चार्जशीट से यह स्पष्ट नहीं होता कि क्या पुलिस की जानकारी जबरन धर्म परिवर्तन या राष्ट्र विरोधी गतिविधि साबित करने के लिए पर्याप्त है.
हवाला का पैसा
गौतम के खिलाफ जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप तो निराधार लगते हैं लेकिन एटीएस के पास उनका एक बयान जरूर है, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया है कि उन्हें हवाला के जरिए विदेशों से आईडीसी के लिए पैसा मिला था.
25 जून 2021 को, पूछताछ के दौरान एटीएस ने उनके द्वारा किए गए लेनदेन में से कई को संदिग्ध बताया था.
उनमें से कुछ निम्न हैं:
- चार्जशीट में एटीएस ने कहा, "2010 में आईडीसी के गठन से जून 2021 तक प्राप्त लगभग दो करोड़ रुपयों में से 52 लाख रुपए विदेशों से उमर गौतम को प्राप्त हुए. जिसकी पुख्ता वजह पता नहीं है."
- गौतम ने कहा है कि इन पैसों को परोपकारी कार्यों के लिए भेजा और इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने एटीएस को बताया, "मेरे कई ऐसे दोस्त हैं जो मुझे विदेशों से पैसे भेजते हैं. इस पैसे का इस्तेमाल गरीबों की मदद के लिए किया जाता है.”
2002 से 2009 के बीच जब उनके खाते में 34 लाख रुपए जमा हुए, तब गौतम मरकजुल मारिफ एजुकेशन रिसर्च सेंटर की फंडरेज़िंग कमेटी के प्रमुख थे. (वह 1994 से 2010 के बीच संगठन की दिल्ली शाखा से जुड़े रहे). कुछ पैसे कतर-स्थित निवासियों से मिले थे, जबकि अन्य स्थानीय दानकर्ताओं ने दिए थे. इनमें असम के राजनितिक दल ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट या आईयूडीफ के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल भी शामिल थे (1995 से 2007 के बीच, गौतम ने अजमल के स्वामित्व वाली एक कंपनी के लिए काम किया था).
गौतम ने एटीएस को बताया कि 2011 से 2021 के बीच प्राप्त राशि "विभिन्न व्यक्तियों ने गरीबों की मदद करने के उद्देश्य से" दी थी. इसी तरह गुड़गांव के एक इंजीनियर ने, "गरीबों के लिए परमार्थ कार्यों में सहायता के लिए" 2018 से 2021 के बीच 2,87,000 रुपए जमा कराए.
फरवरी 2020 में रियाध के सैयद आरिफ पाशा ने आजाद सुभानी ह्यूमन फाउंडेशन के लिए गौतम को 25,75,000 रुपए दिए, जो कि दिल्ली की शिव विहार कॉलोनी में दंगा पीड़ितों की मदद करने के लिए थे. अन्य 3,33,000 रुपए मुंबई के एक धर्मांतरित व्यक्ति ने दिए, जो एक मदरसे को वित्तीय मदद देना चाहते थे.
यह पूछे जाने पर कि क्या हवाला के जरिए उन्हें विदेशों से पैसा मिला है, गौतम ने 'हां' में जवाब दिया और इस प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया.
लंदन में मजलिस अल-फलाह ट्रस्ट के महासचिव अब्दुल्ला आदम पटेल, वडोदरा-स्थित शेख सलाहुद्दीन के खाते में एक राशि जमा करते थे. पटेल गुजरात में ट्रस्ट के प्रबंधक के रूप में काम करते हैं. एक बार पैसा ट्रांसफर हो जाने के बाद, व्हाट्सएप पर गौतम और पटेल के बीच 10 रुपए के नोट की एक तस्वीर का आदान-प्रदान होता था और गौतम को उतनी ही राशि नकद में दिल्ली के चांदनी चौक की एक एजेंसी से मिल जाती थी.
धन-शोधन निवारण अधिनियम के तहत हवाला के ज़रिए पैसों का लेनदेन अवैध है.
हवाला लेनदेन में गौतम के शामिल होने के आरोप की पुष्टि फरीद मियां नाम के व्यक्ति के बयान से भी होती है, जो एएफएमआई चैरिटेबल ट्रस्ट के कंप्यूटर ऑपरेटर और अकाउंटेंट के तौर पर काम करता था. सलाहुद्दीन एएफएमआई चैरिटेबल ट्रस्ट का मैनेजिंग ट्रस्टी है.
मियां ने एटीएस को बताया कि सलाहुद्दीन ने उसे 2020 में दिल्ली में दो लाख रुपए ट्रांसफर करने के लिए अंगाडिया (कूरियर) का इस्तेमाल करने के लिए कहा था और अब तक उसने 30-35 लाख रुपए 'हवाला के जरिए' उमर गौतम को ट्रांसफर किए हैं. उसने यह भी कहा कि हवाला लेनदेन का कोई ऑडिट नहीं किया गया था और नियमित अंतराल पर सलाहुद्दीन मियां को वह दस्तावेज मिटाने के लिए कहता था, जिसमें इस लेनदेन को सूचीबद्ध किया गया था और एक पोर्टेबल एक्सटर्नल ड्राइव में सेव किया गया था.
सलाहुद्दीन को 1 जुलाई, 2021 को गिरफ्तार किया गया था. उसने 2 जुलाई, 2021 को एक बयान में एटीएस को बताया कि वह 2017 में संयोग से गौतम से मिला और उन्हें पटेल से मिलवाया.
सलाहुद्दीन अपने बयान में कहता है, "जब उमर गौतम ने मुझसे कहा कि वह ‘धर्म’ के लिए काम करता है, गैर-मुसलमानों को मुसलमान बनने में मदद करता है और पैसे, नौकरी आदि से उनकी सहायता करता है. तो मैंने यह सब लंदन के अब्दुल्ला पटेल को बताया, जो मोहम्मद गौतम की धर्मांतरण-संबंधित गतिविधियों से प्रभावित थे."
सलाहुद्दीन ने यह भी स्वीकार किया कि अब्दुल्ला पटेल से उमर गौतम को पैसे ट्रांसफर करने के लिए अंगाडिया की सेवाएं ली जा रही थीं. अंगाडिया का उपयोग करना सर्वथा अवैध नहीं है बशर्ते किसी ने प्रत्येक लेनदेन के लिए रसीदें जारी की हों. जैसा कि 2013 की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि गौतम ने लेनदेन का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा.
सलाहुद्दीन के वडोदरा में दो चैरिटेबल ट्रस्ट हैं- एएफएमआई चैरिटेबल ट्रस्ट और एबीसी ट्रस्ट. एएफएमआई गरीबों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं प्रदान करता है और एबीसी ट्रस्ट शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय ने दिसंबर 2021 में विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम के तहत एएफएमआई के पंजीकरण को रद्द कर दिया क्योंकि वडोदरा पुलिस की रिपोर्ट थी कि यह ट्रस्ट 'अवैध इस्लामी गतिविधियों' में शामिल है.
एक पूरक चार्जशीट में एटीएस ने आरोपों में धारा 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का प्रयास) और 123 (युद्ध छेड़ने की परिकल्पना को सुगम बनाने के आशय से छिपाना) को भी जोड़ दिया है.
एडवोकेट अबू बकर सब्बाक ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "शेख सलाहुद्दीन द्वारा भेजे गए फंड दिल्ली दंगों के बाद राहत कार्य के लिए थे. अवैध तरीकों से धन प्राप्त करने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि वह राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल होगा."
जबरन कनेक्शन
चार्जशीट में 'ड्यूसबरी मुस्लिम प्लान' का भी जिक्र है. यूनाइटेड किंगडम में ड्यूसबरी की मरकजी मस्जिद यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है. उत्तरी इंग्लैंड के इस शहर को, 2010 के मध्य में चरमपंथी इस्लामी विचारधारा के केंद्र के रूप में देखा जाता था. जहां ब्रिटिश मीडिया के दक्षिणपंथी वर्गों ने ड्यूसबरी के प्रभावशाली मुस्लिम समुदाय के बारे में चिंता व्यक्त की थी, वहीं स्थानीय लोगों कहा था कि यह शहर केवल कट्टरपंथ का केंद्र ही नहीं है.
एटीएस चार्जशीट में ड्यूसबरी के उल्लेख को सही ठहराते हुए एक दस्तावेज की ओर इशारा करती है, जो यूपी में गाजियाबाद की मसूरी कॉलोनी के एक मदरसे पर छापेमारी के दौरान बरामद किया गया था. इस दस्तावेज में "ड्यूसबरी न्यू मुस्लिम प्लान" का उल्लेख है जो युनाइटेड किंगडम में कट्टरपंथी इस्लाम के प्रसार की साजिश के बारे में है. 2011 की जनगणना के अनुसार यूके में मुसलमानों की आबादी, कुल आबादी का 4.4 प्रतिशत है.
जहां तक गौतम के इससे संबंध का सवाल है, एटीएस का दावा है कि आईडीसी के संस्थापक लोगों को इस्लाम की ओर आकर्षित करना चाहते थे और भारत में एक कट्टरपंथी मुस्लिम क्षेत्र बनाना चाहते थे. चार्जशीट में जांच अधिकारी कहते हैं कि "यह और कुछ नहीं बल्कि ड्यूसबरी न्यू मुस्लिम प्लान का भारतीय संस्करण है".
एटीएस के सवालों का जवाब देते हुए गौतम ने कहा, "मुझे ड्यूसबरी न्यू मुस्लिम प्लान की तर्ज पर बनी किसी योजना की जानकारी नहीं है."
गौतम को मिले चंदे को राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए प्राप्त धन बताने का प्रयास यदि ज्यादा लगता है, तो ड्यूसबरी का संदर्भ और भी अधिक अनुचित है. अधिवक्ता अबू बकर सब्बाक के लिए यह संदेश पढ़ना आसान है. वह कहते हैं, "इस तरह की इस्लामोफोबिक सामग्री को शामिल करने का उद्देश्य केवल धार्मिक भावनाओं को भड़काना है."
गौतम को जानने वालों को उन पर लगे आरोप बेतुके लगते हैं. उनके एक पड़ोसी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "खाना और धर्म जबरदस्ती किसी के गले से नहीं उतारा जा सकता."
चार्जशीट से यह स्पष्ट नहीं होता कि क्या एटीएस द्वारा प्रस्तुत की गई जानकारी जबरन धर्म परिवर्तन या राष्ट्र विरोधी गतिविधि साबित करने के लिए पर्याप्त है? यह 24 नवंबर 2020 और 31 अगस्त 2021 के बीच, यूपी पुलिस द्वारा धर्म परिवर्तन के खिलाफ दायर 72 चार्जशीट और 108 मामलों में से एक है. अब यह देखना है कि क्या यह मामले अदालत में संतोषजनक रूप से यह साबित कर सकते हैं कि उनकी चार्जशीट में आरोप किसी एक समूह या विचारधारा का एजेंडा नहीं, बल्कि सामुदायिक हित सिद्ध करते हैं.
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