52 फीसदी आय पर काबिज है वैश्विक आबादी का 10 फीसदी सबसे अमीर वर्ग, वहीं 50 फीसदी सबसे कमजोर तबके की आबादी के पास वैश्विक आय का केवल 8 फीसदी हिस्सा है.
चौंकाने वाली बात है कि 2021 में विकासशील देशों में 10 वर्ष के करीब 70 फीसदी बच्चे बुनियादी पाठ को भी पढ़ने में असमर्थ थे. 2019 की तुलना में देखें तो इस आंकड़े में करीब 17 फीसदी की वृद्धि आई है. 2021 में खाद्य कीमतें पहले ही दशक के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं.
ऐसे में संयुक्त राष्ट्र को डर है कि यूक्रेन में जारी संकट के चलते कई देशों में आर्थिक सुधार की रफ्तार धीमी पड़ सकती है. हालांकि विकसित देशों में महामारी के बाद बढ़ते निवेश के चलते आर्थिक विकास की दर दोबारा पटरी पर लौटने लगी है.
रिपोर्ट से पता चला है कि 2021 के दौरान दुनिया में गरीबी, सामाजिक सुरक्षा और सतत विकास के क्षेत्र में निवेश पर जो कुछ प्रगति हुई है. वो विकसित और कुछ गिने चुने बड़े विकासशील देशों में हुई कार्रवाई से प्रेरित है. इसमें कोविड-19 पर खर्च किए 1,293.6 लाख करोड़ रुपए भी शामिल हैं.
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2020 में आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई है जो बढ़कर अपने उच्चतम स्तर तक 12.3 लाख करोड़ पर पहुंच गई है. 13 देशों ने इस दौरान ओडीए में कटौती की है. हालांकि देखा जाए तो इसके बावजूद विकासशील देशों की विशाल जरूरतों के लिए यह राशि पर्याप्त नहीं है.
इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के अवर महासचिव लियू जेनमिन का कहना है कि विकसित देशों ने पिछले दो वर्षों में यह साबित कर दिया है कि कैसे सही निवेश की मदद से लाखों लोगों को गरीबी के भंवर से बाहर निकाला जा सकता है. उनके अनुसार सशक्त और स्वच्छ इंफ्रास्ट्रक्चर, सामाजिक सुरक्षा या सार्वजनिक सेवाओं की मदद से ऐसा कर पाना संभव है.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के विकास की आधारशिला इसी प्रगति पर निर्मित की जानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विकासशील देश भी इसी स्तर पर निवेश कर सकें. साथ ही असमानता को कम किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए की वो शाश्वत ऊर्जा बदलावों को अपना सकें.
गौरतलब है कि इससे पहले ऑक्सफेम द्वारा जारी रिपोर्ट “फर्स्ट क्राइसिस, देन कैटास्ट्रोफे” में भी दुनिया में बढ़ती गरीबी को लेकर कुछ ऐसे ही खुलासे किए थे. इसके अनुसार साल के अंत तक दुनिया भर में करीब 86 करोड़ लोग 145 रुपए (1.9 डॉलर) प्रति दिन से कम में गुजारा करने को मजबूर होंगें. वहीं यदि उनकी आय का हिसाब 420 रुपए (5.5 डॉलर) प्रतिदिन के आधार पर लगाएं तो 2022 के अंत तक दुनिया के करीब 330 करोड़ लोग गरीबी की मार झेल रहे होंगें.
विश्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट ‘इंटरनेशनल डेब्ट स्टेटिस्टिक्स 2022’ से पता चला है कि 2020 में पहले ही गरीबी की मार झेल रहे देशों पर 12 फीसदी की वृद्धि के साथ कर्ज का बोझ बढ़कर रिकॉर्ड 65 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया था. वहीं यदि निम्न और मध्यम आय वाले देशों की बात करें तो उनपर कुल विदेशी कर्ज इस दौरान 5.3 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 654.9 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है.
(डाउन टू अर्थ से साभार)