हैदराबाद: मालिकों को मुनाफा कराने वाले मजदूरों को ही क्यों देनी पड़ती है अपनी जान

बीते 23 मार्च को हैदराबाद के भोईगुड़ा में एक कबाड़ गोदाम में भीषण आग लगने से बिहार के 11 प्रवासी श्रमिकों की मौत हो गई.

WrittenBy:हर्ष शुक्ला
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जिम्मेदारी किसकी?

विश्वकर्मा और हिम्मतजी उद्योगों के मालिक मदन लाल बताते हैं कि गोदाम पट्टे की जमीन पर बना है. उन्होंने इस बारे में बात की कि कैसे प्रवासी श्रमिकों का डिपो और गोदामों में रहना बहुत सामान्य था. दरअसल, जिस गोदाम में आग से 11 मजदूरों की मौत हुई थी, वहां पहली मंजिल पर मजदूरों के लिए बना एक कमरा था जहां वे खाते-पीते और सो जाते थे. मजदूरों को खाना खुद बनाना पड़ता था.

उन्होंने कहा कि “सबसे कम श्रमिक” विभिन्न राज्यों से न्यूनतम मजदूरी पर यहां काम करने आते हैं. आग में मारे गए मजदूर कोरोना में लागू तालाबंदी के दौरान भी यहां रह रहे थे. उन्होंने कहा कि प्रवासी श्रमिक साल में एक बार ही अपने घर वापस जाते हैं. उन्होंने उल्लेख किया कि ऐसी कठोर शर्तें हमेशा उन श्रमिकों पर लागू होती थीं जिन्हें ठेकेदारों द्वारा खरीदा जाता है. उन्होंने गोदाम के मालिक संपत के प्रति बहुत सख्त नाराजगी व्यक्त की.

मदन लाल से जब गोदाम मालिक की आय के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया, “आराम से लाखों रुपए हर महीने कमाते ही होंगे.”

इसके बाद उन्होंने शिकायत करना जारी रखा, “इस घटना की सारी जड़ संपत ही है. वो बहुत बदमाश है, सीधा नहीं है. वो समझता है कि पूरी सड़क ही उसका गोदाम है. बस्ती में वो बहुत तमाशा करता है. ऐसे आग लगने की घटना पहली बार नहीं हुई है. बस मौत पहली बार हुई है. तकरीबन चार बार ऐसी घटना हो चुकी है पिछले 10 साल में, फिर भी नहीं सीखे ये.”

वह बताते रहे कि संपत कितना लापरवाह और कुख्यात रहा है. उन्होंने कहा कि यह पता लगाना मुश्किल है कि इस घटना को अब और क्या कहा जा सकता है.

घटना के बाद टीआरएस, बीजेपी और एआईएमआईएम जैसे विभिन्न दलों के कई बड़े नेता भोईगुड़ा का दौरा कर चुके हैं. जले हुए गोदाम की कड़ी बैरिकेडिंग का यह एक और कारण है. उन्होंने कहा कि यहां लगभग 26 टिम्बर डिपो हैं. प्रत्येक डिपो का स्वामित्व एक अलग व्यक्ति के पास है. पहले रानीगंज में टिम्बर डिपो का क्लस्टर हुआ करता था, हालांकि यहां (लगभग 60 साल पहले) बसने से पहले रानीगंज में एक बड़ी आग की घटना के कारण सरकार ने लकड़ी के डिपो को सामूहिक रूप से भोईगुड़ा में स्थानांतरित कर दिया.

इस पूरी घटना को लेकर कई अफवाहों को हवा दी गई है. जैसे आग लापरवाही से जली हुई सिगरेट के कारण लगी थी. अफवाहों में सिलेंडर का फटना भी शामिल था. इतनी बड़ी और दिल दहला देने वाली घटना वर्षों में नहीं हुई लेकिन छोटी-छोटी आग साल में एक दो बार लग ही जाती है.

जिम्मेदारी किसकी थी इसका जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है. साथ ही एक और सवाल जिसका जवाब अभी तक नहीं मिल पाया कि आखिर ऐसा क्यों है कि जो मजदूर एक कारखाने को बनाता है और उसे बड़ा करता है, जो मजदूर अपने मालिक को करोड़ों का मुनाफा कराता है, क्यों उसे ही अपनी जान की आहुति देनी पड़ती है? सवाल उन सत्ताधारी नेताओं से भी है जो कभी इनकी सुध तक नहीं लेते हैं.

(साभार- जनपथ)

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