करने के लिए सामुदायिक वैज्ञानिकों पर सहयोगी के रूप में भरोसा किया जा सकता है.

अध्ययनकर्ताओं ने क्षेत्र को अधिक न्यायसंगत बनाते हुए प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं की सहायता करने के लिए सभी क्षेत्रों के लोगों की मदद करने के लिए अधिक सुव्यवस्थित सामुदायिक विज्ञान प्लेटफार्मों को विकसित करने के लिए अधिक प्रयासों का आह्वान किया. यह अध्ययन साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

Also see
आयुष मंत्रालय के कोविड-19 परीक्षणों को वैज्ञानिक क्यों मानते हैं बकवास
क्या कोरोनिल, कोरोना की दवाई है? जानिए पतंजलि और रामदेव का साम्राज्य
subscription-appeal-image

Press Freedom Fund

Democracy isn't possible without a free press. And the press is unlikely to be free without reportage on the media.As India slides down democratic indicators, we have set up a Press Freedom Fund to examine the media's health and its challenges.
Contribute now

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like