असम: जिस ओर नजर सिर्फ पानी ही पानी, जान माल की भारी क्षति

असम में बाढ़ से बचने के लिए लोग पलायन कर चुके हैं. अब घर डूबने के बाद उन्हें तिरपाल से बने अस्थाई शिविरों में रहना पड़ा रहा है.

WrittenBy:नवारून गुहा
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सिलचर भी जलमग्न

गुवाहाटी के बाद असम का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर सिलचर में हर तरफ बाढ़ का पानी दिखता है. मानो यह शहर एक आपदा वाली फिल्म के सेट जैसा हो. इसका 80% से अधिक क्षेत्र पिछले सप्ताह से जलमग्न है. गुवाहाटी की तरह, सिलचर के निवासी भी भारी वर्षा के कारण अचानक आई बाढ़ से दोचार हो रहे हैं.

21 जून को जब जलस्तर बढ़ना शुरू हुआ तो सिलचर में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि आगे ऐसी स्थिति हो जाएगी. 22 जून को लगभग पूरा शहर जलमग्न हो गया था. मणिपुर और मिजोरम जैसे पड़ोसी पहाड़ी राज्यों के बारिश के पानी ने बाढ़ में इजाफा किया. बराक नदी पर बेथुकंडी बांध के टूटने से शहर की स्थिति और खराब हो गई.

“मेरे पिता को ब्लड प्रेशर की शिकायत है. उन्हें रोज इसकी दवाई खानी होती है. उनकी एक दवा का स्टॉक समाप्त हो गया, और इसे खरीदने में हमें काफी मशक्कत करनी पड़ी. हमारे घर से मुश्किल से 200-300 मीटर की दूरी पर कोई फार्मेसी है, लेकिन उस दिन आस-पास कोई फार्मेसी नहीं खुली थी. मेरे भाई को दवा लाने के लिए पांच से छह किलोमीटर छाती तक पानी से होकर जाना पड़ा,” नीलोत्पल भट्टाचार्जी ने बताया. उनका परिवार सिलचर में एक गंभीर रूप से बाढ़ प्रभावित इलाका कनकपुर में रहता है.

34 वर्षीय भट्टाचार्जी अपने घर से दूर तेजपुर में पत्रकारिता करते हैं. उन्हें अपने घर की चिंता हमेशा सताती रहती है. सिलचर के निवासियों ने समय रहते कार्रवाई न करने की वजह से सरकार से सवाल किया है.

गुवाहाटी के बोरागांव में भूस्खलन से चार लोगों की मौत हो गई.

“जानकारी होने के बावजूद, सरकार ने उस तटबंध की मरम्मत नहीं की,” कृष्ण भट्टाचार्जी ने कहा, जो सिलचर चैप्टर ऑफ इंडिया मार्च फॉर साइंस के संयोजक भी हैं. उन्होंने आगे कहा कि सिलचर के पास महिषा बील और मालिनी बील जैसे वेटलैंड को अतिक्रमण से मुक्त करना चाहिए. 1996 में स्थापित बराक घाटी में प्रमुख कैंसर अस्पताल कछार कैंसर केंद्र को भी एक बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा. इस परिसर और अस्पताल की इमारत के कुछ हिस्सों में जलभराव हो गया था.

हमसे बात करते हुए अस्पताल के संस्थापक और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कल्याण चक्रवर्ती ने बताया, “अस्पताल के प्रवेश द्वार पर पानी भर गया है, इसलिए हम मरीजों को अस्थायी राफ्ट पर ले जा रहे हैं. फिलहाल 200 स्टाफ के साथ 140 मरीज अस्पताल में भर्ती हैं. आपूर्ति में हमारी मदद करने के लिए, हम लोग प्रशासन और नागरिक समाज के आभारी हैं.”

गुवाहाटी के अनिल नगर में बाढ़ में एक सड़क का दृश्य.

एनडीआरएफ की पहली बटालियन के कमांडेंट एचपी एस कंडारी ने हमें बताया कि शहर की बड़ी आबादी के साथ बाढ़ की भयावहता सिलचर में आपदा के बाद कार्रवाई के प्रयासों को विफल कर दिया. “असम में हमारी 22 इकाइयां हैं, जिनमें से नौ सिलचर में हैं. कुछ इलाकों में पानी का बहाव बहुत तेज है. अपने उपकरणों का रखरखाव करना कभी-कभी मुश्किल होता है क्योंकि जब हम अपनी नाव को इन पानी में चलाते हैं तो हमें पता नहीं होता कि नीचे क्या है. इसलिए, कभी-कभी हमारी नावें पंक्चर हो जाती हैं. इस तरह के नुकसान की मरम्मत के लिए हमारे पास मोबाइल वर्कशॉप हैं, हालांकि इतने कम समय में हर जगह मोबाइल वर्कशॉप भेजना हमेशा संभव नहीं होता है. हम इस स्थिति में बिना आराम किए काम कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हम मदद की ज़रूरत वाले सभी लोगों तक पहुंच सकें.”

ग्रामीण असम की कोई सुध नहीं ले रहा

सड़क के एक हिस्से पर छोटे-छोटे टेंट लगे हुए हैं. यह सड़क नागांव जिले के राहा को जखलाबंधा से जोड़ता है. इन टेंटों में पोडुमोनी और काकाती गांव के निवासियों ने अस्थाई ठिकाना बनाया है. पोदुमोनी से आए हाफिजुद्दीन पिछले 10 दिनों से अपने 10 लोगों के परिवार के साथ एक छोटे से तंबू में रह रहे हैं. उन्होंने इतना विनाशकारी बाढ़ पहले कभी नहीं देखा था. वह कहते हैं कि यह बाढ़ साल 2004 में आए बाढ़ से भी भीषण है.

गांव के निवासियों का कहना है कि तीन बांधों- उमरंगशु, कार्बी लोंगपी और खेंडोंग से पानी छोड़े जाने के कारण उनके घर जलमग्न हो गए थे. बाढ़ के बाद न सिर्फ गांव के निवासी बल्कि कई सरकारी अधिकारी भी घर नहीं लौट पा रहे हैं.

राहा अंचल कार्यालय में बाढ़ अधिकारी परिष्मिता सैकिया पिछले 15 दिनों से अपने कार्यालय में रह रही हैं. “मेरा घर राहा से 7-8 किमी दूर है. मैंने सुना है कि मेरे घर में भी पानी घुस गया है, लेकिन मैं अपने माता-पिता को देखने नहीं जा सकी. मुझे रात के तीन बजे तक रुकना पड़ता है क्योंकि राहत कार्य से जुड़ी बहुत सारी कागजी कार्रवाई है. पास में एक सहकर्मी का घर है जहां मैं जाती हूं, ” सैकिया ने कहा.

एनडीआरएफ को सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से कुछ में राहत भेजने का काम सौंपा गया है. हमारी मुलाकात राहा में एक ऐसी ही एक टीम से हुई. टीम का नेतृत्व कर रहे इंस्पेक्टर मिलन ज्योति हजारिका ने कहा कि वह बाढ़ के लिए कुख्यात लखीमपुर के रहने वाले हैं, लेकिन इस साल उन्होंने जो घटना देखी, ऐसी तीव्रता पहले कभी नहीं देखी. हजारिका ने कहा, “चपोर्मुख में हमने उन लोगों को बचाया जिनके घर पूरी तरह से जलमग्न हो गए थे और किसी तरह उन्होंने छत पर शरण ली थी.”

द्वारबंद में बाढ़ के बाद एक घर जीर्ण-शीर्ण हो गया.

बारपेटा जिले के चरस नदी के द्वीपों पर नाव क्लीनिक चलाने वाले सोफीकुल इस्लाम ने कहा कि निचले असम में, तबाही मुख्य रूप से ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों जैसे जियाभरली और पगलाडिया की वजह से आई है. उन्होंने बाढ़ का पानी कम होने पर बाढ़ पीड़ितों को प्रभावित करने वाली जलजनित बीमारियों पर भी चिंता व्यक्त की.

तटबंधों का निर्माण करके क्षेत्र में बाढ़ प्रबंधन के प्रति सरकार के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए, स्वतंत्र शोधकर्ता मिर्जा जुल्फिकुर रहमान ने कहा, “इस क्षेत्र में बाढ़ प्रबंधन का मतलब तटबंधों का निर्माण करना है जो ठेकेदारों के फायदे के अलावा और कुछ नहीं है. 1950 के भूकंप के बाद से, हम बाढ़ के मैदानों को ठीक से मैप किए बिना तटबंध और बांध का निर्माण कर रहे हैं. यहां तक ​​कि कोपिली, रोंगानोडी और उमरंगशु जैसे छोटे बांध भी भारी तबाही मचा सकते हैं.

“यदि आप नदी के तल से एक भी शिलाखंड हटाते हैं, तो इसका प्रभाव पड़ेगा. ये शिलाखंड एक तरह से रक्षक का काम करते हैं और इनकी अनुपस्थिति में बाढ़ का पानी बहुत अधिक तीव्रता से आ जाएगा. हम जमीनी स्तर पर जो हस्तक्षेप कर रहे हैं, उससे भयावह घटनाएं हो सकती हैं. पूरा पूर्वोत्तर भारत ताश के पत्तों से बने महल की तरह है जो ढहने को तैयार है. यह सरकार जिस तरह से जलवायु परिवर्तन को लेकर कार्रवाई करती है, उससे पता चलता है कि वे इस मुद्दे को स्वीकार करने के लिए उत्सुक भी नहीं हैं,” रहमान ने कहा.

राहा में बाढ़ राहत शिविर.

असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) की बाढ़ से निपटने के लिए जलवायु-लचीला या जलवायु परिवर्तन का खतरा झेल सकते वाले गांवों को विकसित करने की योजना है. इस पर विस्तार से बताते हुए एएसडीएमए के परियोजना अधिकारी मंदिरा बुरागोहेन ने कहा, “हम असम में जलवायु-लचीला गांवों के साथ आने की योजना बना रहे हैं, जिसमें एक ऊंचा स्थान, एक ऊंचे स्थान पर बने हैंडपंप, सामुदायिक गौशालाएं होंगी. हम महिलाओं और युवाओं को बाढ़ से बचने के लिए सक्षम भी बनाएंगे. हम बिहपुरिया, माजुली और बारपेटा में बाढ़ आश्रय स्थल स्थापित करेंगे जहां लगभग 500 लोग शरण ले सकते हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या इस बार चुनौतियां अधिक हैं, उन्होंने कहा, “2020 भी बहुत चुनौतीपूर्ण था क्योंकि बाढ़ के साथ-साथ एक भयंकर महामारी भी थी. हालांकि, इस साल बाढ़ अधिक तीव्र है.”

(साभार- MONGABAY हिंदी)

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