शोध के अनुसार यह स्पष्ट है कि बढ़ता तापमान और गर्मी विशेष रूप से बुजुर्गों और बच्चों के लिए खतरनाक है. इसके साथ ही बाहर खुले में होने वाले खेलों और प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेने वाले के लिए भी यह जोखिम पैदा कर सकती है. ऐसा ही कुछ 2014 में ऑस्ट्रेलियन ओपन के दौरान टेनिस मैचों में देखें को मिला था जब तापमान 43 डिग्री सेल्सियस पहुंचने पर इन खेलों को बंद कर दिया गया था.
इसी तरह 2019 में आयोजित होने वाली आईएएएफ विश्व चैंपियनशिप से 68 में से 40 महिला मैराथन धावकों ने अपना नाम वापस ले लिया था. गौरतलब है कि इस दौरान तापमान 33 डिग्री सेल्सियस और आद्रता 73 फीसदी पर पहुंच गई थी.
वहीं हाल ही में जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित एक शोध के हवाले से पता चला है कि 1980 से भीषण गर्मी का सामना करने वालों का आंकड़ा तीन गुणा बढ़ चुका है. अनुमान है कि शहरी क्षेत्रों में बढ़ती गर्मी दुनिया की लगभग एक चौथाई और शहरों की 46 फीसदी आबादी को प्रभावित कर रही है.
इसी तरह ओलंपिक खेलों पर मंडराते जलवायु परिवर्तन के खतरों को लेकर हाल ही में एक अन्य शोध जर्नल करंट इश्यूज इन टूरिज्म में प्रकाशित हुआ था. जिसके अनुसार जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है उसके चलते शीतकालीन ओलंपिक खेलों पर व्यापक असर पड़ सकता है.
गौरतलब है कि इस बार बीजिंग विंटर ओलंपिक में पहली बार पूरी तरह कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल किया गया था, जो स्पष्ट तौर पर जलवायु परिवर्तन के असर को दर्शाता है जिसकी वजह से कहीं ज्यादा बर्फ पिघल रही है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उसका इन खेलों पर बहुत ज्यादा असर पड़ेगा. वहीं यदि हालात न बदले तो इसके कारण शीतकालीन खेलों का अस्तित्व पूरी तरह खत्म हो सकता है.
ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि मैराथन को अगस्त से अक्टूबर के बीच और देश के कई शहरों में आयोजित किया जाना मददगार हो सकता है. खिलाड़ियों की सुरक्षा महत्वपूर्ण है ऐसे में यदि हमें इन खेलों की क्षेत्रीय विविधता को बनाए रखना है तो हमें इस समस्या पर गंभीरता से विचार करना होगा.
(साभार- डाउन टू अर्थ)