‘वे सोलह दिन’ भारत के संविधान में हुए पहले संशोधन का दस्तावेज है. यह मूल रूप से अंग्रेजी में छपी किताब ‘सिक्सटीन स्टॉर्मी डेज़’ का हिंदी अनुवाद है. पहले संविधान संशोधन लागू होने के पहले 16 दिनों के दौरान घटी घटनाओं को आर्काइव से निकाल कर किताब में बदलने की एक लंबी प्रक्रिया और अध्ययन का अहसास इस किताब को पढ़ते समय होता है.
तीखी संसदीय बहसों और कड़े विरोध के बीच सरकार के पास मौजूद भारी बहुमत ने जून, 1951 में संविधान के पहले संशोधन का रास्ता साफ किया. इस दौरान नेहरू, मुखर्जी, डॉ. आंबेडकर, राजेंद्र प्रसाद और तमाम नेताओं के विचार इस किताब के जरिए सामने आते हैं. इस संशोधन के जरिए कुछ नागरिक स्वतंत्रताओं, भूमि सुधार, जमींदारी प्रथा, सामाजिक न्याय जैसी नीतियों को लागू करने के लिए कानूनों की एक विशेष अनुसूची तैयार की गई. इसका सबसे चिंताजनक पक्ष था कुछ कानूनों को न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव. बाद में इस पर कड़ा विरोध देखते हुए नेहरू ने पैर पीछे खींच लिए और इसमें कुछ जरूरी उपाय जोड़े गए.
पहले संशोधन के साथ एक और बड़ी गड़बड़ी यह रही कि यह देश के पहले आम चुनाव होने से पहले ही कर दिया गया. यानी तब तक देश में एक चुनी हुई सरकार नहीं बनी थी. लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि भूमि सुधार और सामाजिक न्याय जैसे वो मुद्दे जो 1930 से कांग्रेस की घोषित नीति का हिस्सा थे, उनको लागू करने की राह में कुछ लोग और अदालतें नए संविधान की आड़ लेकर रोड़ा अटका रही थीं. ऐसे में संशोधन के बिना आगे सुधारों की राह बंद होती दिख रही थी. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसका हल निकालते हुए कार्यपालिका की सर्वोच्चता को स्थापित करने का तरीका यह निकाला कि संवैधानिक नियंत्रण का एक नया ढांचा खड़ा कर दिया. इन तमाम मसलों और किताब के बारे में लेखक त्रिपुरदमन सिंह के साथ पूरा इंटरव्यू यहां देखिए…