जय प्रकाश चौकसे: “एक ऐसा लेखक जिनको पढ़ने के लिए हम अखबार खरीदते थे”

जय प्रकाश चौकसे की याद में एक प्रशंसक पाठक का संस्मरण...

WrittenBy:मृगेन्द्र सिंह
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चौकसे साहब अपने लेखों में अधिकांशतः कवि कुमार अम्बुज वरिष्ठ की कविताओं के अंशों का जिक्र करते रहे. उनके लिए अम्बुज लिखते हैं कि यदि जय प्रकाश चौकसे का ‘परदे के पीछे’ स्तम्भ, इस शताब्दी में किसी हिंदी अखबार का अत्यंत लोकप्रिय स्तम्भ रहा है तो उसका कारण सहज बौद्धिकता में निहित है, जो फिल्मों के बहाने सोशियो-पॉलिटिकल, विविध कलाचर्चा, दार्शनिक सूक्तियों, लोकोक्तियों और सम्प्रेषणीय विचारशीलता की शक्ति में अभिव्यक्ति होती रही है. वे जीवनभर प्रतिपक्ष की बेंच के स्थायी सदस्य बने रहे. उनके न होने से एक जरूरी आवाज कम हो गई है. एक उठा हुआ हाथ कम हो गया है.

एक संस्मरण सुनाते हुए चौकसे जी बताते थे कि एक बार नीमच जिले से एक युवा ने किलोभर देशी घी लाकर उन्हें दिया, और बोला कि मैं आपके लिखे को उतना नहीं समझता लेकिन इतना समझता हूं कि आप अच्छा लिखते हैं. आपको पढ़कर अच्छा लगता है. आप घी खाइए और खूब लिखिए.

वह आजीवन लिखते भी रहे. दैनिक भास्कर में ही लगातार 26 साल तक बिना नागा किए लिखते रहे. इसके पहले नई दुनिया में लिखते रहे. उन्होंने तीन उपन्यास दराबा, ताज बेकरारी का बयान, महात्मा गांधी और सिनेमा व राज कपूर-सृजन प्रक्रिया नामक पुस्तकें, कुरुक्षेत्र की कराह सहित कई कहानियां लिखीं. उनके लेखों के दो संग्रह भी लेखमाला के रूप में प्रकाशित हुए.

बीती दीपावली पर इंदौर के एक उत्साही साथी के साथ उनके घर पर उनसे मिलना हुआ, जो उनसे पहली बार मिल रहा था. उनका स्वास्थ्य देखकर दुख पहुंचा. उन्होंने कहा कि कब तक जिंदा हूं पता नहीं, अब शरीर में जान नहीं रही. इसके बावजूद डेढ़ घंटे तक उनसे बातें होती रहीं. उन्होंने अपने छात्र जीवन से लेकर राजकपूर, सलीम खान से जुड़े संस्मरण सुनाए. उनकी याददाश्त देखकर हम चकित थे. वह बिना रुके नियमित तौर पर इबादत की तरह हर स्थिति में लिखते रहे. बताने लगे कि अब लिखने और पढ़ने में बहुत परेशानी आती है. लेंस की सहायता से पढ़ता हूं और लिखने में भी बहुत समय लगता है, पर एक फिल्म प्रतिदिन देखता हूं. फिल्मों के प्रति उनका अथाह प्रेम था. वही प्रेम और लालित्य उनके लेखन में भी झलकता है. सटीक, कलात्मक और आकर्षक लेखनी के धनी एक बेबाक लेखक जय प्रकाश चौकसे जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि.

(मृगेन्द्र सिंह, देशबंधु अखबार में पत्रकारिता के अनुभव के साथ ही लगातार लेखन में सक्रिय स्वतंत्र पत्रकार .)

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