लोकसभा में रामदास अठावले ने लिखित में बताया कि बीते पांच सालों में भारत में काम के दौरान 325 सफाई कर्मियों की मौत हुई है.
मृतकों की पहचान जहांगीर आलम, लियाकत अली, साबिर हुसैन और मोहम्मद आलमगीर के रूप में हुई थी. मृतकों के परिजनों को पांच लाख का मुआजवा और एक परिजन को नौकरी देने का वादा किया गया था. हादसे की जगह पर तब बंगाल सरकार के मंत्री अरूप विश्वास भी मौके पर पहुंचे थे.
सबसे ज्यादा मौत वाले राज्य उत्तर प्रदेश के आंकड़ों में भी गड़बड़ी नजर आती है. अठावले द्वारा दिए गए जवाब में बताया गया कि 2021 में एक भी सफाई कर्मी की मौत नहीं हुई. वहीं अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में 2021 में सफाई कर्मियों की मौत की खबरें प्रकाशित हुई हैं.
एनबीटी में प्रकाशित खबर के मुताबिक 28 मई 2021 को ग्रेटर नोएडा के बेगमपुर गांव में नाले की सफाई के दौरान एक मजदूर की मौत हो गई थी. इस दौरान मजदूर को बिना सुरक्षा के सीवर में उतारने का आरोप ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के एक ठेकेदार पर लगा था.
यही नहीं अयोध्या में भी 2021 में एक सफाईकर्मी मनोज सिंह की मौत सीवर साफ करने के दौरान हो गई थी.
मैग्ससे विजेता बेजवाड़ा विल्सन के नेतृत्व में चलने वाले सफाई कर्मचारी आंदोलन ने भी आंकड़े इकठ्ठे किए हैं. वो आंकड़ें भी सरकार के आंकड़े से ज्यादा हैं. संस्था से जुड़े विश्वजीत न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘हमने अपने सीमित संसाधन में जो आंकड़े इकठ्ठा किए हैं उसके मुताबिक बीते पांच सालों में 481 सफाई कर्मचारियों की मौत काम के दौरान हुई है. इनका पूरा रिकॉर्ड हमारे पास है. आंकड़े इससे ज्यादा ही होंगे क्योंकि हम हर जगह नहीं पहुंच सकते हैं.’’
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जहां सरकार के मुताबिक पांच सालों में एक मौत हुई है वहीं सफाई कर्मचारी आंदोलन के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक क्रमशः 11 और 17 सफाई कर्मियों की मौत हुई है. ऐसे ही सरकार के मुताबिक बिहार और ओडिशा में पांच सालों में दो मौत हुई हैं, वहीं सफाई कर्मचारी आंदोलन के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 39 और ओडिशा में 15 सफाई कर्मियों की मौत इस दौरान हुई है.
सरकार के मुताबिक उत्तराखंड, पुंडुचेरी, त्रिपुरा और गोवा में कोई भी मौत नहीं हुई हैं. विश्वजीत के मुताबिक त्रिपुरा में दो, उत्तराखंड में दो सफाई कर्मियों की मौत इस दौरान हुई. गोवा में कोई मौत नहीं हुई. वहीं गुजरात में सरकार के मुताबिक 28 सफाई कर्मियों की मौत हुई वहीं सफाई कर्मचारी आंदोलन के मुताबिक इस दौरान 39 मौतें हुई है.
अठावले द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में 30 सफाई कर्मियों की मौत हुई है, वहीं सफाई कर्मचारी आंदोलन के मुताबिक इस दौरान 57 लोगों मौतें हुई है.
सरकार आखिर आंकड़ें कम क्यों बताती है. इस सवाल के जवाब में विश्वजीत कहते हैं, ‘‘जब उनके (सरकार के) खुद के आंकड़ों में इतना अंतर है तो आप सफाई कर्मियों की मौत को लेकर सरकार की गंभीरता को समझ सकते हैं. अगर हम आंकड़े इकठ्ठा कर रहे हैं. ऐसे में यह तो कहना मुश्किल है कि सरकार यह नहीं कर सकती है. अगर आंकड़ें सही देंगे तो जिम्मेदारी बढ़ जाएगी. सरकार को परेशानी खत्म नहीं करना है न. सफाई कर्मियों की मौत शायद सरकार के लिए मायने नहीं रखती है.’’
मुआवजा भी सबको नहीं मिलता?
अपने जवाब में रामदास अठावले ने मृतकों के साथ-साथ मृतकों के परिजनों के मिलने वाले मुआवजे की भी जानकारी दी है. जवाब के मुताबिक 325 मृतकों में से केवल 276 लोगों के परिजनों को मुआवजा मिला है. यानी 49 मृतकों के परिजनों को अब तक मुआवजा नहीं मिल पाया है. उत्तर प्रदेश में 52 मृतकों में से 45 तो दिल्ली में 42 में से 37 को मुआवजा मिला है.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 के अपने फैसले में कहा था कि किसी व्यक्ति की सीवर सफाई के दौरान मौत होती है तो पीड़ित के परिजनों को 10 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा. कोर्ट ने यह आदेश सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में दिया था. आदेश में यह भी था कि पूर्व में जिन सफाई कर्मियों की मौत हुई है, उनके परिजनों की पहचान कर उन्हें भी 10 लाख का मुआवजा दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी ऐसा नहीं हुआ. वायर को आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर 2019 में एक खबर प्रकाशित की थी जिसमें सामने आया था कि साल 1993 से 5 जुलाई 2019 तक देशभर में 814 सफाई कर्मियों की मौत हुई लेकिन सिर्फ 455 मृतकों के परिजनों को ही 10 लाख का मुआवजा मिला है.
मुआवजे के सवाल पर विश्वजीत कहते हैं, ‘‘सफाई कर्मी सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं हैं. वे प्रिवलेज क्लास से ताल्लुक नहीं रखते हैं. सबसे जरूरी बात यह है कि सरकार पहले स्वीकार तो करे कि यह मौतें उनकी लापरवाही की वजह से होती है.’’
विश्वजीत एक और जरूरी मुद्दे की तरफ ध्यान दिलाते हैं वो पुनर्वास है. वे कहते हैं, ‘‘सरकार पुनर्वास को लेकर कोई काम नहीं कर रही है. सरकार को इनके पुनर्वास पर काम करना चाहिए. अगर उन्हें दूसरा काम मिल जाएगा तो वे सीवर में क्यों घुसने जाएंगे. मजदूरों को भी मालूम है कि सीवर में जाने से उनकी मौत हो सकती है, लेकिन कभी मजबूरी में तो कई बार दबाव में उन्हें काम करना पड़ता है. पुनर्वास को लेकर कानून भी है.’’
एक तरफ जहां पीएम नरेंद्र मोदी सफाई कर्मियों का पैर धोते नजर आते हैं वहीं उनके नेतृत्व वाली सरकार साल दर साल इनके पुनर्वास के बजट में कटौती करती आ रही है. साल 2021 के बजट में जहां मैला ढोने वालों के पुनर्वास फंड में 73 फीसदी की कटौती हुई थी, वहीं 2022 के बजट में 30 प्रतिशत की कटौती हुई है.