पराली की समस्या से निजात दिलाने के लिए पूसा इंस्टीट्यूट ने बायो डी-कंपोजर बनाया है. दिल्ली में इस योजना से अब तक 955 किसानों को फायदा हुआ है.
दिल्ली और आस-पास के राज्यों में पराली से होने वाली समस्या से निजात दिलाने के लिए साल 2020 में पूसा इंस्टीट्यूट ने बायो डी-कंपोजर ईजाद किया था. एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक दिल्ली की सरकार ने दिल्ली के किसानों के खेतों में इसके छिड़काव पर दो सालों में 68 लाख रुपए खर्च किए वहीं इस दौरान विज्ञापन पर कुल 23 करोड़ रुपए खर्च हुए. दिल्ली में इस योजना से अब तक 955 किसानों को लाभ पहुंचाने का दावा किया गया है.
वित्त वर्ष- 2021-22
दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता राम सिंह बिधूड़ी ने इसको लेकर सवाल किया था. उन्होंने पूछा था कि पराली से खाद बनाने हेतु दिल्ली सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-22 में बायो डी-कंपोजर सॉल्यूशन खरीदने के लिए कितनी धनराशि खर्च की गई. इस सवाल का जवाब देते हुए सरकार ने कहा, "दिल्ली सरकार द्वारा बायो डी-कंपोजर सॉल्यूशन खरीदने में 3 लाख 4 हजार 55 रुपए खर्च हुए हैं.’’
जवाब के मुताबिक, गुड़ और बेसन की खरीदारी पर 1 लाख 4 हजार 55 रुपए और बायो डी-कंपोजर कैप्सूल की खरीद पर 2 लाख रुपए खर्च हुए. इस तरह कुल 3 लाख 4 हजार 55 रुपए खर्च हुए. सरकार ने बताया कि वर्ष 2021-22 के दौरान इससे दिल्ली के 645 किसानों को लाभ हुआ है.
दिल्ली विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में दिल्ली सरकार ने बताया है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में बायो डी-कंपोजर खरदीने के अलावा उसका छिड़काव करने के लिए किराए पर लिए गए ट्रैक्टर पर 24 लाख 62 हजार रुपए और टेंट पर 18 लाख रुपए खर्च हुए हैं.
इस तरह से वित्त वर्ष 2021-22 में दिल्ली सरकार ने बायो डी-कंपोजर के छिड़काव पर लगभग 46 लाख रुपए खर्च किए है.
बिधूड़ी ने इस योजना के विज्ञापन पर खर्च को लेकर अगला सवाल किया है. जिसका जवाब देते हुए कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने 7 करोड़ 47 लाख, 26 हजार 88 रुपए इसके विज्ञापन पर खर्च किया है.
विज्ञापन पर खर्च को लेकर दिल्ली सरकार ने तर्क दिया कि पूरे उत्तर भारत में पराली जलाने के कारण उत्पन्न होने वाला विकराल प्रदूषण विगत कई वर्षों से बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है. आसपास के राज्यों में पराली जलाने के कारण कई हफ्तों तक दिल्ली के ऊपर प्रदूषण छाया रहता है. इसके कारण दिल्लीवासियों सहित समस्त उत्तर भारतवासियों का सांस लेना दूभर होता है. यह जरूरी था कि अनुसंधानकर्ता इस विषय में नई तकनीक ईजाद करें. और इसकी जानकारी सबी राज्यों तक पहुंचे, न कि सिर्फ दिल्ली तक.
इसमें आगे लिखा गया है- "दिल्ली में पूसा इंस्टीट्यूट ने पराली को कंपोस्ट खाद में बदलने की नई तकनीक ईजाद की थी. इसे दिल्ली सरकार की ओर से दिल्ली के किसानों को उपलब्ध कराया गया, लेकिन जरूरी था कि इस तकनीक की सूचना सभी राज्यों के किसानों को पहुंचे जहां से यह धुंआ बड़ी मात्रा में उत्सर्जित होता है. क्योंकि प्रदूषण का मुख्य स्रोत दिल्ली के आसपास के राज्य हैं, इसलिए लोगों की सुरक्षा हेतु इस नई तकनीक के बारे में जागरूकता के लिए सरकार की ओर से विज्ञापन जारी किए गए थे, जिस पर 7 करोड़ 40 लाख 26 हजार 28 रुपए का खर्च आया था."
इस तरह दिल्ली सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में बायो डी-कंपोजर के छिड़काव पर 46 लाख खर्च किए वहीं इसके विज्ञापन पर 7.5 करोड़ रुपए खर्च किए है.
वित्त वर्ष 2020-21: बायो डी-कंपोजर के छिड़काव से 72 गुना विज्ञापन पर खर्च
पूसा इंस्टीट्यूट ने बायो डी-कंपोजर का निर्माण 2020 में किया था. जिसे उसी साल 13 अक्टूबर को अरविंद केजरीवाल ने लांच किया था.
इस दौरान सीएम केजरीवाल ने कहा था- ‘‘दिल्ली में इस समय लगभग 700 से 800 हेक्टेयर जमीन है. जहां पर धान उगाया जाता है. वहां पर पराली निकलती है. जिसे कई बार उन्हें जलाना पड़ता था. अब वहां घोल छिड़का जाएगा. इसका सारा इंतजाम दिल्ली सरकार ने किया है. इसे छिड़कने के लिए ट्रैक्टर और छिड़कने वालों का इंतजाम दिल्ली सरकार ने किया है. किसान को इसके लिए कोई भी राशि देने की जरूरत नहीं होगी.’’
ऐसा नहीं है कि सरकार की तरफ से वित्त वर्ष 2021-22 में ही बायो डी-कंपोजर के प्रचार पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए. बल्कि इससे पहले भी वित्त वर्ष 2020-21 में तकरीबन 16 करोड़ रुपए इसके विज्ञापन पर खर्च हुए थे और तब भी वही तर्क दिया गया था जो इस साल दिया गया है. शब्दश: वही तर्क था.
तब दिल्ली सरकार ने बताया था, ‘‘बायो डी-कंपोजर को लेकर दिल्ली सरकार की तरफ से विज्ञापन जारी किए गए थे जिस पर 15 करोड़ 80 लाख 36 हजार 828 रुपए खर्च आया. वहीं पराली को कंपोस्ट में बदलने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल की खरीद पर आईएआरआई पूसा को 40 हजार रुपए का भुगतान किया गया है.’’
दिल्ली सरकार ने विधानसभा में भाजपा विधायक ओम प्रकाश शर्मा के सवाल के जवाब में यह जानकारी दी थी.
इसी जवाब में बताया गया था कि किसानों में पाराली न जलाने के बारे में जागरूकता लाने के लिए विकास विभाग की कृषि शाखा ने 56 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए थे. जिसमें कुल 4 लाख 69 हजार रुपए खर्च हुए हैं.
दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता हरीश खुराना की एक आरटीआई से मिले जवाब के मुताबिक दिल्ली कृषि विभाग ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान हुए खर्च की जानकारी दी. जानकारी के मुताबिक इस साल बायो डी-कंपोजर कीट खरीदने पर 40 हजार खर्च हुए, इसके अलावा गुड़ खरीदने पर 27 हजार 280 रुपए, बेसन खरीदने पर 8500 रुपए, छिड़काव करने के लिए किराए पर लिए गए ट्रैक्टर पर 11 लाख 61 हजार रुपए खर्च हुए. वहीं टेंट पर 9 लाख 60 हजार रुपए खर्च हुए. यानी कुल मिलाकर 21 लाख 96 हजार रुपए इस साल छिड़काव करने पर खर्च किए गए.
यानी वित्त वर्ष 2020-21 में दिल्ली सरकार ने बायो डी-कंपोजर के छिड़काव से लगभग 72 गुना रुपए विज्ञापन पर खर्च किए.
न्यूजलॉन्ड्री को हासिल डॉक्यूमेंट से साफ पता चलता है कि वित्त वर्ष 2020-21 में दिल्ली सरकार ने बायो डी कंपोजर के छिड़काव पर लगभग 22 लाख रुपए खर्च किए, वहीं 2021-22 में 46 लाख रुपए खर्च किए हैं. इस तरह से इन दोनों वित्त वर्ष में कुल 68 लाख रुपए खर्च हुए हैं.
ऐसे ही अगर हम विज्ञापनों के खर्च को देखें तो वित्त वर्ष 2020-21 में तकरीबन 16 करोड़ और 2021-22 में 7 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. इस तरह से इन दोनों वर्षों में विज्ञापनों पर कुल 23 करोड़ रुपए सरकार ने खर्च किए हैं.
दिल्ली में अब तक 955 किसानों को ही मिला फायदा
एक तरफ दिल्ली सरकार ने विज्ञापन पर करोड़ों रुपए खर्च किए ताकि दिल्ली के आसपास के किसान भी इसको लेकर जागरूक हो सकें और पराली जलाने से बचें. 13 सितंबर, 2021 को सीएम केजरीवाल ने बकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दूसरी राज्य सरकारों को मुफ्त में किसानों के खेतों में इसके छिड़काव कराने का सुझाव दिया था. साथ ही केंद्र सरकार से इसमें दखल देने की मांग की थी. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अब तक यह दिल्ली के किसानों के खेतों तक ही ठीक से नहीं पहुंच पाया है.
बीते वर्ष 2021-22 में राज्य सरकार ने खुद ही बताया कि इसका लाभ 645 किसानों को हुआ है. वहीं 2020-21 में लाभान्वित किसानों की संख्या 310 बताई गई थी. यानी दो साल में सिर्फ 955 किसानों को इससे फायदा हुआ है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इसको लेकर बीते साल नवंबर महीने में ग्राउंड रिपोर्ट की थी. जिसमें हमने दिल्ली के तिगीपुर, रमजानपुर, मोहम्मदपुर, बकतारपुर और पल्ला गांव के किसानों से बात की थी. यहां के किसानों का कहना था कि उन्हें समय पर बायो डी-कंपोजर का स्प्रे नहीं मिल रहा.
तीगीपुर गांव के रहने वाले किसान ओम पाल सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया था, ‘‘इसके लिए मैंने अपने गांव से 22 फॉर्म भरवाए थे. 22 में से सिर्फ दो किसानों के खेत में वे छिड़काव करके गए हैं. इसमें से छह एकड़ मेरा है और छह एकड़ राजेंद्र नाम के किसान का है. वो न समय पर पहुंचते हैं और न ही छिड़काव करते हैं.’’
ऐसे ही दूसरे किसानों ने भी अपनी समस्या बताई है.
19 करोड़ के स्मॉग टॉवर के विज्ञापन पर 5.58 करोड़ रुपए खर्च
दिल्ली की हवा बीते कई सालों से अक्टूबर-नवंबर के महीने में जहरीली हो जाती है. सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. कई लोग तरह-तरह की बिमारियों का शिकार होने लगते हैं. तब दिल्ली सरकार प्रदूषण कम करने को लेकर अलग-अलग काम करने का दावा करती है. बीते साल दिल्ली में जगह-जगह ‘प्रदूषण से युद्ध’ लिखा पोस्टर लगा था.
इसी दौरान सरकार ने हवा साफ करने के लिए कनॉट प्लेस में स्मॉग टॉवर लगवाए थे. इसे लगवाने में 19 करोड़ रुपए खर्च हुए थे वहीं इसके विज्ञापन पर सरकार ने 5.58 करोड़ रुपए खर्च किए थे. यह जानकारी भी सरकार ने विधानसभा में सवाल के जवाब दी है.
स्मॉग टॉवर लगाने के सवाल पर दिल्ली सरकार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के दिनांक 13 जनवरी, 2020 के आदेश के अनुपालन में जीएनसीटीडी (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार) ने बाबा खड़क सिंह मार्ग पर एक स्मॉग टॉवर लगाया है. वित्त वर्ष 2020-21 में स्मॉग टॉवर लगाने पर 19 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं. यह खर्च दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग द्वारा दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति को दिया गया.
वहीं इसके विज्ञापन के सवाल के जवाब में सरकार ने बताया, ‘‘सूचना और प्रचार निदेशालय, जीएनसीटीडी द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक इसके विज्ञापन पर 5.58 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं.’’
बायो डी-कंपोजर के छिड़काव से ज्यादा उसके विज्ञापन पर खर्च और 19 करोड़ के एक स्मॉग टॉवर के प्रचार पर 5.56 करोड़ रुपए खर्च को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री ने दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय से बात करने की कोशिश की. उनके सहयोगी ने हमसे पहले सवाल पूछा और कहा कि उनसे बात करके बताएंगे.
हालांकि कुछ समय पहले गोपाल राय ने न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहा था, "हां हमने विज्ञापन दिया था, लेकिन बीजेपी को विज्ञापनों से कोई दिक्कत नहीं है. जब भी कुछ अच्छा होता है, तो बीजेपी परेशान हो जाती है क्योंकि वे चीजों का समाधान नहीं चाहते हैं.’’
क्या सरकार ने यह विज्ञापन दिल्ली के आसपास राज्यों में भी दिए थे. इस सवाल के जवाब में राय ने कहा था, ‘‘यह विज्ञापन केवल दिल्ली में दिया गया था. लेकिन अगर दिल्ली में कुछ विज्ञापन किया जाता है तो वह दूर तक जाता है.’’
यह हैरान करता है कि दिल्ली में ये तमाम विज्ञापन दिए गए और दावा किया गया कि पड़ोसी राज्यों के किसानों तक सूचना पहुंचाने के लिए विज्ञापन दिए गए. इसको लेकर दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता हरीश खुराना कहते हैं, ‘‘दिल्ली सरकार सिर्फ पब्लिक मनी को बर्बाद कर रही है. विज्ञापनों से लगता है कि क्या-क्या बदलाव हो गया लेकिन जमीन पर कोई काम नहीं हो रहा है.’’
गोपाल राय के आरोप पर खुराना कहते हैं, ‘‘अगर इससे समाधान निकलता तो हम क्यों सवाल खड़ा करते. दो साल में क्या दिल्ली में पराली जलनी बंद हो गई. सरकार खुद बता रही है कि दिल्ली में 955 किसानों को इससे अब तक फायदा हुआ है. इतने कम किसानों को फायदा हुआ और विज्ञापन पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए.’’
दिल्ली सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में विज्ञापन पर खर्च किए 4 अरब 88 करोड़ रुपए
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में विज्ञापनों पर कुल 4 अरब 88 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. यानी सरकार ने हर रोज तकरीबन एक करोड़ 34 लाख रुपए विज्ञापन पर खर्च किया है. यह जानकारी न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए पूछे गए सवाल से आई है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने आरटीआई के जरिए जानकारी मांगी थी कि एक अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2022 के बीच दिल्ली सरकार ने विज्ञापन पर कितनी राशि खर्च की है. साथ ही हमने यह भी पूछा था कि यह विज्ञापन किन योजनाओं और इवेंट्स को लेकर दिए गए हैं.
इसके जवाब में दिल्ली सरकार के सूचना एवं प्रचार निदेशालय (डीआईपी) ने बताया कि विज्ञापन पर 4,889,702,684 रुपए खर्च हुए हैं. किन योजनाओं पर यह खर्च हुआ यह सरकार ने साझा नहीं किया है.
दिल्ली सरकार ने जहां एक साल के विज्ञापन पर लगभग 490 करोड़ रुपए खर्च किए हैं वहीं दिल्ली से कई गुना बड़े राज्य छत्तीसगढ़ की अगर बात करें तो दिसंबर, 2018 से नवंबर, 2021, यानी करीब तीन सालों में सभी माध्यमों के जरिए विज्ञापन पर 315 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. यानी एक साल में 105 करोड़ रुपए. बजट के आकार के लिहाज से देखें तो दिल्ली का सालाना बजट 75,000 करोड़ के आस-पास है जबकि छत्तीसगढ़ का सालाना बजट एक लाख करोड़ से थोड़ा ज्यादा है.
इससे पहले 2012-13 में दिल्ली में विज्ञापन खर्च 11.18 करोड़ रुपए था. जो 2013-14 में 25.24 करोड़ रुपए हो गया. 2014-15 में यह 11.12 करोड़ रुपए था. 2015-16 में यह खर्च बढ़कर 81.23 करोड़ रुपए हो गया. 2016-17 में इसमें कमी आई. इस बार सरकार ने 67.25 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए.
इस कमी के महज एक साल बाद इस खर्च में जबरदस्त उछाल हुआ. 2017-18 में, दिल्ली सरकार ने 117.76 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए. 2018-19 में इसमें फिर से कमी आई. इस बार 45 करोड़ रुपए खर्च हुए. वहीं अगले साल 2019-20 में यह फिर से बढ़कर करीब 293 करोड़ रुपए हो गए. वहीं विज्ञापन का खर्च 2020-21 में बढ़कर 242. 38 करोड़ हो गया. वित्त वर्ष 2021-22 पर यह खर्च 490 करोड़ तक पहुंच गया है.
(11 मई, 2022 को 6:05 PM पर इस स्टोरी को अपडेट किया गया है)