भारतीय जनऔषधि परियोजना: हर बीमारी की एक दवा 'भाजपा'

मोदी सरकार जेनेरिक या सामान्य दवाओं की योजना को अपनी पार्टी के प्रचार में इस्तेमाल कर रही है.

Article image
  • Share this article on whatsapp

दधीच ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि सरकार की योजना अगले साल तक 10,000 जन औषधि केंद्र खोलने की है और दूरगामी लक्ष्य के रूप में प्रति एक लाख व्यक्ति पर एक दवाखाना खोलने की मंशा है.

दिल्ली में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र

योजना के "भाजप या बीजेपी" नामांकन पर दधीच ने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया. लेकिन दोबारा नामांतरण का नेतृत्व करने वाले रसायन व उर्वरक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह निर्णय शीर्षस्थ "राजनीतिक प्रतिनिधियों" के द्वारा लिया गया था. रसायन व उर्वरक मंत्री मनसुख मनदेविया ने इस पर टिप्पणी लेने के हमारे प्रयास का कोई जवाब नहीं दिया.

लेकिन इस तरह की ब्रांडिंग पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है. क्योंकि तकनीकी तौर पर यह राजनीतिक विज्ञापन की श्रेणी में नहीं आता जिसका निर्धारण सरकारी विज्ञापनों का विनियमन करने वाली कमेटी करती है.

2016 में उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर बनाई गई पीस कमेटी का काम यह निर्धारित करना है कि जनता के टैक्स के पैसे से दिए जा रहे हैं. ज्ञापन केवल सरकार की जिम्मेदारियों से जुड़े हों, राजनीतिक हितों को न बढ़ाते हों, उनकी सामग्री विषयानुरूप हो और वे कानूनी और आर्थिक मानकों पर खरे उतरते हों.

इस चैनल पर "संदेह से परे निष्पक्षता और तटस्थता" रखने वाले तीन सदस्य अपेक्षित हैं लेकिन इसके बावजूद पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं, खास तौर पर आम आदमी पार्टी की तरफ से. लेकिन दिसंबर 2021 तक कमेटी के चेयरमैन का कार्यभार संभालने वाले पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत आरोपों को खारिज करते हैं. वह इस बात की ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए उन्होंने "कई भाजपा सरकारों" को भी नोटिस जारी किए थे.

जनहित की योजनाओं को अपने नेता और पार्टी के प्रचार के लिए इस्तेमाल करने का मोदी सरकार का इतिहास रहा है. उसने कई पुरानी योजनाओं का नामांकरण दोबारा से दीनदयाल उपाध्याय जैसे संघ परिवार के विचारकों या योजनाओं के नामों में "प्रधानमंत्री" जोड़कर किया है.

लेकिन ऐसा करने वाली यह अकेली सरकार नहीं है. मायावती जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो बहुजन समाज पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां लगवाने को लेकर विवाद खड़ा हुआ था. उनके बाद बने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ऐसी कई योजनाएं शुरू कीं जिनके नाम में "समाजवादी" जुड़ा हुआ था और राशन कार्ड पर उनकी फोटो हुआ करती थी. उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बसों, जन शौचालय और स्कूल के बच्चों को भी केसरिया रंग में रंगवा दिया.

बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने, फ्लाईओवर और रेलिंगों को तृणमूल कांग्रेस पार्टी के सफेद और नीले रंगों से रंग दिया, और राज्य के सरकारी स्कूलों में नीले और सफेद रंग की वेशभूषा भी लागू कर दी.

दिल्ली में महालेखापरीक्षक और निरीक्षक या सीएजी ने 2016 में अरविंद केजरीवाल की सरकार पर जनता का पैसा टीवी पर ऐसा विज्ञापन दिखाने का आरोप लगाया जिसमें एक व्यक्ति आम आदमी पार्टी के चुनाव चिन्ह झाड़ू को लहरा रहा था, और "आपकी सरकार" कह रहा था. जाहिर तौर पर सरकार के बजाय पार्टी का प्रचार हो रहा था. लेकिन केजरीवाल सरकार "आपकी सरकार" नारे का इस्तेमाल अभी भी जारी रखे हुए है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

Also see
article imageकैसे मेटा के शीर्ष पदाधिकारी के संबंध मोदी और बीजेपी के लिए काम करने वाली फर्म से हैं?
article imageनुपुर शर्मा तो झांकी है: भाजपा में फ्रिंज ही केंद्र है, केंद्र ही फ्रिंज है
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like